Read this article in Hindi to learn about:- 1. वित्तीय प्रशासन के अर्थ और अवधारणा  (Meaning and Concepts of Financial Administration) 2. वित्तीय प्रशासन के महत्व (Importance of Financial Administration) 3. प्रमुख अभिकरण (Chief Agency).

वित्तीय प्रशासन के अर्थ और अवधारणा (Meaning and Concepts of Financial Administration):

वित्तीय प्रशासन सरकार की वित्तीय आवश्यकताओं का ऐसा प्रबन्धन है, जिसमें सार्वजनिक व्यय संबंधी जरूरतों और उनकी पूर्ति की एक उत्तरदायित्वपूर्ण व्यवस्था पाई जाती है । यह इस अवधारणा पर आधारित है कि सार्वजनिक धन के व्यय और प्राप्ति में युक्तियुक्त संबंध होना चाहिये और यह जनता के सामने स्पष्ट रूप से प्रकट भी होना चाहिये ।

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सरकार के बढ़ते दायित्वों और सार्वजनिक धन के मितव्ययिता पूर्ण उपयोग की जनतांत्रिक मांग ने वित्तीय प्रशासन को सरकार का हृदय बना दिया है । वित्तीय प्रशासन का शाब्दिक अर्थ है वित्त का प्रशासन । सरकार अपने वित्त से संबंधित जितनी भी क्रियाएं सम्पादित करती है, उन्हें वित्तीय प्रशासन की संज्ञा दी जाती हैं ।

हुवर कमीशन के शब्दों में- “वित्तीय प्रशासन, जो आधुनिक सरकारी का हृदय माना जाता हैं, ऐसी रीतियों-नीतियों का निर्माण करता है जिनके अनुसार लोक सेवा संचालन हेतु धन प्राप्त किया जाता है, उसका व्यय किया जाता है और इनका लेखा रखा जाता है ।”

वित्तीय प्रशासन सार्वजनिक वित्त के प्रबन्धन की एक सम्पूर्ण व्यवस्था है, जिसकी अवधारणा के निम्नलिखित पहलू या आधार है:

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1. यह सरकार की समस्त वित्तीय आवश्यकताओं को अनुमानित करने और उनकी प्राप्ति की संभावनाओं को आंकलित करने से संबंधित है ।

2. यह सम्पूर्ण आय-व्यय को निर्धारित करके उसे कार्य रूप देने से संबंधित है ।

3. यह “वित्त” का प्रबन्धन सार्वजनिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत पर करने से संबंधित है ।

4. इसमें विभिन्न प्रशासनिक अभिकरणों की अपनी निर्धारित भूमिका होती है ।

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5. वित्तीय प्रशासन का संवैधानिक आधार होता है ।

6. यह इस अवधारणा पर आधारित है कि जनता से उतना ही धन प्राप्त किया जाए, जितना आवश्यक है तथा उसका व्यय भी औचित्यपूर्ण ढंग से हो ।

7. सार्वजनिक धन पर नियंत्रण वित्तीय प्रशासन की अवधारणा की प्रमुख विशेषता है ।

स्पष्ट है कि वित्तीय प्रशासन की संकल्पना एक व्यापक आधार वाली ऐसी व्यवस्था को निर्मित करने और कार्यरूप देने से संबंधित है जिनमें सार्वजनिक धन से संबंधित निम्नलिखित बातें आती है:

1. बजट निर्माण- इसके द्वारा सार्वजनिक राजस्व और व्यय में उचित तालमेंल स्थापित किया जाता है ।

2. बजट क्रियान्वयन- इसके तहत राजस्व एकत्रीकरण, उसकी सुरक्षा और उसका उचित वितरण शामिल है ।

3. वित्तीय मामलों का उचित प्रबंधन- इसके तहत आय व्यय का लेखा रखना, उनका परीक्षण करवाना शामिल है ।

4. मितव्ययिता और सार्वजनिक उत्तरदायित्व- विभागों पर मितव्ययिता हेतु पर्याप्त नियंत्रण रखना, सार्वजनिक धन के दुरुपयोग को रोकना, लेखा परीक्षण के प्रकाश में दोषियों पर कार्यवाहियां करना और इन सबके लिए व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायित्व निभाना ।

निष्कर्षत:

वित्तीय प्रशासन की अवधारणा में जनता से विधि सम्मत धन प्राप्त करने से लेकर उसके न्यायपूर्ण व्यय तक की समस्त क्रियाएं व्यवस्थित रूप से उत्तरदायित्वता के आधार पर सम्पन्न की जाती है ।

वित्तीय प्रशासन के महत्व (Importance of Financial Administration):

प्रत्येक संगठन को अस्तित्व लेने से लेकर अपने उद्देश्यों की पूर्ति तक पग-पग पर धन की जरूरत पड़ती है, चाहे वह निजी हो या सरकारी । लेकिन सरकार एक विशाल संगठन होती है, जिसे अनेकानेक कार्यों को एक साथ सम्पन्न करना होता है, इसके लिए न सिर्फ उसे विशाल नौकरशाही तंत्र को बनाए रखने के लिए, अपितु विभिन्न आर्थिक-सामाजिक क्रियाकलापों के लिए भारी मात्रा में धन की जरूरत पड़ती है ।

उसका प्रत्येक कार्य धन की मांग करता है । और इसीलिए लायड जार्ज ने शासन को वित्त की संज्ञा दी । प्राचीन काल में भी वित्त के महत्व को समझ लिया गया था । कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में लिखा है कि प्रत्येक उद्यम वित्त पर निर्भर है, अतएव कोषागार पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है ।

वस्तुत: प्रशासन में वित्त की वही भूमिका है जो शरीर में रक्त की । रक्त रूपी वित्त प्रशासन की कार्यरूपी धमनियों में जब तक दौड़ता रहता है, शासन रूपी शरीर भी चलायमान रहता है । चूँकि शासन या सरकार अपने वित्त की पूर्ति के लिए मुख्यत: जनता पर निर्भर है, अत: जनता के इस धन को प्राप्त करने और व्यय करने की उचित व्यवस्था के रूप में वित्तीय प्रशासन का अत्यधिक महत्व है ।

इसके महत्व को वर्तमान युग में निम्न प्रकार से विश्लेषित किया जा सकता है:

1. सरकार के अस्तित्व के लिए धन की व्यवस्था ।

2. शांति व्यवस्था बनाए रखने, आंतरिक और बाह्य सुरक्षा हेतु आवश्यक कार्यों को सम्पन्न करने के लिए धन की व्यवस्था करना ।

3. आधुनिक लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के चलते सरकार के निरन्तर बढ़ते कार्यदायित्वों के आर्थिक पहलुओं को विश्लेषित करना और उनकी युक्तियुक्त आपूर्ति सुनिश्चित करना ।

4. सरकार के सामाजिक-आर्थिक उद्देश्यों को पूरा करने हेतु करारोपण प्रणाली का स्वरूप निर्धारित करना, ताकि अधिक आयवर्ग पर कर लगाकर प्राप्त आय का न्यायपूर्ण वितरण किया जा सकें ।

5. सार्वजनिक धन की प्राप्ति और व्यय के बीच उचित तालमेंल निर्धारित करके एक कुशल वित्तीय सरकार की संकल्पना को साकार करने में भूमिका ।

6. सार्वजनिक धन के दुरुपयोग को रोकने और उस पर नियंत्रण रखने के उपाय करने में वित्तीय प्रशासन अपने अभिकरणों के माध्यम से विशेष भूमिका निभाता है ।

स्पष्ट है कि आधुनिक समाजों में सरकार अपने वित्तीय प्रशासन के माध्यम से ही सार्वजनिक धन का सही और उचित ढंग से प्रबन्धन करने में सफल हो सकती है । जिस प्रकार प्रशासन में वित्त का महत्व दिनोदिन बढ़ता जा रहा है उसी प्रकार इस वित्त के समुचित प्रशासन के लिए वित्तीय प्रशासन के महत्व में भी भारी बढ़ोतरी हो गयी हैं ।

उपर्युक्त विश्लेषण के संदर्भ में वित्तीय प्रशासन को सरकार के उस पावर हाऊस की संज्ञा दी जा सकती है, जिसके ऊपर उसका पूरा ढांचा निर्भर करता हैं । आज के युग में वित्तीय प्रशासन एक व्यापक और अति महत्वशाली अवधारणा के रूप में सामने हैं ।

जिसके तहत सम्पूर्ण सरकार के “वित्त सम्बन्धी” दायित्वों को अधिकतम कुशल और उपयोगी बनाने के लिए निरन्तर प्रयास किये जा रहे है, जैसे- बजट प्रणाली में सुधार, सार्वजनिक वित्त पर नियंत्रण को अधिकाधिक प्रभावी बनाना इत्यादि ।

वित्तीय प्रशासन के प्रमुख अभिकरण (Chief Agency of Financial Administration):

वित्तीय प्रशासन विभिन्न गतिविधियों से संबंधित एक व्यापक अवधारणा है, जिसके तहत अनेक प्रशासनिक अभिकरण अपने दायित्वों को पूरा करते हैं ।

जो इस प्रकार है:

1. कार्यपालिका:

सरकारी कार्यों को जनता के लिए निर्मित करने और क्रियान्वित करने का दायित्व कार्यपालिका का होता है, अतएव यह आवश्यक है कि उन कार्यों को अंजाम देने वाली कार्यपालिका को ही उसके “वित्त” के पहलू का निर्धारण करने का दायित्व सौंप दिया जाए । अत: लोकतांत्रिक देशों में वित्तीय प्रशासन का केन्द्र कार्यपालिका और उसका वित्त विभाग होता है जो समस्त आय-व्यय का निर्धारण करते है ।

2. वित्त मंत्रालय:

कार्यपालिका अपने सभी विभागों के आय-व्यय संबंधी आंकलन करने के लिए पृथक से एक विभाग बना देती हैं जिसे वित्त मंत्रालय कहते है । यह न सिर्फ सरकार के सम्पूर्ण वित्तीय प्रबन्धन को रूपांकित करता है अपितु उसके क्रियान्वयन की भी जवाबदारी निभाता है । यही कार्यपालिका की ओर से बजट व्यवस्थापिका में रखता है और उसके प्रावधानों को स्पष्ट करता है । वित्त मंत्रालय पर अन्य विभागों पर वित्तीय नियंत्रण रखने का दायित्व भी होता है ।

3. व्यवस्थापिका:

लोकतंत्र में जनता से धन प्राप्त करने और उसका व्यय करने की अनुमति देने वाली अंतिम सत्ता व्यवस्थापिका होती है । यह दो महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वाह करती हैं- प्रथम धन प्राप्त करने और व्यय करने की अनुमति देती है, अपनी समितियों के माध्यम से इस बात का परीक्षण भी करती है कि उसकी अनुमति अनुसार ये कार्य सम्पन्न हुए या नहीं ।

4. लेखा एवं लेखा परीक्षण:

सरकारी आय-व्यय का सही हिसाब रखने और उसका परीक्षण करने की आवश्यकता सरकारी वित्तीय प्रशासन का महत्वपूर्ण पहलू है । अत: यह कार्य एक स्वतंत्र एजेन्सी CAG (महालेखा नियंत्रक परीक्षक) को सौंप दिया जाता है ।

5. संसदीय वित्तीय समितियां:

अंतत: यह सुनिश्चित करने का अधिकार कि सार्वजनिक धन का उपयोग सही तरीके से हो, व्यवस्थापिका का होता है । वह लोक लेखा समिति, अनुमान समिति, सार्वजनिक उपक्रम समिति के माध्यम से कार्यपालिकीय विभागों पर वित्तीय नियंत्रण रखती हैं ।

उपरोक्त अभिकरणों में से प्रत्येक की अपनी विशिष्ट भूमिका हैं । सभी के योगदानों से ही वित्तीय प्रशासन की सम्पूर्ण अवधारणा प्रासंगिक बनती है और उसका उद्देश्य ”लोकधन का उत्तरदायित्वपूर्ण प्रबन्धन” सुनिश्चित होता है ।