मिट्टी में पाए गए सूक्ष्मजीवों की सूची | Here is a list of of microorganisms found in soil in Hindi language.

विभिन्न प्रकार के सूक्ष्म जीवों (Micro-Organisms) की वृद्धि (Growth) हेतु मिट्टी अत्यंत अनुकूल संवर्धन माध्यम (Excellent Cultural Media) होता है, जिसमें बैक्टीरिया (Bacteria), कवक (Fungi), शैवाल (Algae), प्रोटोजोआ (Protozoa) एवं वाइरस (Virus) जैसे सूक्ष्म जीवों (Micro-Organisms) के साथ ही बहुत से निमेटोड्स (Nematodes) तथा कीट (Insects) आदि उपस्थित रहते हैं ।

सामान्यत: मिट्टी के 6 से 12 इंच ऊपरी स्तर पर जीवों (Micro-Organism) का पॉपुलेशन (Population) अधिकता (Majority) में पाया जाता है जो कि गहराई (Depth) बढ़ने के साथ ही कम होता जाता है ।

मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवों (Micro-Organisms) की संख्या (Number) एवं प्रकार (Type) मिट्टी की प्रकृति (Nature) गहराई (Depth) जलवायु या मौसम (Season) कार्बनिक पदार्थों (Organic Matters) ताप (Temperature), नमी (Moisture) मिट्टी में उपस्थित वायु (Aeration) आदि पर निर्भर करता है ।

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मिट्टी में मुख्यत: निम्न प्रकार के सूक्ष्म जीव (Micro-Organisms) पाए जाते हैं:

(1) बैक्टीरिया (Bacteria),

(2) कवक (Fungi),

(3) शैवाल (Algae),

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(4) प्रोटोजोआ (Protozoa),

(5) वाइरस (Virus),

(6) माइकोराइजा (Mycorrhiza) ।

(1) बैक्टीरिया (Bacteria):

मिट्टी (Soil) में विभिन्न प्रकार के बैक्टीरिया (Bacteria) पाए जाते हैं जिनमें से कुछ स्वयं पोषी (Autotrophic) होते हैं । वे अपनी वृद्धि (Growth) एवं ऊर्जा (Energy) हेतु अकर्बनिक यौगिकों (Inorganic Compounds) का उपयोग (Utilize) करते हैं ।

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मिट्टी (Soil) में पाए जाने वाले अधिकांश बैक्टीरिया (Bacteria) हेटेरो ट्राफिक (Heterotrophic) होते हैं । जोकि कार्बनिक पदार्थों (Organic Matters) का अधिकता से उपयोग करते हैं । ये बैक्टीरिया आर्डर (Order) यूबैक्टीरियेल्स (Eubacteriales) एवं एक्टीनोमाइसीटेल्स (Actinomycetales) के होते हैं ।

एक्टिनोमाइसिटेल्स (Actinomycetales) के अन्तर्गत पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवों (Micro-Organisms) के समूह जेनेरा (Genera), स्ट्रेप्टो माइसेस (Streptomyces), नोकार्डिया (Nocardia) एवं माइक्रोमोनो स्पोरा (Micro Monospora) में पाए जाते हैं । बैक्टीरिया (Bacteria) भूमि में नाइट्रोजन बंधीकरण जैसा महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न करते हैं ।

उनमें क्लोस्टीडियम, एजेटोबैक्टर, राइजोबियम, नाइट्रोसोमोनास, नाइट्रोबेक्टर आदि प्रमुख हैं । कुछ सल्फर, बैक्टीरिया (Sulphur Bacteria) सल्फर युक्त गैसों को ऑक्सीकृत कर उन्हें सल्फेट्स (Sulphates) में परिवर्तित करते हैं । यह पौधों द्वारा उपयोग में ले ली जाती है या वर्षा के जल द्वारा भूमि से निष्कासित कर दी जाती है ।

इस प्रक्रिया में सल्फ्यूरिक अम्ल (Sulphuric Acid) का भी निर्माण होता है, जो अघुलनशील मृदा कणों (जैसे कैल्शियम, फस्फेट, मैंग्नीशियम, कार्बोनेट, कैल्शियम सिलिक्टे, ट्राइकैल्शियम फास्फेट) को घुलनशील बनाकर उन्हें पौधों के उपयोग हेतु उपलब्ध होते हैं ।

सल्फर बैक्टीरिया का महत्वपूर्ण उदाहरण थियो बैसीलास है । इस प्रकार मृदा में पाये जाने वाले खनिज जैसे फास्फोरस (Phosphorus) लोहा (Iron) आदि में भी बैक्टीरिया परिवर्तित करते हैं ।

(2) कवक (Fungi):

इसके अन्तर्गत मोल्डस (Moulds) एवं बड़े मांसल कवक (Large Fleshy Fungi) जैसे मशरूम (Mushrooms) आते हैं । मिट्टी (Soil) में कवकों (Fungi) का परिवर्धन (Development) मुख्य रूप से अम्लीय माध्यम (Acidic Medium) एवं सतह (Surface) पर वायुवीय परिस्थितियों (Aerobic Conditions) पर निर्भर करता है ।

मिट्टी में कवक (Fungi) कवक तंतु (Mycelium) एवं स्पोर्स (Spores) दोनों अवस्थाओं (Stages) में असंख्य संख्या में पाए जाते हैं । ये कवक (Fungi) पौधों के ऊतकों में उपस्थित सेल्यूलोज (Cellulose) एवं लिग्नीन (Lignin) के अपघटन (Decomposition) में सक्रिय (Active) रहते हैं ।

मोल्ड माइसीलियम (Mould Mycelium) मिट्टी (Soil) को भेदकर (Penetrate) एक नेटवर्क (Network) बनाते हैं जिसमें मिट्टी के कणों (Soil Particles) के साथ ही संचित जल संरचना होती है । जिससे कि इसका कृषि हेतु महत्व (Agricultural Importance) निर्धारित किया जाता है ।

इसके साथ ही कवक (Fungi) मिट्टी की भौतिक अवस्था (Physical Condition) को विकसित करते हैं । कवक (Fungi) मुख्यत: विनेयार्डज (Vineyards) एवं ऑचार्डस (Orchards) की मिट्टी में अत्यधिक संख्या में पाए जाते हैं ।

इसके अतिरिक्त शर्करा कवक (फाइको माइसीटीज के सदस्य) ह्यूमस कवक, मृदा में निवास करने वाली परजीवी कवक परभक्षी कवक, डंक कवक, डयेटरो माइसीटीज के सदस्य आते हैं ।

कुछ यीस्ट (Yeast) की भी कई जातियों पायी जाती है । जैसे केन्डीडा, क्रिप्टो कॉकस, टोरुला आदि कवक भूमि में जटिल कार्बनिक पदार्थों का सरल पदार्थों में अपघटन (Decomposed) करते हैं ।

जिससे मृदा (Soil) की उर्वरकता में वृद्धि होती है । प्रोटीन युक्त पदार्थ भी कवक (Fungi) द्वारा अपघटित होते हैं जिससे मृदा (Soil) में अमोनिया (Ammonia) तथा सरल नाइट्रोजन (Simple Nitrogen) की मात्रा बढ़ती है । कवक मृदा में ह्यूमस निर्माण में सहायक होती है ।

(3) शैवाल (Algae):

शैवाल (Algae) सामान्यत: नम भूमि (Moist Soil) की सतह (Surface) पर पाए जाते हैं । जहाँ पर उनके फोटोसिन्थेटिक क्रियाओं (Photosynthetic Reactions) हेतु समुचित प्रकाश (Light) उपस्थित होता है ।

मिट्टी में (Soil) अधिकांशतः हरे शैवाल (Green Algae) जैसे क्लोरोफाइसी (Chlorophyceae) के सदस्य एवं डाए एटम्स (Diatoms) में मुख्यतः बेसीलेरीओफाइसी (Bacillariophyceae) के सदस्य पाए जाते हैं । ये मिट्टी में अत्यधिक संख्या में पाए जाते हैं ।

कुछ परिस्थितियों में इनकी अत्यधिक संख्या बढ़ने के कारण मरूभूमि (Desert Soil) में लाभप्रद परिवर्तन (Beneficial Changes) आ जाते हैं । इसके साथ ही ये धान के खेतों (Paddy Fields) में वहां की मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen Fixation) करते हैं ।

कुछ शैवाल जैसे जैन्थोफाइटा (Xanthophyta) समूह (Group) की जातियों सतह से कुछ अधिक गहराई में जा सकती हैं । वर्षा के जल से सतही शैवाल बह जाती है । बैसीलीरियो फाइटा तथा क्लोरोफाइटा (Chlorophyta) की कुछ जातियाँ सतह की गहराई में परपोषित (Heterotrophic) रूप में निवास करती हैं । एक ग्राम मृदा (Soil) में शैवालों की कुल संख्या 50,000 से 1,00,000 तक हो सकती है ।

कुछ शैवाल जातियों का विवरण इस प्रकार है:

(i) बैसीलेरीयोफाइटा (Bacillareophyta):

इस समूह (Group) के सदस्य भी मृदा में व्यापक रूप से पाए जाते हैं । डाइट्म (Diatomes) की प्रत्येक कोशिका (Cells) के आवरण में सिलिका (Silica) अधिक होता है । इनमें डाइऐटोमिन (Diatomin) वर्णक (Pigment) पाया जाता है । उदाहरण- पिन्यूलेरिया, नेबोकूला आदि ।

(ii) क्लोरोफाइटा (हरी शैवाल) (Chlorophyta (Green Algae)):

खेतों कई ऊपरी सतह कभी-कभी हरी शैवाल (Green Algae) से ढंकी हुई रहती है, जिससे कृषकों को अच्छी फसल की प्राप्ति होती है । हरी शैवाल (Green Algae) प्रचुर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrates) का संश्लेषण (Synthesis) करती है ।

जिसे नाइट्रोजन (Nitrogen) बंधीकरण करने वाले बैक्टीरिया (Bacteria) मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा बढाते हैं । उदाहरण- ऐजेटोबैक्टर (Azotobacter) मृदा (Soil) में मिलने वाली हरी शैवाल (Green Algae) प्रमुख सदस्य क्लेमाइडोमोनास, फ्लूरोकॉकस, यूलोथ्रिक्स बॉट्राइडियम आदि ।

(iii) साइनो बैक्टीरिया (नीली हरी शैवाल) (Cyanobacteria (Blue Green Algae)):

इस समूह (Group) के सदस्य मृदा (Soil) में व्यापक रूप से पाये जाते हैं, क्योंकि ये वातावरण की नाइट्रोजन (Nitrogen) को बंधीकृत कर उसे उपजाऊ बनाते हैं । नॉस्टोक (Nostoc) ऐनाबेना (Anabena) जैसे प्रमुख सदस्य यह क्रिया उनमें उपस्थित विशिष्ट कोशिका हेटरोसिस्ट (Heterocyst) द्वारा सम्पन्न करते हैं ।

(iv) जैन्थोफाइटा (Yellow Green Algae Zanthophyta):

वाऊचेरिया इस समूह का एक ऐसा सदस्य है, जो कृषि भूमि या नम मृदा में अधिक संख्या में पाया जाता है ।

(4) प्रोटोजोआ (Protozoa):

इसके अन्तर्गत मिट्टी (Soil) में सिलिएट्‌स (Cilliates) की अपेक्षा फ्लैजिलेट्‌स (Flagellates) एवं अमीबा (Amoeba) अधिक संख्या में पाए जाते हैं । इनकी संख्या कुछ सौ (Few Hundred) से लेकर कई हजार (Several Thousands) तक हो सकती है ।

मिट्टी की परिस्थितियों (Conditions) के आधार पर इनमें पाए जाने वाले प्रोटोजोअन्स (Protozoans) वेजीटेटिव (Vegetative) या सिस्टरूपों (Cyst Forms) में पाए जाते हैं ।

ये कार्बनिक पदार्थों (Organic Matter) का अपघटन (Decomposition) करते हैं तथा भोजन (Food) हेतु उसका उपयोग करते हैं साथ ही ये मिट्टी में उपस्थित कुछ मात्रा में मृत एवं जीवित बैक्टीरिया (Bacteria) का भी भक्षण (Consume) करते हैं तथा मिट्टी में उपस्थित बैक्टीरियल फ्लोरा (Bacterial Flora) में संतुलन (Equilli-Brium) बनाए रखते हैं ।

कुछ और सदस्य जैसे- ओइकोमोनासटर्मों सारकोमोनास, कोल पोडा, कुकुलस, हाइलाइना आदि ये सामान्यतः मृदा की ऊपरी सतह पर पाये जाते हैं तथा मृदा आद्रता के प्रति संवेदनशील होते हैं । मृदा (Soil) में इनकी उपस्थिति घातक होती है, क्योंकि ये मृदा (Soil) में बैक्टीरिया (Bacteria) पर जीवित रहते हैं ।

(5) विषाणु (Virus):

मिट्टी (Soil) में कुछ पादप (Plant) के कुछ जन्तु वाइरस (Animal Virus) भी उपस्थित रहते हैं तथा अधिकांशतः जीवों के लिए रोगकारक (Pathogenic) होते हैं ।

(6) माइको राइजा (Mycorrhiza):

इसके अतिरिक्त कवक (Fungi) के कुछ सदस्य (Member) जडों (Roots) के साहचर्य (Associated) में रहते हैं, जिन्हें माइकोराइजा (Mycorrhiza) कहते हैं । ये जड़ की सतह पर बाह्यपोषी माइकोराइजा या अन्दर (अन्त: पोषी माइकोराइजा) निवास कर सकते हैं ।

बाह्यपोषी माइकोराइजा के प्रमुख सदस्य बेलीटस, लेक्टेरियम, ऐमेनीटा आदि हैं । जबकि अन्त: पोषी माइकोराइजा के सदस्य पोमा, राइजक्टोनिया, आर्मी लेरिया आदि हैं ।

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