लोक प्रशासन: अर्थ, प्रकृति और दायरा | Read this article in Hindi to learn about:- 1. लोक प्रशासन  का अर्थ (Meaning of Public Administration) 2. लोक प्रशासन की प्रकृति (Nature of Public Administration) 3. लोक प्रशासन का क्षेत्र (Scope of Public Administration) 4. भारत में लोक प्रशासन का अध्ययन (Study of Public Administration in India).

लोक प्रशासन  का अर्थ (Meaning of Public Administration):

‘लोक प्रशासन’ प्रशासन के एक अधिक व्यापक क्षेत्र का एक पहलू है । यह राजनीतिक निर्णय निर्माताओं द्वारा निर्धारित लक्ष्यों और उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक राजनीतिक व्यवस्था में मौजूद होता है ।

इसे सरकारी प्रशासन के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि ‘लोक प्रशासन’ में लगे विशेषण ‘लोक’ का अर्थ ‘सरकार’ होता है । इस प्रकार लोक प्रशासन का ध्यान लोक नौकरशाही पर अर्थात् यानी सरकार के नौकरशाही संगठन (या प्रशासनिक संगठन) पर केंद्रित होता है ।

लोक प्रशासन को निम्न रूपों में परिभाषित किया गया है:

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वुडरो विल्सन- “लोक प्रशासन का काम कानून को सविस्तार व्यवस्थित रूप से लागू करना है । कानून लागू करने की प्रत्येक कार्यवाही प्रशासन की ही एक गतिविधि है । वे आगे कहते हैं कि प्रशासन सरकार का सर्वाधिक स्पष्ट अंग है । यह कार्यकारी सरकारी है, यह सरकार या सर्वाधिक दृष्टव्य कार्यकारी व कार्यचालन पक्ष है ।”

एल.डी. व्हाइट- ”लोक प्रशासन में वे सभी गतिविधियों शामिल हैं जिनका उद्देश्य लोक नीति की पूर्ति करना या उसे लागू करना है ।” लूथर गुलिक- ”लोक प्रशासन, प्रशासन के विज्ञान का वह हिस्सा है जिसका सरोकार सरकार और इस तरह की कार्यकारी शाखा से होता है, जहाँ सरकार के काम होते हैं, हालांकि प्रत्यक्षत: विधिक और न्यायिक शाखाओं के साथ इसके संबंध में समस्याएँ हैं ।”

साइमन- ”आमतौर पर लोक प्रशासन का अर्थ है- राष्ट्रीय प्रांतीय और स्थानीय सरकारों की कार्यकारी शाखाओं की गतिविधियाँ ।” फ़िफ़नर- ”लोक प्रशासन का अर्थ है- सरकारी काम करना, चाहे वह किसी स्वास्थ्य प्रयोगशाला में एक एक्स-रे मशीन चलाना हो या टकसाल में सिक्के ढालना ।

इस प्रकार यह निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए तालमेल के साथ काम करके सरकार के काम को अंजाम देना है ।” ई.एन. ग्लैडेन- ”लोक प्रशासन का सरोकार सरकार के प्रशासन से है ।” एच. वॉकर- ”किसी कानून को प्रभावी बनाने के लिए सरकार जो भी काम करती है उसे लोक प्रशासन कहते हैं ।”

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विलोबी- ”राजनीति विज्ञान में प्रशासन शब्द का दो अर्थों में प्रयोग किया जा सकता है । अपने व्यापकतम अर्थों में इसका तात्पर्य सरकारी मामलों के निर्धारण में शामिल कार्यों से होता है, चाहे वह सरकार की कोई भी शाखा हो । अपने संकीर्णतम अर्थों में, इसका तात्पर्य केवल प्रशासनिक शाखा के कार्यों से होता है । लोक प्रशासन के विद्यार्थियों के रूप में हमारा सरोकार इस शब्द के संकीर्णतम अर्थ से ही है ।”

डी. वाल्डो- ”लोक प्रशासन प्रबंधन की कला और विज्ञान है जिसे राज्य के मामलों में लागू किया जाता है । वाल्डो के अनुसार लोक प्रशासन की प्रक्रिया में एक सरकार की इच्छा व अभिलाषा को प्रभावित करने वाली कार्यवाहियां शामिल हैं । इस प्रकार यह सरकार का सक्रिय व्यावसायिक अंग है, जो विधायी निकायों द्वारा बनाये गये कानूनों को लागू करने से सरोकार रखता है ।”

जॉन ए. वीग- ”प्रशासन से तात्पर्य उस संगठन, कर्मचारी-वर्ग व्यवहार और उन प्रक्रियाओं से होता है जो सरकार की कार्यकारी शाखा को सौंपे गए नागरिक कार्यों को प्रभावी ढंग से पूरा करने के लिए अनिवार्य होती हैं ।” पी. मैकक्वीन- ”लोक प्रशासन केंद्रीय और स्थानीय सरकार के कार्यों से संबंधित प्रशासन है ।”

मर्सन- ”प्रशासन कार्यों को पूरा कराता है । जिस प्रकार राजनीति का विज्ञान उन सर्वश्रेष्ठ उपायों की एक परख है जिससे जनता की इच्छा को नीति-निर्धारण के लिए संगठित किया जाता है, ठीक उसी तरह लोक प्रशासन का विज्ञान इस बात की जाँच करता है कि नीतियों को कार्यरूप देने का सर्वश्रेष्ठ तरीका क्या है ?”

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कॉर्सन और हैरिस- ”लोक प्रशासन सरकार का वह व्यावहारिक हिस्सा है जिससे सरकार के उद्देश्यों और लक्ष्यों को फलित रूप दिया जाता है ।” एफ.ए.नीग्रो- ”लोक प्रशासन (i) किसी सार्वजनिक व्यवस्थापन में एक सहकारी प्रयास है; (ii) सभी तीन शाखाओं-कार्यकारी, विधिक, न्यायिक और उनके अंतर्संबंधों को शामिल करता है; (iii) लोक नीति के निर्धारण में अहम भूमिका निभाता है और इस प्रकार राजनीतिक प्रक्रिया का एक हिस्सा है; (iv) वैयक्तिक प्रशासन से महत्वपूर्ण रूपों में अलग है और (v) समुदाय को सेवाएँ प्रदान करने के लिए तमाम निजी समूहों और व्यक्तियों से नजदीकी से जुड़ा होता है ।”

जे.एस. हॉजसन- ”लोकप्रशासन सरकारों या उनके अभिकरणों में व्यक्तियों या समूहों की उन समस्त गतिविधियों को शामिल करता है जो इन सरकारों या अभिकरणों (भले ही इन संगठनों का कार्यक्षेत्र अंतर्राष्ट्रीय हो या क्षेत्रीय अथवा स्थानीय हो) के लक्ष्यों को पूरा करती है ।”

एम.ई डिमॉक- ”लोक प्रशासन सक्षम सत्ताओं द्वारा घोषित सार्वजनिक नीति को लागू करना या उन्हें फलित करना है । यह संगठन और प्रबंधन तकनीकों की उन समस्याओं व शक्तियों से संबंधित है जो सरकार की नीति निर्माण एजेंसियों द्वारा निर्मित कानूनों तथा नीतियों को लागू करने में निहित होती है । लोक प्रशासन क्रियाशील विधि है । यह एक सरकार का कार्यकारी पक्ष है ।”

जेम्स डब्ल्यू. फेस्लर- ”लोक प्रशासन नीति क्रियान्वयन एवं नीति निर्माण है । यह नौकरशाही है और यह जनता है ।”  जेम्स डब्ल्यू. डेविस- ”लोक प्रशासन को सरकार की एक कार्यकारी शाखा के रूप में सर्वोत्तम रूप में पहचाना जा सकता है ।”  फ्रेंक गुडनॉव- “लोक प्रशासन के अंतर्गत विधि को लागू करने के कार्यों के साथ-साथ अर्ध-वैज्ञानिक अर्ध-न्यायिक और अर्ध-व्यावसायिक या वाणिज्यिक कार्य भी शामिल हैं ।”

रिडले- ”लोक प्रशासन सार्वजनिक क्षेत्र में प्रशासन है । यह राज्य द्वारा प्रशासन है । लोक प्रशासन सरकारी प्रशासन है । यह सार्वजनिक प्राधिकारियों द्वारा प्रशासन है । सार्वजनिक प्राधिकारी लोक प्रशासन के नियमों द्वारा प्रशासित करते हैं । लोक प्रशासन का अध्ययन विवरणात्मक सैद्धांतिक एवं नियामक रूप में किया जाना चाहिए ।”

एम रथनास्वामी- “जब प्रशासन का संबंध एक राज्य अथवा नगर निगम व जिला बोर्ड जैसे लघुत्तर राजनीतिक संस्थाओं के मामलों से होता है, तो यह लोक प्रशासन कहलाता है ।” डिमॉक और डिमॉक- ”राजनीति के अध्ययन की भांति लोक प्रशासन का अध्ययन भी एक ऐसा अध्ययन है जिसके द्वारा यह पता लगाया जाता है कि लोग सरकार से क्या चाहते हैं और इन इच्छाओं की प्राप्ति के लिए किस प्रकार कार्य करते हैं । इसके अलावा प्रशासन प्रबंधन की पद्धतियों और प्रक्रियाओं पर भी बल देता है ।

इस प्रकार लोक प्रशासन ‘सरकार क्या करती है’ पर अधिक जोर देता है । न कि इस बात पर कि सरकार कैसे करती है । साथ ही लोक प्रशासन अध्ययन और कार्य व्यवहार का वह क्षेत्र है जहां नीति और कानून अनुशंसित एवं लागू किए जाते हैं ।” जे.ग्रीनवुड और डी.विल्सन- “लोकप्रशासन एक गतिविधि है, यह संस्थाओं का एक समुच्चय है और अध्ययन का एक विषय है ।”

रोजेनब्लूम- ”लोक प्रशासन में गतिविधि निहित है, यह राजनीति और नीति निर्माण से सम्बद्ध है, यह सरकार की कार्यकारी शाखा में संकेन्द्रित होने की प्रवृत्ति रखता है, यह निजी प्रशासन से भिन्न है और यह कानून को लागू करने से संबंधित है । वे आगे जोड़ते हैं कि ”लोक प्रशासन सम्पूर्ण समाज या उसके कुछ भागों के लिए नियामक एवं सेवा कार्यकलापों हेतु प्रबंधकीय विधायी एवं राजनीतिक सिद्धांतों तथा प्रक्रियाओं का प्रयोग है ।”

यूजीन मैक्ग्रेगर- ”लोक प्रशासन शब्द उस उद्देश्यपरक सार्वजनिक क्रियाकलाप की उत्पत्ति को संकेतित करने के लिए आरक्षित है, जिसकी सफलता, प्रशासनिक कार्यचालन, लोकतांत्रिक शासन एवं सार्वजनिक समाधान की प्रतिस्पर्धी मांगों की पूर्ति व समायोजन पर निर्भर होती है ।”

एफ.एम. मार्क्स- “लोकप्रशासन उन संगठन, कार्मिक, कार्यव्यवहारों एवं प्रक्रियाओं का सूचक है जो सरकार की कार्यकारी शाखा को सौंपे गए नागरिक कार्यों के प्रभावी निष्पादन हेतु अनिवार्य होते हैं ।”  उपरोक्त परिभाषाओं का विश्लेषण बताता है कि ‘लोक प्रशासन’ शब्द दो अर्थों में प्रयोग किया जाता है- विस्तृत अर्थ और संकीर्ण अर्थ । विस्तृत अर्थ (व्यापक अर्थ) में ‘लोक प्रशासन’ में सरकार की तीन शाखाओं विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की गतिविधियाँ शामिल होती हैं ।

इस उपागम को वुडरो विल्सन, एल.डी. व्हाइट, मार्शल, डिमॉक, एफ.ए. नीग्रो और फ़िफ़नर ने अपनाया है । इसके विपरीत, संकीर्ण अर्थ में ‘लोक प्रशासन’ में सरकार की सिर्फ कार्यकारी शाखा की गतिविधियाँ ही शामिल होती हैं । इस उपागम को साइमन, गुलिक, ऑर्डवे टीड, फेयॉल और विलोबी ने अपनाया है ।

यहां यह उल्लेखनीय है कि विलोबी ने भी कार्यकारी एवं प्रशासनिक शक्ति के बीच भेद किया है और प्रशासन शब्द के प्रयोग को प्रशासनिक शाखा की गतिविधियों तक ही सीमित रखा है । उन्होंने प्रशासन को सरकार की चौथी शाखा माना है यह विल्सन द्वारा शुरू किए गए राजनीति और प्रशासन के प्रथक्करण का सर्वाधिक तार्किक परिणाम है ।

लोक प्रशासन की प्रकृति (Nature of Public Administration):

लोक प्रशासन के विद्वानों ने लोक प्रशासन की प्रकृति को दो अलग-अलग उपागमों से अभिव्यक्त किया है- समग्र उपागम और प्रबंधकीय उपागम ।

समग्र दृष्टिकोण:

इस उपागम के अनुसार- लोक प्रशासन उन सभी गतिविधियों का समावेश करता है जो दिए गए लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए की जाती हैं । दूसरे शब्दों में लोक प्रशासन प्रबंधकीय तकनीकी लिपिकीय और दस्ती कामों का कुल योग है ।

इस प्रकार इस उपागम के अनुसार प्रशासन ऊपर से नीचे तक सभी व्यक्तियों की गतिविधियों से बनता है । एल.डी. व्हाइट और डिमॉक इसी उपागम को मानते हैं । जिसके अनुसार प्रशासन संबंधित अभिकरण की विषय वस्तु पर निर्भर करता है, यानी यह एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न होता है ।

प्रबंधकीय दृष्टिकोण:

इस परिप्रेक्ष्य में, लोक प्रशासन में केवल प्रबंधकीय गतिविधियाँ शामिल होती हैं । तकनीकी, लिपिकीय और दस्ती गतिविधियां इसमें शामिल नहीं होतीं; जो स्वभाव से गैर-प्रबंधकीय गतिविधियाँ हैं ।

अत: इस उपागम के अनुसार, प्रशासन सिर्फ ऊपर के व्यक्तियों की गतिविधियों से बनता है । साइमन, स्मिथबर्ग, थॉम्पसन और लूथर गुलिक जैसे विचारक इस उपागम को अपनाते हैं, जिसके अनुसार प्रशासन सभी क्षेत्रों में समान होता है क्योंकि हर क्षेत्र की गतिविधियों में प्रबंधकीय तकनीकें समान होती हैं । लूथर गुलिक कहते हैं- ”प्रशासन का सरोकार एक निर्धारित लक्ष्य की पूर्ति के साथ कामों को पूरा करने से है ।”

प्रशासन शब्द का सही अर्थ उस संदर्भ पर निर्भर करता है जिसमें इसे लागू किया जाता है । भारत जैसे विकासशील देशों में लोक प्रशासन की अध्ययन समग्र उपागम से किया जाना चाहिए क्योंकि लिपिक स्तर पर पैदा होने वाले कार्य का 90% शीर्ष स्तर पर सही अनुमोदित कर दिया जाता है । इसी कारण भारतीय प्रशासन का केन्द्र बिन्दु बाबू या क्लर्क को माना जाता है ।

लोक प्रशासन का क्षेत्र (Scope of Public Administration):

लोक प्रशासन के उद्देश्यों को लेकर दो उपागम हैं- POSDCORB उपागम और विषय-वस्तु उपागम ।

POSDCORB दृष्टिकोण:

लोक प्रशासन के क्षेत्र से संबंधित इस उपागम की वकालत लूथर गुलिक ने की थी । वे मानते थे कि प्रशासन सात तत्वों से बनता है । उन्होंने इन तत्वों को इस प्रथमाक्षरी नाम ‘POSDCORB’ में जोड़ा है, जिसका प्रत्येक वर्ण प्रशासन के एक तत्व को दर्शाता है ।

लूथर गुलिक प्रशासन के इन सात तत्वों (या मुख्य कार्यपालिका के कार्यों) की निम्न रूप से व्याख्या करते हैं:

P- Planning (योजना)- अर्थात् एक व्यापक ढाँचे में आवश्यक कामों को करना और उपक्रम के तय लक्ष्य को पूरा करने के लिए इन कामों को करने की पद्धति तैयार करना ।

O- Organising (संगठित करना)- अर्थात प्राधिकार के औपचारिक ढाँचे की स्थापना करना, जिसके द्वारा कार्य उपविभाजनों को तय लक्ष्य के लिए व्यवस्थित, परिभाषित और समन्वित किया जाता है ।

S- Staffing (कर्मचारियों को रखना)- अर्थात भर्ती करने, कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने और काम करने की बेहतर स्थितियाँ बनाए रखने का संपूर्ण कार्मिक कार्य ।

D- Directing (निर्देशित करना)- अर्थात् निर्णय लेने और उन निर्णयों को विशिष्ट एवं सामान्य आदेशों और निर्देशों में समायोजित करने का निरंतर कार्य और उपक्रम के नेता की भूमिका का निर्वाह करना ।

CO-Coordinating (तालमेल करना)- यह कार्य के विभिन्न अंगों का आपस में संबंध स्थापित करने का बेहद अहम काम है ।

R- Reporting (सूचना देना)- अर्थात् उन लोगों को सूचित रखना जिनके प्रति कार्यपालिका चल रहे कार्यों को लेकर जवाबदेह है । इसमें रिकॉर्डों, शोध और जाँच द्वारा स्वयं और अपने अंतर्गत काम करने वालों को सूचित रखना शामिल है ।

B- Budgeting (बजट बनाना)- वह सब कुछ जो वित्तीय नियोजन, हिसाब रखने और नियंत्रण रखने के रूप में बजट बनाने के साथ होता है ।

विषय वस्तु दृष्टिकोण:

हालांकि POSDCORB उपागम अपने वर्तमान रूप में काफी लंबे समय तक स्वीकार्य बना रहा, लेकिन फिर समय बीतने के साथ इस उपागम के विरुद्ध प्रतिक्रिया हुई ।

फिर इस बात का ज्ञान हुआ कि POSDCORB गतिविधियाँ या तकनीकें संपूर्ण लोक प्रशासन तो दूर इसका कोई महत्त्वपूर्ण भाग भी नहीं हो सकतीं । यह उपागम वकालत करता है कि प्रशासन की समस्याएँ सभी एजेंसियों में समान होती हैं चाहे उनके द्वारा किए जा रहे कार्यों की विशिष्ट प्रकृति कुछ भी हो । इस तरह, यह इस तथ्य को अनदेखा करता है कि अलग-अलग एजेंसियों को अलग-अलग समस्याओं का सामना करना पड़ता है ।

इसके अलावा, POSDCORB सिर्फ प्रशासन के उपकरणों का प्रतिनिधित्व करता है जबकि वास्तविक प्रशासन एक अलग ही चीज है । प्रशासन का वास्तविक मर्म लोगों को दी जाने वाली विभिन्न सेवाओं से बनता है जैसे- रक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा आदि ।

इन सेवाओं की अपनी विशिष्टीकृत तकनीकें होती हैं जो सामान्य POSDCORB तकनीक में नहीं होतीं । दूसरे शब्दों में, हर प्रशासनिक एजेंसी का, उसकी विषय वस्तु के कारण अपना एक ‘स्थानीय’ POSDCORB होता है । इसके अतिरिक्त, गुलिक की सामान्य POSDCORB तकनीकें भी प्रशासन की विषय वस्तु से प्रभावित होती हैं ।

इस प्रकार POSDCORB उपागम ‘तकनीक निर्देशित’ है बजाय ‘विषय निर्देशित’ होने के । यह लोक प्रशासन के बुनियादी तत्व यानी ‘विषय वस्तु के ज्ञान’ की उपेक्षा करता है । इस तरह लोक प्रशासन के उद्देश्य के ‘विषय वस्तु उपागम’ का उदय हुआ ।

यह उपागम सेवाओं और प्रशासनिक एजेंसी के कार्यों पर जोर देता है । यह दलील देता है कि एक एजेंसी की सारभूत समस्याएँ उसकी विषय सामग्री पर निर्भर करती हैं (जैसे सेवाएँ और काम) जिससे उसका सरोकार होता है ।

इसलिए, लोक प्रशासन को महज तकनीकों का अध्ययन नहीं करना चाहिए बल्कि प्रशासन के सारभूत सरोकारों का अध्ययन भी करना चाहिए । लेकिन POSDCORB उपागम और विषय वस्तु उपागम एक-दूसरे का विरोध नहीं करते, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं । वे साथ मिलकर लोक प्रशासन के अध्ययन के उचित विस्तार क्षेत्र का निर्माण करते हैं ।

इसीलिए लेविस मेरियम ने सही ही कहा है- ”लोक प्रशासन एक दोधारी औजार है, जैसे कैंची की दो धारें । एक धार POSDCORB द्वारा समेटे जाने वाले क्षेत्रों का ज्ञान हो सकती है और दूसरी धार उस विषय वस्तु का ज्ञान हो सकती है जिनमें ये तकनीकें प्रयोग की जाती हैं । एक प्रभावी औजार बनाने के लिए इन दोनों ही धारों को तीक्ष्ण होना चाहिए ।”

शिक्षा की एक शाखा के रुप में लोक प्रशासन की पाँच शाखाएँ हैं:

(i) सांगठनिक सिद्धांत और व्यवहार,

(ii) लोक कर्मचारी प्रशासन,

(iii) लोक वित्त प्रशासन,

(iv) तुलनात्मक एवं विकास प्रशासन,

(v) लोक नीति विश्लेषण ।

भारत में लोक प्रशासन का अध्ययन (Study of Public Administration in India):

भारत में लोक प्रशासन के अध्यापन और अध्ययन के उदय और विकास के संबंध में निम्न बिंदुओं को देखा जा सकता है:

1. 1930 के दशक में, लखनऊ विश्वविद्यालय एम.ए. राजनीति विज्ञान के पाठ्यक्रम में ‘लोक प्रशासन’ का एक अनिवार्य प्रश्न पत्र जोड़ने वाला भारत का पहला विश्वविद्यालय बना ।

2. 1937 में, मद्रास ‘विश्व लोक प्रशासन’ पर एक डिप्लोमा पाठ्यक्रम शुरू करने वाला पहला विश्वविद्यालय बना ।

3. 1949-50 में, नागपुर विश्वविद्यालय ‘लोक प्रशासन व स्वशासन’ पर एक अलग संपूर्ण विभाग स्थापित करने वाला भारत का पहला विश्वविद्यालय बना ।

इसके साथ ही भारत में लोक प्रशासन को पहली बार भारत में पूर्ण अकादमिक वैधता दे दी गई । इस विभाग के अध्यक्ष स्वर्गीय डॉ. एम. पी. शर्मा थे जो भारत में ‘लोक प्रशासन’ के पहले प्रोफेसर के रूप में जाने जाते हैं ।

4. 1954 में भारत में ‘लोक प्रशासन’ पर पॉल एच. एपलबी रिपोर्ट (1953) के सुझाव पर नई दिल्ली में भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (IIPA) की स्थापना की गई । यह भारत में प्रशासकीय शोध कार्यों का केंद्र है और इंडियन जर्नल ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन (IJPA) के जरिए ज्ञान फैलाता है ।

5. 1987 में यूपीएससी द्वारा कराई जाने वाली लोक सेवा परीक्षाओं में लोक नीति को पूर्णत: स्वतंत्र विषय के रूप में लाया गया । इससे इस विषय को जबर्दस्त संवेग मिला ।

6. आज करीब 50 विश्वविद्यालय, सैंकड़ों कॉलेज और तमाम प्रशिक्षण संस्थान भारत में लोक प्रशासन के अध्यापन और शोध में लगे हुए हैं ।