कालिदास की जीवनी | Kalidas Kee Jeevanee | Biography of Kalidas in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन एवं कृतित्व ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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संस्कृत साहित्याकाश के दिव्य सूर्य महाकवि कालिदासजी सर्वतोमुखी प्रतिभासम्पन्न कवि थे । विश्व के महान् कवियों में कालिदास का जन्म सर्वोच्च माना जाता है । प्राचीन भारतीय समीक्षकों ने कवि कालिदास क्दे कवि-कुलगुरु कविकुल चूड़ामणि आदि उपाधियों से विभूषित किया है ।

किसी प्राचीन कवि ने कालिदास की तुलना दूसरी अनामिका से कहकर उन्हें अद्वितीय कहा है:  पुरा कवीनां-प्रसंगे कनिष्ठाकाधिष्ठित कालिदासा । आद्दापि ततुल्य कवेर भावात् अनामिका सार्थवती वभूव ।।

2. जीवन एवं कृतित्व:

महाकवि कालिदास के जन्मकाल के विषय में अनेक विद्वानों में विभिन्न मत प्रकट किये हैं । कोई उन्हें कालीभक्त, तो कोई उन्हें शिवभक्त मानता है । वे विक्रमादित्य के दरबार के रत्नकवि रहे हैं । ब्राह्मण वंश में उत्पन्न कालिदास अनाथ थे । उनका पालन-पोषण एक् ग्वाले ने किया था ।

अठारह वर्ष की अवस्था तक वह निरक्षर तथा वजमूर्ख थे । कहा जाता है कि वह इतने मूर्ख थे कि जिस डाली पर बैठे थे, उसी डाली को काट रहे थे । गौरवर्णीय, हृष्ट-पुष्ट कालिदास का विवाह राजकुमारी विद्योत्तमा से हुआ था । कहा जाता है कि राजकुमारी विद्दोत्तमा शास्त्र ज्ञान की अभिभामिनी थी । उसने यह घोषणा की थी कि जो मुझे शास्त्रार्थ में पराजित कर देगा, वही मेरा पति होगा ।

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राज्यमन्त्री के सम्बन्ध राजा से अच्छे नहीं थे, अत: उसने वजमूर्ख कालिदास को मौनी गुरा बनाकर शास्त्रार्थ करवाया था । कालिदास विद्दोत्तमा के प्रश्नों का उत्तर उंगली दिखाकर दे रहे थे । राज्यमन्त्री उसकी व्याख्या करते जाते थे ।

विवाह के कुछ घण्टों बाद विद्योत्तमा को कालिदास के महामूर्ख होने की बात मालूम हुई । क्रोध एवं अपमान से तिलमिला रही विद्दोत्तमा ने उन्हें घर से निकाल दिया । घर से निकलकर स्वप्न दर्शन के अनुसार कालिदास ने मां काली की आराधना तन, मन, वचन से की । मां काली के आशीर्वाद से कालिदास प्रकाण्ड विद्वान् बन चुके थे ।

लौटने पर विद्योत्तमा ने उनसे पूछा: ”उनकी वाणी में कुछ विशेषता आयी है ।” इस प्रश्न के उत्तर में कालिदास ने कुमारसम्भवम्, मेघदूत तथा रघुवंश की रचना कर डाली । वे विद्योत्तमा को गुरामाता कहकर पूजने लगे ।

विद्दोत्तमा ने खीझकर उन्हें यह शाप दे दिया कि तुम्हारी मृत्यु का कारण एक स्त्री ही होगी हुआ भी ऐसा था । कालिदास उज्जयिनी जाकर वेश्याओं की संगति में रहने लगे । एक बार एक वेश्या ने बताया कि राजा ने कविता के एक् चरण की पूर्ति के लिए बहुत बड़ा पुरस्कार रखा है पहला चरण था-कमले कमलोद्यति: भूयते न तू दृश्यते, अथर्पत् एक कमल पर दूसरे कमल की उत्पत्ति सुनी जाती है, पर देखी नहीं

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जाती ।

कालिदास ने इसकी पूर्ति करते हुए कहा: ”बाले ! तव मुखाम्भोजे कथमिदीवरद्वयम, अर्थात् ”हे बाले ! तुम्हारे मुख रूपी कमल पर ये दो नयन रूपी कमल कैसे उत्पन्न हो गये ।” पुरस्कार के लोभ में वेश्या ने कालिदास की हत्या कर दी । यह समाचार सुनकर उनके अभिन्न मित्र कुमारदास ने भी अपने प्राण त्याग दिये ।

जनश्रुतियों के अनुसार कालिदास विक्रमादित्य अथवा राजा भोज के नवरत्नों में से एक थे । एक शिलालेख के अनुसार महाराज विक्रमादित्य के आश्रय में कार्तिक शुक्ला एकादशी रविवार के दिन 95 वर्ष की आयु में कवि कालिदास ने अपने प्राण त्यागे ।

कृतित्व:

1. रघुवंश {महाकाव्य}

2. मेघदूतम् {खण्डकाव्य या गीतिकाव्य}

3. तुसंहारम् {त्वण्डकाव्य या गीतिकाव्य}

4. कुमारसम्भवम् {महाकाव्य}

5. मालविकाग्निमित्रम् {नाटक}

6. विक्रमोर्वशीयम् {नाटक}

7. अभिज्ञान शाकुन्तलम् {नाटक}

रघुवंश महाकाव्य में कालिदास ने रघुवंशी राजाओं का वर्णन किया है । रघुवंश के 25 सर्गो में राजा दिलीप से कथा का प्रारम्भ होता है, जिसमें ‘राम’ तथा ‘सीता’ के जीवन से सम्बन्धित घटनाओं का वर्णन है । ‘सीता’ द्वारा भूमि में समा जाने के बाद कुश के हाथों में शासन आ जाता है ।

अन्तिम राजा अग्निवर्ण की मृत्यु के बाद शासन उनकी गर्भवती रानी के हाथ में आ जाता है । वर्णनों की सजीवता, प्रसंगों की स्वाभाविकता, शैली की मधुरता तथा भाव-भाषा की अनुरूपता में रघुवंश संस्कृत साहित्य में अनुपम है । कुमारसम्भवम् में शिव-पार्वती के विवाह और उनके पुत्र कार्त्तिकेय के तारकासुर वध की कथा 17 सर्गों में है । इस शृंगार प्रधान काव्य में कालिदास ने अनुपम सृष्टि की है ।

‘ऋतुसंहार’ प्रारम्मिक रचना है । अत: इसमें प्रौढ़ता का अभाव है । ‘मालविकाग्निमित्र’ में शुंगव शीप राजा अग्निमित्र तथा मालविका के प्रेम का अत्यन्त कमनीय वर्णन है । इसमें अन्तःपुर के षड्‌यन्त्र, रानियों की ईर्ष्या, राजाओं की विलासिता का चित्रण उदात्तता से हुआ है ।

विक्रमोर्वशीय में राजा पुरूरवा तथा उर्वशी की प्रेम-कथा का बड़ी मार्मिकता के साथ वर्णन किया गया है । राक्षस के चगुल से बचाते-बचाते पुरूरवा को उर्वशी से प्रेम हो जाता है । प्रेम में विरह का वर्णन अत्यन्त स्वाभाविक बन पड़ा है । ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’ में हस्तिनापुर के राजा दुष्यन्त तथा महर्षि कण्व की पुत्री शकुन्तला के प्रेम, विरह, मिलन का दृश्य अत्यन्त भावपूर्ण है ।

इन सभी गन्धों में कालिदास का कथोपकथन प्रसंगानुकूल है । उनकी भाषा सरल, पात्रानुकूल एवं व्यंजनापूर्ण और वर्णन शैली अत्यन्त हृदयस्पर्शी है । मानवीय भावों का सूक्ष्म उद्‌घाटन अद्वितीय है । इसमें प्रकृति सौन्दर्य की हृदय स्पर्शी झांकी मिलती है ।

3.उपसंहार:

निःसन्देह कालिदास ही संस्कृति साहित्य के ऐसे सर्वविख्यात कवि हैं । उन्होंने काव्य व नाट्‌य दोनों ही क्षेत्रों में अपनी अनुपम प्रतिभा का प्रदर्शन किया है । कालिदास की रचनाओं की काव्यशैली अपने उच्चतम शिखर पर पहुंच गयी है; क्योंकि कालिदास की कविता में भावना का प्राधान्य है, अलंकरण का नहीं । कालिदास की कविता में काव्य-कला के साथ-साथ भाषा का उदत्त, आलंकारिक प्रभाव मिलता है । वह संस्कृत के ”शेक्सपियर” कहेलाते हैं ।

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