Read this article in Hindi to learn about women health and family planning.
परिवार नियोजन का परिचय:
परिवार नियोजन को ध्यान में रखते हुए, निम्नलिखित के मध्य सुभिन्नता करनी है:
(i) बदलती हुई लागत तथा लाभ के प्रभाव के कारण, अपरिवर्तित वरीयता के बावजूद परिवार के द्वारा बच्चों की संख्या में परिवर्तन,
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(ii) सामाजिक बदलाव के परिणामस्वरूप ऐसी वरीयताओं में बदलाव, जैसे कि स्वीकार्य सामुदायिक मानदंडों का संशोधन और परिवार के कुल उद्देश्यों में महिलाओं की रुचि को अधिक महत्व ।
यहाँ जन्म नियंत्रण सुविधाओं की उपलब्धता का और इस क्षेत्र में जानकारी तथा प्रौद्योगिकी के प्रसार का भी एक सरल मुद्दा है । इस विषय पर कुछ प्रारंभिक सदेह के बावजूद, यह अब काफी स्पष्ट है कि जानकारी तथा व्यावहारिक सामर्थ्य उच्च जन्मदर व परिवार-नियंत्रण की अल्प सुविधा के साथ देशों में परिवार के प्रजनन क्षमता व्यवहार के लिए एक अन्तर बनाती है ।
विश्लेषण की एक पक्ति, जो हाल के वर्षा में बहुत शक्तिशाली होकर उभरी हे, महिलाओं के सशक्तिकरण को परिवारों के फैसले में तथा सामुदायिक मानदंडों की उत्पत्ति में एक निर्णायक भूमिका प्रदान करती है । हालाँकि, जहां तक ऐतिहासिक आंकडों का संबंध है, चूंकि ये विभिन्न परिवर्तनशील वस्तुएं एक साथ चलने के लिए प्रवृत है अतः, सामाजिक परिवर्तन के प्रभावों से आर्थिक विकास के प्रभाव को अलग करना आसान नहीं है ।
मात्र एक रद्दोबदल जिसका प्रजनन क्षमता पर एक सांख्यिकीय महत्वपूर्ण प्रभाव देखा जाता है वह निम्नलिखित है:
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1. महिला साक्षरता, और
2. महिला श्रम शक्ति की भागीदारी
महिलाओं की एजेंसी की अहमियत विशेष रूप से आर्थिक विकास से संबंधित रद्दोबदल के कमजोर प्रभाव के साथ तुलना में शक्तिशाली ढंग से निर्गत होती है । इस विश्लेषण पर निर्भर करते हुए, आर्थिक विकास ‘सर्वश्रेष्ठ गर्भनिरोधक’ से काफी दूर हो सकता है, लेकिन सामाजिक विकास-विशेष रूप से महिलाओं की शिक्षा तथा रोजगार-वास्तव में बहुत प्रभावी हो सकता है ।
हकीकत में, ऐसे अनेक विभिन्न तरीके हैं जिनमें स्कूल की शिक्षा उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा, स्वतंत्र रहने की उसकी क्षमता, व्यक्त करने की उसकी शक्ति, बाहरी दुनिया के बारे में उसका ज्ञान, समूह निर्णयों को प्रभावित करने में उसका कौशल इत्यादि पर इसके प्रभाव के माध्यम से परिवार के भीतर युवा महिलाओं की निर्णयन शक्ति में वृद्धि कर सकते हे ।
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तमिलनाडु के पास एक सक्रिय, लेकिन सहकारी, परिवार नियोजन कार्यक्रम था, और यह इसे इस प्रयोजन के लिए भारत के भीतर सामाजिक उपलब्धियों के मामले में एक अपेक्षाकृत अच्छी स्थिति का उपयोग कर सकता था, प्रमुख भारतीय राज्यों के बीच उच्चतम साक्षरता दर, लाभकारी रोजगार में महिलाओं की उच्च भागीदारी और अपेक्षाकृत कम शिशु मृत्यु दर ।
जबकि केरल तथा तमिलनाडु के पास प्रकृत रूप से घटी हुई प्रजनन दर है तथा-कथित उत्तरी गढ के अन्य राज्यों (जैसे कि उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान) में शिक्षा का इससे कम स्तर हे, विशेष रूप से महिला शिक्षा का स्तर और सामान्य स्वास्थ्य देखभाल का स्तर ।
इन सभी राज्यों में प्रजनन दर उच्च है । यह उन राज्यों में परिवार नियोजन की कठोर तरीकों के उपयोग के लिए सतत प्रवृत्ति के बावजूद है ओर इसमें कुछ जबर्दस्ती शामिल है (केरल तथा तमिलनाडु में प्रयुक्त अधिक स्वैच्छिक और सहयोगी दृष्टिकोण से विपरीत) ।
भारत के भीतर क्षेत्रीय विरोधाभास यथा जबर्दस्ती के प्रतिकूल आत्म-संकल्पवाद (अन्य बातों के साथ-साथ, सक्रिय और दिक्षित महिलाओं की भागीदारी पर आधारित है) के लिए दृढ़ता से बहस करता है ।
इमाम-ए जमाना मिशन:
IZM अपने लाभार्थियो को चिकित्सा सहायता प्रदान करता है । अप्रैल 2000-मार्च 2002 के दौरान प्रमुख बीमारियाँ हृदय की समस्यायें (20 मामले), हड्डी रोग समस्यायें (16 मामले), सर्जरी (बवासीर, हर्निया, पथरी, और फांक होंठ) (14 मामले), स्त्रीरोग समस्यायें (11 मामले) तथा सामान्य बीमारियाँ (एनीमिया, हैपेटाइटिस-B, अस्थमा आदि, 10 मामले) थीं ।
मौली-अली के क्लिनिक में डॉक्टर ने कहा कि मलिन बस्तियों में सबसे आम बीमारियां, पेट के कीडों का निकाला जाना कुपोषण, बचा संक्रमण, एनीमिया, मलेरिया, दस्त तथा गर्मी की समस्याएं है । लगभग 40 लोग हर रोज क्लिनिक में आते हैं- सभी धर्मों के 40% बच्चे, 30% पुरुष तथा 30% महिलाएँ ।
IZM ने दो अस्पतालों एक मौली-अली में तथा दूसरा एक अन्य विकसित मलिन बस्ती में, को वित्त पोषित किया है । IZM 100-150 महिलाओं के लिए प्रति शिविर, हर दो महीने में एक बार एक स्वास्थ्य शिविर का आयोजन करता है । प्रोफेशनल लोग महिलाओं तथा बच्चों के लिए अच्छे पोषण के बारे में पढाते हैं ।
सप्ताह में एक बार डॉक्टर हर स्कूल का दौरा करता है और वही के बच्चों की जाँच करता है । बीमार बच्चों के बारे में IZM को सूचना दी जाती है और अंतत: चारमीनार के सामान्य अस्पताल या मलिन बस्ती के दो में से एक अस्पताल में इलाज किया जाता है ।
अभी तक, IZM ने स्कूलों में बच्चों के लिए दो दत चिकित्सा शिविरों का भी आयोजन किया है । चिकित्सा संगठनों से प्राप्त सन द्वारा महिलाओं तथा पुरुषों दोनों के लिए चिकित्सा सहायता, सर्जरी तथा उपचार का प्रायोजन होता है तो उनके लिए यह मुख्य रूप से नि:शुल्क है ।
IZM लोगों को सरकारी अस्पतालों में भेजता है, अगर जरूरत पडती है तो हैदराबाद में गांधी अस्पताल IZM का प्रायोजक है । दवाइयाँ नि:शुल्क नहीं है, मरीज को हर बार आकर दवाई लेने के लिए दस रुपये देने होते हैं ।
यूनिसेफ का राजस्थान अनुभव:
राजस्थान का अलवर जिला अत्यंत दयनीय पर्यावरण वाली स्थितियों द्वारा विशेषित है । यह डायरिया के तथा इसके कारण होने वाली परजीवी बीमारियों से अनेक बच्चों के मरने का गवाह रहा है । जिले के स्कूलों में पीने के सुरक्षित पानी या सैनिटरी शौचालय के लिए कोई प्रावधान नहीं था ।
यदि वे अस्तित्व में होते, तो भी बच्चों को बीमार होने से बचने के लिए किन्हीं भी स्वच्छ प्रथाओं के बारे में जानकारी नहीं थी । इस स्थिति को भी विशेष रूप से प्राथमिक स्कूलों में लडकियों के नामांकन तथा प्रतिधारण को प्रभावित किया हुआ माना जाता है ।
जनवरी 2000 में, यूनिसेफ के राजस्थान प्राथमिक शिक्षा परिषद (RCPE) और विकास संचार एवं अध्ययन केंद्र के लिए (CDECS) के साथ भागीदारी करने के लिए जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम (डीपीईपी) के तहत एक स्कूल और एक पायलट परियोजना के रूप में स्वास्थ्य स्वच्छता कार्यक्रम (SHSP) का समर्थन किया था ।
परियोजना का उद्देश्य उन बच्चों को शिक्षित करना था जो बदले में, स्वच्छता के महत्व पर उनके परिवार और समुदाय को शिक्षित करेंगे । वह विचार स्वास्थ्य और शिक्षा के संदेश का प्रसार करने के लिए ”स्वच्छता स्काउट्स” की अवधारणा पर केंद्रित होने के लिए था ।
परियोजना आन्तरिक समूह के मार्गदर्शन के अधीन कार्यान्वित की गई थी, जिसमें एक प्रतिबद्ध राज्य परियोजना समन्वयक तथा अन्य कर्मचारियों की सहायता सहित सदस्य प्रतिनिधि, यूनिसेफ, शामिल थे । कार्यक्रम के उद्देश्य अध्यापकों ओर बच्चों के बीच स्वच्छता के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने के लिए थे और पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में स्वच्छता तथा स्वास्थ्य से संबंधित प्रथाओं में व्यवहारात्मक बदलाव को प्रस्तुत करने के लिए थे ।
कार्यक्रम स्कूलों में ऐसा वातावरण बनाए रखने के लिए निर्देशित किया गया था जो लडकियों की उपस्थिति को स्थिर रखने में मदद करेगा और बेहतर स्वास्थ्य, अधिकतम पहुंच की सीमा व स्थिरता के इष्टतम उपयोग को बढावा देने में मदद करेगा ।
इसका ध्यान परियोजना के संदेश के प्रसार को बच्चे से माता पिता तक और फिर समुदाय के लिए भी केन्द्रित था । परियोजना के तहत प्रवर्तित स्वास्थ्य पैकेज 7 घटकों को समाविष्ट करता था- पीने के पानी का सुरक्षित प्रयोग, मानव मल का निस्तारण, कचरा-निस्तारण, घर व खाद्य स्वच्छता, व्यक्तिगत स्वच्छता तथा गाव की सफाई ।
पैकेज को लागू करने के क्रम में, कुछ आवश्यक शर्तें सुनिश्चित की गई थीं, जैसे कि हैण्ड-पम्प व शौचालय जैसी सुविधाओं को सुनिश्चित करना तथा हस्तक्षेप के लिए हर स्कूल में स्कूल प्रबंधन समितियों का गठन करना ।
पैकेज का कार्यान्वन शिक्षकों, प्रधानाध्यापकों तथा संसाधन केन्द्र के सुसाध्य कर्ताओं को इसी मुद्दे पर और परियोजना के उद्देश्यों पर उन्हें संवेदनशील बनाने के क्रम में उनकी क्षमता निर्माण के माध्यम से किया गया था । बदले में शिक्षकों ने सहभागिता शिक्षण पर तथा भावी कार्यवाही पर जोर देने के साथ स्कूल प्रबंधन समितियों को प्रशिक्षित किया था ।
एक और अपनाई गई रणनीति कुल 1500 बच्चों को, हर स्कूल से 15, ‘स्वच्छता स्काउट्स’ के रूप में प्रशिक्षित करना था जो कि रोगों, व्यक्तिगत स्वच्छता पर, और स्कूलों में आयोजित स्काउट शिविरों में हैण्ड-पम्प तथा उसके हार्ड-वेयर के रखरखाव पर समुदाय में जागरूकता पैदा करेंगे ।
उन्होंने कक्षाओं में नवीकरण भी सुझाया तथा नाटकों को दर्शाया, कार्यशालाओं को आयोजित किया और मुद्दों पर प्रदर्शनियों का आयोजन किया । इसके अलावा, एक प्रशिक्षित शिक्षक तथा संसाधन व्यक्ति के मार्गदर्शन के अंतर्गत, हर स्काउट को यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई कि परियोजनाओं के घटकों का स्कूलों में पालन किया जाए, छात्रों की व्यक्तिगत स्वच्छता की निगरानी की जाए और परियोजना से संबंधित सर्वेक्षण संचालित किया जाए ।
व्यावहारिक समस्याओं के समाधान, जैसे कि शौचालयों का रखरखाव व पानी की कमी को बच्चों की सहभागिता और स्कूलों में अभिनव वर्षा जल संचयन तकनीक के माध्यम से माँगे गए थे । स्कूल स्वास्थ्य एवं स्वच्छता कार्यक्रम परिवर्तन के एजेन्टों के रूप में बच्चों को शामिल करते हुए बच्चों की भागीदारी का खरा उदाहरण है ।
बच्चों ने समुदाय को सफलतापूर्वक संदेश दिया है और लोगों के रवैये तथा मानसिकता में बदलाव को सुविधाजनक बनाया है । हालांकि, इसे याद रखने की जरूरत है कि इस तरह की शिक्षा और संचार को सतत तथा निरन्तर होना ही चाहिए, क्योंकि परिवर्तन उत्तरोत्तर होता है और प्रथाओं का वास्तविक अंगीकरण धीमा हो सकता है ।
भारत का परिवार नियोजन संघ:
FPAI महिलाओं तथा शिशु स्वास्थ्य से लेकर लिंग और प्रजनन अधिकार, परिवार नियोजन सहित यौन तथा प्रजनन स्वास्थ्य तक के मुद्दों के व्यापक वर्णक्रम पर ध्यान केन्द्रित करता है । यह महिलाओं की स्थितियों को वर्धित करने के लिए लडकों तथा लडकियों में समानता को बढ़ावा देने के लिए और जिम्मेदार पितृत्व के लिए युवाओं को तैयार करने के लिए सामुदायिक समूहों, राय देने वाले मार्गदर्शकों तथा स्थानीय गैर सरकारी संगठनों, और सरकार के साथ करीबी साझेदारी में काम करता है ।
इसके अलावा, FPAI पुरुषों और महिलाओं को अपने समुदाय की बेहतरी के लिए कार्रवाई आरम्भ करने के लिए स्थानीय स्वैच्छिक समूहों के गठन के लिए सक्षम बनाता है । यह लीक बनाने वाला दैदीप्यमान सामुदायिक दृष्टिकोण स्वास्थ्य और जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए, बेहतर निर्णय लेने की शक्तियों और आत्मनिर्भरता में परिणत हुआ है ।
FPAI राष्ट्रीय स्तर पर 38 शहरों, 40 कंस्बों तथा 10408 गांवों में उपस्थित है । यह भारत में सबसे पुराने तथा सबसे बडे गैर सरकारी संगठनों में से एक है । इसका प्रधान कार्यालय मुंबई में स्थापित है । इस पैराग्राफ में उनकी सबसे नवीन दो गतिविधियों की चर्चा की जा रही है ।
समुदायों को उनके प्रजनन स्वास्थ्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए सशक्त करना ”परिवार प्रगति परियोजना” अपनी प्रजनन स्वास्थ्य की जरूरतों को तथा विकास के लक्ष्यों को पूरा करने तथा साकार करने के लिए समुदायों को सशक्त बनाने के लिए एक मॉडल है ।
1995 में शुरूआत करके, मध्य-प्रदेश के तीन अनारक्षित जिलों-भोपाल, सागर, विदिशा तथा अभी हाल ही में पडोसी जिले रायसेन में यह कार्य-सम्पादन करता है । परियोजना 5330 गाँवों तथा 29 कस्बों में रहने वाले 6.19 मिलियन लोगों के बीच छोटे परिवार के आदर्श अपनाने में तेजी लाने की योजना बना रही है ।
इस परियोजना ने अनेक पुरस्कार जीते हैं जैसे कि आईपीपीएफ ग्लोबल विजन 2000 का पुरस्कार, उत्कृष्टता के लिए राष्ट्रमंडल पुरस्कार और इसे जर्मनी के हनोवर में आयोजित विश्व की श्रेष्ठ सतत विकास परियोजनाओं में से एक के रूप में चयनित किया गया था ।
महिलाओं को उनके अधिकारों तथा निर्णय लेने के लिए सशक्त बनाना:
i. टोंक परियोजना:
राजस्थान के टोंक जिले में महिलाओं के सशक्तिकरण एवं प्रजनन-स्वास्थ्य पहल की परियोजना का शुभारम्भ 1998 में हुआ था । यह 720 ग्रामों, 5 नगरों तथा 7 कस्बों में फैली हुई 7,27,000 की जनसंख्या को शामिल करती है ।
यह महिलाओं तथा कन्याओं को आत्मनिर्भर बनने के लिए, सक्रिय निर्णय-निर्माता बनने के लिए सशक्त बनाने का प्रयास कर रही है और गर्भवती माताओं के टीकाकरण कवरेज में सुधार एवं लोगों के लिए परिवार नियोजन सेवा सहित उच्च गुणवत्ता वाले यौन तथा प्रजनन सवार लाने के लिए भी प्रयास कर रही है । इस परियोजना ने नसबंदी में प्रभावशाली वृद्धि का परिणाम देते हुए पुरुषों के मध्य परिवार नियोजन के स्वीकरण को बढावा देने में एक नवीन रुझान को निश्चित किया है ।
ii. भारतीय परिवार नियोजन एसोसियेशन [FPAI-Family Planning Association of India] की सेवाएँ:
FPAI के 127 सेवा-निकास गुणवत्ता वाली परिवार नियोजन तथा अन्य प्रजनन स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करते हैं जो कि सस्ती तथा सुलभ हैं । निजी चिकित्सकों, अस्पतालों, अन्य गैर सरकारी संगठनों ओर उनके संचालन क्षेत्रों में सरकारी एजेंसियों के साथ संयोजन के रूप में काम करते हुए, FPAI प्रभावी ढंग से लोगों की अधिकतम संख्या तक पहुँचने का लक्ष्य रखता है ।
इन सेवाओं में गर्भनिरोधक, सुरक्षित गर्भपात, सुरक्षित मातृत्व एवं बच्चों की उत्तरजीविता, पुरुष प्रजनन स्वास्थ, किशोर यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य, बाझपन परामर्श तथा एचआईवी / एड्स की रोकथाम एवं परामर्श शामिल हैं ।
डंगोरिया चैरिटेबल ट्रस्ट (डीसीटी):
आन्ध्र प्रदेश के मेडक जिले के नरसापुर में स्थित महिलाओं एवं बच्चों के लिए डगोरिया अस्पताल ने इसकी स्थापना के एक वर्ष के बाद इसका कार्य-भार डगारिया चौरिटेबल ट्रस्ट (डीसीटी) ने संभाल लिया था, 1 जनवरी, 2004 को अपनी रजत जयती मनाई थी । यह अस्पताल सम्पूर्ण मेडक जिले को अत्यधिक रियायती चिकित्सा देखभाल प्रदान करता है और इसकी आबादी की सेवा करता है
1994 से, डीसीटी आसपास के गाँवों में स्वास्थ्य, पोषण, स्वच्छता, अनौपचारिक शिक्षा के क्षेत्रों में विस्तार प्रशिक्षण गतिविधियों में शामिल रहा है और अभी हाल ही में व्यावसायिक प्रशिक्षण के क्षेत्रों में भी शामिल हुआ है । किशोर लडकियों तथा महिलाओं के लिए एक सिलाई एवं कढाई प्रशिक्षण केंद्र भी साथ ही में आरम्भ किया गया है ।
पिछले वर्ष खाद्य प्रसंस्करण एवं प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किया गया था और खाद्य प्रसंस्करण केंद्र में महिलाओं द्वारा निर्मित उत्पादों के विपणन की सुविधा के लिए एक पृथक सोसाइटी ”महिला उद्योग” को गठित किया गया है ।
इसका विचार स्वास्थ्य, खाद्य एवं पोषण तथा पर्यावरण सुरक्षा में सुधार लाने के लिए मॉडल विकसित करने और अपनी समस्याओं के समाधान के लिए समुदाय को सशक्त बनाने के लिए है । अस्पताल आधारित गतिविधियों, महिलाओं के स्वास्थ्य एवं पोषण उद्यमियों तथा मोबिलाइजर्स (HNEMs), दाई प्रशिक्षण ओर जल स्वास्थ्य एवं स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया गया है ।
अस्पताल आधारित गतिविधियां:
I. प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल:
हैदराबाद से, महिलाओं तथा बच्चों के लिए डंगोरिया अस्पताल की एक मेडिकल टीम मंगलवार तथा शुक्रवार को नरसापुर के अस्पताल का दौरा करती है । महिलाओं तथा बच्चों के लिए बाह्य रोगी क्लीनिक चलाने के अलावा, परिवार नियोजन तथा अन्य स्त्रीरोगों की सर्जरी की जाती है ।
अप्रैल 2003 से लेकर मार्च 2004 तक में 1000 से अधिक नए प्रसवपूर्व मामले दर्ज किए गए थे । 497 प्रसव (79 शल्यक्रिया वर्गों सहित), 74 नसबंदी, 13 गर्भाशय की शल्य-क्रिया और एमटीपी, लैप्रोटॉमी तथा पेरीनिओरेफी जैसी 17 सर्जरी की गई थीं ।
i. बाल स्वास्थ्य देखभाल:
प्रत्येक मंगलवार को शिशु बाह्य-रोगी क्लीनिक संचालित की जाती है । इसमें टीकाकरण किया जाता है । माताओं को इन क्लीनिकों के दौरान मात एवं शिशु स्वास्थ्य पर सलाह दी जाती है ।
ii. प्रयोगशाला सेवाएँ:
मेडिकल टीम के साथ संलग्न एक प्रशिक्षित तकनीशियन मूत्र एवं रक्त परीक्षण जैसी सरल प्रयोगशाला जाँच करता है ।
iii. एम्बुलेंस व्यवस्था:
कंसर्न इंडिया, हैदराबाद के दयालु कार्यालयों के माध्यम से स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद ने डीसीटी के लिए एक एम्बुलेंस का दान दिया है । समय पर उपचार के लिए हैदराबाद तक गम्भीर मामलों को ले जाने के कार्य को एम्बुलेंस ने सुविधाजनक बना दिया है ।
II. महिला स्वास्थ्य तथा पोषण उद्यमी और मोबिलाइजर्स (HNEMs) तथा दाई प्रशिक्षण:
महिलाओं तथा बच्चों की सहभागिता के साथ नरसापुर मण्डल के ग्रामों में स्वास्थ्य, भोजन एवं पोषण तथा पर्यावरण सुरक्षा के लिए रणनीति विकसित करने के लिए डीसीटी प्रयास कर रहा है । HNEM परियोजना स्वास्थ्य-सेवा प्रदान करने के लिए एक मॉडल है, जिसे पिछले छह वर्षा से परखा जा रहा है ।
यह परियोजना 1998 में आरम्भ की गई थी । डीसीटी ने HNEMs के तौर पर 5 महिलाओं को प्रशिक्षित किया है जोकि 5 गैर-आईसीडीएस गाँवों में से एक-एक कर के चुनी गई थीं समुदाय के लिए, विशेष रूप से महिलाओं के लिए, स्वास्थ्य, पोषण, स्वच्छता आदि में सलाहकार का कार्य कर रहीं है ।
वे सभी गर्भवती महिलाओं को पंजीकृत करती हैं, प्रसव-पूर्व की जाँच को सुनिश्चित करती है, आयरन फॉलिक एसिड की गोली इत्यादि के सेवन को सुनिश्चित करती हैं वे छोटी बीमारियों का भी इलाज करतीं हैं और उनकी सेवाओं के लिए समुदाय उन्हें भुगतान करता है ।
उम्र तथा कारण से होने वाली मौतों के रिकॉर्ड और जन्म के समय वजन (जहां सम्भव हो) के साथ पैदा होने वाले बच्चों के रिकॉर्ड भी अनुरक्षित किए जाते हैं । दाइयों (पारंपरिक जन्म परिचारक) को भी प्रशिक्षित किया जा रहा है जिससे कि दो महिलाएँ मिलकर काम कर सकती हैं ।
प्रक्रिया तथा परिणाम दोनों के संदर्भ में रणनीति का आंकलन किया जा रहा है । प्रक्रिया के संबंध में, समुदाय HNEMs के बारे में जानता है और उन्हें स्वीकार कर चुका है । वे इस तथ्य से संतुष्ट हो गए हैं कि HNEMs इंजेक्शन नहीं लगाएंगी या मुफ्त दवाओं को नहीं बाटेंगी ।
चूंकि समुदाय अधिक महँगी दवाओं का भुगतान करने के लिए अनिच्छुक है, अतः कभी-कभी HNEMs सरल दवाइयों के पर्चे लिख देती है और मरीजों से ही दवाइयों को खरीदने के लिए कह देतीं हैं । HNEMs छोटी-मोटी दवाइयाँ रखती हैं और भुगतान के बदले दवाइयों देतीं हैं तथा कभी-कभी निशुल्क दवाइयाँ भी देतीं हैं ।
परामर्श तथा सलाह के लिए या तापमान और ब्लड प्रेशर की माप के लिए कोई शुल्वा नहीं लिया जाता है । जोखिम वाले मामले आगे रेफर किए जाते हैं । मामूली चोटों के लिए प्राथमिक चिकित्सा की जाती हैं ।
III. जल स्वास्थ्य एवं स्वच्छता:
जल स्वास्थ्य एवं स्वच्छता पर अखिल भारतीय समन्वित परियोजना (AICP) का DCT एक हिस्सा था । इस परियोजना का उद्देश्य तरल तथा ठोस कचरे के निपटान के लिए एक मॉडल विकसित करने के लिए है और पीने के सुरक्षित पानी की उपलब्धता बढाने के लिए है ।
रामचन्द्रपुर तथा अवांचा, ये दो गाँव इस परियोजना में शामिल किए गए थे । महिलाएँ इसकी प्रमुख हितधारक हैं और संरचनाओं के रखरखाव में प्रशिक्षित की जाती हैं । पुरुषों को सहायता देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है ।
अपशिष्ट जल निपटान:
एक विभाजित अवसादन टब तथा सोकेज गड्ढे को समाविष्ट करते हुए अपशिष्ट जल निपटान के लिए एक मॉडल विकसित किया गया है । यह मॉडल स्फूर्तिहीन पानी को दूर करने में बहुत प्रभावी है । कुल 37 संरचनाओं का निर्माण किया गया है ।
जहाँ उपलब्ध स्थान अपर्याप्त था, वहाँ घरों से निकला हुआ अपशिष्ट पानी अवसादन टैंक के माध्यम से ‘नानी’ जाल के द्वारा खुली नालियों में पहुँचा दिया जाता है । तीन घरों में गिरे हुए पानी के साथ ही अपशिष्ट पानी को घर के उद्यान में भेज दिया जाता है ।
इन रणनीतियों ने आस-पास के स्थानों में सुधार करते हुए, देहातों में से स्फूर्तिहीन पानी को समाप्त कर दिया है । इससे ग्रामीण विशेष रूप से महिलायें बहुत खुश हैं और वे लोग बताते हैं कि मच्छरों की समस्या कम हो गई है । पिछले साल भारी मानसून के बावजूद, इस प्रणाली ने कुशलता से काम किया है, सिवाय उन कुछ स्थानों को छोडकर जहाँ काली मिट्टी पाई जाती है ।
ठोस अपशिष्ट निपटान:
ठोस अपशिष्ट, विशेष रूप से प्लास्टिक, कागज, काँच आदि के निपटान के लिए, सीमेंट के गोल छल्लों से बने हुए कूडे-दान स्थापित किए गए हैं । जैविक कचरे को खाद में बदल दिया जाता है ।
स्कूल में स्वच्छता:
दोनों ही गाँवों में, स्कूलों के लिए 2-3 शौचालयों के एक ब्लॉक, फैले व गिरे हुए पानी को हटाने के लिए सोकेज गड्ढे के साथ एक बोर-वेल और छत के जल के संचयन की संरचना का इंतजाम किया गया है ।
जबकि शौचालय तथा बोर-वेल काफी उपयोगी हैं, रूफ वाटर हार्वेस्टिंग संरचना का सीमित उपयोग है क्योंकि ग्रामीण लोग उस टकी को खाली कर देते हैं जैसे ही वह बारिश के पानी से भर जाती है और इस तरह शुष्क मौसम के लिए पानी के भंडारण का उद्देश्य विफल हो जाता है ।
हर स्कूल को कचरा निपटान के लिए कूडा-दान प्रदान किया गया है, ताकि बच्चे अच्छी आदतें सीखें । स्कूल के बोर-वेल से गिरे हुए पानी को हटाने के लिए बनाये गए सोकेज गड्ढे को संशोधित किया गया था क्योंकि इस तरह से फैला हुआ पानी सोकेज-गड्ढे की क्षमता से काफी अधिक था ।
गांब के शौचालय:
इच्छुक परिवारों को रियायती दर पर शौचालय दिये जाते है, सब्सिडी का लगभग 70% दिया जा रहा है । कुल 13 व्यक्तिगत शौचालयी का निर्माण किया गया था कुछ परिवारों ने सरकारी सहायता के साथ शौचालय का निर्माण किया है ।
हैंड पंप की मरम्मत में महिलाओं को प्रशिक्षण:
इस परियोजना में, हैंड पम्प की मरम्मत सीखने के लिए 7 महिलाओं को 1 महीने की अवधि के लिए प्रशिक्षित किया गया । उनमें से दो सक्रिय रूप से, स्वयं के ही तथा गाँवों के आसपास के हैड-पंपों की मरम्मत का काम ले रही हैं और प्रति हैंड पंप की मरम्मत का 100 रुपए का भुगतान पा रही है ।
समुदाय द्वारा उनकी स्वीकार्यता बढ रही है और एक वर्ष के दौरान वे 20 पंप की मरम्मत कर सकती हैं । महिलाओं के ज्ञान तथा परिवार स्वास्थ्य पर डबल्यूएचएस-परियोजना के प्रभाव को परखने के लिए, महिला-हितधारकों के बीच ज्ञान मनोवृत्ति प्रैक्टिस सर्वेक्षण परियोजना के प्रारम्भ किए जाने के पहले किया गया था और परियोजना की समाप्ति पर दोहराया गया था ।
डायरिया, मलेरिया आदि और स्वच्छता की कमी जैसे रोगों के बीच की कडी के लिए महिलाओं की समझ में उल्लेखनीय सुधार देखा गया था । जबकि शुराआती दौर में मात्र 6-8% महिलाओं ने गाँव में अपशिष्ट निपटान की व्यवस्था पर संतोष व्यक्त किया, वहीं परियोजना की समाप्ति पर 100 प्रतिशत महिलाएँ संतुष्ट थीं ।
पूर्व स्कूली बच्चों के साथ माताओं में घरेलू रुग्णता सर्वेक्षण परिवार स्वास्थ्य कार्ड के माध्यम से किया गया था । मानसून में डायरियाँ की घटनायें सबसे अधिक थीं और गर्मियों के दौरान सबसे कम । नवम्बर 2002 (परियोजना के पहले) की तुलना में, डायरिया की घटना नवम्बर 2003 में कम थी, जोकि रुग्णता पर सफाई व्यवस्था में सुधार के सकारात्मक प्रभाव का सकेत देता है ।
निष्कर्ष और अनुशंसा/सुझाव:
निष्कर्ष:
जनसंख्या समस्या की भयावहता अक्सर कुछ हद तक अतिशयोक्तिपूर्ण होती है, लेकिन फिर भी अधिकांश विकासशील देशों में प्रजनन दर कम करने के तरीके तथा साधन को खोजने के लिए अच्छे आधार हैं ।
वह दृष्टिकोण, जो विशिष्ट रूप से ध्यान देने लायक लगता है, उन सार्वजनिक नीतियों के मध्य निकट संबंध को शामिल करता है जो लैंगिक निष्पक्षता तथा महिलाओं की स्वतन्त्रता (महिलाओं के लिए विशेष रूप से शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल व रोजगार के अवसर) और परिवार की व्यक्तिगत जिम्मेदारी संभावित माता पिता के निर्णय लेने की शक्ति के माध्यम से, विशेष रूप से माताओं की) को बढाती हैं ।
इस पथ की प्रभावशीलता युवा महिलाओं के कल्याण तथा उनकी एजेन्सी के बीच करीबी संबंध में निहित है । प्रजनन क्षमता को कम करना मात्र आर्थिक समृद्धि के लिए उसके परिणामों की ही वजह से महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि इसलिए भी ताकि लोगों की स्वतन्त्रता विशेष रूप से युवा महिलाओं की जिससे कि वे उस तरह का जीवन व्यतीत करें जिसके लिए उनके पास बहुमूल्य समझने का कारण है के ह्रासमान में उच्च प्रजनन क्षमता के प्रभाव हैं ।
वास्तव में, वे जीवन, जो बच्चों के लगातार जन्म देने तथा पालने-पोसने द्वारा अत्यधिक पस्त हैं, उन युवा महिलाओं के जीवन है जो समसामयिक दुनिया के अनेक देशों में संतान पैदा करने की मशीन बने रहने तक सिमट कर रह गए है ।
वह ‘सन्तुलन’ आशिक रूप से परिवार में युवा महिलाओं की निर्णय लेने की निम्न शक्ति के कारण बना रहता है और उन बगैर परखी हुई परपरा के कारण भी रहता है जो निरन्तर गर्भधारण को असमालोचनात्मक रूप से अनुमोदित प्रथा बनाती है (जैसा मामला पिछली सदी तक यूरोप में भी था) ।
वहाँ कोई अन्याय नहीं देखा गया था । महिला साक्षरता को बढावा देने, महिलाओं के लिए कार्य के अवसर बढाने के लिए और मुक्त, खुला तथा अभिज्ञ सार्वजनिक चर्चा को बढ़ावा दिया जाना न्याय तथा अन्याय की समझ में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकता है ।
CARPED के लिए अनुशंसाएँ:
यह खुद ही बतलाता है कि CARPED को महिला साक्षरता को और महिलाओं के सशक्तिकरण में वृद्धि करने के लिए उनके लिए रोजगार के अवसरों को बढावा देना होगा । उसी तरह की पृष्ठभूमि (जैसे कि उम्र, लिंग या हैसियत, या फिर जैसे कि ‘माताएँ’ या गर्भवती महिलाएँ) वाले लोगों की छोटी संख्या की समूह बैठक विस्तार में स्वास्थ्य के पहलुओं पर चर्चा करने में बहुत उपयोगी हैं ।
समूह की बैठकों को सुविधाजनक बनाने के लिए स्थानीय नेतागण या स्वास्थ्य मंचों के सक्रिय सदस्यों (शिक्षित युवाओं, स्थानीय चिकित्सकों को मिलाकर) को आमंत्रित करने की भी अनुशंसा की जाती है । एएनएम के द्वारा कला जत्थे को बडे समूहों में सामान्य मुद्दों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है । यथा सम्भव उच्च जागरूकता के स्तर को प्राप्त करने के लिए स्थानीय स्टाफ का पूर्ण आवेष्टन तथा प्राधिकारियों से शीघ्र वित्तीय सहायता अपेक्षित है ।
इसके अतिरिक्त, अन्य संगठनों के साथ सहयोग की अत्यधिक अनुशंसा की जाती है । इस तुलनात्मक अध्ययन ने यह दर्शाया था कि हैदराबाद (के प्रत्यक्ष परिवेश) में विभिन्न गैर सरकारी संगठनों, वित्तपोषण करने वाले संगठनों तथा न्यासों में तुलनीय गतिविधियाँ (CARPED तथा DCT दोनों ही मेडक जिले में कार्यरत हैं) ओर मैं इसे एक अच्छा विचार मानता हूँ अगर वे एक साथ परियोजनाओं का शुभारंभ करें, जानकारी को साझा करें और परिणामों का विश्लेषण करें ।
ऐसी पहल दोहरे काम को बचाती है और सभी सहभागियों के धन की उच्च मात्रा तथा समय को बचा सकती है और विभिन्न संगठन भी एक दूसरे कार्यशैली के तरीके तथा प्रक्रियाओं को बहुत कुछ सीख सकते है । तथापि, हर किसी को यह ध्यान में रखना होगा कि महिलाओं के (स्वास्थ्य) अधिकार में एक क्रांतिकारी बदलाव केवल दीर्घ अवधि में ही सम्भव है ।