Read this article in Hindi to learn about:- 1. लोक सहभागिता से आशय (Intention from Public Interaction) 2. लोक सहभागिता के साधन (Tools of Public Interaction) 3. बाधाएं (Barriers) 4. मॉडल (Model).

लोक प्रशासन सार्वजनिक होता है, अर्थात जनता के लिए प्रशासन । वर्तमान लोकतांत्रिक अवधारणा ने यह आवश्यक कर दिया है कि जनता के लिए प्रशासन, जनता द्वारा प्रशासन भी होना चाहिये अर्थात प्रशासन की समस्त गतिविधियों में जनता की भागीदारी सुनिश्चित की जाये ताकि प्रशासन अधिकाधिक जनोन्मुख बन सके और का कल्याण सुनिश्चित हो सके ।

लोक सहभागिता से आशय (Intention from Public Interaction):

प्रशासन में लोक सहभागिता से आशय है कि जनता की प्रशासनिक कार्यों के निर्धारण और क्रयान्वयन में प्रभावशाली भूमिका हो । यह प्रशासन को जनइच्छा व जन सुविधा पर आधारित करने का एक माध्यम है जिससे वह जन आवश्यकता के अनुरूप बना रहे, उसकी निरंकुशता पर जन नियंत्रण का अंकुश हो और सार्वजनिक धन का सदुपयोग हो सके । वस्तुतः लोक सहभागिता लोकतंत्र को स्थापित और प्राप्त करने का एक उपाय है ।

आवश्यकता:

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आधुनिक लोक कल्याणकारी राज्य को अनेक लोकहितकारी कार्यों के उत्तरदायित्व सौंपे गये हैं । प्रशासन का परम्परागत स्वरूप राज्य का अवधारणा व मेल नहीं खाता, अतः प्रशासन में विकास प्रशासन की अवधारणा विकसित हुई जिसकी मान्यता है कि प्रशासन जनता के जितना निकट और उससे जुड़ा होगा, उतना ही सफल होगा । विकास प्रशासन और लोक कल्याणकारी अवधारणा ने प्रशासन और लोक के को सम्बन्धों को नये रूप में परिभाषित किया है । उसमें जनता की रुचि बढ़ती जा रही है ।

लोक सहभागिता की जरूरत को इसी परिप्रेक्ष्य में विश्लेषित किया जा सकता है:

1. लोकतंत्र को वास्तविक और सफल बनाने के लिए:

लोकतंत्र का मूलाधार है – जनता की शासन में सीधी भागीदारी । यद्यपि विशाल राष्ट्रों में अब प्रत्यक्ष भागीदारी संभव नहीं है, अतः अप्रत्यक्ष लोकतंत्र के माध्यम से जनता को भागीदारी बनाया जाता है । अब यह अनुभव किया जा रहा है कि जनता की इसी भागीदारी को कितनी अधिक मात्रा में बढ़ाया जा सकता है । राजनीतिक और प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण के तरीके जनसहभागिता को बढ़ाने के ही माध्यम हैं ।

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2. उचित और अनुकूल नीतियों के निर्माण हेतु:

उच्च स्तर पर निर्मित नीतियां जरूरी नहीं कि स्थानीय जरूरतों पर खरी उतरें । इसका समाधान लोकसहभागी प्रशासन द्वारा किया जा सकता है । स्थानीय स्तर पर लोकसत्ता का विकास करके अनुकूल और योग्य नीतियों को बनाने का मार्ग प्रशस्त करने की आवश्यकता लोक सहभागिता को आवश्यक बना देती है ।

3. त्वरित निराकरण के लिए:

प्रशासन सामान्यतया नियम प्रक्रियाओं से बंधा होता है । वह जनता की समस्याओं के प्रति इतना संवेदनशील भी नहीं होता । परिणामस्वरूप जनता के कार्यों का समय पर निराकरण नहीं हो पाता । इस कमी को दूर करने के लिए प्रशासन में लोक सहभागिता आवश्यक हो जाती है । जन भागीदारी द्वारा जनता से संबंधित कार्यों में तीव्रता और पारदर्शिता सुनिश्चित होती है ।

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4. पारदर्शी प्रशासन के लिए:

निरंकुश प्रशासन भ्रष्टाचार का घर होता है । जन सहभागिता द्वारा उसे जनहित की दिशा में संचालित करने से प्रशासन अपने अधिकारों के दुरूपयोग के बारे में नहीं सोच सकता । उसकी गतिविधियां जनता से छिपी नहीं रह सकती ।

5. नौकरशाही पर प्रभावशाली नियंत्रण हेतु:

प्रशासन की नौकरशाही प्रवृत्ति उसे अकर्मण्य, भ्रष्ट, अहमवादी और लालफीताशाही से ग्रस्त कर देती है । इसलिए उस पर नियंत्रण की आवश्यकता लोक सहभागिता को अनिवार्य बना देती है । जनता के नियंत्रण में प्रशासन अपने कर्तव्यों-दायित्वों से विमुख नहीं हो सकता ।

6. प्रशासनिक नेतृत्व की सफलता के लिए:

प्रशासकीय नेतृत्व तभी सफल हो सकता है जब जनता द्वारा उसमें विश्वास व्यक्त किया जाये । जनता को प्रशासन में सहभागी बनाकर उसके माध्यम से प्रशासनिक नेतृत्व की जन-स्वीकृति हासिल की जा सकती है ।

7. आम बनता के हितों की सुरक्षार्थ:

आज के प्रशासन को अनेक स्वविवेकीय शक्तियां प्राप्त हैं । इनके दुरूपयोग से व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षार्थ राजनीति में व्यक्तियों की निगरानी और भागीदारी आवश्यक है ।

8. विकास प्रशासन की सफलता के लिए:

तीव्र सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए, विशेषकर विकासशील देशों में विकास प्रशासन की जिस संकल्पना को अपनाया गया है, वह वस्तुतः लोगों का, लोगों द्वारा ही शासन है । जन भागीदारी इसकी सफलता के लिए अत्यन्त आवश्यक है । स्पष्ट है कि लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक को मताधिकार के अतिरिक्त सार्वजनिक कार्यों में भागीदार बनाने की व्यापक आवश्यकता ने लोक सहभागिता का विकास किया है ।

लोक सहभागिता के साधन (Tools of Public Interaction):

लोक सहभागिता की आवश्यकताओं के तारतम्य में यह समस्या उठती है कि इसे प्रशासन में सुनिश्चित कैसे किया जाए? वस्तुतः अप्रत्यक्ष रूप से जनता प्रशासन में भागीदार बनती है ।

इसे प्राप्त करने के निम्नलिखित साधन हो सकते हैं:

1. चुनाव:

लोकतंत्र में जनता द्वारा व्यवस्थापिका और उसके माध्यम से कार्यपालिका का चुनाव किया जाता है । यह कार्यपालिका, जनसेवा हेतु प्रशासकों और अन्य कार्मिकों को नियुक्त करती है । जनता अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से ही प्रशासन पर दबाव डालती है कि उनके हितों की पूर्ति की जाए ।

2. प्रत्यावर्तन का अधिकार:

जनता इस अधिकार द्वारा प्रशासन के प्रतिनिधियों को वापस बुला सकती है । यद्यपि यह फ्रांस जैसे देशों में ही लागू है । तथापि म.प्र. जैसे कुछ राज्यों ने भी स्थानीय निकायों में इसको लागू किया है ।

3. परामर्शदात्री निकाय:

रेलवे सलाहकारी बोर्ड जैसे निकाय शासन को सलाह देते हैं । इससे जनता की प्रशासन में भागीदारी सुनिश्चित होती है ।

4. दबाव गुट:

विभिन्न राजनीतिक, व्यावसायिक, आर्थिक, जातिगत समूह प्रशासन पर दबाव बनाए रखते हैं, जिनकी उपेक्षा कर प्रशासन कोई कार्य नहीं कर सकता ।

5. राजनीतिक दल:

राजनीतिक दलों के माध्यम से भी जनता की प्रशासन में भागीदारी बनती है । प्रशासन को इन दलों से विचार विमर्श करके ही महत्वपूर्ण कदम उठाने पड़ते हैं । सत्तारूढ़ दल और विपक्षी दल दोनों ही प्रशासन तक जनइच्छा को पहुँचाते हैं ।

6. संचार साधनों के द्वारा:

समाचार पत्र, रेडियो, दूरदर्शन आदि साधन लोकमत को अभिव्यक्त करते हैं । इनके द्वारा जन आकांक्षाओं को प्रशासन के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, जिसका पालन प्रशासन को करना पड़ता है और अपने कार्यों, नीतियों को तदनुरूप दिशा देनी होती है ।

7. जनता के सहयोग से नीति निर्माण और क्रियान्वयन द्वारा:

प्रशासन अपनी नीतियों के निर्माण और क्रियान्वयन के पहले जनता से विचार विमर्श कर सकता है । उदाहरण के लिये नये जिलों के निर्माण के लिए दावे आपत्तियां आमंत्रित करना ।

8. लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण:

प्रशासन में लोक सहभागिता को व्यापक रूप से सुनिश्चित करने का सर्वाधिक प्रभावशाली माध्यम लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण होता है । इसके तहत जनता को राजनीतिक और प्रशासनिक कर्तव्य और दायित्व सौंप दिये जाते है और वह स्वयं अपने क्षेत्र का शासन प्रशासन करती हैं । इससे प्रत्यक्ष लोक सहभागिता प्राप्त होती है । भारत में पंचायत प्रणाली प्राचीन समय से ही लोक सहभागिता को सुनिश्चित करती आ रही है ।

 

9. सूचना का अधिकार:

जनता, प्रशासन से संबंधित कार्यों, गतिविधियों की जानकारी प्राप्त करके अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर सकती हैं । ऐसा अधिकार उन्हें भारत में भी कानून बनाकर प्रदत्त किया गया है ।

लोक सहभागिता की बाधाएं (Barriers to Public Interaction):

लोक सहभागिता के मार्ग में जनता की अशिक्षा, अजागरूकता सबसे बड़ी बाधा है । इसके अलावा नौकरशाही की प्रवृत्तियाँ, राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव, भारत में दबाव गुटों का कम विकास और महत्व भी अन्य प्रमुख बाधाएं हैं ।

पंचायत राज प्रणाली द्वारा लोक सहभागिता की दिशा में उठाया गया कदम तभी सार्थक और सफल होगा जब जनता का सामाजिक एवं शैक्षणिक स्तर ऊंचा किया जाये तथा जनता को राजनीतिक अधिकारों से सम्पन्न किया जाये ।

सामुदायिक सहभागिता के मॉडल (Model of Community Interaction):

प्रशासन में जन सहभागिता बढ़ाने के तरीकों या माध्यमों को विभिन्न मॉडलों का नाम दिया गया है:

1. नौकरशाही मॉडल:

यह परंपरागत मॉडल है जिसके अंतर्गत विकास में भारत में इस मॉडल को अपनाने के दुष्परिणाम हुए अतः नौकरशाही का उलट ”विकेंद्रीकरण मॉडल” अपनाया गया ।

 

2. मिशनरी मॉडल:

यह प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं के संगठित प्रयासों पर आधारित मॉडल है । भारत में अब स्वयंसेवी संगठनों को विकास में अधिकाधिक भागीदार बनाया जा रहा है जो मिशनरी मॉडलर की उपयोगिता रेखांकित करता है ।

3. सहभागी मॉडल:

इसमें नीति निर्माण, योजना निर्माण और उनके क्रियान्वयन में भागीदारी निभाने हेतु जनता को आमंत्रित, प्रेरित किया जाता है ।

4. श्रृंखला सहभागी मॉडल:

एक योजना की सफलता पर दूसरी योजना का क्रियान्वयन भी उसी समुदाय में करने अन्य समुदायों को सहभागिता के लिये प्रेरित करना इस मॉडल का ध्येय है ।

5. प्रोन्नकारी मॉडल:

इसके अंतर्गत नौकरशाह, राजनीतिज्ञ आदि आम व्यक्तियों को विकास में सहभागिता के लिये प्राशिक्ष्ति करते हैं ।