Read this article in Hindi to learn about:- 1. सार्वजनिक उपक्रम और उनकी प्रबंध-पद्धतियाँ (Public Enterprises and their Managerial System) 2. सार्वजनिक उपक्रम की विशेषताएं (Features of Public Enterprises) 3. उद्देश्य (Objectives) and Other Details.

सार्वजनिक उपक्रम और उनकी प्रबंध-पद्धतियाँ (Public Enterprises and their Managerial System):

सार्वजनिक उपक्रम सरकारी स्वामित्व में स्थापित और संचालित ऐसे उद्यम है जो वस्तुओं के उत्पादन या सेवाओं के प्रदाय में संलग्न हैं । यहां सरकारी स्वामित्व से आशय है केंद्र सरकार, राज्य सरकार या दोनों का संयुक्त स्वामित्व । सरकार के साथ निजी क्षेत्र या जनता की अंश भागिता भी इनमें हो सकती है लेकिन सरकार के मुकाबले कम ।

संयुक्त राष्ट्र संघ प्रकाशन के अनुसार- ”सार्वजनिक उद्यम का अभिप्राय है राज्य द्वारा संचालित उद्यम विशेष रूप से औद्योगिक कृषि या वाणिज्यिक, जिस पर राज्य का स्वामित्व पूर्ण या आंशिक होता है ।”

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इस परिभाषा में दो तत्वों पर बल दिया गया है:

1. उद्यम की आर्थिक प्रकृति और

2. राज्य का स्वामित्व ।

सार्वजनिक उपक्रम की विशेषताएं (Features of Public Enterprises):

सार्वजनिक उधम सरकारी स्वामित्व में स्थापित ऐसे उद्यम है जो सेवा प्रदाय या वस्तु उत्पादन में नियोजित है । विभिन्न प्रबन्धकीय पद्धतियों से संचालित इन उपक्रमों की अपनी विशेषताएं हैं, जो इन्हें निजी उध्यमों से अलग पहचान देती है ।

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भारत ने अपनी आर्थिक-सामाजिक विषमता को दूर करने और इन क्षेत्रों के संतुलित विकास को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया अर्थात् सार्वजनिक और निजी दोनों पूंजी का सहयोग प्राप्त करना । सार्वजनिक पूंजी को उत्पादन और सेवा में विनियोजित करने का एक सशक्त माध्यम है- सार्वजनिक उद्यम या उपक्रम ।

नियोजित अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक उपक्रमों को दायित्व सौंपे गये, परिणामत: उनका तेजी से विकास हुआ लेकिन उनमें से अनेक घाटे, गबन आदि के शिकार हो गये, परिणामत: आज के नवलोक प्रबन्ध युग में उनकी भूमिका और अस्तित्व को नये सिरे से परिभाषित किया जा रहा है ।

विशेषताएं (Features):

सार्वजनिक उपक्रमों की प्रमुख विशेषताएं हैं:

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1. सार्वजनिक चरित्र:

इन उपक्रमों की पूंजी, कार्य, सेवा आदि का स्वरूप सार्वजनिक होता है ।

2. सरकारी स्वामित्व:

इनमें सरकारी पूंजी की अंशधारिता 51 प्रतिशत या अधिक होती है, अतएव ये सरकारी स्वामित्व के होते हैं ।

3. लोक कल्याणकारी निकाय:

सार्वजनिक उपक्रमों की स्थापना के पीछे मुख्य उद्देश्य लोककल्याण करना होता है । भारतीय जीवन बीमा निगम हो या भारत संचार निगम लिमिटेड, आम जनता के हितों की पूर्ति केन्द्रीय लक्ष्य होता है ।

4. आधारभूत संरचनाओं के विकास से विशेष रूप से संबंधित:

देश के विकास हेतु आधारभूत संरचना का विकास पहली अनिवार्यता है और सरकार ही इसके लिये जरूरी भारी निवेश जुटा पाती है । ये निवेश सार्वजनिक उपक्रमों के माध्यम से भी होता है । भारत में संचार, परिवहन, बिजली, आदि के विकास में सार्वजनिक उपक्रमों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है ।

5. विविध गतिविधियां या क्षेत्र:

सार्वजनिक उपक्रम उत्पादन और सेवाओं के विविध क्षेत्रों में स्थापित किये जा सकते हैं । इस्पात, कोयला, गैस और अन्य खनिजों के दोहन और उत्पादन के साथ बीमा, संचार, परिवहन आदि सेवा प्रदाय के लिये भी सरकार इन्हें स्थापित करती रही है ।

6. संतुलित विकास का लक्ष्य:

सरकार पिछड़े क्षेत्रों को विकास की मुख्य धारा में लाने के लिये उपक्रमों की स्थापना उन क्षेत्रों में करती है । ये सार्वजनिक उपक्रम ही है जो ऐसे विषय क्षेत्रों में भी काम करते हैं अन्यथा निजी उद्यमी तो इन क्षेत्रों की तरफ देख भी नहीं सकते ।

7. संसदीय नियंत्रण:

सार्वजनिक उपक्रमों पर विभागीय मंत्री के माध्यम से संसद का नियन्त्रण लागू होता है । अपनी स्थापना से लेकर वित्तीय सहायता तक उपक्रम संसद पर निर्भर रहते हैं ।

8. विभागीय नियन्त्रण:

सार्वजनिक उपक्रमों पर अपने विभागीय मंत्री का नियन्त्रण पाया जाता है यद्यपि उसमें प्रबंधकीय स्वरूप अनुसार भिन्नता पायी जाती है ।

सार्वजनिक उपक्रम के उद्देश्य (Objectives of Public Enterprises):

सार्वजनिक उद्यमों की स्थापना के पिछे मुख्य उद्देश्य था, भारत के विकास में समाजवादी अवधारणा के अनुरूप सार्वजनिक पूंजी को बढ़ावा देना । 1948 और फिर 1956 की औद्योगिक नीति में इसी अवधारणा को अपनाया गया और 1956 से 70 के मध्य अनेक सार्वजनिक उपक्रमों में भारी पूंजी निवेश किया गया ।

उद्यमों के मुख्य उद्देश्य रहे हैं:

1. आर्थिक विकास दर में तीव्र वृद्धि करना,

2. तीव्र औद्योगिक विकास के लिए आवश्यक आधारभूत ढांचे का निर्माण करना,

3. सामाजिक समानता प्राप्त करने के लिए आय और धन के पुन: वितरण को प्रोत्साहित करना,

4. संतुलित क्षेत्रीय विकास को प्रोत्साहित करना,

5. रोजगार के अधिकाधिक अवसरों को बढ़ाना,

6. उत्पादन स्रोतों के कुशल निर्धारण को सुनिश्चित करना,

7. विदेशी प्रौद्योगिकी पर निर्भरता कम करने हेतु महत्वपूर्ण क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी विकास करना,

8. लघु और सहायक उद्योगों के विकास और विस्तार में सहायता हेतु बड़े उपक्रमों की स्थापना,

9. पुनर्निवेश के उद्देश्य से अतिरिक्त संसाधन जुटाना,

10. जनता को बेहतर सामाजिक-आर्थिक सेवाएं उपलब्ध कराना और उनका जीवन स्तर ऊंचा उठाना ।

सार्वजनिक उपक्रमों के प्रकार (Types of Public Enterprises):

a. उद्देश्य अथवा कार्य के आधार पर (On the Basis of Purpose or Work):

विलियम रॉब्सन ने सात प्रकार के लोक उद्यमों का उल्लेख किया है:

1. सार्वजनिक उपभोग सेवाओं के उद्यम- जिनमें जल, गैस, विद्युत इत्यादि से संबंधित उद्यम सम्मिलित है ।

2. यातायात एवं संचार संबंधी- रेल, हवाई यातायात, बस, जहाजरानी, डाक, तार, टेलीफोन इत्यादि ।

3. अधिकोषण, शाखा एवं बीमा- बैंक, बीमा निगम, वित्त निगम इत्यादि ।

4. बहूद्देशीय विकास योजना संबंधी उद्यम- अमरीकी टैनेसी वैली अथॉरिटी, भारत में दामोदर घाटी निगम इत्यादि ।

5. आधारभूत उद्योग- कायेला खदान, लोहा व स्टील, तेल उत्पादन इत्यादि से संबंधित उद्यम, जोकि देश की अर्थव्यवस्था के लिए मूलभूत स्रोतों की उपलब्धता का आश्वासन प्रदान करते है ।

6. नवीन उद्योग या सेवाएं- इस श्रेणी में हिन्दुस्तान स्टील, भारतीय टेलीफोन उद्योग, हिन्दुस्तान मशीन टूल्स, राज्य व्यापार निगम उल्लेखनीय हैं ।

7. सांस्कृतिक कार्यविधियों- इसमें ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन, ब्रिटेन में कला परिषद एवं भारत का फिल्म निगम आते हैं ।

स्वामित्व के आधार पर खेरा ने भारतीय लोक उद्यमों को चार वर्गों में विभक्त किया है:

(1) केंद्रीय शासन के उद्यम- डाक-तार विभाग, रेल विभाग, हिन्दुस्तान स्टील, भारतीय स्टेट बैंक, जीवन बीमा निगम इत्यादि ।

(2) राज्य सरकार के उद्यम- विद्युत मण्डल एवं राज्य यातायात निगम ।

(3) केंद्र और राज्य के संयुक्त उद्यम- दामोदर घाटी निगम एवं भाखड़ा-नांगल परियोजना इत्यादि ।

(4) सरकार और निजी प्रतिष्ठानों के संयुक्त उद्यम- सिंगरोनी खदान एवं आयल इंडिया लिमिटेड ।

b. प्रबंध के स्वरूप के आधार पर (On the Basis of the Nature of the Management):

सरकार उद्योग तो लगाती है परंतु उसके सामने समस्या प्रबंध के स्वरूप को लेकर है अर्थात् उसका प्रबंध विभागीय हो या अन्य कोई तरीके से हो ।

सार्वजनिक उद्यमों के प्रबंध के पांच तरीके प्रचलित हैं:

1. विभागीय प्रबंध ।

2. लोकनिगम ।

3. कंपनी प्रबंध ।

4. मिश्रित पूंजी कंपनी ।

5. संचालन ठेका ।

सार्वजनिक उपक्रम के कार्य और भूमिका (Work and Role of Public Enterprises):

सार्वजनिक उपक्रमों ने कतिपय अपवादों को छोड़कर देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है ।

जो इस प्रकार देखा जा सकता है:

1. 1950-51 में सार्वजनिक क्षेत्र लगभग शून्य था । प्रथम दशक में विकास अत्यंत धीमा था लेकिन उत्तरोत्तर उसमें तेजी आयी और विगत दो दशकों में भारी वृद्धि हुई ।

2. 1951 में मात्र 5 उपक्रम थे जिनमें कुल 29 करोड़ रू. की पूंजी लगी थी । 1999 में 246 उपक्रमों में 2 लाख 30 करोड़ रू. से अधिक की पूंजी लगी थी ।

3. जहां तक सार्वजनिक उद्यम का आर्थिक क्षेत्र में देन का संबंध है वार्षिक विक्रय मूल्य के आधार पर 1960-61 में 1200 करोड़ रू. से बढ़कर 1900-91 में 1,18,355 करोड़ की गयी । परंतु यह वृद्धि 1990-91 में कुल निवेश के अनुपात में महत्वपूर्ण नहीं है ।

4. जहां तक निर्यात के क्षेत्र का संबंध है इन उद्यमों के द्वारा देश में विदेशी मुद्रा भंडार में पर्याप्त वृद्धि संभव हुई है परंतु निर्यात के क्षेत्र में यह वृद्धि निरंतर एक समान न होकर घटती, बढ़ती रही है । निर्यात से प्राप्त आय में इनका योगदान 0.25 प्रतिशत से 0.20 प्रतिशत के मध्य रहा है ।

5. विभिन्न कर, शुल्क आदि के रूप में लोक उद्यमों का राजकोष में योगदान सालाना 47 हजार करोड़ (1999 का आंकड़ा) तक पहुंच गया था ।

6. आदर्श नियोक्ता की भूमिका निभाते हुए लोक उद्यमों ने 19 लाख (1999) लोगों को रोजगार मुहैया करा रखा है ।

7. देश के उत्पादन और औद्योगिक विकास में लोक उद्यमों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है । देश के कुल उत्पाद में इस क्षेत्र का अंश 28 प्रतिशत है । कई क्षेत्रों में कोयले, पेट्रोलियम, अल्युमीनियम, तांबे के उत्पादन में सार्वजनिक उद्यम ही शत प्रतिशत उत्पादन करते हैं, जबकि इस्पात और लोहे का 60 प्रतिशत जस्ते का 80 प्रतिशत तथा उर्वरकों के उत्पादन में 50 प्रतिशत ही इन उद्यमों के द्वारा उत्पन्न किया जाता है ।

8. संचार, परिवहन (रेलवे) विद्युत, गैस प्रदाय (एच.पी. भारत) औषधि, सीमेंट आदि क्षेत्रों में लोक उपक्रमों ने उपयोगी सेवाएं दी हैं ।

9. बचत और पूंजी निर्माण में भी इनकी भूमिका प्रशंसनीय रही है । ऐसे उद्यमों में मुख्य हैं, भारतीय औद्योगिक विकास बैंक, भारतीय औद्योगिक वित्त निगम, जीवन बीमा निगम, यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया, भारतीय स्टेट बैंक और अन्य ।