Read this article in Hindi to learn about how to control pests of cotton.
(1) जैसिड़ या फुदका (Cotton Jassid):
इस कीट का वैज्ञानिक नाम ऐमरास्का बिगटुला बिगटुला है । यह हेमिप्टेरा गण के जैसिडी कुल का कीट है ।
पहचान:
इस कीट का वयस्क 3 मि.मी. लम्बा होता है । इसका रंग लाली लिये तथा इसके पंखों पर छोटे-छोटे काले धब्बे होते हैं । इसके सिर पर दो काले रंग के धब्बे होते हैं ।
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क्षति:
इसके अवयस्क कीट पत्तियों का रस चूसते हैं जिसके फलस्वरूप पत्तियाँ सिकुड़ जाती है और रंग पीला हो जाता है । बाद में पत्तियाँ ऐंठीं हुई दिखाई देती हैं जो कि कुछ समय बाद सूखकर गिर जाती हैं । जिस पौधे पर इसका प्रकोप होता है वह रोगी दिखाई देता है ।
यह कीट एक प्रकार का विषैला पदार्थ स्रावित करता है जो कि पत्तियों पर प्रतिकूल असर डालता है । देरी से बोयी गयी फसल पर इस कीट का प्रकोप अधिक होता है । इस कीट का प्रकोप देशी कपास पर कम देखा गया है ।
जीवन-चक्र:
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मादा अपने अण्डे पत्तियों की शिराओं की बाह्य त्वचा के नीचे देती है जो कि लम्बे व पीले रंग के होते हैं । एक मादा अपने जीवनकाल में 30 से 40 अण्डे देती है । मादा अण्डे को रखने के लिये पूर्ण विकसित पत्तियों का चुनाव करती हैं । इन अण्डे से 3-12 दिनों में निम्फ (शिशु) निकलते हैं । ये 5 बार निर्मोचन करके वयस्क बनते हैं । निम्फकाल 7-21 दिनों का होता है । वयस्क कीट 35-40 दिनों तक जीवित रहता है । एक वर्ष में इसकी 10-11 पीढ़ियाँ पायी जाती है ।
समन्वित प्रबन्धन उपाय:
i. फसल की समय पर बुवाई करनी चाहिये ।
ii. काइसोपा जाति के कीट के ग्रब इस पर परभक्षी होते हैं अतः उनका संरक्षण करना चाहिये ।
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iii. कीट प्रतिरोधी किस्मों की बुवाई करनी चाहिये जैसे- एम.सी.यू.- 5, एल.आर.ए.- 5166, एन.ए.-1325, एन.एच.एच – 44, एल.एच.-1, एच. – 8 सविता आदि ।
iv. फसल पर डाइमिथोयेट 35 ई.सी. 100 लीटर का छिड़काव करना चाहिये । आवश्यकतानुसार 15-20 दिनों बाद इसे पुन: दोहराना चाहिये ।
(2) कपास का एफीड या माहू (Cotton Aphid):
इस कीट का वैज्ञानिक नाम ऐफिस गोसिपाई है । यह हेमिप्टेरा गण के एफिडी का कीट है ।
पहचान:
वयस्क कीट गहरे पीले व बाद में काले रंग के हो जाते है । इसका आकार 2.5 मि.मी. से अधिक नहीं होता है । सिर छोटा तथा चमकीला होता है । मुँह नुकीला पतला होता है । मादा पंखयुक्त एवं पंखरहित दोनों प्रकार की होती है । पंखरहित मादा बड़ी, गोलाकार एवं पीले रंग की होती है । अल्पवयस्क मादा हल्के या भूरे रंग की होती है । इनमें श्रृंगिका देह की लम्बाई की आधी होती है और आँखें लाल रंग की होती हैं ।
क्षति:
इस कीट की निम्फ और प्रौढ़ दोनों अवस्थाएँ फसल को क्षति पहुंचाती हैं जो पौधों के कोमल तनों, पत्ती एवं पुष्प भागों से रस चूसकर पौधों का विकास रोक देता है । फलतः पौधे कमजोर, छोटे तथा बौने रह जाते हैं और पैदावार कम हो जाती है । इस कीट के द्वारा रस चूसने के कारण पत्तियाँ सिकुड़ जाती हैं और उग्र प्रकोप की दशा में पौधा मर जाता है ।
शीत ऋतु में ज्यों ही बादली होती है और ठण्डी हवा चलती है इस कीट की संख्या में भी वृद्धि हो जाती है । रस चूसने के अतिरिक्त ये कीट एक मीठा चिपचिपा पदार्थ उत्सर्जित करते हैं जिसे ”मधुरस” कहते हैं जो कि पौधों की पत्तियों पर एकत्रित हो जाता है एवं इस पर काली कवक की बढ़वार हो जाती है ये पौधों की प्रकाश संश्लेषण किया में विघ्न उत्पन्न करती हैं ।
जीवन-चक्र:
मादा कीट अनिषेक जनन द्वारा प्रतिदिन 8-22 निम्फ पैदा करती है जोकि 4 दिन में रूपान्तरण के बाद वयस्क में परिवर्तित हो जाते हैं । इस प्रकार इसका जीवन चक्र 7-9 दिनों में पूर्ण हो जाता है । इसी कारण इस कीट की संख्या बहुत ही कम समय में पेड़ों पर बहुत सारी हो जाती है । मादा कीट अण्डे भी देती है जो कि गहरे लाल या भूरे होते हैं । ये पंखयुक्त एवं पखंरहित होते हैं । एक वर्ष में इस कीट की अनेक पीढियाँ पायी जाती हैं ।
समन्वित प्रबन्धन उपाय:
1. कीट प्रतिरोधी किस्मों की बुवाई करनी चाहिये ।
2. परजीवी काइसोपा 50,000 प्रति हेक्टेयर की दर से 15 दिनों के अन्तराल पर छोड़ने चाहिये । लेडी बर्ड मृग इसका शिकार करती है अतः इनका संरक्षण व संवर्धन करना चाहिये ।
3. नीमयुक्त कीटनाशियों का छिड़काव करें ।
4. फसल पर आवश्यकतानुसार क्यूनालफॉस 25 ई.सी. 1.0 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें ।
(3) कपास की सफेद मक्खी (Cotton White Fly):
इस कीट का वैज्ञानिक नाम बैमिसीया टेबैसाई है । यह हैमिप्टेरा गण के एल्यूरोइडीडी कुल का कीट है ।
पहचान:
यह कीट प्रायः वर्ष भर सक्रीय रहता है । इसके निम्फ (शिशु) व वयस्क पत्तियों की निचली सतह पर झुण्ड बनाकर रहते हैं । ये आकार में अत्यन्त सूक्ष्म होते हैं । इसके निम्फ का रंग गन्दा पीला होता है एवं वयस्क का रंग पीला होता है । जिस पर सफेद रंग की तह चढ़ी रहती है । इसके पिछले पंख विशेषतया लम्बे होते हैं ।
क्षति:
इस कीट के निम्फ (शिशु) व वयस्क पौधे का रस चूसकर उसका विकास रोक देते हैं । इसके द्वारा उत्सर्जित ”मधुरस” काली कवक के विकास में सहायक होता है । अत्यधिक प्रकोप की दशा में कपास की सम्पूर्ण फसल काली पड़ जाती है तथा पत्तियां जली-सी प्रतीत होती है और कई बार पूर्ण विकसित होने से पूर्व सूख कर गिर जाती हैं । यह कीट वायरस जनित पर्ण-कुंचन बीमारी को फैलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।
जीवन चक्र:
इस कीट की मादा पत्तियों की निचली सतह पर अलग-अलग एवं एक-एक करके अण्डे देती है । एक मादा अपने जीवनकाल में 100-120 तक अण्डे देती है । इन अण्डे से 3-5 दिन बाद शिशु निम्फ निकलते हैं ये निम्फकाल 14-31 दिनों का होता है इस दौरान ये 3-4 बार निर्मोचन करते हैं । प्यूपाकाल 5-7 दिनों का होता है । इस कीट का जीवनकाल 15-30 दिनों में पूर्ण हो जाता है तथा एक वर्ष में 12 पीढ़ियाँ तक पायी जाती हैं ।
समन्वित प्रबन्धन उपाय:
i. फसल की बुवाई समय पर करें ।
ii. उचित फसल-चक्र अपनायें । फसल-चक्र में उन फसलों का प्रयोग करें जिसे यह नाशीकीट ग्रसित न करता हो ।
iii. प्रतिरोधी किस्में जैसे कंचन, एल.पी.एस.-141, एल.के.-861 व एन.ए.-1280 की बुवाई करनी चाहिये ।
iv. परपोषी फसलें जैसे टमाटर और अरंडी को कपास की फसल के चारों ओर बाड़ के रूप में लगानी चाहिये ।
v. पीले चिपचिपे पाश का खेतों में प्रयोग करें ।
vi. परजीवी जैसे एनकरेशिया व एरीटमोसीरस व परभक्षी लेडी बर्ड भृंग, क्राइसोपा आदि का संरक्षण व संवर्धन करें ।
vii. इस कीट के नियंत्रण हेतु एसिफेट 75 एस.पी 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर या फॉसलोन 35 ई.सी. 1.25 लीटर प्रति हेक्टेयर या नीम आधारित कीटनाशकों का प्रयोग करें ।
(4) कपास की लाल मृत्कुण (Red Cotton Bug):
इस कीट का वैज्ञानिक नाम डिसडर्कस सिगुलेटस है । यह हेमिप्टेरा गण के पाइरोकोरिडी कुल का कीट है ।
पहचान:
वयस्क कीट 125 से.मी. लम्बा, गहरा चमकदार लाल रंग का होता है । इसके प्रत्येक अगले पंखों पर पीछे की ओर काले रंग के धब्बे होते हैं । इसके शरीर के निचले भाग में सफेदधारी होती है तथा किनारा भी लाल होता है ।
क्षति:
सर्वप्रथम ये पत्तियों का रस चूसते हैं जिससे कि पौधों के आवश्यक तत्त्व, कार्बोहाइड्रेट, एमीनो अम्ल और प्रोटीन की कमी हो जाती है तत्पश्चात् ये फली व पत्तियों का रस चूसते हैं फलतः पौधों की वृद्धि रुक जाती है तथा फल क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिससे बिनौले एवं रूई की उपज में कमी हो जाती है ।
इस कीट का प्रकोप जब अत्यधिक होता है तो खेत में ये झुण्ड के रूप में देखे जा सकते हैं । यह लाल रंग के चित्तिदार होते हैं एवं इनकी वयस्क एवं निम्फ दोनों अवस्थाएँ फसल को हानि पहुँचाती हैं । इसके प्रकोप से रूई में विभिन्न प्रकार के धब्बे पड जाते हैं ।
जीवन-चक्र:
मादा कीट संगम के उपरान्त समूहों में 85-130 अण्डे भूमि पर या दरारों में देती है जो पीले चमकदार एवं गोल होते हैं । इन अश्वों से 5-6 दिनों में शिशु (निम्फ) निकलते हैं । ये निम्फ 5 बार निर्मोचन करते हैं । निम्फकाल 49-89 दिनों का होता है ।
पूर्ण विकसित निम्फ से वयस्क कीट बनता है जो 90-100 दिनों तक जीवित रहता है । इस कीट का सम्पूर्ण जीवन-चक्र 6-8 सप्ताह में पूरा होता है । एक वर्ष में इसकी 5-6 पक्षियों पायी जाती हैं ।
समन्वित प्रबन्धन उपाय:
i. खेतों की समय-समय पर निराई गुड़ाई करके साफ सफाई रखनी चाहिये ।
ii. कीटों व निम्फ को पकड़कर नष्ट करना चाहिये ।
iii. इस कीट की रोकथाम के लिए भिण्डी को खेत के चारों ओर लगाते हैं । इससे यह कीट भिण्डी में ही रुक जाता है फिर इन्हें कीटनाशी रसायन छिड़कर नष्ट करा जा सकता है ।
iv. फसल पर एण्डोसम्मान 35 ई.सी. का छिड़काव करना चाहिये ।
v. इस कीट के निम्फ एवं वयस्क को हाप्रैंटस कोस्टेलिस और पाइरोकोरिडी बग, ऐन्टीलोकस काकुबेन्टा परजीवीकृत करते हैं एवं खेतों में इसकी संख्या को कम करते हैं अतः इनका संरक्षण व पहचान करनी चाहिए ।
(5) गुलाबी सूखी (Pink Bollworm):
इस कीट का वैज्ञानिक नाम प्लैटीएड्रा (पैक्टिनोफोरा) गासीपिएला है यह लेपिडोप्टेरा गण के गेलीकाइडी कुल का कीट है ।
पहचान:
वयस्क कीट छोटा, गहरे भूरे रंग का पतंगा होता है । पंख फैलाकर यह 1.5 से.मी. लम्बा होता है । इसकी लारवी गुलाबी खाकी रंग की होती है ।
क्षति:
इस कीट के लार्वा पौधे की कली, फूलों व डोडों पर आक्रमण करती है । जब यह फूलों में घुसकर खाती है तो यह बढते हुए नर व मादा अंगों को नष्ट कर देती है । यह बाद में कपास के डोडे के अन्दर प्रवेश कर बिनौले को नुकसान पहुँचाती है । फलस्वरूप रेशे के गुणों को पर्याप्त क्षति के साथ-साथ बीज के उत्पादन में कमी आ जाती है ।
इस कीट के प्रकोप से फसल में नई कली, पखुड़ियों, कलियों एवं डोडों को भारी मात्रा में नुकसान हो जाता है । डोडे क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण भूमि पर गिर जाते है । एवं पूर्ण विकसित होने से पूर्व ही वो खुल जाते है तथा इस पर फफूंदी का प्रकोप भी हो जाता है ।
लार्वा जब डोडे में प्रवेश करती है तो प्रवेश द्वार को ऊपर से रेशमी जाले से बन्द कर देती है फलतः ऊपर से देखने पर यह बताना कठिन होता है कि ये क्षतिग्रस्त है या नहीं । इसके प्रकोप से रूई की गुणवत्ता में कमी आ जाती है । वर्षा में इसका प्रकोप अधिक होता है ।
जीवन-चक्र:
वयस्क मादा मुलायम पत्ती, डंठल, फूल की कली तथा फूल के सहपत्र पर एक-एक करके अण्डे देती है । एक मादा अपने जीवन में लगभग 400-500 तक अण्डे देती है । अण्डे से 14-15 दिनों में लार्वा निकलता है ये प्रायः 8-20 दिनों में पूर्ण विकसित होकर प्यूपा में बदल जाता है । प्यूपावस्था 7-88 दिनों का होता है । साधारणतया अनुकूल परिस्थितियों में इसका जीवन चक्र 28-40 दिनों में पूर्ण हो जाता है । वर्ष में इसकी 4-5 पीढ़ियाँ पायी जाती हैं ।
समन्वित प्रबन्धन उपाय:
i. शीघ्र पकने वाली किस्मों की बुवाई करनी चाहिये जैसे एल.एच-900, एफ-14 आदि ।
ii. खेत की जुताई से पूर्व पिछले वर्ष बोई गयी कपास की फसल के सभी अवशेष जैसे सूखी टहनियों, पत्तियों तथा डोडों को एकत्रित करके जला देना चाहिये ।
iii. बुवाई से पूर्व बीज को धूप में अच्छी तरह से सूखा लेना चाहिये । बीजों को 60० सेन्टीग्रेड गर्म जल में उपचारित करके लार्वा को नष्ट किया जा सकता है ।
iv. फसल में कीट के प्रकोप होने पर डोडों को तोड़कर नष्ट कर देना चाहिये जो क्षतिग्रस्त हो गयी है । जुलाई-अगस्त के महीने में जिस समय वयस्क अधिक सक्रिय हों उस समय प्रकाश प्रपंच की व्यवस्था करके इन्हें पकड़कर नष्ट कर देना चाहिये ।
v. एण्डोसल्फॉन 35 ई.सी. या फेनिट्रोथियोन 50 ई.सी. की 1 से 1.5 लीटर मात्रा का 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए ।
vi. परजीवी कीयें द्वारा भी इस कीट की रोकथाम की जा सकती है । यह पाया गया है कि 49 प्रतिशत तक इस कीट की संख्या परजीवियों से नियंत्रित हो जाती है ।
कुछ महत्त्वपूर्ण परजीवी निन्नलिखित हैं- ट्रिफ्लेप्स पेक्टिनोफोरा, माइक्रोब्रेकन लेफराई, माइक्रोब्रेकन हिबेटर, बेकन किचनेरी, किलोनस स्पी. और ऐपेन्टीलिस क्टिनोफोरा आदि ।
(6) चित्तिदार शलभ (Spotted Bollworm):
इस कीट का वैज्ञानिक नाम एरियास इन्सुलाना व एरियास फेबिया है । यह लेपिडोप्टेरा गण के नाक्टिईडी कुल का कीट है ।
पहचान:
यह कीट 2.5-3.0 से.मी. पंख की लम्बाई में तथा प्याज के रंग का होता है । इस कीट की दो जातियाँ विशेष रूप से पायी जाती हैं । एरियास फेबिया के पंख फनाकार एवं हरी धारी पंख में आरम्भ से अन्त तक होती है । एरियास इन्सुलाना के पंख हरे तथा पीले धब्बों से युक्त होते हैं । इनमें कोई विशेष आकार के धब्बे नहीं होते हैं ।
क्षति:
इस कीट की सूँडियाँ सर्वप्रथम नव अंकुरित पौधों के तने में ऊपरी भाग पर छेद करके प्रवेश कर जाती है और कोमल भाग को खाती है, जिसके कारण ऊपर की शाखा मुरझा कर नीचे की ओर लटक जाती है । इसके बाद में डोडे लगने पर उनमें छेद करके अन्दर प्रवेश कर जाती है और उसके मुलायम भाग तथा बीजों को काटकर खाती है । परिणामस्वरूप उपज में भारी कमी आ जाती है । इस कीट के द्वारा 2-5 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष की हानि होती है ।
जीवन-चक्र:
मादा कीट मुलायम पत्तियों, कलियों, सहपत्रों आदि पर अण्डे देती है । एक मादा अपने जीवनकाल में 400 से 700 तक अण्डे देती है । अण्डे गोल, हरे होते हैं । इनसे 3-4 दिनों में लारवा निकलता है । लारवा 9-15 दिनों में 4-5 बार निर्मोचन करके पूर्ण विकसित हो जाता है ।
ये पूर्ण विकसित होने पर गिरी हुई पत्तियों, फल के मध्य या 5-25 सेमी भूमि में जाकर रहता है । प्यूपावस्था 5-7 दिनों की होती है । वयस्क कीट एक सप्ताह तक जीवित रहता है । एक वर्ष में इस कीट की अधिक से अधिक 12 पीढ़ियां पायी जाती हैं ।
समन्वित प्रबन्धन उपाय:
i. कपास की कटाई के बाद खेत को अच्छी तरह से जोत देना चाहिये ताकि इसके घूमा व सूडियां नष्ट हो जायें ।
ii. वयस्क कीटों को पकड़कर जितना संभव हो नष्ट कर देना चाहिये ।
iii. ग्रसित डोडों को तोड़कर नष्ट करना चाहिये ।
iv. फेरामोन ट्रेप से वयस्क नरों को पकड़कर नष्ट करना चाहिये ।
v. अण्ड परजीवी ट्राइकोग्रामा को खेत में छोड़ने से कीट नियन्त्रण में सहायता मिलती है ।
vi. फेनवेलरेट 20 ई.सी. 450 मि.ली. या एण्डोसल्फान 35 ई.सी. 1.5 लीटर प्रति हैक्टर की दर से 15-20 दिनों के अन्तराल पर छिड़काव करना चाहिये ।
(7) तम्बाकू की मुंडी (Tobacco Caterpillar):
इस कीट का वैज्ञानिक नाम स्पोडोप्टेरा लिटूरा है यह लेपिडोप्टेरा गण के नाक्टूईडी कुल का कीट है ।
पहचान:
यह बहुभक्षी कीट है एवं कपास का प्रमुख शत्रु हैं । इसका वयस्क पतंगा मजबूत होता है, जिसके अगले पंख भूरे व पिछले पंख सफेद होते हैं । अगले पंखों पर गहरे धब्बे पाये जाते हैं । इस कीट की लार्वी हरे भूरे रंग की होती है व उनके शरीर पर हरे रंग के धब्बे पाये जाते हैं जो कि बाद में गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं । साथ ही शरीर पर कई आडी व लम्बी रेखाएँ पायी जाती हैं ।
क्षति:
इस कीट की लार्वी प्रारम्भ में झुण्ड के रूप में पायी जाती है तथा ये पत्तियों की निचली सतह को खाती है जिससे केवल पत्तियों की शिराएँ ही शेष रह जाती हैं । अधिक प्रकोप की दशा में ये फूलों व डोडों को भी नुकसान पहुँचाती हैं ।
जीवन-चक्र:
वयस्क मादा कीट पत्तियों पर समूह में अण्डे देती है । मादा अपने जीवनकाल में 200 तक अण्डे देती है । इन अण्डे का ऊष्मायन काल 3-5 दिनों का होता है अण्डे से निकली लार्वी आरम्भ में समूह में पत्तियों को खाती है बाद में ये अलग-अलग हो जाती हैं ।
ये 5 बार निर्मोचन करके पूर्ण विकसित हो जाती हैं । सामान्यतः लारवा काल 2-3 सप्ताह का होता है । ये लारवा भूमि में भपावस्था में चली जाती हैं । प्यूपाकाल 5-7 दिनों का होता है । एक वर्ष में इस कीट की कई पीढ़ियाँ पायी जाती हैं ।
समन्वित प्रबन्धन उपाय:
i. ग्रीष्म ऋतु में खेत की गहरी जुताई करने से निष्क्रिय अवस्था वाली लार्वी व भूमिगत प्यूपा को समाप्त किया जा सकता है ।
ii. छोटे खेतों में अण्ड समूह व छोटी लार्वी का हाथ से एकत्रित करके नष्ट किया जा सकता है ।
iii. फेरोमोन ट्रेप से इसकी संख्या का लगातार सर्वेक्षण करना चाहिए ।
iv. अण्डे के परजीवी जैसे- ट्राइकोग्रामा इत्यादि को समय-समय पर खेत में छोड़ना चाहिये ।
v. स्पोडोप्टेरा एन.पी.वी. 250 एल.ई./हेक्टर का छिड़काव करें । ये छिड़काव शाम के समय करना लाभप्रद रहता है ।
vi. कीटनाशक एण्डोसल्फान 35 ई.सी. 600-700 मिली. या फेनवलरेट 20 ई.ली. 400-500 मिली/हेक्टर की दर से छिडकाव करें ।
(8) अमेरिकन सूँडी (American Bollworm):
इस कीट का वैज्ञानिक नाम हैलियोथिस आर्मीजेरा है तथा यह लेपिडोप्टेरा गण के नाक्टूइडी कुल का कीट है ।
पहचान:
यह एक बहुभक्षी तथा कपास का अत्यन्त विनाशकारी कीट है जो फसलों में जुलाई से अक्टूबर एवं फरवरी से अप्रैल तक सक्रिय रहता है । इसका वयस्क गहरे भूरे रंग का होता है जिसके अगले पंख पर वृक्क के आकार का धब्बा पाया जाता है एवं उस पर मटमैली कतारें देखी जा सकती हैं ।
इसके पिछले पंख तुलनात्मक रूप से सफेद रंग के होते है इसकी लार्वी लम्बी एवं भूरे रंग की होती है जिसके शरीर पर गहरे भूरे रंग एवं पीले रंग की धारियाँ पायी जाती है ।
क्षति:
आरम्भ में लार्वी पत्तियों को खाती है और बाद में वो डोडे में घुसकर फसल को नुकसान पहुँचाती है । इन लार्वी का सिर डोडे के अन्दर घुसा रहता है और शेष शरीर डोडे से बाहर रहता है । ये अन्दर बीजों को खाती हैं । एक लार्वी अपने जीवन काल में 30-40 डोडे नष्ट कर देती है ।
जीवन-चक्र:
इस कीट के जीवन चक्र के बारे में जानकारी के लिये ”चने का फली बेधक” कीट देखें ।
समन्वित प्रबन्धन उपाय:
1. खेतों की ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें व उसे साफ रखें ।
2. उचित फसल चक्र अपनाये तथा कपास की पेडी फसल न लेवें ।
3. इस कीट के प्रति सहनशील किस्म जैसे आभादित को काम में लायें ।
4. कपास के चारों ओर मक्का, चंवला, बैगन व कागणी को उगाने से इस कीट का प्रकोप कम होता है ।
5. फसल 45 दिन की होने पर अण्डपरजीवी जैसे ट्राइकोग्रामा चिलोनिस 150000 प्रति हेक्टेयर की दर से एवं लारवा परजीवी चिलोनीस ब्लैकबर्नी या ब्रेकॉन ब्रेविकार्निस के 2000 वयस्क प्रति हेक्टेयर की दर से 15 दिन के अन्तराल से फसल पर छोड़े ।
6. कपास की फसल जब 30 से 60 दिन की हो जाये तो उस पर हैलियोथिस एन.पी.वी. 250 एल ई का छिड़काव करें ।
7. फेरामोन ट्रेप से लगातार कीट संख्या का सर्वेक्षण करें ।
8. कवक जैसे बैवेरिया बैसियाना या न्यूरोमोरिया रिले का प्रयोग करें ।
9. कपास की फसल 45 दिन की हो तो उस पर 5 प्रतिशत नीम बीज सत का छिड़काव करें ।
10. एण्डोसल्फान 35 ई.सी 125 लीटयहेक्टेयर की दर से छिड़काव करें ।