Read this article in Hindi to learn about the ecology of development administration.

विकास प्रशासन अपनी पारिस्थितिकीय या पर्यावरण से अंर्तसबंधित होता है । इससे तात्पर्य है कि विकास प्रशासन में लगा तंत्र खुला, संवेदनशील और अनुक्रियाशील होता है । खुला तन्त्र होने के कारण उसे पर्यावरण से ही अपने संचालन साधन निवेश (इनपुट) के रूप प्राप्त सह है और निर्णयों, प्रशासनिक तन्त्र एवं व्यवहार में परिवर्तन आदि के रूप में उसका निर्गत वातावरण का मिलता है ।

विकास प्रशासन का पर्यावरण वस्तुत: उसके बाह्य अवस्थित राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक प्रौद्योगिक के ढाँचे है जिनमें निरन्तर परिवर्तन चलता रहता है । इन परिवर्तनों व उत्पन्न मांगों, चुनौतियों के अनुरूप ही प्रशासन को तैयार होना पड़ता है अर्थात् प्रशासनिक तन्त्र, व्यवहार प्रक्रिया में परिवर्तन करना होते है ।

उदाहरण के लिये आर्थिक उदारीकरण (आर्थिक पर्यावरण) की नीति ने प्रशासन में अनेक परिवर्तन किये है जिनका सम्बन्ध विकास प्रशासन से भी है । इसी प्रकार विकास प्रशासन भी अपने कार्यक्रमों, योजनाओं, व्यवहार आदि से पर्यावरण को प्रभावित करता है । उदाहरणार्थ विकास कार्यों की बढ़ती गति ने अर्थव्यवस्था को तीव्र किया है, सामाजिक सूचकांकों का ग्राफ ऊँचा उठा है और राजनीतिक तन्त्र के निर्देशन की क्षमता बढ़ी है ।

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प्रो. फ्रेडरिग्स, पालोम्बरा, लुसियन पाई जैसे विद्वानों ने प्रशासन-पर्यावरण की अनुसार संतुलित विकास के लिये यह जरूरी भी है कि प्रत्येक क्षेत्र में समानानन्तर विकास होता रहे । लोकतन्त्रीय समाजों में विकसित राजनीति ही विकसित प्रशासन का सही नेतृत्व कर सकती है । इसके विपरीत यदि राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक दशायें पिछड़ी रहे और प्रशासन को मजबूत किया जाय तो निश्चित रूप से ऐसा प्रशासन सत्ताम्मुख होकर पथभ्रष्ट हो जाएगा ।

ला पालोम्बरा का दृष्टिकोण है कि प्रशासन पर्यावरण की निर्भरता नये देशों में अधिक महत्व रखती हैं । पालोम्बरा के अनुसार ऐसे देशों के प्रशासन की क्षमता और प्रभावकारिता 4 प्रमुख बाह्य तत्वों पर निर्भर करती है- आवश्यकता, साधन, बाधाएं, और सम्भाव्य शक्ति ।

अत: जिसे विकास प्रशासन कहा जाता है वह अनिवार्य रूप से अपने पर्यावरण के अनुकूल प्रतिक्रिया व्यक्त करता है । उसका उद्देश्य होता है व्यक्ति, समाज और उनकी सार्वजनिकता को इस तरह विकसित करना की उनका पर्यावरण भी इस विकास के अनुकूल बदल सके । इस पर्यावरण का ज्ञान प्रशासन के लिये जरूरी हैं और इसकी पूर्ति तभी हो सकती हैं जब प्रशासन एक जागरूक, संवेदनशील समाज सुधारक के रूप में समाज का हिस्सा बन जाये ।

पारस्परिक निर्भरता:

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वस्तुत: परस्परागत प्रशासन और विकास प्रशासन एक ही सिक्के के दो पहलू है जो परस्पर निर्भर है । एक की अनुपस्थिति में दूसरे की कल्पना नहीं की जा सकती । सामान्य प्रशासन द्वारा किये जाने वाले कार्य विकास प्रशासन के लिये आधार और अवसर पैदा करते है । यदि शांति व्यवस्था नहीं होगी तो अशांत माहौल में विकास के कार्य कैसे हो पाएंगे ।

यदि राजस्व नहीं होगा तो विकास कार्यों की वित्त-पूर्ति कहा से होगी । इसके विपरित भी उतना ही सटीक सत्य यह है कि जनता कि विकास संबंधी जरूरतों, अपेक्षाओं को समय पर पूरा करना अति आवश्यक है, अन्यथा उसका असंतोष फूट सकता है जो कानून व्यवस्था के लिये चुनौती बन जाएगा । अत: दोनों प्रशासन एक-दूसरे के परिपूरक लक्षण है, न कि अन्तर्विरोधी ।

सारांशत: यह है कि विकासात्मक और गैर विकासात्मक का अंतर सैद्धान्तिक तौर पर भी एक सीमा तक ही प्रासंगिक है । व्यवहार में तो लोक प्रशासन की मशीनरी के सभी भाग दोनों कार्यों को एक साथ करते दिखायी देते है । यह कहना अधिक उपयुक्त होगा कि विकास प्रशासन पुराने लोक प्रशासन की नवीन प्रवृत्ति है जिसने उसका विस्तार नियामिकीय से विकास की तरफ पूर्णता से कर दिया है ।

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विकास प्रशासन की समस्याएं और सीमाएं:

भारत उन विकासशील देशों में है जिनके सामने अपनी सामाजिक, आर्थिक विषमताओं के साथ ही राजनीतिक और सामाजिक पिछड़ेपन की समस्याएं भी है । यहां पर इसलिए विकास प्रशासन का महत्व अत्यधिक महसूस किया जाता है ।

विकास प्रशासन के लिए जिस लक्ष्योन्मुखता, ग्राहकोन्मुखता और लचीलेपन की जरूरत होती है, उसके स्थान पर विकासशील देशों में प्रशासन नौकरशाही प्रवृति और अलोकतांत्रिक मनोवृति जैसी समस्याओं से पीड़ित है । विकासशील देशों को अपने सामाजिक आर्थिक विकास के लिए जिस विकास प्रशासन की अनिवार्यता महसूस हुई उसकी सबसे महत्वपूर्ण समस्या नौकरशाही प्रवृति है ।

वस्तुत: विकास के लिए लक्ष्योन्मुखता, कार्योन्मुखता और इसीलिए सरल और लचीली प्रशासनिक प्रणालियों की जरूरत होती है । लेकिन अधिकांश देशों में औपनिवेशिक ढांचा अपनी जटिल नियम प्रक्रिया के साथ मौजूद है । यहीं नहीं प्रशासन में केन्द्रीकरण की अधिकता है जिससे विकास के लिए आवश्यक निर्णयन क्षमता का विकास अधीनस्त स्तरों पर नहीं हो पाया है । इसका एक परिणाम विकास में पर्यावरण उन्मुखता का अभाव भी रहा ।

अपने पिछड़ेपन को दूर करने के लिए सरकार ने बहुआयामी आयोजन किये हैं जैसे पंचवर्षीय योजनाएं सामुदायिक विकास कार्यक्रम, सार्वजनिक उद्योगों की स्थापना, भूमि सुधार कार्य, बेरोजगारी और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम, पंचायतीराज इत्यादि ।

लेकिन यह देखा गया हैं कि हमारा प्रशासन भावनात्मक रूप से इन कार्यक्रमों सें नही जुड़ पाया है । लोकतांत्रिक भारत में अलोकतांत्रिक प्रवृत्ति वाली नौकरशाही ने वास्तविक विकास के लक्ष्यों को मात्र आँकड़ों का खेल बना दिया है । विकास के लिए अपनाया गया पंचायत मॉडल प्रशासनिक असहयोग और जनता की अजागरूकता का जब-तब शिकार होता है ।

विकास के लिए आवश्यक प्रतिबद्धता राजनीतिक और प्रशासनिक दोनों स्तरों पर नहीं दिखाई देती और परिणाम यह है कि नियामकीय प्रशासन विकास कार्यों में बिना वजह हस्तक्षेप करता है, जिससे विकास की दशा और दिशा दोनों दिग्भ्रमित हो जाती है । कुछ स्थानों पर पृथकतावादी हिंसात्मक गतिविधियां जिससे भी वहाँ विकास के लिए गंभीर समस्या बनी हुई है ।

अंतत: विकास प्रशासन को अधिक प्रासंगिक बनाने के लिए जरूरी है कि उसका भी विनौकरशाहीकरण किया जाये । E-गवर्नेंस और सूचना के अधिकार पूर्ण प्रभाव से लागू किया जाये तथा विकेन्द्रीकरण और प्रत्यायोजन को निरंतर प्रोत्साहित किया जाये ।