Read this article in Hindi to learn about:- 1. महालेखा परीक्षक का उद्भव (Origin of CAG) 2. महालेखा परीक्षक का पद और नियुक्ति (Post and Appointment of CAG) 3. कर्तव्य और शक्तियां (Duties and Powers) and Other Details.

महालेखा परीक्षक का उद्भव (Origin of the Comptroller Auditor General):

ईस्ट इंडिया कम्पनी ने 1753 में लेखा परीक्षण विभाग गठित किया था । भारत में महालेखा परीक्षक का पद सर्वप्रथम लार्डकर्निग ने 1857 में सृजित किया जिसके अधीन तीनों प्रेसीडेंसिया रखी गयी । वह इनके लेख प्रमाणित करता था । लेकिन वास्तविक CAG सर्वप्रथम ब्रिटेन में 1866 में लेखा परीक्षक के रूप में यह अस्तित्व में आया था क्योंकि भारत का लेखा परीक्षण विभाग स्वतंत्र नहीं था ।

1912 में सर विल्सन ने उसकी स्वतंत्रता का प्रश्न उठाया । 1919 के अधिनियम द्वारा स्वतंत्र लेखा परीक्षण स्थापित हुआ । 1935 के अधि. ने महालेखा परीक्षक को न्यायाधिकार का स्तर दिया । भारतीय संविधान ने अनु.148 में स्वतंत्र नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के पद को सृजित किया ।

इसका कार्यालय भारतीय लेखा एवं लेखा परीक्षण विभाग (I.A.A.D.) कहलाता है । नई दिल्ली में इसका मुख्यालय है । इसके दो कार्यालय क्रमशः न्यूयार्क और लन्दन में भी है । 1976 तक यह लेखाँकन का काम भी कर था । अब सिर्फ लेखा परीक्षक का काम ही करता हैं ।

महालेखा परीक्षक का पद और नियुक्ति (Post and Appointment of the Comptroller Auditor General) :

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महालेखा परीक्षक (CAG) की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है । 1953 और पुन: 1971 में पारित अधिनियम द्वारा CAG का कार्यकाल 6 वर्ष निर्धारित किया गया है और अधिकतम आयु 65 वर्ष तय की गयी है । उसे पद से हटाने के वही कारण होगे जो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधिशों के लिए हैं तथा उसी प्रक्रिया का पालन भी करना जरूरी है ।

उसके कार्यकाल के दौरान पद की सेवाशर्तों में अलाभकारी परिवर्तन नहीं किये जा सकते हैं । सेवानिवृत्ति के बाद वह सरकार के अधीन कोई लाभ का पद धारण नहीं कर सकता है । उसका वेतन संचित निधि पर भारित हैं ।

शपथ:

नियंत्रक महालेखा परीक्षक राष्ट्रपति के सामने निर्धारित विधि के अनुसार शपथ लेता है ।

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वेतन-भत्ते:

नियंत्रक-महालेखा परीक्षक का वेतन इस समय उच्चतम-न्यायलय के न्यायधीश के समान 30 हजार रुपये प्रति माह है । उसके वेतन-भत्तों तथा अन्य सेवा शर्तों का निर्धारण संसद द्वारा किया जाता है, परन्तु एक बार नियुक्ति हो जाने के बाद कार्यकाल के दौरान उसके वेतन, अवकाश, पेन्शन या अवकाश मुक्ति के लिए आयु-सीमा के संबंध में उसके हितों के विरूद्ध कोई भी परिवर्तन संभव नहीं है ।

पद की स्वतंत्रता:

i. भारत का नियंत्रक व महालेखा परीक्षक भारत के सार्वजनिक वित्त का संरक्षक होता है ।

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ii. निर्बाध होकर वह अपना दायित्व पूरा कर सके, इस हेतु उसे कार्यपालिका से मुक्त रखा गया है ।

iii. उसे वही स्थान और स्तर प्रदान किया गया है, जो भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को प्राप्त है ।

iv. पद-निवृति के पश्चात् वह भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन लाभ का पद ग्रहण नहीं कर सकता है ।

v. नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के पद से संबंधित जितने भी खर्च किए जाते है (जैसे कार्यालय का प्रशासनिक व्यय, कर्मचारियों के वेतन आदि सहित) वे सभी भारत की संचित निधि पर भारित है ।

महालेखा परीक्षक के कर्तव्य और शक्तियां (Duties and Powers of the Comptroller Auditor General):

a. नियंत्रक महालेखा परीक्षक की शक्तियों और कर्तव्यों का वर्णन संविधान के अनुच्छेद 149 और 150 में किया गया है ।

b. अनु. 149 के अनुसार CAG के कार्य और शक्तियां संसदीय अधिनियम द्वारा निर्धारित की जाती है ।

c. संविधान के अनुच्छेद 150 में यह उपबंध है कि संघ और राज्यों की लेखा का प्रारूप वही होगा जो भारत का नियंत्रक महालेखा-परीक्षक राष्ट्रपति की स्वीकृति से बनाएगा या निर्धारित करेगा ।

d. 1976 में इसे लेखा कार्य से पृथक् कर मात्र लेखा परीक्षा तक सीमित कर दिया गया है । सर्वप्रथम 1 अप्रैल, 1976 को तीन मंत्रालयों, 1 जुलाई 1976 से नौ मंत्रालयों तथा 1 अक्टूबर, 1976 से शेष बचे सभी मंत्रालयों का लेखा कार्य सी.ए.जी, से पृथक् कर दिया तथा केंद्र सरकार के मंत्रालय समस्त भुगतान तथा उनका लेखाँकन स्वयं करने लग गए तथा केंद्र सरकार के समस्त लेखाओं को संग्रहित करने हेतु पृथक् से ”लेखा महानियंत्रक” पदस्थापित कर दिया गया ।

e. 1971 के अधिनियम द्वारा उसके अधिकारों और कर्त्तव्यों को परिभाषित किया गया, जिसमें 1984 में सकारात्मक परिवर्तन किये गये ।

महालेखा परीक्षक के कार्य (Functions of the Comptroller Auditor General):

CAG के दो महत्वपूर्ण कार्य हैं:

(1) नियन्त्रक के रूप में यह सुनिश्चित करना कि संचित निधि से विधायिका की अनुमति अनुसार ही धन निकासी हो,

(2) महालेखा परीक्षक के रूप में यह पता लगाना कि धन का व्यय संसदीय अनुमति के अनुरूप तथा निर्धारित नियम प्रक्रिया के अनुसार हुआ है ।

परीक्षक के रूप में वह निम्नलिखित विस्तृत क्रिया-कलाप सम्पन्न करता है:

1. व्यय किया गया धन कानूनी रूप से उन कार्यों के लिए उपलब्ध था, जिन पर व्यय हुआ ।

2. जो धन व्यय हुआ है, उसकी सक्षम स्वीकृति प्राप्त कर ली गयी थी और सक्षम अधिकारी द्वारा ही व्यय हुआ है ।

3. धन व्यय के लिए तकनीकी और विधिक औपचारिकताएं पूरी की गयी थी ।

4. धन का भुगतान सही व्यक्ति को किया गया है । इसके लिए संबंधित रसीद/वाउचर्स लगे हुए हैं ।

5. धन व्यय का औचित्य मौजूद था या नहीं ।

6. धन व्यय में मितव्ययिता का ध्यान रखा गया या नहीं ।

7. सरकारों के व्यापारिक और निर्माण कार्यों से संबंधित लेन-देन और बैलेंस शीट का परीक्षण कर वित्तीय औचित्य का पता लगाना ।

8. ऋण, निक्षेप, सिंकीग फंड्स, सस्पेंस लेखा आदि की जांच कर वित्तीय गडबडियों का पता लगाना ।

9. सरकार के निवेदन पर सरकारी भण्डारों की स्टॉक्स का लेखों के सम्बन्ध में परीक्षण करना ।

10. सी.ए.जी. संघ तथा राज्यों के वार्षिक लेखों का प्रमाणीकरण भी करता है । इसमें विश्व बैंक द्वारा प्रायोजित परियोजनाओं का आय-व्यय भी सम्मिलित है क्योंकि विश्व बैंक ने भारत के सी.ए.जी. को इस कार्य हेतु अधिकृत किया हुआ है । केंद्र प्रायोजित परियोजनाओं तथा विकास कार्यक्रमों में हुए व्यय का प्रमाणीकरण भी यह विभाग करता है ।

उल्लेखनीय है कि वह केन्द्र और राज्य दोनों के लेखों की परीक्षा करता है । प्रत्येक मंत्रालय में उसके अधीन एक लेखाधिकारी तथा प्रत्येक राज्य में एक महालेखाकार होता है जो अपने कार्मिक वृन्द के साथ CAG की मदद करते हैं ।

CAG अपना प्रतिवेदन अनु. 151 के अनुसार केन्द्र से संबंधित राष्ट्रपति को और राज्य से संबंधित प्रतिवेदन उसके राज्यपाल को सौंपता है, जो क्रमश: संसद और विधानमण्डल के समक्ष प्रस्तुत करते हैं । यहां व्यवस्थापिकाएं अपनी लोक लेखा समिति के माध्यम से उस पर विचार कर कार्यवाही की सिफारिश सरकार से करती है ।

इस प्रकार CAG की भारत के संघीय वित्तीय प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका है । उसके द्वारा अनेक वित्तीय अनियमिताएं प्रकाश में लायी गयी है, जैसे- बोफोर्स तोप का सौदा और ताबूत घोटाला । उसने प्रशासनिक कार्यकुशलता में वृद्धि के लिए भी अनेक महत्वपूर्ण सुझाव दिये जैसे विभागीय लेखा परीक्षण को लागू करना, मंत्रियों की हवाई यात्रा को नियन्त्रित करना ।

उसे इन्हीं कार्यों के कारण सार्वजनिक वित्त के सजग प्रहरी (वाच) की संज्ञा दी जाती है । लेकिन उसके आलोचक भी कम नहीं है, जो उसे जागरूक पहरेदार के स्थान पर ”रक्तपिपासू कुत्ता” या ”मसखरा” तक कहते हैं । एपिलबी ने भारत में CAG की ”छिन्दान्वेषण” की प्रवृत्ति के कारण घोर आलोचना की और उसे औपनिवेशिक काल की एसी विरासत बताया, जो अब विकास कार्यों में कुशलता को बाधित कर रहा है ।

महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदन (Report of the Comptroller Auditor General):

अनुच्छेद 151 के तहत संघीय खातों से सम्बन्ध रिपोर्टों को महालेखा परीक्षक राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करता है तथा राज्यों के लेखाओं से सम्बन्धित रिपोर्ट को वह संबंधित राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत करता है । इसके पश्चात् राष्ट्रपति और राज्यपाल इन रिपोर्टों को क्रमश: संसद और राज्य विधानमण्डल के समक्ष प्रस्तुत करते हैं ।

शक्तियां:

CAG को निम्नलिखित शक्तियां प्राप्त है:

1. किसी कार्यालय या संगठन का अंकेक्षण हेतु निरीक्षण करना ।

2. अंकेक्षण के लिये किसी हिसाब-किताब, डायरी, बही, बिल, रिकार्ड तथा अन्य दस्तावेज मांगना ।

3. लेखा रिपोर्ट बनाने के लिये कोई आवश्यक सूचना प्राप्त करना ।

4. अंकेक्षण की प्रकृति, मात्रा, क्षेत्र तथा स्वरूप निर्धारण करने में सी.ए.जी. वैधानिक शक्तियां प्राप्त निकाय है ।