लोकसंस्कृति की समृद्ध विरासत पर निबंध । Essay on Popular Culture of India in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. लोक साहित्य के विविध प्रकार ।

लोकगाथा । लोकगीत ।

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लोककथा । लोकनाट्‌य ।

अन्य विधाएं ।

3. लोक संस्कृति ।

4. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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लोक साहित्य, अर्थात् लोक का साहित्य । लोक साहित्य लोक का साहित्य होता है और लोक का आशय रूढ़िगत तथा अर्द्धशिक्षित, अशिक्षित जनता से है । ऐसे साहित्य में तर्क के स्थान पर सहज विश्वास की प्रवृत्ति मिलती है ।

लोक साहित्य के पीछे लोक का मानस, विचार, पद्धति तथा आदिम अनुभूति होती है, जो अपने मूल रूप के साथ पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है । लोक साहित्य की भाषा जीवित होती है, जिसमें शास्त्रीय नियम व व्याकरण नहीं देखे जाते । इसकी सहज, रोचक शैली में जीवन की विविध अनुभूतियां मौखिक परम्परा में प्राप्त होती हैं ।

2. लोक साहित्य के विविध प्रकार:

लोक साहित्य के विविध प्रकारों में प्रमुख हैं:

(अ) लोकगाथा:  लोकगाथा लोककथात्मक गेय काव्य है, जो किसी विशेष कवि द्वारा लिखी जाती है, जिसमें गीतात्मकता और कथात्मकता होती है । यह पीढी दर पीढी हस्तान्तरित होती है । लोकगाथा का जन्म लोककण्ठ से होता है, जिसमें विचारों की सहजता, सरलता और विशेष पहचान होती है । इसमें मुहावरे, कहावतों और सरल छन्द का प्रयोग होता है । यह छोटी और बडी भी होती है ।

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(ब) लोकगीत:  लोकगीत लोक में प्रचलित गीत होते हैं, जिनमें लोक मानस की लयात्मक अभिव्यक्ति होती है । लोकगीतों में सहजता और मधुरता होती है । इनमें छन्द, अलंकार आदि का चमत्कार नहीं होता है, इनमें मिट्टी की गन्ध होती है ।

(स) लोककथा:  लोककथा प्राचीनकाल से चली आ रही है । लोककथाओं में ऐसी कथाएं होती हैं, जो धार्मिक तथा व्रतानुष्ठानों से जुड़ी होती हैं । जैसे- महाभारत की कथा, रामायण की कथा । लोककथा वस्तुत: धर्मगाथाएं और पुराण कथाओं के रूप  में होती हैं । इनमें नैतिक जीवन मूल्यों की शिक्षा होती है । हमारे यहा स्त्रियां विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों, पूजा, प्रार्थना के विषय में विभिन्न प्रकार की लोककथाएं कहती हैं ।

लोककथाओं का दूसरा रूप लोक कहानी के रूप में सामने आता है । लोक कहानी मौखिक रूप से प्रचलित रहती है और तीसरी तथा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि वह लोक में प्रचलित होती है । उसमें कोई-न-कोई लोक विश्वास अवश्य ही रहता है । इसमें लोक संस्कृति की झलक भी मिलती है । अंग्रेजी मे ऐसे ‘फाक टेल’ प्रचलित हैं ।

(द) लोकनाट्‌य:  लोक साहित्य में लोकनाट्‌य का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं गौरवशाली स्थान होता है । लोकनाट्‌य में विभिन्न पात्र पद्यात्मक शैली में अपने संवाद प्रस्तुत करके समूचे वातावरण को अत्यन्त ही मनोरंजक बना देते हैं ।

लोकनाट्‌य अत्यधिक लोकप्रिय एवं प्रभावोत्पादक सिद्ध होते है । इनमें गीत, नृत्य, संगीत की त्रिवेणी प्रवाहित होती है । गांवों में जनता नाट्‌य देखकर जितना अनुभव करती है, उतना अन्य किसी अन्य विद्याओं में नहीं करती है । लोकनाट्‌य को हम तीन श्रेणियों में बांट सकते हैं । इनमें: (1) नृत्य प्रधान लोकनाट्‌य में (अ) विदेशिया, कीर्तनियां, कुरंवजि, गबरी, रास, नकाब और अंकिया, रास प्रमुख हैं ।

(2) संगीत प्रधान लोक प्रधान लोकनाट्‌य में स्वांग, अर्थात् नकल की प्रधानता रहती है । इसमें नकल, गम्मत, स्वांग, करियाल बहुरूपिया, भवाई, नट-नटिन प्रमुख है ।

(इ) अन्य विधाएं:

लोक साहित्य में लोकगाथा, लोकगीत, लोकनाट्‌य, लोककथा के अतिरिक्त भी अनेक विधाएं होती हैं । जैसे-मुहावरे, लोकोक्तियां, खेलगीत, लोरियां, पालने के गीत आदि । लोकोक्तियों में ग्रामीण जनता, पहेली, सूक्तियों का प्रयोग भी करती है । इन सभी में लोकजीवन का सार एवं मौखिक परम्परा सम्मिलित रहती है ।

3. लोक संस्कृति:

लोक संस्कृति का आशय लोकजीवन की संस्कृति से होता है । लोक संस्कृति अर्द्धशिक्षित, ग्राम्य जनसमूहों की उस संस्कृति का बोध कराती है, जो सीधे-सादे हैं । लोकजीवन में लोक का रहन-सहन, रीति-रिवाज, तीज, त्योहार, पर्व, खानपान, वेशभूषा, भाषा, धर्म, दर्शन, ज्ञान- विज्ञान, कला आदि विचार सम्मिलित होते हैं ।

लोक संस्कृति में वस्त्र सज्जा और मृगार प्रसाधनों का भी काफी उल्लेख मिलता है । घर में प्रयुक्त होने वाली दरी, बिछौन, रेशमी कलात्मक सामग्री के अलावा विशिष्ट परिधानों- चुनरी, धोती का उल्लेख मिलता है । लोक आभूषणों की सूची में महावर, केश विन्यास गुदाना, बिछिया, मुंदरी का भी वर्णन होता है ।

डोली, पालकी स्त्रियोचित वाहनों का प्रयोग होता है । लोक संस्कृति में पारिवारिक सम्बन्ध और समस्याएं, पारिवारिक जीवन की दिनचर्या, पारिवारिक जीवन के संस्कार, पारिवारिक सम्बन्ध निर्वाह, शिष्ट व्यवहार एवं आधार जो सौतिया डाह से लेकर देवर, ननद, भाभी के सम्बन्ध जैसे पारिवारिक संस्कारों का चित्रण मिलता है ।

लोक संस्कृति के सामाजिक पक्ष में त्योहार, रीति-रिवाजों, लोकप्रथाओं एवं मान्यताओं तथा सामाजिक मनोविनोद के साधनों, आश्रम व्यवस्था आदि का वर्णन मिलता है । चौसर, शतरंज, चिरई, उड़ान, कबूतर के साथ-साथ सामाजिक कुरीतियों का भी चित्रण मिलता है ।

लोक संस्कृति में लोक विश्वासों और मान्यताओं का बहुत अधिक महत्त्व होता है । जादू-टोना, टोटका, शगुन-अपशगुन होते हैं । इसमें कुछ धार्मिक विश्वास व मान्यता, तो कुछ लोक विश्वास की अद्‌भुत कथाएं होती हैं ।

4. उपसंहार:

लोकमंगल एवं लोककल्याण भारतीय संस्कृति का मूल स्वर है । लोकगीतों, लोककथा, लोकगाथा, लोकनाट्‌यों, लोक संस्कृति में भारतीय जनजीवन धड़कता है । लोक साहित्य एवं लोक संस्कृति की मौखिक एवं संपन्न विरासत हमारी भारतीयता की पहचान है । इसमें निहित लोकादर्श में मानवीय तत्त्व प्रमुख हैं । लोकजीवन में बसी लोक साहित्य एवं संस्कृति में मिट्टी की गन्ध है, लोकचेतना है ।

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