Read this article in Hindi to learn about:- 1. प्रधानमंत्री की  संविधानिक स्थिति (Constitutional Position of the Prime Minister) 2. प्रधानमंत्री की शक्तियाँ और कार्य (Powers and Functions of the Prime Minister) 3. भूमिका (Role Description) 4. प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिशें (ARC Recommendations).

प्रधानमंत्री की संविधानिक स्थिति (Constitutional Position of the Prime Minister):

संविधान की व्यवस्था के अनुसार संसदीय सरकार में राष्ट्रपति नाममात्र का कार्यकारी प्राधिकारी और प्रधानमंत्री वास्तविक कार्यकारी प्राधिकारी होता अर्थात राष्ट्रपति देश का प्रमुख होता है तथा प्रधानमंत्री का ।

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इस संदर्भ में संविधान में निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं:

(i) केंद्र सरकार में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक मंत्रिपरिषद राष्ट्रपति सहायतार्थ और उसे सलाह देने के लिए होगी । राष्ट्रपति अपने कार्यों का निष्पादन इस सलाह के अनुसार करेगा ।

(ii) प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी ।

(iii) अन्य मंत्रियों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की सलाह पर की जाएगी ।

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(iv) मंत्रिगण राष्ट्रपति की सहमति से ही पद पर बने रह सकेंगे ।

(v) मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से जिम्मेदार होंगी ।

(vi) मंत्रियों को पद और गोपनीयता की शपथ राष्ट्रपति द्वारा दिलवाई जाएगी ।

(vii) कोई भी मंत्री, यदि निरंतर 6 माह तक संसद के किसी भी सदन का सदस्य नहीं है तो वह मंत्री पद पर बना नहीं रह सकता है ।

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(viii) मंत्रियों के वेतन और भत्तों का निर्धारण संसद द्वारा किया जाएगा ।

प्रधानमंत्री की शक्तियाँ और कार्य (Powers and Functions of the Prime Minister):

प्रधानमंत्री की शक्तियों तथा उसके कार्य का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के तहत किया जा सकता है:

मंत्रिपरिषद के संबंध में:

केंद्रीय मंत्रिपरिषद के प्रमुख के रूप में प्रधानमंत्री को निम्नलिखित शक्तियाँ प्राप्त हैं:

(i) प्रधानमंत्री उन व्यक्तियों की अनुशंसा करता है जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा मंत्री नियुक्त किया जा सकता है अर्थात प्रधानमंत्री द्वारा अनुशंसित व्यक्तियों को ही राष्ट्रपति मंत्री नियुक्त कर सकता है ।

(ii) वह मंत्रियों में विभिन्न विभागों का आबंटन और उनमें फेरबदल भी करता है ।

(iii) मतभेद होने की स्थिति में प्रधानमंत्री किसी मंत्री से त्यागपत्र की माँग कर सकता है या राष्ट्रपति को उसे पदच्युत करने की सलाह दे सकता है ।

(iv) प्रधानमंत्री मंत्रीपरिषद की बैठकों की अध्यक्षता करता है और महत्वपूर्ण निर्णय लेता है ।

(v) प्रधानमंत्री सभी मंत्रियों को दिशा निर्देश देता है नियंत्रित करता है और उनके कार्यों के बीच तालमेल बनाए रखता है ।

(vi) प्रधानमंत्री अपने पद से त्यागपत्र देकर मंत्रिपरिषद भंग कर सकता है ।

राष्ट्रपतिके संबंध में:

प्रधानमंत्री को इस संबंध में निम्नलिखित शक्तियाँ प्राप्त हैं:

(i) प्रधानमंत्री राष्ट्रपति और मंत्रिपरिषद के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी है ।

प्रधानमंत्री द्वारा निम्नलिखित कार्य किए जाते हैं (अनुच्छेद 78):

(क) वह केंद्र की प्रशासनिक कार्यवाहीयों और विधान से जुड़े प्रस्तावों के संबधैं में मंत्रिपरिषद द्वारा लिए गए निर्णयों से राष्ट्रपति को अवगत कराता है;

(ख) वह, राष्ट्रपति द्वारा माँगे जाने पर केंद्र की कार्यवाहीयों और विधान से जुड़े प्रस्तावों से संबंधित सूचना राष्ट्रपति को उपलब्ध कराता है; और

(ग) प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति द्वारा माँग करने पर किसी विषय विशेष को मंत्रिपरिषद के विचारार्थ प्रस्तुत करता है जिससे संबंधित निर्णय किसी मंत्री द्वारा लिया गया हो किंतु मंत्रिपरिषद ने उस पर विचार न किया हो ।

(ii) प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति को भारत के महान्यायवादी भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक, संघ लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों, चुनाव आयुक्तों, वित्त आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों आदि महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति के मामले में सलाह सुलभ कराता है ।

संसद के संबंध में:

प्रधानमंत्री निचले सदन (लोकसभा) का नेता होता है तथा अपनी इस शक्ति के साथ निम्नलिखित कार्यों का निष्पादन करता है:

(i) वह संसद सत्र बुलाने और सत्रावसान के संबंध में राष्ट्रपति को सलाह देता है ।

(ii) वह राष्ट्रपति से लोकसभा को भंग करने की सिफारिश किसी भी समय कर सकता है ।

(iii) वह सदन पटल पर सरकार की नीतियों की घोषणा करता है ।

अन्य शक्तियाँ और कार्य:

(i) प्रधानमंत्री-योजना आयोग, राष्ट्रीय विकास परिषद, राष्ट्रीय एकता परिषद और अंतर्राज्यीय परिषद का अध्यक्ष होता है ।

(ii) वह देश की विदेश नीति तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।

(iii) वह केंद्र सरकार का मुख्य प्रवक्ता होता है ।

(iv) वह आपातकाल के दौरान राजनीतिक स्तर के संकट का प्रमुख विमोचक होता है ।

(v) राष्ट्र नेता के रूप में प्रधानमंत्री विभिन्न राज्यों के भिन्न-भिन्न वर्ग के लोगों से मिलकर उनकी समस्याओं की जानकारी लेता है ।

(vi) वह सत्ताधारी दल का नेता होता है ।

(vii) वह सैन्य सेवाओं का राजनीतिक प्रमुख होता है ।

इस प्रकार प्रधानमंत्री देश की राजनीतिक प्रशासन प्रणाली में अतिमहत्वपूर्ण और जोखिमपूर्ण भूमिका निभाता है । डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने ठीक ही कहा है कि ”हमारे संविधान के तहत यदि कोई भी कार्यकारी संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति से तुलनीय है तो वह प्रधानमंत्री है न कि संघ का राष्ट्रपति ।”

प्रधानमंत्री की भूमिका (Role Description of the Prime Minister):

प्रमुख राजनीति वैज्ञानिकों और संविधानविदों के संदर्भ में दिए गए विभिन्न वक्तव्य भारतीय संदर्भ में भी उपयुक्त और खरे हैं:

लॉर्ड मॉर्ले – वह प्रधानमंत्री का वर्णन ‘समानों में प्रथम’ और ‘मंत्रिमंडलीय गुंबद की

आधारशिला’ के रूप में करते और कहते है, ”मंत्रिमंडल का प्रमुख समकक्षों में पहला है और जब तक बना रहता है वह एक असामान्य और विशिष्ट प्राधिकारी के पद के काबिल रहता है ।”

हर्बर्ट मौरीसन के अनुसार – ”प्रधानमंत्री सरकार के मुखिया तथा सर्वसाधारण के रूप में सर्वोपरि होता है आज के प्रधानमंत्री पद का जितना गुणगान किया जाए वह कम है ।”

सर विलियम वर्नर हारकोर्टने प्रधानमंत्री को – ”थोड़े से तारों के बीच चाँद” कहा है ।

जेनिंग्स के अनुसार – ”प्रधानमंत्री उस सूर्य की भांति है जिसके चारों ओर ग्रह परिक्रमा करते हैं । वह संविधान का सूत्रधार होता है । संविधान के सभी मार्ग प्रधानमंत्री की ओर जाते हैं ।”

एच. जे. लास्की ने प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल के बीच संबंध के संदर्भ में कहा है कि ”प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल के गठन इसके जीवनकाल और इसके भंग होने की प्रक्रिया का केंद्रबिंदु है ।”

लास्की ने प्रधानमंत्री को उस धुरी की संज्ञा दी है जिसके चारों ओर सरकारी तंत्र घूमता रहता है ।

एच. आर. जी. ग्रीक्त के अनुसार – ”सरकार देश की मालिक है तथा प्रधानमंत्री सरकार का मालिक है ।”

मुनरो ने – ”प्रधानमंत्री को राज्य रूपी जलयान के कैप्टन” की संज्ञा दी है ।

रैम्जे मूर ने – ”प्रधानमंत्री को राज्य रूपी जलयान के स्टीयरिंग व्हील का चालक” बताया है ।

ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली की सरकार (या कैबिनेट सरकार) में प्रधानमंत्री की भूमिका इतनी महत्त्वपूर्ण हो गई है कि प्रेक्षकों ने इस सरकार को ‘प्रधानमंत्री उन्मुख सरकार’ कह डाला है । इसी क्रम में आर. एच. क्रॉसमैन का कहना है कि ”युद्ध के पश्चात की अवधि में कैबिनेट सरकार की जगह प्रधानमंत्री उन्मुख सरकार ने ले ली है ।”

इसी प्रकार हफ्री बर्कले का कहना है कि ”संसद का प्रभुत्व अब नहीं रह गया है । बेस्टमिंस्टर में संसदीय प्रजातंत्र का अस्तित्व खत्म हो गया है । ब्रिटिश शासन प्रणाली की मुख्य कमी प्रधानमंत्री को प्राप्त अतिमंत्रीय शक्तियाँ हैं ।” ये कथन भारतीय संदर्भ में भी सही बैठता है ।

प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिशें (ARC Recommendations):

भारत के प्रशासनिक सुधार आयोग (1966-70) ने सरकारी तंत्र और इसकी कार्यप्रणाली से संबंधित अपनी रिपोर्ट में प्रधानमंत्री के संदर्भ में निम्नलिखित सिफारिशें की थीं:

1. सरकारी तंत्र द्वारा प्रभावी कार्य निष्पादन सुनिश्चित किए जाने के लिए प्रधानमंत्री की सहायतार्थ उपप्रधानमंत्री भी होना चाहिए जो प्रधानमंत्री की विधिवत सहायता कर सके तथा प्रधानमंत्री अपने कार्य को बोझ को कम करने के लिए उपप्रधानमंत्री को उपयुक्त कार्य तदर्थ आधार पर सौंप सके ।

2. प्रधानमंत्री को सामान्यतः किसी मंत्रालय का प्रभारी नहीं होना चाहिए । उसका अधिकांश समय निर्देशन समन्वयन और पर्यवेक्षण के लिए उपलब्ध होना चाहिए ।

3. प्रधानमंत्री को कार्मिक विभाग सीधे अपने नियंत्रण में रखना चाहिए ।

4. प्रधानमंत्री को महत्वपूर्ण नियुक्तियों के मामलों में शामिल होना चाहिए तथा प्रमुख विभागों के सचिवों के साथ नियमित बैठकें करनी चाहिएँ ।

5. उसे सरकारी कार्यों में प्रशासनिक दक्षता की स्थिति में सुधार लाने संबंधी नीतियों और उपायों के कार्यान्वयन की प्रगति की समीक्षा व्यक्तिगत तौर पर अथवा समूह के साथ मिल-बैठकर करनी चाहिए ।

6. प्रधानमंत्री को केवल उन्हीं व्यक्तियों को मंत्री चुनना चाहिए जिनमें राजनीतिक शक्ति निष्ठाभाव बौद्धिक योग्यता और निर्णय लेने की क्षमता हो ।

भारत के प्रशासनिक सुधार आयोग के अधीन देशमुख अध्ययन दल के अनुसार प्रधानमंत्री की जिम्मेदारियों में विभिन्न पहलुओं के संबंध में ‘नेतृत्व प्रदान किया जाना’ भी शामिल होना चाहिए:

(i) नीति निर्धारण और कार्यान्वयन

(ii) प्रशासनिक दक्षता

(iii) सरकार और लोगों के मध्य प्रभावी तालमेल बनाए रखना अर्थात जन-संपर्क को बढ़ावा देना ।

(iv) संसद के साथ सरकार का संबंध बनाए रखना ।