Read this article in Hindi to learn about:- 1. ड्रिल के प्रकार (Types of Drill) 2. ड्रिल के विभिन्न कोण (Various Drill Angles) 3. साइज (Size) 4. ड्रिल ग्राइंडिंग के कुछ सामान्य दोष (Some Common Faults on Drill Grinding) 5. स्पेशल ड्रिल (Special Drill).

Contents:

  1. ड्रिल के प्रकार (Types of Drill)
  2. ड्रिल के विभिन्न कोण (Various Drill Angles)
  3. ड्रिल का साइज (Size of Drill)
  4. ड्रिल ग्राइंडिंग के कुछ सामान्य दोष (Some Common Faults on Drill Grinding)
  5. स्पेशल ड्रिल (Special Drill)


1. ड्रिल के प्रकार (Types of Drill):

ADVERTISEMENTS:

कार्य के अनुसार प्राय: निम्नलिखित प्रकार के ड्रिल प्रयोग में लाए जाते हैं:

i. फ्लैट ड्रिल:

इस प्रकार का ड्रिल प्राय: हार्ड कार्बन स्टील का बनाया जाता है । इसकी बॉडी गोल होती है और एक सिरा चपटा कर दिया जाता है । इस चपटे सिरे को 90°C के कोण में माइंड करके हार्ड व टेम्पर कर दिया जाता है इसके कटिंग ऐज को लगभग 30 से 50 का क्लीयरेंस ऐंगल भी दिया जाता है ।

इस ड्रिल का अधिकतर प्रयोग कारपेंटरी शाप में किया जाता है । धातु के जॉब पर इसका प्रयोग बहुत कम करते हैं क्योंकि इससे सीधा व सही साइज का सुराख नहीं किया जा सकता है ।

ADVERTISEMENTS:

इसका प्रयोग करते समय कटे हुए चिप्स आसानी से बाहर नहीं निकलते, अधिक गहराई में इससे अधिक शुद्धता में सुराख नहीं बनता और जितनी बार इसके कटिंग ऐज को ग्राइंड करेंगे, इसका साइज कम होता जाता है ।

ii. फ्लूटिड ड्रिल:

फ्लैट ड्रिल की अपेक्षा इनसे अधिक शुद्धता और गहराई में ड्रिल होल किये जा सकते हैं और इनको अधिक स्पीड पर भी चलाया जा सकता है ।

फ्लूट के अनुसार प्राय: निम्नलिखित प्रकार के ड्रिल प्रयोग में लाए जाते हैं:

ADVERTISEMENTS:

(a) स्ट्रेट फ्लूटिड ड्रिल:

इस प्रकार के ड्रिल में इसकी बॉडी पर सीधे फ्लूट कटे होते हैं जो कि अक्ष के समानान्तर होते हैं । इस ड्रिल के द्वारा बहुत मोटे जॉब को ड्रिल करते समय कठिनाई होती है क्योंकि कटे हुए चिप्स आसानी से बाहर नहीं निकल पाते और चिप्स को बाहर निकालने के लिये ड्रिल को बार-बार उठाना पड़ता है । इस प्रकार के ड्रिल वर्कशाप में कम प्रयोग में लाये जाते हैं ।

(b) ट्‌विस्ट फ्लूटिड ड्रिल:

इस प्रकार के ड्रिल में इसकी बॉडी पर फ्लूट्स ट्‌विस्ट किये हुए होते हैं । इसका सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि चिप्स आसानी से बाहर आ जाते हैं । कुलेंट आसानी से कटिंग ऐज तक पहुंच जाता है । इससे ड्रिल अधिक स्पीड पर चलाया जा सकता है । इस प्रकार के ड्रिल वर्कशाप में अधिकतर प्रयोग में लाये जाते हैं ।

ट्‌विस्ट ड्रिल के विवरण:

ट्‌विस्ट ड्रिल को उसके व्यास, टूल के प्रकार और उसके मेटीरियल के अनुसार मनोनीत किया जाता है ।

जैसे:

ट्‌विस्ट ड्रिल 10-H-IS 5101-HS

जिसमें-

10 – ड्रिल का व्यास है ।

H – टूल का प्रकार है ।

IS 5101 – इंडियन स्टैण्डर्ड का नम्बर है ।

HS – ड्रिल का मेटीरियल हाई स्पीड स्टील है ।

ट्‌विस्ट ड्रिल के पार्ट्स:

ट्‌विस्ट ड्रिल के प्राय: निम्नलिखित मुख्य पार्ट्स होते हैं:

i. शैंक- यह ट्‌विस्ट ड्रिल की बॉडी का सबसे ऊपर का भाग होता है जिसको मशीन के स्पिंडल या ड्रिल चॅक में बांधा जाता है । यदि शैंक टेपर में बनी होती है तो उसे सीधे मशीन के स्पिंडल में फिट किया जा सकता है और यदि शैंक सीधी बनी होती है तो उसे ड्रिल चॅक में बांधा जाता है ।

ii. नेक- यह शैंक और बॉडी के बीच का भाग होता है जिसको रिसेस भी कहते हैं । इस भाग पर ड्रिल का साइज और ड्रिल बनाने वाली कंपनी का निशान व ड्रिल की धातु इत्यादि लिखे होते हैं ।

iii. बॉडी- यह ड्रिल का बीच का भाग होता है जिस पर फ्लूट्‌स कटे होते हैं ।

iv. प्वाइंट- यह ड्रिल का सबसे नीचे का भाग होता है जो शंकु आकार में बना होता है । इसमें लिप, लिप क्लीयरेंस और डैड सेंटर बने होते हैं ।

v. लैंड या मार्जिन- यह फ्लूट के सिरे पर उभरा हुआ भाग होता है जो कि पतली पट्टी के रूप में चमकता हुआ दिखाई देता है ।

इसके लाभ हैं:

(a) इससे ड्रिल का साइज नियंत्रण में रखा जा सकता है ।

(b) ड्रिल करते समय ड्रिल सीध में रहता है ।

(c) इससे बॉडी की क्लीयरेंस मिलता है जिससे घर्षण कम होती है ।

vi. बॉडी क्लीयरेंस- यह मार्जिन के नीचे छोटे व्यास वाला भाग होता है, जिससे बॉडी को क्लीयरेंस मिलता है और ड्रिल करते समय सुराख की दीवारों के साथ ड्रिल की पूरी बॉडी स्पर्श में नहीं आती है । इस प्रकार घर्षण कम होती है और ड्रिल अपना कार्य कुशलतापूर्वक करता रहता है ।

vii. फ्लूट्स- यह ड्रिल की बॉडी पर बने हुए ग्रूव्स होते हैं जिनका मुख्य कार्य कुलेंट को कटिंग ऐज पर पहुंचाना, कटिंग ऐज को बनाना और कटे हुए चिप्स को बाहर निकालना है ।

viii. लिप्त- यह ड्रिल का सबसे नीचे का भाग होते हैं जो कि कटिंग ऐंगल से बनते हैं । इससे कटिंग ऐज बनते हैं ।

ix. लिप क्लीयरेंस- ड्रिल के कटिंग ऐज के पीछे वाला भाग टेपर में ग्राइंड कर दिया जाता है जो कि कार्य के अनुसार रखा जाता हैं । साधारण कार्यों के लिये इसको 12° से 15° के कोण में बनाते हैं ।

x. वेब- यह ड्रिल के बीच में अक्ष के साथ वाला भाग होता है अर्थात् यह ड्रिल फ्लूट के बीच का भाग होता है । यह नीचे से पतला और ऊपर की ओर मोटा होता जाता है । यह भाग ड्रिल को मजबूत बनाने में सहायता करता है ।

xi. डैड सेंटर- इसको चीजल ऐज भी कहते हैं । यह ड्रिल का सबसे नीचे वाला भाग होता है जो कि कटिंग ऐंगल को बनाने के बाद दोनों कटिंग ऐजस् के बीच में बनता है । यही भाग ड्रिलिंग करते समय सेंटर पंच द्वारा लगाये गये निशान में बैठता है ।

ट्‌विस्ट ड्रिल  की ग्राइंडिंग:

ट्‌विस्ट ड्रिल को निम्नलिखित तरह से ग्राइंड किया जा सकता है:

(क) ग्राइंडिंग मशीन पर लिप्स की ग्राइंडिंग करके । इसके लिए लिप्स से ग्राइंडिंग शुरू करनी चाहिए और क्लीयरेंस देने के लिए उसे थोड़ा सा घुमाना चाहिए तथा गेज के द्वारा उसे चैक करना चाहिए ।

(ख) ड्रिल ग्राइंडिंग अटैचमेंट का प्रयोग करके लिए की ग्राइंडिंग करनी चाहिए ।

ड्रिल के प्वाइंट को ग्राइंड करने के लिये निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिये:

i. कटिंग ऐज:

ड्रिल के कटिंग ऐज को ग्राइंड करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:

(1) ड्रिल को ग्राइंड करते समय उसके दोनों कटिंग ऐजों की लंबाई बराबर होनी चाहिए । यदि कटिंग ऐजों की लंबाई बराबर नहीं होगी तो ड्रिल अपने साइज से बड़ा सुराख बनायेगा ।

(2) ड्रिल के कटिंग ऐजों को ग्राइंड करते समय इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि इसके दोनों कटिंग ऐजेस अक्ष के दोनों और बराबर कोण में होने चाहिए जो कि साधारण कार्यों के लिये 59° का होता है ।

यदि दोनों कटिंग ऐजेस बराबर कोण में नहीं होंगे तो ड्रिल का एक ही कटिंग ऐज काटेगा जिससे वह जल्दी घिस जाएगा, काटते समय ड्रिल कंपन करेगा और ड्रिल जो सुराख बनायेगा वह उसके साइज से बड़ा होगा ।

ii. लिप क्लीयरेंस:

ड्रिल को ग्राइंड करते समय इस बात का भी ध्यान रखना चाहिये कि इसके कटिंग ऐज के पीछे के भाग के अनुसार कोण में ग्राइंड कर देना चाहिए । यह कोण साधारण कार्यों के लिये 12° से 15° तक रखा जा सकता है । इससे कटिंग ऐज को क्लीयरेंस मिल जाता है ।

यह कोण धातु के अनुसार ग्राइंड करना चाहिए । यदि यह कोण बहुत अधिक रखा जायेगा तो कटिंग करते समय ड्रिल के कटिंग ऐजेस जल्दी टूट जायेंगे क्योंकि कटिंग ऐज पीछे से अधिक पतला हो जायेगा और उसे पीछे से सहारा नहीं मिलेगा ।

यदि क्लीयरेंस का कोण कम या नहीं रखा जायेगा तो घर्षण अधिक बढ़ जायेगी जिससे कटिंग ऐजेस जल्दी गर्म होकर खराब हो जायेंगे और काटना बंद कर देंगे । कभी-कभी ड्रिल का प्वाइंट क्रैक भी हो जाता है ।

iii. डैड सेंटर:

ड्रिल का वेब नीचे से पतला और ऊपर की ओर मोटा होता जाता है । इस प्रकार यदि ड्रिल करते-करते छोटा हो जाता है तो प्वाइंट को ग्राइंड करते समय डैड सेंटर मोटा बन जाता है जिससे वह ड्रिलिंग करते समय आसानी से धातु में प्रवेश नहीं कर सकता है ।

इसलिये डैड सेंटर को पतला करने की आवश्यकता पड़ती है जिसको उन्नतोदर ग्राइंडिंग व्हील से ग्राइंड करके पतला किया जा सकता है । इस प्रकार ड्रिल आसानी से जॉब में प्रवेश कर सकता है ।


2. ड्रिल के विभिन्न कोण (Various Drill Angles):

कार्य करते समय निम्नलिखित कोणों को अवश्य ध्यान में रखना चाहिये:

i. कटिंग ऐंगल:

यह ड्रिल का प्वाइंट ऐंगल होता है जो कार्य के अनुसार 60° से 150° तक रखा जाता है । यह कोण कड़ी धातुओं के लिए अधिक और मुलायम धातुओं के लिये कम रखा जाता । साधारण कार्यों के लिये यह कोण 118° का रखा जाता है ।

ii. क्लीयरेंस ऐंगल:

यह ऐंगल लिप को क्लीयरेंस देने के लिये बनाया जाता है जो कि कार्य के अनुसार 7° से 15° तक रखा जा सकता है । यह कोण भी कड़ी धातुओं के लिए कम और मुलायम धातुओं के लिये अधिक रखा जाता है । साधारण कार्यों के लिये यह कोण 12° से 15° तक रखा जाता है ।

iii. हेलिक्स ऐंगल:

ड्रिल पर क्लूट्‌स जिस कोण में बने होते हैं उसे हेलिक्स ऐंगल कहते हैं । इसे परिवर्तित नहीं किया जा सकता ।

इंडियन स्टैण्डर्ड (B.I.S.) के अनुसार निम्नलिखित ड्रिल पाये जाते हैं:

(i) टाइप ‘N’- इस टाइप के ड्रिल का हेलिक्स ऐंगल 10°-13° तक होता है जो कि नार्मल लो कार्बन स्टील के लिए प्रयोग होता है ।

(ii) टाइप ‘H’- इस टाइप के ड्रिल का हेलिक्स ऐंगल 13°-16° तक होता है जो कि हार्ड धातुओं के लिए प्रयोग होता है ।

(iii) टाइप ‘S’- इस टाइप के ड्रिल का हेलिक्स ऐंगल 35°-40° तक होता है जो कि साफ्ट और टफ धातुओं के लिए प्रयोग होता है ।

iv. रेक ऐंगल:

ड्रिल का रेक ऐंगल कटिंग वाली सरफेस और फेस पर टेंजेंट के बीच का कोण होता है । इस कोण से चिप्स अलग हो जाते हैं तथा कटिंग सुविधाजनक बन जाती है । यह ऐंगल सेंटर से परिधि की ओर बढ़ता है जो कि लिप के साथ बदला जा सकता है । यह ऐंगल जीरो से 25°-30° तक होता है ।

v. चीजल ऐज ऐंगल:

यह कोण ड्रिल के चीजल ऐज और कटिंग लिप्स के बीच बनता है जो कि 120°-135° तक हो जाता है ।

शैंक के प्रकार:

ड्रिल की शैंक निम्नलिखित प्रकार की होती है:

a. स्ट्रेट शैंक- इस प्रकार की शैंक प्राय: छोटे साइज के ड्रिल पर पाई जाती है । इसको सीधे मशीन के स्पिंडल में नहीं बांध सकते परंतु इसका प्रयोग ड्रिल चॅक की सहायता से किया जाता है ।

b. टेपर शैंक- इस प्रकार की शैंक प्राय: बड़े साइज के ड्रिल पर पाई जाती है इसको सीधे मशीन के स्पिंडन में बांध कर प्रयोग में लाते हैं ।

c. स्क्वायर टेपर शैंक- इस प्रकार की शैंक चौकोर आकार की होती है जो ऊपर की ओर टेपर में बनी होती है । इस शैंक वाले ड्रिल का प्रयोग रैचेट ब्रेस के द्वारा किया जाता है ।


3. ड्रिल का साइज (Size of Drill):

साइज के अनुसार प्राय: निम्नलिखित प्रकार के ड्रिल पाये जाते हैं:

1. फ्रैक्शन ड्रिल- ये ड्रिल इंचों में पाये जाते हैं जो कि 1/64” से 1” तक 1/64” के क्रम में बढ़ते है जैसे 1/64”, 1/32”, 3/64” इत्यादि तथा 1” से बड़े साइज के ड्रिल 1/32” के क्रम से बढ़ते हैं जैसे 1”, 1- 1/32”, 1- 1/16” इत्यादि ।

2. मीट्रिक ड्रिल- ये ड्रिल मिलीमीटर में पाये जाते हैं जो कि प्राय: 5 मि.मी. से 10 मि. मी. तक 1 मी. के क्रम से बढ़ते हैं जैसे. 5 मि.मी., 6 मि.मी., 7 मि.मी. इत्यादि । 10 मि.मी. से बड़े साइज के ड्रिल 5 मि.मी. के क्रम से बढ़ते हैं जैसे 10.5 मि.मी., 11.00 मिमी. 11.5 मिमी. इत्यादि ।

3. नंबर ड्रिल- ये ड्रिल नंबरों में पाये जाते हैं जो कि 1 से 80 नं. तक होते हैं । नं.- 1 का ड्रिल सबसे बड़ा और 80 नं. ड्रिल सबसे छोटे साइज का होता है । नं. 1 ड्रिल का साइज .228 (5.791 मि.मी.) होता है और 80 नं. वाले ड्रिल का साइज 0.0135” (0.343 मि.मी.) होता है ।

4. लेटर ड्रिल- ये ड्रिल अक्षरों में पाये जाते हैं जो कि A से Z तक पाये जाते हैं । ‘A’ साइज का ड्रिल का सबसे छोटा और ‘Z’ साइज का सबसे बड़ा साइज का होता है । ‘A’ ड्रिल का साइज .234” (5.944 मि.मी.) होता है और ‘Z’ का साइज .413” (10.49 मि.मी.) तक पाये जाते हैं ।

5. भारतीय स्टैंडर्ड ड्रिल- ये ड्रिल मिलीमीटर साइज में होते हैं जो कि भारतीय स्टैंडर्ड (B.I.S.) के अनुसार बनाये जाते हैं । इसमें स्ट्रेट शैंक ट्‌विस्ट ड्रिल .2 मि.मी. से 40 मि.मी. तक पाये जाते हैं और टेपर शैंक ड्रिल 3 मि.मी. से 100 मि.मी. तक पाये जाते हैं ।


4. ड्रिल ग्राइंडिंग के कुछ सामान्य दोष (Some Common Faults on Drill Grinding):

ग्राइंडिंग दोष:

I. कटिंग ऐंगल का अक्ष के दोनों ओर बराबर न होना ।

II. दोनों कटिंग ऐजों की लंबाई बराबर न होना ।

III. लिप क्लीयरेंस ऐंगल नहीं या कम होना ।

IV. लिप क्लीयरेंस ऐंगल अधिक होना ।

V. डैड सेंटर का मोटा होना ।

प्रभाव:

i. किया हुआ सुराख बड़े साइज का होगा ।

ii. ड्रिल आसानी से नहीं काटेगा व ड्रिल का कटिंग ऐज खराब हो जायेगा ।

iii. ड्रिलिंग करते समय ड्रिल के कटिंग ऐज टूट जायेंगे ।

iv. ड्रिलिंग करते समय ड्रिल धातु के जॉब में आसानी से प्रवेश नहीं करेगा ।


5. स्पेशल ड्रिल (Special Drill):

I. ऑयल ट्यूब ड्रिल:

इस प्रकार के ड्रिल में बीचों बीच पूरी लंबाई में सुराख बने होते हैं जिससे कुलेंट या लूब्रिकेंट को कटिंग ऐज तक पहुंचाकर उसे ठंडा किया जा सकता है । इसके साथ एक ऑयल फीडिंग सॉकेट प्रयोग में लाते हैं, सॉकेट के साथ एक कॉलर भी फिट रहता है जिसका संबंध तेल के भरे टैंक के साथ एक पाइप के द्वारा कर दिया जाता है । इससे तेल अपने आप सॉकेट से ड्रिल के सुराख से होता हुआ कटिंग ऐज तक पहुंच जाता है ।

II. मल्टी फ्लूटिड ड्रिल:

इस प्रकार के ड्रिल में ड्रिल की बॉडी पर दो से अधिक फ्लूट्‌स कटे होते हैं । फ्लूटस अधिक होने से इनका प्रयोग करने से फिनिशिंग अच्छी आती है । इसलिए इनका प्रयोग प्राय: वहां पर किया जाता है जहां पर ड्रिल बड़े साइज का करना हो और सुराख में अच्छी फिनिशिंग लानी होती है ।

III. स्टेप ड्रिल:

इस प्रकार के ड्रिल में ड्रिल की बॉडी पर एक से अधिक स्टेप बने होते हैं और प्रत्येक स्टेप के साथ छोटे-छोटे कटिंग ऐज बने होते हैं । इसका प्रयोग प्राय: वहां पर किया जाता है जहां पर स्टेप में ड्रिलिंग करनी होती है । इसलिए इस प्रकार के ड्रिल का अधिकतर प्रयोग अधिक मात्रा में उत्पादन करने वाली वर्कशाप में किया जाता है और जहां पर पार्ट्स में कई स्टेपों में ड़िर्लिंग करनी होती है ।

IV. कम्बीनेशन ड्रिल:

विभिन्न प्रकार के कम्बीनेशन पाये जाते हैं जैसे कम्बाइड ड्रिल और काउंटरसिंक, ड्रिल और रीमर, ड्रिल और टैप । इनका प्रयोग सिंगल पास में काउंटर सिकिंग के साथ ड्रिलिंग, रीमिंग के साथ ड्रिलिंग और टैपिंग के साथ ड्रिलिंग के लिए किया जाता है ।

V. डीप होल ड्रिल:

यह एक विशेष प्रकार का ड्रिल है जिसका प्रयोग गहराई में ड्रिलिंग करने के लिए किया जाता है ।

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