भारत में महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण पर निबंध | Bhaarat Mein Mahilaon Ke Aarthik Sashaktikaran Par Nibandh | Essay on Economic Empowerment of Women in India.

महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण:

1. गरीबी उन्मूलन:

चूंकि महिलाएँ गरीबी रेखा से नीचे की आबादी के आधिक्य में समाविष्ट हैं तथा अक्सर चरम गरीबी की स्थितियों में रहती है, अतः, घर की आंतरिक व सामाजिक भेदभाव कठोर वास्तविकताओं को देखते हुए, मैक्रो आर्थिक नीतियाँ और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम विशिष्ट रूप से ऐसी महिलाओं की जरूरतों व समस्याओं को संबोधित करेंगे ।

ऐसे कार्यक्रमों का समुन्नत कार्यान्वयन किया जाएगा जो महिलाओं के लिए विशेष लक्ष्य के साथ पहले से ही महिला-उन्मुख हैं । गरीब महिलाओं को संचलनशील बनाने के लिए तथा सेवाओं की समाभिरूपता के लिए उनकी क्षमताओं को बढाने के लिए आवश्यक सहायता उपाय के साथ आर्थिक और सामाजिक विकल्पों की एक श्रृंखला की पेशकश के द्वारा उनके लिए उपाय किए जाएंगे ।

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2. लघु ऋण:

उपभोग तथा उत्पादन के लिए ऋण तक महिलाओं की पहुँच में वृद्धि करने के क्रम में एक नये, तथा वर्तमान लघु-ऋण तंत्र का सुदृढ़ीकरण करते हुए, और सूक्ष्म वित्त संस्थान की स्थापना की जिम्मेदारी ली जाएगी जिससे कि ऋण की पहुँच की सीमा बढाई जा सके । अन्य सहायक उपाय प्रचलित वित्तीय संस्थानों और बैंकों के माध्यम से ऋण का पर्याप्त प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए है ताकि गरीबी रेखा से नीचे की सभी महिलाओं को ऋण तक की आसान पहुंच मिले ।

3. महिलायें और अर्थव्यवस्था:

महिलाओं के दृष्टिकोण को ऐसी प्रक्रियाओं में उनकी भागीदारी को संस्थागत करने द्वारा मैक्रो आर्थिक और सामाजिक नीतियों की योजना बनाने में तथा लागू करने में शामिल किया जाएगा । उत्पादकों और श्रमिकों के रूप में सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए उनका योगदान औपचारिक और अनौपचारिक (घर आधारित कार्यकर्ताओं सहित) मान्यता प्राप्त हो जाएगा और उनके रोजगार के लिए और उनके काम की परिस्थितियों से संबन्धित उपयुक्त नीतियाँ तैयार की जाएगी ।

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ऐसे उपाय निम्नलिखित को शामिल कर सकते हैं:

(i) काम की पारंपरिक अवधारणाओं की पुनर्व्याख्या तथा पुनर्परिभाषा उदाहरण के लिए, उत्पादकों और श्रमिकों के रूप में महिलाओं के योगदान को परिलक्षित करने के लिए, जनगणना के अभिलेखों में ।

(ii) सेटेलाइट तथा राष्ट्रीय खातों की तैयारी उपरोक्त (a) एवं (b) उपक्रम के लिए उपयुक्त पद्धति का विकास ।

4. वैश्वीकरण:

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वैश्वीकरण ने महिलाओं के समानता के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए नई चुनौतियों को प्रस्तुत किया है, जिनके लैंगिक प्रभाव का सुव्यवस्थित रूप में पूरी तरह से मूल्यांकन नहीं किया गया है । तथापि, सूक्ष्म स्तर के अध्ययनों से, जो महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा अधिकृत किए गए थे, यह स्पष्ट है कि नियोजन के लिए पहुँच तथा नियोजन की गुणवता के लिए नीतियों को पुनः रचने की जरूरत है ।

बढती हुई वैश्विक अर्थव्यवस्था का लाभ असमान रूप से वितरित किया गया है जो व्यापक आर्थिक असमानता, अक्सर बिगडती श्रमजीवी स्थितियाँ तथा विशेष रूप से अनौपचारिक अर्थव्यवस्था और ग्रामीण क्षेत्रों में असुरक्षित कार्य वातावरण के माध्यम से लिंग असमानता में वृद्धि की ओर ले जाता है ।

महिलाओं की क्षमता बढाने के लिए रणनीतियाँ बनाई जाएगी और उन नकारात्मक सामाजिक तथा आर्थिक प्रभावों, जो वैश्वीकरण की प्रक्रिया के कारण हो सकते हैं, का सामना करने के लिए उन्हें सशक्त किया जाएगा ।

5. महिलायें और कृषि:

उत्पादकों के रूप में, कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को ध्यान में रखते हुए, यह सुनिश्चित करने के लिए केंद्रित प्रयास किए जाएंगे कि प्रशिक्षण, विस्तार, और विभिन्न कार्यक्रमों के लाभ उन्हें उनकी संख्या के अनुपात में मिल जाएं ।

मिट्टी संरक्षण, सामाजिक वानिकी, डेयरी विकास और छोटे पशु-पालन, मुर्गी पालन, मलय पालन आदि को शामिल करते हुए बागवानी, पशुधन जैसे कृषि से संबद्ध अन्य व्यवसायों में महिलाओं के प्रशिक्षण के लिए कार्यक्रम कृषि क्षेत्र में महिला कामगारों को लाभ दिलाने के लिए विरत्तारित किये जायेंगे ।

6. महिला और उद्योग:

इलेक्ट्रॉनिक्स, सूचना प्रौद्योगिकी और खाद्य प्रसंस्करण और कृषि उद्योग और वस्त्र-उद्योग में महिलाओं द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका इन क्षेत्रों के विकास के लिए महत्वपूर्ण रही है । श्रम कानून, सामाजिक सुरक्षा और विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में भाग लेने के मामले में अन्य सहायता सेवाओं के लिए उन्हें व्यापक समर्थन दिया जाएगा ।

वर्तमान समय में, महिलाएँ कारखानों में रात की पाली में काम नहीं कर सकती हैं, भले ही अगर उनकी ऐसा करने की इच्छा हो । महिलाओं को कारखानों में रात की पाली में काम करने के लिए सक्षम करने के लिए उपयुक्त उपाय किए जाएंगे । यह सुरक्षा, परिवहन आदि के लिए सहायता सेवाओं के साथ-साथ किया जाएगा ।

7. समर्थन / सहायता सेवाएं:

महिलाओं के लिए समर्थन सेवाओं के प्रावधान जैसे कि कार्य-स्थल तथा शैक्षिक संस्थानों में शिशु-गृह सहित बच्चों की देखभाल सुविधाओं, वृद्ध तथा विकलांग के लिए घरों का विस्तार किया जाएगा और अनुकूल माहौल बनाने के लिए सुधार किया जाएगा और सामाजिक राजनीतिक और आर्थिक जीवन में उनका पूरा सहयोग सुनिश्चित किया जाएगा । महिलाओं के अनुकूल कार्मिक नीतियों को भी विकासात्मक प्रक्रिया में प्रभावी ढंग से महिलाओं द्वारा भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए तैयार किया जाएगा ।

महिलाओं का सामाजिक सशक्तिकरण:

 

1. शिक्षा:

महिलाओं और लडकियों के लिए शिक्षा में बराबर पहुँच सुनिश्चित की जाएगी । भेदभाव को खत्म करने के लिए, शिक्षा के सार्वभौमीकरण, निरक्षरता उन्मुलन के लिए, लैंगिक संवेदनशील शिक्षा प्रणाली बनाने लड़कियों के नामांकन और प्रतिधारण दरों में वृद्धि और शिक्षा की गुणयता में सुधार करने के लिए जीवन भर सीखने की सुविधा के रूप में तथा इनके साथ महिलाओं द्वारा व्यवसाय / तकनीकी / व्यावसायिक कौशल के विकास के लिए विशेष उपाय किए जाएंगे ।

माध्यमिक और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में लैंगिक अतर को कम किया जाना एक ध्यान-केन्द्रित क्षेत्र होगा । मौजूदा नीतियों में महिलाओं तथा बालिकाओं पर विशेष संकेन्द्रण के साथ आंचलिक समय लक्ष्यों को प्राप्त किया जाएगा, विशेष रूप से अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति / अन्य पिछडा वर्ग / अल्पसंख्यक सहित कमजोर वर्ग के लोगों को । लैंगिक संवेदी पाठ्यक्रम को शिक्षा प्रणाली के सभी स्तरों पर लिंग भेदभाव के कारणों में से एक के रूप में यौन रूढिबद्धता को संबोधित करने के लिए विकसित किया जाएगा ।

2. स्वास्थ्य:

महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए एक समग्र दृष्टिकोण, जो घोषण और स्वास्थ्य सेवाओं दोनों को शामिल करता हो, को अपनाया जाएगा और जीवन चक्र के सभी चरणों में महिलाओं और बालिकाओं की आवश्यकताओं पर विशेष ध्यान दिया जाएगा । शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर का घटाया जाना, जो मानव विकास के प्रति संवेदनशील संकेतक हैं, प्राथमिकता का विषय है ।

यह नीति राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 में अपवर्णित शिशु मृत्यु दर [Infant Mortality Rate (IMR)], मातृ मृत्यु दर [Maternal Mortality Rate (MMR)] के लिए राष्ट्रीय जनसांख्यिकीय लक्ष्यों को दोहराती है । महिलाओं के पास व्यापक, सस्ती और गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य-देखभाल तक पहुँच होना चाहिए ।

उन उपायों को अपनाया जायेगा जो स्थानिक, संक्रामक तथा संचारक बीमारियों जैसे कि मलेरिया, टीबी तथा पानी-जनित रोगों के साथ-साथ उच्च रक्तचाप तथा हृदय-फेफडे के रोगों के साथ महिलाओं की यौन और स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति उनकी भेद्यता, ज्ञापित विकल्पों का उपयोग करने के लिए उन्हें सक्षम बनाने के लिए महिलाओं के प्रजनन अधिकारों को ध्यान में रखेगा । एच.आई.वी. / एड्‌स के सामाजिक, विकासात्मक तथा स्वास्थ्य के परिणामों को और अन्य यौन संचारित रोगों को लैंगिक परिप्रेक्ष्य से हल किया जाएगा ।

शिशु तथा मातृ मृत्यु दर, और जल्दी होने वाली शादी की समस्याओं का प्रभावी ढंग से सामना करने के लिए मौतों, जन्म तथा विवाह पर सूक्ष्म स्तर पर अच्छे ओर सही डेटा की उपलब्धता अपेक्षित है । जन्म व मृत्यु के पंजीकरण के सखा कार्यान्वयन को सुनिश्चित किया जाएगा और शादियों का पंजीकरण अनिवार्य किया जाएगा ।

जनसंख्या स्थिरीकरण के लिए राष्ट्रीय जनसंख्या नीति (2000) की प्रतिबद्धता के अनुसार, यह नीति पुरुषों तथा महिलाओं को उनके विकल्प के परिवार नियोजन के सुरक्षित, प्रभावी व किफायती तरीकों तक की पहुँच रखने की महत्वपूर्ण जरूरत को और जल्दी शादी तथा बच्चों के जन्म के बीच अन्तर रखने के मुद्दों को उचित रूप से संबोधित करने की जरूरत को मान्यता देती है । शिक्षा का प्रसार, शादी का अनिवार्य पंजीकरण तथा 857 के समान विशेष कार्यक्रमों जैसे हस्तक्षेपों का शादी की उम्र में देरी किए जाने का प्रभाव पडना चाहिए जिससे कि 2010 तक बाल विवाह का उन्मूलन हो सके ।

स्वास्थ्य-देखभाल के तथा पोषण के बारे में महिलाओं के पारंपरिक ज्ञान को उचित प्रलेखन के माध्यम से मान्यता दी जाएगी और इसके उपयोग को प्रोत्साहित किया जाएगा । भारतीय चिकित्सा और वैकल्पिक प्रणाली के उपयोग को महिलाओं के लिए उपलब्ध समग्र स्वास्थ्य की बुनियादी सुविधाओं के ढांचे के भीतर बढाया जाएगा ।

3. पोषण:

कुपोषण तथा बीमारी के उच्च जोखिम को ध्यान में रखते हुए जिसका सामना महिलाओं को सभी तीन महत्वपूर्ण चरणों, अर्थात. शैशव-काल व बचपन, किशोरावस्था तथा प्रजनन चरण में करना पडता है, तो जीवन-चक्र के सभी चरणों में महिलाओं की पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए सकेंद्रित ध्यान दिया जाएगा ।

यह भी शिशु तथा युवा बच्चों के स्वास्थ्य के साथ किशोरियों, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के स्वास्थ्य के बीच महत्वपूर्ण कडी को ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण है । गर्णवती तथा स्तनपान कराने वाली महिलाओं के बीच विशेष रूप से स्थूल और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी की समस्या से निपटने के लिए बिशेष प्रयास किए जायेंगे क्योंकि ये विभिन्न रोगों तथा अक्षमताओं की ओर ले जाता है ।

लडकियों तथा महिलाओं की तुलना में पोषण संबंधी मामलों में अन्त-पारिवारिक भेदभाव को उपयुक्त रणनीतियों के माध्यम से समाज करना चाहा जाएगा । पोषण शिक्षा के व्यापक उपयोग को पोषण तथा गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं की विशेष जरूरतों में अन्त-पारिवारिक असंतुलन के मुद्दों से निपटने के लिए किया जाएगा । इस प्रणाली की योजना, अधीक्षण तथा वितरण में महिलाओं की भागीदारी को भी सुनिश्चित किया जाएगा ।

4. पेयजल और स्वच्छता:

सुरक्षित पेयजल, मल निपटान, शौचालय की सुविधा और परिवारों की सुलभ पहुँच के भीतर स्वच्छता के प्रावधान में विशेष ध्यान महिलाओं की जरूरतों के लिए, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी मलिन बस्तियों में दिया जाएगा । ऐसी सेवाओं की आयोजना, वितरण तथा रखरखाव में महिलाओं की भागीदारी को सुनिश्चित किया जाएगा ।

5. आवास और आश्रय:

ग्रामीण तथा शहरी, दोनों क्षेत्रों में आवास की नीतियों, आवासीय कॉलोनियों की आयोजना तथा आश्रय के प्रावधान में महिलाओं के परिप्रेक्ष्य को शामिल किया जाएगा । एकल महिलाओं, परिवारों के मुखिया, कामकाजी महिलाओं, छात्राओं, शिक्षुओं तथा प्रशिक्षुओं सहित महिलाओं के लिए पर्याप्त और सुरक्षित आवास तथा रहने की जगह उपलब्ध कराने के लिए विशेष ध्यान दिया जाएगा ।

6. पर्यावरण:

पर्यावरण, संरक्षण तथा पुनःस्थापन में महिलाओं को समाविष्ट किया जाएगा और उनके दृष्टिकोण इनकी नीतियों तथा कार्यक्रमों में परिलक्षित होंगे । उनकी आजीविका पर पर्यावरणीय कारकों के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए, परिवेश और पर्यावरण क्षरण के नियंत्रण के संरक्षण में महिलाओं की भागीदारी को सुनिश्चित किया जाएगा ।

ग्रामीण महिलाओं का विशाल आधिक्य अभी भी स्थानीय रूप से उपलब्ध पशु गोबर अपशेष फसल तथा ईंधन के लिए लकडी जैसे गैर-वाणिज्यिक ऊर्जा के स्रोतों पर निर्भर करता है । पर्यावरण के अनुकूल तरीके में इन ऊर्जा संसाधनों के कुशल उपयोग को सुनिश्चित करने के क्रम में, यह नीति गैर-परंपरागत ऊर्जा संसाधनों के कार्यक्रमों को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखेगी ।

महिलाओं को सौर ऊर्जा, बायोगैस, घुम्ररहित चूल्हे तथा अन्य ग्रामीण उपयोजन के उपयोग के प्रसार में शामिल किया जाएगा जिससे कि पारिस्थितिकीय तंत्र को प्रभावित करने में तथा ग्रामीण महिलाओं की जीवन शैली में परिवर्तन में इन उपायों के दृश्यमान प्रभाव हो सके ।

7. विज्ञान और प्रौद्योगिकी:

विज्ञान और प्रौद्योगिकी में महिलाओं की अधिक से अधिक भागीदारी करवाने के लिए कार्यक्रमों को मजबूत किया जाएगा । ये लडकियों को उच्च शिक्षा के लिए विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी लेने के लिए प्रेरित करने के उपाय शामिल करेंगे ओर यह भी सुनिश्चित करेंगे कि वैज्ञानिक तथा तकनीकी जानकारी वाली विकास परियोजना महिलाओं को पूरी तरह से शामिल करें ।

वैज्ञानिक सोच तथा जागरूकता विकसित करने के प्रयास भी बढाए जाएंगे । उनके प्रशिक्षण के लिए उन क्षेत्रों में विशेष उपाय किए जायेंगे जहाँ उनके पास संचार तथा सूचना प्रौद्योगिकी की तरह विशेष कौशल हों । महिलाओं की आवश्यकताओं के अनुकूल उपयुक्त प्रौद्योगिकियो को विकसित करने के प्रयासों के साथ-साथ उनके कठिन परिश्रम को कम करने के प्रयासों पर भी वेशेष ध्यान दिया जाएगा ।