प्राधिकरण का प्रतिनिधि: अर्थ, अवधारणाएं, सिद्धांत और सीमाएं | प्रबंध | Read this article in Hindi to learn about:- 1. प्रत्यायोजन विकेंद्रीकरण का अर्थ (Meaning of Delegation of Authority) 2. प्रत्यायोजन विकेंद्रीकरण का सम्बद्ध अवधारणाएँ (Related Concepts of Delegation of Authority) 3. सिद्धांत (Principles) 4. प्रकार (Types) 5. लाभ (Advantages) 6. सीमाएँ (Limits) 7. बाधाएँ (Hindrances).

Contents:

  1. प्रत्यायोजन विकेंद्रीकरण का अर्थ (Meaning of Delegation of Authority)
  2. प्रत्यायोजन विकेंद्रीकरण का सम्बद्ध अवधारणाएँ (Related Concepts of Delegation of Authority)
  3. प्रत्यायोजन विकेंद्रीकरण का सिद्धांत (Principles of Delegation of Authority)
  4. प्रत्यायोजन विकेंद्रीकरण का प्रकार (Types of Delegation of Authority)
  5. प्रत्यायोजन विकेंद्रीकरण का लाभ (Advantages of Delegation of Authority)
  6. प्रत्यायोजन विकेंद्रीकरण का सीमाएँ (Limits of Delegation of Authority)
  7. प्रत्यायोजन विकेंद्रीकरण का बाधाएँ (Hindrances to Delegation of Authority)

1. प्रत्यायोजन विकेंद्रीकरण का अर्थ (Meaning of Delegation of Authority):

पदानुक्रम का सिद्धांत (स्केलीय सिद्धांत) प्राधिकार की एक निरंतर श्रृंखला से संगठन के भिन्न स्तरों और स्तरों को साथ देता है । इस सिद्धांत का मर्म है-प्राधिकार का प्रत्यायोजन ।

निम्नलिखित परिभाषाएँ प्रत्यायोजन का अर्थ बताती हैं:

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मूनी- ”प्रत्यायोजन का अर्थ है- उच्चतर से निम्नतर प्राधिकार तक विशिष्ट प्राधिकार को पहुंचाना ।”

टेरी- “प्रत्यायोजन का अर्थ है- एक कार्यकारी या सांगठनिक इकाई से दूसरी तक प्राधिकार को पहुँचाना ।”

मिलेट- “प्राधिकार के प्रत्यायोजन का अर्थ कम या अधिक विस्तार से दूसरों को काम सौंप देने भर से कहीं अधिक है । प्रत्यायोजन का तात्पर्य दूसरों को निर्णायक अधिकार देने उनके कार्यों की रूपरेखा में विशेष समस्याओं का समाधान करने में उनके मूल्यांकनों का प्रयोग करने में है ।”

जैसा कि मोहित भट्टाचार्य ने शानदार विश्लेषण कर के बताया है, प्रत्यायोजन की किसी योजना के चार लक्षण होते हैं:

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(i) श्रेष्ठतर (प्रत्यायोजक) द्वारा अधीनस्थ (प्रत्यायोजित) को कार्य सौंपा जाना ।

(ii) प्रत्यायोजक द्वारा प्रत्यायोजित को उसके कामों के ढाँचे के भीतर प्राधिकार प्रदान करना ।

(iii) एक बाध्यता का निर्माण, यानी, प्रत्यायोजित पूरा करने के लिए कर्त्तव्यबद्ध हो जाता है ।

(iv) प्रत्यायोजित द्वारा उसके अधीनस्थों को बाध्यता प्रत्यायोजन नहीं होता ।

ADVERTISEMENTS:

यहाँ पर यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि प्रत्यायोजन की कोई भी योजना प्रत्यायोजक के पर्यवेक्षण और नियंत्रण के अंतर्गत होती है । इसके अलावा, एक बार प्राधिकार सौंपे जाने के बाद प्रत्यायोजक द्वारा बढ़ाया, घटाया या वापस नहीं लिया जा सकता ।

प्राधिकार सौंपते समय, प्रत्यायोजक न तो अपना निर्णायक प्राधिकार स्थानांतरित करता है और न ही अपनी जिम्मेदारी का परित्याग करता है । संक्षेप में, प्रत्यायोजन किसी विशेष कार्य को पूरा करने के लिए किसी श्रेष्ठतर द्वारा अधीनस्थ को प्राधिकार का सौंपा जाना है ।

फिर भी प्रत्यायोजक के पास प्रत्यायोजित प्राधिकार मौजूद होता है लेकिन इसके प्रयोग की आज्ञा प्रत्यायोजित को मिल जाती है । इस प्रकार, प्रत्यायोजन का दोहरा चरित्र है । इस परिप्रेक्ष्य में टेरी टिप्पणी करते हैं- ”यह अन्य लोगों के साथ साझा ज्ञान को प्रदान करने जैसा है, जो फिर उस ज्ञान के स्वामी बन जाते हैं; आपके पास भी वह ज्ञान बना रहता है ।”

फिर भी, एम.पी. फॉलेट प्रत्यायोजन की अवधारणा को सांगठनिक (प्रशासनिक) विचारधारा का एक मिथक मात्र मानती हैं । वे मानती हैं कि- ”प्राधिकार काम से जुड़ा होता है और उसी के साथ रहता है ।” इस तरह, जो काम करता है उसके पास प्राधिकार होना चाहिए, चाहे उसके श्रेष्ठतर को यह पसंद हो या न हो ।

चूंकि प्राधिकार का नाता कार्य (जिम्मेदारी) से होता है, इसलिए इसे प्रत्यायोजित नहीं किया जा सकता । यह कथन ‘प्राधिकारी का प्रत्यायोजन’ एक ‘अव्यवहारिक अभिव्यक्ति’ है । उन्होंने बल देकर कहा- ”प्राधिकार को अनिवार्य रूप से कार्यात्मक होना चाहिए और कार्यात्मक प्राधिकार अपने साथ जिम्मेदारी को जोड़े रखता है ।”


2. प्रत्यायोजन विकेंद्रीकरण का सम्बद्ध अवधारणाएँ (Related Concepts of Delegation of Authority):

प्रत्यायोजन विकेंद्रीकरण, हस्तांतरण और विसंकेंद्रण से भिन्न है, जिनसे प्राधिकार के स्थानातंरण का अर्थ भी निकलता है । मुत्तलिब के शब्दों में- ”विसंकेंद्रण प्रशासनिक कार्यवाही पर, हस्तांतरण राजनीतिक और न्यायिक कार्यवाही पर और विकेंद्रीकरण राजनीतिक कानूनी और प्रशासनिक कार्यवाही पर आधारित है ।”  जैसे- पंचायती राज का अर्थ विकेंद्रीकरण है, जबकि जिला कलेक्टर के कार्यालय का अर्थ विसंकेंद्रण है । केंद्र से राज्यों को प्राधिकार का स्थानांतरण हस्तांतरण का सूचक है ।


3. प्रत्यायोजन विकेंद्रीकरण का सिद्धांत (Principles of Delegation of Authority):

निम्नलिखित सिद्धांतों का पालन प्राधिकार के प्रत्यायोजन को प्रभावी बना देता है:

(i) प्रत्यायोजन विशिष्टीकृत और लिखित होना चाहिए ।

(ii) प्रत्यायोजन किसी व्यक्ति का नहीं बल्कि पद का होना चाहिए ।

(iii) अधीनस्थों की योग्यता पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए ।

(iv) प्राधिकार और जिम्मेदारी सहावसानी और परस्पर समान होनी चाहिए ।

(v) प्रत्यायोजन उचित तौर पर योजनाबद्ध होना चाहिए ।

(vi) प्रत्यायोजन को निर्देश की सामान्य श्रृंखला का अनुसरण करना चाहिए ।

(vii) सुपरिभाषित नीतियों, नियमों और प्रक्रियाओं को अपनाया जाना चाहिए ।

(viii) संचार व्यवस्था को स्वतंत्र और खुला रखा जाना चाहिए और व्यवस्थित जवाबदेही तंत्र कायम रखा जाना चाहिए ।

(ix) प्रत्यायोजन के बाद एक प्रदर्शन मूल्यांकन तंत्र आना चाहिए ।

(x) प्रत्यायोजन को निर्देशों में एकता के सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए ।

(xi) प्रत्यायोजन को उपयुक्त संसाधनों से मदद मिलनी चाहिए ।


4. प्रत्यायोजन विकेंद्रीकरण का प्रकार (Types of Delegation of Authority):

1. पूर्ण और आंशिक:

जब निर्णायक निर्णय और कार्यवाही करने की पूर्ण-शक्तियाँ प्रत्यायोजित को दी जाती है तो प्रत्यायोजन पूर्ण होता है । सौंपे गए काम के महत्वपूर्ण पहलुओं के विषय में जब प्रत्यायोजित को प्रत्यायोजक से सलाह लेनी पड़ती है, तब यह आंशिक होता है ।

2. सशर्त और बिना शर्त:

जब प्रत्यायोजित के निर्णय और कार्य प्रत्यायोजक के नियंत्रण और सम्मति के अधीन हो तो प्रत्यायोजन सशर्त है । लेकिन जब प्रत्यायोजित बिना किसी आपत्ति के निर्णय लेने और कार्यवाही करने को आजाद हो, तब यह बिना शर्त है ।

3. औपचारिक और अनौपचारिक:

प्रत्यायोजन जब लिखित नियमों और आदेशों पर आधारित हो तो औपचारिक होता है और जब परंपराओं और प्रथाओं पर आधारित हो तो अनौपचारिक होता है ।

4. सीधा और माध्यमिक:

प्रत्यायोजन किसी तीसरे व्यक्ति के शामिल न होने पर सीधा होता है, किंतु किसी तीसरे व्यक्ति के माध्यम से होने वाला प्रत्यायोजन माध्यमिक (अप्रत्यक्ष) होता है ।


5. प्रत्यायोजन विकेंद्रीकरण का लाभ (Advantages of Delegation of Authority):

प्रत्यायोजन सभी तरह के संगठनों के लिए कार्यात्मक रूप से अनिवार्य है ।

इसकी आवश्यकता निम्न कारणों से होती है:

(i) श्रेष्ठतर पर से बोझ घटाना ।

(ii) प्रशासनिक अड़चनों में देरी को टालना ।

(iii) स्थानीय स्थितियों के अनुसार नीति और कार्यक्रम को अनुकूलित करना ।

(iv) जिम्मेदारियाँ बाँटने और निर्णय लेने की कला में अधीनस्थों को प्रशिक्षित करना ।

(v) नेतृत्व की दूसरी पंक्ति विकसित करना ।

(vi) प्रक्रियाओं में जटिलता से निपटना, यानी विशेषज्ञों को प्रत्यायोजन ।

(vii) कर्मचारियों में जिम्मेदारी और दिलचस्पी का बोध बढ़ाना ।

(viii) शीर्ष स्तर पर कार्यों की अत्यधिकता से पार पाना ।


6. प्रत्यायोजन विकेंद्रीकरण का सीमाएँ (Limits of Delegation of Authority):

हालांकि प्रत्यायोजन अनिवार्य और फायदेमंद है, लेकिन कोई भी श्रेष्ठतर व्यक्ति अपने आप में निहित पूरे प्राधिकार को प्रत्यायोजित कर खुद को खाली नहीं कर सकता । उसे कुछ शक्तियाँ संगठन के कार्य पर प्रभावी नियंत्रण के लिए अपने पास रखनी होती हैं । इस तरह, प्रत्यायोजन की हद मामले, परिस्थिति और जिम्मेदारियों की प्रकृति पर निर्भर करती है ।

जैसाकि एम.पी. शर्मा ने पहचान की है, निम्न शक्तियों का आमतौर पर प्रत्यायोजन नहीं होता:

(i) पहली पंक्ति या ठीक नीचे के अधीनस्थों के कार्यों के पर्यवेक्षण की शक्ति ।

(ii) एक निश्चित मात्रा से ऊपर के खर्चे की अनुमति देने की शक्ति और सामान्य वित्तीय पर्यवेक्षण की शक्ति ।

(iii) नई नीतियों को सम्मति देने और पुरानी नीतियों से प्रस्थान करने की शक्ति ।

(iv) नियम और कायदे बनाने की शक्ति ।

(v) विशिष्ट उच्च नियुक्तियों करने की शक्ति ।

(vi) ठीक नीचे के अधीनस्थों के निर्णयों के खिलाफ अपीलों की सुनवाई करने की शक्ति ।


7. प्रत्यायोजन विकेंद्रीकरण का बाधाएँ (Hindrances to Delegation of Authority):

प्रत्यायोजन में आने वाली बाधाओं को दो समूहों में बाँटा जा सकता है- सांगठनिक और व्यक्तिगत ।

सांगठनिक बाधाएँ (Organisational Hindrances):

(i) सुस्थापित सांगठनिक पद्धतियों, प्रक्रियाओं और नियमों की कमी ।

(ii) काम का अस्थिर और गैर-दुहरावपूर्ण चरित्र ।

(iii) आंतरिक संचार के प्रभावी साधनों की कमी ।

(iv) विशेष कार्यक्रमों की केंद्रीकरण आवश्यकताएँ ।

(v) संगठन के छोटे आकार और संकीर्ण भौगोलिक कवरेज ।

(vi) आंतरिक तालमेल के प्रभावी साधनों की कमी ।

(vii) जिम्मेदारी और प्राधिकार के शब्दों में सुपरिभाषित स्थितियों की कमी ।

(viii) निम्न स्तर के कर्मचारियों की अक्षमता और निम्न योग्यता ।

(ix) कम न्याय के कारण संगठन की कम आयु ।

(x) संवैधानिक, कानूनी और राजनीतिक रुकावटें ।

(xi) संगठन द्वारा झेली जाने वाली संकट की स्थितियाँ ।

(xii) कार्य नियंत्रण के प्रभावी साधनों की कमी ।

व्यक्तिगत बाधाएँ:

जे.एम. फ़िफ़नर के अनुसार प्रत्यायोजन में आने वाली व्यक्तिगत बाधाएँ निम्न हैं:

(i) पदानुक्रमिक नेतृत्व की स्थिति पर पहुँचे व्यक्तियों का अहंवाद सामान्य से अधिक होता है ।

(ii) वे डरते हैं कि दूसरे उचित निर्णय नहीं ले सकेंगे या उन्हें वांछित रूप में अंजाम नहीं दे पाएँगे ।

(iii) वे डरते हैं कि शक्तिशाली के बीच अनिष्ठावान और विध्वंसकारी शक्ति केंद्र विकसित हो जाएँगे ।

(iv) उत्साही, अति प्रेरित और शक्तिशाली व्यक्ति अधीनस्थों की धीमी रफ्तार और अनिर्णायकता को लेकर अधैर्यवान हो जाते हैं ।

(v) लोक प्रशासन में, राजनीतिक सरोकार अक्सर प्रत्यायोजन को मुश्किल बना देते हैं ।

(vi) मनुष्य की सांस्कृतिक विरासत निरंकुश और पितृसत्तात्मक रही है, इसलिए प्रत्यायोजन की प्रथा आंशिक तौर पर सांस्कृतिक परिवर्तन पर निर्भर है ।

(vii) प्रत्यायोजन के काम में एक भावनात्मक परिपक्वता की आवश्यकता होती है जो सफल व्यक्तियों के बीच भी विरले ही मिलती है ।

(viii) नेतृत्व के प्रतीक गुण (वे व्यक्तिगत गुण और विशेषताएँ जो दूसरों का ध्यान खींचती हैं) प्रत्यायोजन के विचार-दर्शन के साथ असंगत होते हैं । जो सफल होने का प्रयास करते रहते हैं उन्हें स्वयं को प्रभावी बनाना ही पड़ता है ।

(ix) जो व्यक्ति प्रत्यायोजित होना चाहते हैं, वे नहीं जानते कि यह कैसे करें ।

इसके कम से कम दो कारण हैं:

(क) संगठन और प्रबंधन का विज्ञान अभी अपरिपक्व है और

(ख) उनके कार्य अनुभवों ने उन्हें प्रत्यायोजन करना नहीं सिखाया है क्योंकि अधिकांश संगठन प्रत्यायोजन में असफल रहते हैं ।