भारतीय धर्मों का स्वरूप और उसकी विशेषताएं । Indian Religions in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. धर्म क्या है?

3. भारतीय धर्मों का स्वरूप ।

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4. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

भारत एक धर्म प्रधान देश है । यहां की संस्कृति धर्म प्राण रही है । मानव जाति की समस्त मूलभूत अनुभूतियों का सुन्दर स्वरूप है धर्म । धर्म मानव जीवन का अपरिहार्य तत्त्व है । धर्म शब्द में असीम व्यापकत्व है ।

किसी वस्तु का वस्तुतत्त्व ही उसका धर्म है । जैसे-अग्नि का धर्म है जलाना । राजा का धर्म है प्रजा की सेवा करना । धर्म वह तत्त्व है, जो मनुष्य को पशुत्व से देवत्व की ओर ले जाता है । भारतीयों ने सदा ही अपने प्रारम्भिक जीवन से धर्म की खोज में अपरिमित आनन्द का अनुभव किया है । इसे मानव जीवन का सार माना गया है । भारतीय समाज में जो प्रमुख धर्म प्रचलित हैं, उनमें प्रमुख हैं: हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी एवं यहूदी धर्म ।

2. धर्म क्या है?

धर्म शब्द धृ धातु से बना है, जिसका अर्थ है-धारण करना । किसी भी वस्तु का मूल तत्त्व है-उस वस्तु को धारण करना । इसीलिए वही उसका धर्म है । मानव अपने जीवन में गुण और क्षमताओं के अनुरूप आचरण करता है । वही उसका धर्म है । इस प्रकार आत्मा से आत्मा को देखना, आत्मा को आत्मा से जानना ।

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आत्मा का आत्मा में स्थित होना ही धर्म है । ज्ञान, दर्शन, आनन्द, शक्ति का योग धर्म है । धर्म का अर्थ है: अज्ञात सत्ता की प्राप्ति । मानव का कल्याण, उचित-अनुचित का विवेक ही धर्म है ।

धर्म के जो प्रमुख लक्षण हैं, उनमें प्रमुख हैं:

1. वेद निर्धारित शास्त्र प्रेरित कर्म ही धर्म है ।

2. कल्याणकारी होना धर्म का प्रधान लक्षण है ।

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3. धर्म की उत्पत्ति सत्य से होती है ।

4. दया और दान से इसमें वृद्धि होती है ।

5. क्षमा में वह निवास करता है ।

6. क्रोध से वह नष्ट होता है ।

7. धर्म विश्व का आधार है ।

8. जो धर्म दूसरों को कष्ट दे, वह धर्म नहीं है ।

9. पराये धर्म का त्याग ही कल्याणकारी है ।

10. धर्म ऐसा मित्र है, जो मरने के बाद मनुष्य के साथ जाता है ।

11. धर्म सुख-शान्ति का एकमात्र उपाय है ।

12. धर्म भारतीय धर्मो का स्वरूप है ।

3. भारतीय धर्मोका स्वरूप:

धर्म प्रधान भारतीय समाज की विभिन्नता ही उसकी प्रमुख विशेषता रही है । विश्व के प्रमुख सभी धर्म भारत में विद्यमान हैं । एम॰ए॰ श्रीनिवास के अनुसार: ”भारतीय जनगणना में दस विभिन्न धार्मिक समूह बताये गये हैं: हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी, यहूदी तथा अन्य जनजातियों के धर्म व गैर जनजातियों के अन्य धर्म ।

भारत की जनसंख्या में हिन्दू 82.64 प्रतिशत, तो मुसलमान 12 प्रतिशत, ईसाई 3 प्रतिशत, सिख 2 प्रतिशत, बौद्ध 0.81 प्रतिशत, जैन 0.50 प्रतिशत, पारसी 001 प्रतिशत हैं । शेष धर्मो के अनुयायियों का प्रतिशत कम है । यहां हम सर्वप्रथम हिन्दू धर्म की विशेषताओं को देखते हैं, तो ज्ञात होता है कि:

(क) हिन्दू धर्म:  वास्तव में बहुत जटिल धर्म है । यह भारत का सबसे प्राचीन धर्म है । हिन्दू धर्म में किसी अन्य धर्म की भांति किसी धार्मिक एक गन्धों की तरह न एक पैगम्बर है न एक ईसा है । कुछ निश्चित धार्मिक विधियों एवं पूजन विधियों पर आधारित धार्मिक समुदाय का धर्म नहीं है ।

एक तरफ हिन्दू धर्म प्रकृति की प्रत्येक वस्तु की मौलिकता को प्रकट करता है, तो दूसरी ओर वह समाज और व्यक्ति तथा समूह की आचरण सभ्यता को प्रकट करता है । यह विस्मयकारी विविधताओं पर आधारित है । कहीं शाकाहारी हिन्दू है, तो कहीं मांसाहारी हिन्दू है । एक पत्नीव्रत आदर्श संहिता है, तो कहीं बहुपत्नी व्रत है । हिन्दू धर्म में अनेक मत-मतान्तर प्रचलित हैं, जिनका अपना अलग इतिहास है ।

उसके सरकार एवं विधि-विधान है । सबकी निजी, आर्थिक एवं सामाजिक विशेषताएं हैं । उनमें सर्वप्रथम है: वैष्णव धर्म, जिसमें शंकराचार्य रामानुज, माधवाचार्य, वल्लभाचार्य. चैतन्य, कबीर, राधास्वामी प्रचलित मत सम्प्रदाय हैं ।

दूसरा शैव धर्म है । इसमें 63 शैव सन्त हैं, शाक्त मत भी हैं । ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज, आर्यसमाज, रामकृष्ण मिशन, अरविन्द योग, आचार्य रजनीश, आनन्द मूर्ति जैसे मत प्रचलित हैं । हिन्दू धर्म सहिष्णु धर्म

है ।

(ख) इस्लाम धर्म:  यह भारत में अरब भूमि से आया । हजरत मोहम्मद ने 571-632 में अरब में इस्लाम धर्म का प्रतिपादन किया । ऐसी मान्यता है कि ईश्वरीय पुस्तक कुरान के मूल पाठ को सातवें स्वर्ग से अल्लाह के हुक्म से जब्रील ने उसे मोहम्मद साहब को सुनाया और उन्होंने उसे वर्तमान रूप में प्रचलित किया ।

भारत में इस्लाम का पदार्पण अरब सागर के मार्ग मुस्लिम व्यापारियों के माध्यम से आया । प्रारम्भ में लोगों के विरोध के बाद मोहम्मद साहब इसे मक्के से मदीने की ओर ले गये । जहां 24 सितम्बर 622 से हिजरी संवत् प्रारम्भ हुआ । भारत में 1526 में मुगल वंश के शासकों ने इसका प्रचार किया । इरलाम मूर्तिपूजा को नहीं मानता । अल्लाह के सिवा इनका कोई भगवान् नहीं, मोहम्मद साहब इसके पैगम्बर हैं ।

दिन में पांच बार मक्के की तरफ मुंह करके नमाज पढ़ना, शुक्रवार को सार्वजनिक नमाज में भाग लेना, अपनी आमदनी का ढाई प्रतिशत दान करना, जीवन में एक बार हज करना, इसके प्रमुख नियम हैं । अब इस धर्म का भारतीयकरण हो चुका है । इस धर्म में अधिकांश लोग परम्परावादी धार्मिक सिद्धान्तों का अनुकरण करते हैं ।

 

 

(ग) ईसाई धर्म:  भारतीय समाज का तीसरा प्रमुख धर्म है ईसाई । इस धर्म के प्रवर्तक ईश्वर पुत्र ईसा मसीह थे । ईसा धनिकों के अत्याचार और अहंकार के विरोधी थे । प्रेम, सदाचार और दुखियों की सेवा ही इस धर्म का मुख्य सन्देश है ।

मानव-समता में उनका अदूट विश्वास है । अपने शत्रुओं को क्षमा कर बिना किसी भेदभाव के सबकी सेवा ये ईसा मसीह के मूलमन्त्र थे । उनके विचार से गरीब, सताये हुए, अनपढ़ लोग सौभाग्यशाली हैं; क्योंकि स्वर्ग का राज्य उनके लिए सुरक्षित है ।

अमीर और अत्याचारी अभागे हैं; क्योंकि पापों के कारण उन्हें नरक के दुःख भोगने पड़ेंगे । उनके सन्देश उस वक्त के यहूदी पुरोहितों को सहन नहीं हुए । अत: रोमन प्रशासक ने उन्हें कूस पर कीलों से जड़कर मारने का दण्ड दिया ।

कहा जाता है कि यीशु के 12 धर्माचारियों में से एक सेंट थामस भारत आये थे । उन्होंने इस धर्म का प्रचार किया । ईसाई धर्म विभिन्न मतों का एक संगठित धर्म है । चर्च संगठन में धर्माधिकारियों के स्पष्ट पर सोपान है: ईसाई पादरियों और ननों ने वास्तव में समाज सेवा के बहुत कार्य किये । ईसाई धर्म कैथलिक तथा प्रोस्टैण्ट-दो सम्प्रदायों में विभक्त है । भारतीय सांस्कृतिक व राजनीतिक धारा के साथ जुड़कर इस समुदाय ने काफी योग दिया ।

(ध) सिक्स धर्म:  सिक्स धर्म भी भारतीय भूमि की उपज है । इस धर्म के संस्थापक गुरा नानक देव ही {1469-1539} हिन्दू खत्री परिवार में जन्मे थे । उन्होंने ओंकार परमेश्वर की सीख दी । वे जाति-पाति के घोर विरोधी थे । आडम्बरपूर्ण कर्मकाण्डों में उनका विश्वास् नहीं था । अनिश्चयों और निराशा से भरे हुए समय में उनकी सीधी-सच्ची वाणी जनभाषा थी, जिसमें शाश्वत मूल्यों का उद्‌घोष था ।

गुरुनानक के बाद 9 अन्य गुरुओं ने उनकी इस परम्परा को आगे बढ़ाया । वे गुरु हैं: अंगद, अमरदास, रामदास, अर्जुन, हरगोविन्द, हरराय, हरकिशन, गुरा तेगबहादुर एवं गुरा गोविन्द सिंह । इस धर्म ने पर्दाप्रथा, सतीप्रथा का विरोध किया । इनके धार्मिक कार्यो से तत्कालीन मुगल बादशाह रुष्ट हो गये । 605 में उन्हें यातनाएं देकर शहीद कर दिया । गुरा अर्जुन देव का ऐसा बलिदान सिक्स इतिहास में एक नया मोड़ था ।

गुरु हरगोविन्द ने सिक्सों को सैनिक प्रशिक्षण प्राप्त कर सशस्त्र होने की सलाह दी । उन्होंने कई सफल युद्ध किये । औरंगजेब ने नवें गुरु तेगबहादुर को 1675 में दिल्ली में शहीद कर दिया । उनके पुत्र एवं दसवें गुरु गोविन्द सिंह ने अधर्म के विरुद्ध सिक्स समुदाय को तैयार किया । 1699 में खालसा पंथ का उदय हुआ । पंचपियारों को खालसा में दीक्षित किया गया ।

तभी से पांच ककार धारण करने की प्रथा चली । प्रत्येक सक्स के लिए केश, कंघा, कटार, कड़ा और कच्छा धारण करना अनिवार्य माना गया । गुरा गोविन्द सिंह ने धर्म के रक्षार्थ अपने चार पुत्रों का बलिदान दिया और किसी व्यक्ति को गुरु बनाने की परम्परा समाप्त की ।

उन्होंने गुरु ग्रन्ध साहब को गुरु मानते हुए शीश नवाने का आदेश दिया । वे अन्याय, अत्याचार व अनीति के विरोधी थे । सिक्स धर्म की प्रमुख शिक्षाएं हैं-निराकर ईश्वर की उपासना, उसी का नाम-जाप, सदाचारी जीवन, मानव सेवा ।

यह धर्म आत्मा की अमरता तथा पुनर्जन्म में विश्वास करता है । सामूहिक प्रार्थना एवं सामूहिक भोज (लंगर) इसकी विशेषता है । इस धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय हैं: नानक पंथी, निरंकारी, निरंजनी, सेवा-पंथी ।

(ड.) बौद्ध धर्म:  बौद्ध धर्म पूर्वी एशिया व द॰ एशिया तक फैला । इसके प्रणेता गौतम बुद्ध शाक्य वंश के महाराजा शुद्धोधन के पुत्र थे । उनका कार्य ईसा से छह शताब्दी पूर्व है । उनका नाम सिद्धार्थ भी था । बचपन से ही उनका हृदय मानव दुःखों, जैसे-बुढ़ापा, बीमारी तथा मृत्यु के प्रति करुणा से भरा था ।

मानव मात्र को इन दुःखों से छुटकारा दिलाने के लिए वे अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल तथा राजसी वैभव को छोड़कर चल दिये । छह वर्षो के कठोर तप से उनका हृदय सत्य के प्रकाश से भर गया ।

महात्मा बुद्ध ब्राह्मणवाद के कर्मकाण्डों और पशुबलि के घोर विरोधी थे । वे मध्यममार्गीय थे ।

दुःखों का मूल उन्होंने तृष्णा या इच्छा को बताया । इच्छा का अन्त करना दु:खों से मुक्त होना है । उन्होंने सम्यक विचार, सम्यक वाणी और सम्यक आचरण को मुक्ति का द्वार बताया । प्राणी मात्र पर दया, प्रेम, सेवा और क्षमा को मानव का सच्चा धर्म बताया ।

धर्म प्रचार के लिए उन्होंने भिक्षुओं को संगठित किया, जिसे अशोक जैसे महान सम्राट ने स्वीकारा । नगरवधू आम्रपाली भी इसमें सम्मिलित हुई । सत्य, अहिंसा, प्राणी मात्र पर दया का सन्देश देते हुए 80 वर्ष की आयु में 488 ई॰ पूर्व उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया ।

निर्वाण के बाद बौद्ध धर्म दो सम्प्रदायों-महायान और हीनयान-में बंट गया । आज इस धर्म के अनुयायी लंका, वियतनाम, चीन, बर्मा, जापान, तिबत, कोरिया, मंगोलिया, कंपूचिया में हैं । आठवीं शताब्दी में आते-आते ही इस धर्म का लोप हो गया । इसके कई कारण हैं । आज भी यह धर्म अपने सिद्धान्तों और आदर्शो के कारण कायम है ।

(च) जैन धर्म:  इस धर्म के संस्थापक वर्द्धमान महावीरजी वैशाली के क्षत्रिय राजवंश में पैदा हुए थे । वे गौतम बुद्ध के समकालीन और अवस्था में उनसे कुछ बड़े थे । उन्होंने 30 वर्ष की अवस्था में गृहत्याग किया और वर्ष के कठोर तप के बाद सत्य का प्रकाश प्राप्त किया । तभी से वे जिन कहलाये ।

जैन धर्म के में तीर्थकर हो चुके हैं । महावीर 24वें तीर्थकर थे । इस धर्म के पहले तीर्थकर ऋषभदेव हैं । इस धर्म के अनुसार कैवल्य मोल प्राप्त करने के विविध मार्ग हैं, जिसे तीन रत्न कहा जाता है । सम्यक विचार, सम्यक ज्ञान, सम्यक आचरण इस धर्म का सार है । “अपना कर्तव्य करो, जहां तक हो सके, मानवीय ढग से करो” ।

दिगम्बर और श्वेताम्बर दो सम्प्रदायों में बंटे हुए इस धर्म में दिगम्बर साधु दिशा को वस्त्र मानकर वस्त्र नहीं पहनते । श्वेताम्बर श्वेत वस्त्र धारण करते हैं । जीवों के रूप में और देवताओं के रूप में आत्मा जन्म-मरण के चक्र में फंसी हुई है । इससे छुटकारा पाना ही मोक्ष है ।

(छ) पारसी धर्म:  पारसी धर्म भी भारतभूमि पर बाहर से आया है । पारसियों का आगमन भारत में वीं सदी में हुआ था । ये ईरान के मूल निवासी हैं । जब ईरान पर मुसलमानों का कब्जा हो गया, तो अनेक पारसी भारत आ गये । इस धर्म के संस्थापक जरस्थूस्त्र हैं ।

यह धर्म वैदिक धर्म की भांति अति प्राचीन है । कुछ विद्वानों के अनुसार जरज्यूस्त्र ईसा से 5000 वर्ष पूर्व हुए थे । ऋग्वेद और इनकी धार्मिक पुस्तक अवेस्ता में अनेक बातों में समानता है । इस धर्म के अनुसार अहुर्मज्दा ही एकमात्र ईश्वर है । वही विश्व के सूष्टा हैं । जीवन नेकी तथा बदी, पुण्यात्मा तथा पापात्मा दो विरोधी शक्तियों के संघर्ष में विकसित होता है । अन्त में विजय पुण्यात्मा तत्त्व की होती है ।

अहुर्मज्दा पवित्र अग्नि का प्रतीक है, जो शुद्धता और उज्जलता का प्रतीक है । इसीलिए पारसी अग्नि की पूजा करते हैं और मन्दिर के रूप में अग्निगृह इआतश-बहराम का निर्माण करते हैं । इस धर्म के त्रिविध मार्ग-अच्छे विचार, अच्छे वचन, अच्छे कर्म-हैं । पारसी धर्म संन्यासी जीवन को नहीं मानता । भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन तथा औद्योगिक विकास में इस धर्म का बड़ा हाथ रहा है ।

 

 

(ज) यहूदी धर्म:  यहूदी धर्म एक प्राचीन धर्म है । इनका विश्वास है कि इनके पैगम्बर मूसा थे, जो प्रथम धर्मवेत्ता माने जाते हैं । इनके प्रथम महापुरुष अब्राहम ने ईसा से 1000 पहले यहूदी कबीले के स्थान पर अपना मूल स्थान उर छोड़ दिया ।

उनके शक्तिशाली सम्राटों द्वारा गुलाम बनाये जाने पर हजरत मूसा ने ईश्वरीय आदेश के अनुसार उन्हें दासता से मुक्त कराया और दूध, शहद से भरपूर धरती पर बसाया । हजतर मूसा को ही जवोहा अथवा यवोहा सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहा जाता है । उन्हें दस आदेश प्राप्त हुए थे । यहूदियों का धार्मिक ग्रन्ध हिन्दू बाइबिल अथवा तौरत है ।

29 पुस्तकों के इस संग्रह को पुराना अहमदनामा भी कहते हैं । यहूदी धर्म में नैतिक जीवन को विशेष महत्त्व दिया गया है । सत्याचरण वाला व्यक्ति ही स्वर्गारोहण का अधिकारी होता है । यहूदी धर्म संन्यास और आत्मपीड़ा के विरुद्ध है । जेरूसलम यहूदियों का पवित्र नगर है ।

4. उपसंहार:  इस प्रकार भारतभूमि पर विश्व के लगभग सभी धर्मो के समुदाय बसते हैं । समय के साथ-साथ उनका भारतीयकरण भी हुआ । सभी धर्मो में समान धार्मिक नियम, आपसी प्रेम, सदभाव, भाईचारे, सुविचार, सत्कर्म पर बल दिया गया है ।

धर्मनिरपेक्षता हमारी पहचान है । वर्तमान में कुछ संकीर्णतावादी विचारधारा के लोग सम्प्रदायवाद को बढ़ावा दे रहे हैं । हमें इनसे बचना है; क्योंकि सच्चा धर्म मानवता का है, जो हमें पतन से रोकता

है ।

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