Read this article in Hindi to learn about:- 1. ग्राइंडिंग व्हील का निर्माण करना (Manufacture of Grinding Wheel) 2. ग्राइंडिंग व्हील का ग्रेन साइज (Grain Size of Grinding Wheel) 3. स्ट्रक्चर, आकार और साइज (Structure, Shape and Size).

ग्राइंडिंग व्हील का निर्माण करना (Manufacture of Grinding Wheel):

ग्राइंडिंग व्हील को निम्नलिखित आधारभूत तत्वों को मिलाकर बनाया जाता है:

(1) एब्रेसिव (Abrasive),

(2) बॉण्ड (Bond) ।

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(1) एब्रेसिव (Abrasive):

एब्रेसिव एक बहुत ही कड़ा पदार्थ होता है जिसके कई कटिंग ऐज होते हैं जिससे ये हार्ड धातुओं को आसानी से काट सकते हैं ।

मुख्यत: एब्रेसिव निम्नलिखित प्रकार के होते हैं:

I. प्राकृतिक एब्रेसिव:

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इस प्रकार के एब्रेसिव प्राकृतिक रूप से मिलते हैं, जैसे- एमरी, डॉयमंड, कोरण्डम आदि । इस एब्रेसिव में काटने वाले तत्व कम होते हैं ओर अशुद्धियां अधिक । इनके ग्रेन्स का साइज भी एक समान नहीं रहता है ।

इसलिए प्राकृतिक रूप में पाये जाने वाले एब्रेसिव से बने ग्राइंडिंग व्हील बहुत कम मात्रा में पाये जाते हैं । इस एब्रेसिव से बने ग्राइंडिंग हील का प्रयोग कटिंग टूल्स की धार लगाने के लिए और हार्ड धातु के जॉब की सरफेस से अनावश्यक धातु हटाने के लिए किया जाता है ।

II. कृत्रिम एब्रेसिव:

जो एब्रेसिव कृत्रिम रूप में बनाकर प्रयोग में लाए जाते है उन्हें कृत्रिम एब्रेसिव कहते हैं । इस एब्रेसिव में काटने वाले तत्व अधिक होते है और इनके ग्रेन्स का साइज भी एक जैसा होता है । कृत्रिम एब्रेसिव को बनाकर छोटे-छोटे ग्रेन्स के रूप में पीस लिया जाता है ।

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फिर अलग-अलग साइज की चलनियों से छानकर अलग-अलग साइज के ग्रेन्स बनाकर रख लिए जाते हैं । किसी चलनी में प्रतिवर्ग इंच में बने छिद्रों की संख्या के अनुसार ग्रेन्स का साइज देखा जाता है ।

कृत्रिम एब्रेसिव निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं:

i. एल्युमीनियम आक्साइड:

एल्युमीनियम आक्साइड वाला ग्राइंडिंग व्हील बहुत ही कड़ा होता है इसका अधिकतर प्रयोग हाई टेन्साइल स्ट्रैंथ वाली धातुएं जैसे एलाय स्टील, टूल स्टील तथा हाई स्पीड स्टील आदि पर किया जाता है । इस एब्रेसिव को अंग्रेजी के अक्षर ‘A’ से इंगित करते हैं ।

ii. सिलिकन कार्बाइड:

सिलिकन कार्बाइड वाले ग्राइंडिंग व्हील को अधिकतर प्रयोग लो टेन्साइल स्ट्रैंथ वाली धातुएं, जैसे- ब्रास, ब्राज, कॉपर, कास्ट ऑयरन आदि पर किया जाता है । एक स्पेशल प्रकार का सिलिकन कार्बाइड वाला ग्राइंडिंग व्हील भी पाया जाता है जो कि हरे रंग का होता है जिसका प्रयोग सिमेंटिड कार्बाइड वाले टिप टूल की धार बनाने के लिए किया जाता है । इसको अंग्रेजी के अक्षर ‘C’ करते हैं ।

(2) बॉण्ड (Bond):

जिस पदार्थ के द्वारा एब्रेसिव ग्रेंस को आपस में जोड़ा जाता है उसे बॉण्ड कहते हैं ।

मुख्यत: निम्नलिखित बॉण्ड प्रयोग में लाए जाते हैं:

i. विट्रिफाइड बॉण्ड:

इस बॉण्ड वाले ग्राइंडिंग ह्वील को एक विशेष प्रकार की मिट्टी को एब्रेसिव ग्रेंस के साथ मिलाकर बनाया जाता है । लगभग 75% ग्राइंडिंग ह्वील इस बॉण्ड वाले प्रयोग में लाए जाते हैं क्योंकि साधारण कार्यों के लिए इस बॉण्ड वाले ह्वील का ही प्रयोग होता है ।

इस बॉण्ड से ह्वील को अच्छी शक्ति मिलती है जिससे यह अधिक धातु को काट सकता है । इस बॉण्ड के ह्वील पर पानी, तेल या तेजाब का असर नहीं पड़ता है । इस बॉण्ड वाले ह्वील की सरफेस स्पीड 2000 मीटर प्रति मिनट तक रखी जा सकती है । इस बॉण्ड को अंग्रेजी अक्षर ‘V’ से इंगित करते हैं ।

ii. सिलिकेट बॉण्ड:

इस बॉण्ड वाले ग्राइंडिंग ह्वील को सिलिकेट ऑफ सोडा और एब्रेसिव ग्रेंस को मिलाकर बनाया जाता है । इस बॉण्ड वाले ग्राइंडिंग ह्वील का अधिकतर प्रयोग कटिंग टूल्स की धार लगाने के लिए किया जाता है । इस बॉण्ड को अंग्रेजी के अक्षर ‘S’ से इंगित करते हैं ।

iii. शैलाक बॉण्ड:

इस बॉण्ड वाले ग्राइंडिंग ह्वील को शुद्ध शैलाक और एब्रेसिव ग्रेंस को मिलाकर बनाया जाता है । इस बॉण्ड वाले ग्राइंडिंग ह्वील का प्रयोग हल्के कार्यों के लिए और अधिक फिनिश लाने के लिए किया जाता है । इस बॉण्ड को अंग्रेजी के अक्षर ‘E’ से इंगित करते हैं ।

iv. रेजिनाइड बॉण्ड:

इस बॉण्ड वाले ग्राइंडिंग ह्वील रेजिन के पाउडर और एब्रेसिव ग्रेंस को मिलाकर बनाए जाते हैं । इस बॉण्ड वाले ग्राइंडिंग ह्वील को दूसरे बॉण्ड वाले ह्वील की अपेक्षा अधिक स्पीड पर चलाया जा सकता है । इसलिए ये अधिक धातु को भी काट सकते हैं ।

इस बॉण्ड वाले ह्वील का अधिकतर प्रयोग दलाई के कारखानों में किया जाता है जिससे कास्टिंग किये हुए पार्ट्स को आसानी से ग्राइंडिंग किया जा सके । इस बॉण्ड को अंग्रेजी के अक्षर ‘B’ से इंगित करते हैं ।

v. रबर बॉण्ड:

इस बॉण्ड वाले ग्राइंडिंग ह्वील को शुद्ध रबर और एब्रेसिव ग्रेंस को मिलाकर बनाया जाता है । ये मोटाई में पतले होते हैं । इनका अधिकतर प्रयोग धातु के टुकड़ों को भिन्न-भिन्न लंबाइयों में काटने के लिए और मशीनों के बैड पर गहराई में स्लॉट आदि काटने के लिए किया जाता है । इनका प्रयोग अच्छी फिनिश लाने के लिए भी किया जाता है । इस बॉण्ड को अंग्रेजी के अक्षर ‘R’ से इंगित करते हैं ।

बॉण्ड की डिग्री:

ग्राइंडिंग करते समय एब्रेसिव ग्रेस को बाण्ड आपस में पकड़े रखता है और उन्हें आश्रय देता है । एब्रेसिव डिग्री से पता लगता है कि एब्रेसिव ग्रेस को बॉण्ड द्वारा हल्के से पकड़ा गया या दृढ़ता से पकड़ा गया है । ”साफ्ट” हल्के बॉण्ड वाले व्हीलों का प्रयोग ड्रिल, हार्ड कटिंग टूल्स ”हार्ड” दृढ़ बाण्ड वाले व्हीलों का प्रयोग साफ्ट मेटीरियल्स के लिए किया जाता है ।

ग्राइंडिंग व्हील का ग्रेन साइज (Grain Size of Grinding Wheel):

एब्रेसिव को पीसकर छोटे-छोटे कणों के रूप में बना लिया जाता है और फिर अलग-अलग साइज की चलनियों में छानकर साफ कर लिया जाता है । इस प्रकार अलग-अलग साइज में कण बंट जाते हैं ।

इन कणों को ‘एब्रेसिव ग्रेंस’ कहते हैं । इनके साइज को नंबरों से इंगित किया जाता है । चलनी पर प्रति वर्ग इंच में जितने छिद्र बने होते हैं उसी के अनुसार ग्रेंस के साइज का वर्गीकरण करते हैं ।

यदि किसी स्क्रीन पर प्रति वर्ग इंच में 24 छिद्र बने होते हैं और ग्रेंस उन छिद्रों से निकल जाते हैं और प्रति वर्ग इंच में 30 छिद्र वाली छलनी से नहीं निकलते तो वे ग्रेंस 24 नंबर के होंगे । भारतीय स्टैंडर्ड (B.I.S.) के अनुसार ग्रेंस को चार ग्रुपों में बांटा गया है ।

जैसा कि तालिका में दिखाया गया है:

ग्रेड:

जितनी शक्ति से बॉण्ड एब्रेसिव ग्रेंस को पकड़ता या जोड़ता है उसे व्हील की हार्डनैस या ग्रेड कहते हैं । ग्रेड के अनुसार A से Z तक ह्वील पाये जाते हैं । ‘A’ ग्रेड वाला ह्वील साफ और Z वाला हार्ड होता है ।

हार्ड धातुओं के लिए साफ्ट और साफ्ट धातुओं के लिए हार्ड ग्रेड का ह्वील प्रयोग में लाया जाता है । भारतीय स्टैंडर्ड (B.I.S.) के अनुसार ग्रेड को तीन ग्रुपों में बांटा गया है ।

जैसा कि निम्न तालिका में दिखाया गया है:

ग्राइंडिंग ह्वील के स्ट्रक्चर, आकार और साइज (Structure, Shape and Size of Grinding Wheel):

ग्राइंडिंग ह्वील के स्ट्रक्चर (Structure of Grinding Wheel):

ग्राइंडिंग ह्वील पर एब्रेसिव ग्रेंस के बीच में जितना अंतर रखा जाता है वह ह्वील का स्ट्रक्चर कहलाता है । स्ट्रक्चर को नंबरों में इंगित करते हैं जो कि प्रायः 1 से 16 नंबरों तक होते हैं । भारतीय स्टैंडर्ड (B.I.S.) के अनुसार इनको दो ग्रुपों में बांटा गया है ।

जैसा कि निम्न तालिका में दिखाया गया है:

डेंस स्ट्रक्चर वाले ग्राइंडिंग ह्वील प्रायः हार्ड और ब्रिटल धातुओं और ऐसे कार्यों पर प्रयोग में लाए जाते हैं जहां पर स्मूथ फिनिश लानी होती है । ओपन स्ट्रक्चर वाले ग्राइंडिंग ह्वील प्रायः सॉफ्ट और टफ धातुओं और ऐसे कार्यों पर प्रयोग में लाये जाते हैं, जिन पर अधिक गहरा कट लेना होता है ।

ग्राइंडिंग ह्वील के आकार (Shape of Grinding Wheel):

कार्य के अनुसार ग्राइंडिंग ह्वील कई आकारों में बनाए जाते हैं ।

मुख्यत: निम्नलिखित आकार वाले ग्राइंडिंग ह्वील प्रयोग में पाए जाते हैं:

1. स्ट्रेट ह्वील,

2. सिलंडर ह्वील,

3. टेपर्ड फेस ह्वील,

4. रिसेस्ड ह्वील,

5. स्ट्रेट कप ह्वील,

6. फ्लेरिंग कप ह्वील,

7. डिश ह्वील,

8. सोसर ह्वील ।

ऊपर लिखे गए ग्राइंडिंग ह्वील में से स्ट्रेट ह्वील साधारण कार्यों के लिए प्रयोग में लाया जाता है । दूसरे आकार के ह्वील अंदरूनी ग्राइंडिंग, फार्म ग्राइंडिंग और कटर ग्राइंडिंग आदि के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं ।

ह्वील का साइज (Size of Grinding Wheel):

ग्राइंडिंग छील का साइज निम्नलिखित से लिया जाता है:

1. ह्वील का बाहरी व्यास,

2. ह्वील की मोटाई,

3. ह्वील का बोर साइज ।

जैसे ग्राइंडिंग ह्वील 180 × 13 × 31.75 मि.मी. । प्राय: ह्वील के बीच का बोर कुछ बड़े साइज का बनाया जाता है, जिसमें लैड को गर्म करके भर दिया जाता है और शॉफ्ट के साइज के अनुसार उसे सही साइस में टर्निंग करके बना लिया जाता है ।