भारतीय संविधान एवं राजव्यवस्था पर निबंध | Essay on Indian Constitution in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. भारतीय संबिधान का दावा ।

3. संघ तथा उनका क्षेत्र ।

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4. नागरिकता ।

5. संविधान की विशेषताएं ।

6. मौलिक अधिकार एवं नीति निर्देशक तत्त्व ।

7. मौलिक कर्तव्य ।

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8. संघ का स्वरूप-कार्यपालिका-राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मन्त्रिपरिषद ।

9. विधायिका-लोकसभा, राज्यसभा, संसदीय समितियां ।

10. न्यायपालिका-उच्चतम न्यायालय, मुख्य न्यायाधीश, महान्यायवादी, उच्च न्यायालय ।

11. कार्यपालिका-राज्यपाल, मन्त्रिपरिषद, विधानमण्डल, विधान परिषद, विधान सभा, केन्द्रशासित प्रदेश, अन्तर्राज्यीय परिषद, पंचायती राज ।

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12. चुनाव आयोग ।

13. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया था । इसका निर्माण केबिनेट मिशन योजना के प्रावधानों के तहत किया गया । प्रारम्भ में संविधान सभा के सदस्यों की संख्या 389 थी । संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1947 को हुई । इसके अस्थायी अध्यक्ष डॉ॰ सच्चिदानन्द सिन्हा थे । 26 जनवरी, 1949 को जब इसे अंगीकार किया गया था, तब संविधान सभा के सदस्यों की संख्या 284 हो गयी थी ।

सिन्हा के निधन के पश्चात् डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष बने । भारत का संविधान बनने में कुल 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन लगे । 26 जनवरी, 1949 को पूर्ण होने के बाद उसे उसी दिन पारित कर दिया गया था ।

संविधान सभा के लिए विभिन्न समितियों का गठन किया गया था, जैसे-प्रक्रिया समिति, संचालन समिति, संविधान समिति, जिसमें सर्वप्रथम प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ॰ अम्बेडकर को बनाया गया था । डॉ॰ अम्बेडकर संविधान के पिता कहे जाते हैं । डॉ॰ बी॰एन॰ राव को संविधान सभा का संवैधानिक सलाहकार नियुक्त किया गया था ।

2. भारतीय संविधान का ढांचा:

भारत का संविधान ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली के नमूने पर बनाया गया है । मौलिक अधिकार, उपराष्ट्रपति, उच्चतम न्यायालय का गठन एवं शक्तियां तथा न्यायिक पुनर्विलोकन संयुक्ता राज्य अमेरिका से, संघात्मक व्यवस्था कनाडा से, आयरलैण्ड से नीति निर्देशक तत्त्व, राष्ट्रपति चुनाव प्रणाली जर्मनी से, आपात उपबन्ध तथा मौलिक कर्तव्य सोवियत रूस से, गणतन्त्र फ्रास से, आस्ट्रेलिया से समवर्ती सूची, प्रस्तावना की भाषा तथा केन्द्र राज्य के बीच शक्तियों का विभाजन दक्षिण अफ्रीका से, संविधान संशोधन जापान से व कानून द्वारा स्थापित शब्दावली ग्रहण की गयी ।

भारत का संवैधानिक ढांचा चार परिशिष्टों में है: 1. प्रस्तावना, 2. भाग 1 से 22 तक के भाग में 1 से लेकर 395 धाराएं, 3. 1 से 10 तक अनुसूचियां, 4.परिशिष्ट में संविधान को जम्यू-कश्मीर में लागू किया गया ।

3. संघ तथा उनका क्षेत्र:

संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक सर्श्वा प्रभुत्व सम्पन्न समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतन्त्रात्मक गणराज्य घोषित किया गया है । संविधान के सभी उद्देश्यों में सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक न्याय दिलाना, विचारों की अभिव्यक्ति, धर्म विश्वास एवं पूजा-पाठ की स्वतन्त्रता तथा अवसरों की समानता प्रदान की गयी है ।

व्यक्ति तथा राष्ट्र की गरिमा एवं अखण्डता की रक्षा करने का वर्णन है । भारत को राज्यों का संघ माना गया है । इसके 26 भाग, 444 अनुच्छेद एवं अनुसूचियों में 28 गणराज्यों, 7 केन्द्रशासित प्रदेशों का वर्णन है । इसमें अधिकारों का विभाजन वीं अनुसूची में है, जिसमें केन्द्र तथा राज्यों के बीच विधायी शक्तियों का वितरण सम्बन्धित संघ के 99 विषय, राज्य सूची में 61 विषय, समवर्ती सूची में 52 विषय हैं ।

इसमें संघ सरकार को कानून बनाने का अधिकार प्राप्त है । समवर्ती सूची में केन्द्र व राज्य सरकार दोनों को कानून बनाने का अधिकार प्राप्त है । जिन विषयों का वर्णन समवर्ती सूची में नहीं है, उन पर कानून बनाने का अधिकार केवल संघ को है । अवशिष्ट शक्तियों में संघ व राज्य के द्वारा बनाये गये कानूनों में टकराव की स्थिति में संघ के कानून को मान्यता होती ।

4. भारतीय नागरिकता:

भारतीय संविधान के भाग 2 में अनुच्छेद 5 से 11 तक नागरिकता सम्बन्धी उपबन्धों की विस्तार से विवेचना है । भारतीय संविधान के अनुसार-भारत के सभी नागरिकों को एकल नागरिकता का अधिकार प्राप्त है ।

सामान्य रूप से दोहरी नागरिकता की त्यवरथा है । ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को नागरिकता का अधिकार दिया गया है: 1. जो भारत मे जन्मा हो, 2. या संविधान लागू होने के पांच वर्षो पूर्व भारत में रह रहा हो ।

5. भारतीय संविधान की विशेषताएं:

1. लिखित व सर्वाधिक व्यापक संविधान है, 2. कठोर व लचीला है, 3. सर्वप्रभुत्व सम्पन्न लोकतन्त्रात्मक गणराज्य है, 4. समाजवादी राज्य है, 5, धर्मनिरपेक्ष है,

6. एकात्मक एवं संघात्मक है, 7. मौलिक अधिकार एवं कर्तव्यों का महत्त्व है,

8. नीति निर्देशक तत्त्वों की रग्ग्ष्ट व्याख्या है, 9. स्वतन्त्र न्यायपालिका की व्यवस्था है, 10. वयरचा मताधिकार को महत्व है, 11. अल्पसंख्यकों के साथ-साथ पिछड़े वर्गो के कल्याण पर बल है, 12. एकल नागरिकता की व्यवस्था है, 13. सामाजिक समानता पर बल दिया गया है, 14. संकटकालीन प्रावधानों का भी ध्यान रखा गया है, 15. लोककल्याणकारी राज्य का आदर्श है, 16. एक राजभाषा राष्ट्रभाषा हिन्दी की व्यवस्था है, 17. ग्राम पंचायतों की स्थापना पर विशेष बल दिया गया है, 18. विश्वशान्ति को समर्थन दिया गया है ।

6. मौलिक अधिकार एवं नीति निर्देशक तत्त्व:

संविधान के भाग 2 में तथा 12 से 35 तक भारतीय नागरिकों को सात मौलिक अधिकार दिये गये हैं: 1. समानता का अधिकार-कानून की समानता, धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध तथा रोजगार का समान अधिकार ।

2. स्वतन्त्रता का अधिकार-विचार, अभिव्यक्ति, संस्था, संघ बनाने की स्वतन्त्रता, व्यवसाय. भ्रमण करने की स्वतन्त्रता । 3. शोषण से रक्षा । 4. धर्म की स्वतन्त्रता । 5. सांस्कृतिक तथा शिक्षा का अधिकार । 6. सम्पत्ति का अधिकार । 7. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्येक्षण, अधिकार पृच्छा) ।

नीति निर्देशक तत्त्व:  संविधान के भाग 4 में अनुच्छेद 36 से । तक राज्य के नीति निर्देशक तत्त्व समाहित हैं । नीति निर्देशक तत्त्व भारत को लोककल्याणकारी राज्य बनाने के उद्देश्य से प्रेरित हैं । यह न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं हैं ।

7. मौलिक कर्तव्य:

संविधान के 42वें संशोधन अधिनियम 1976 के द्वारा संविधान के भाग 4(क) तथा अनुच्छेद 51(क) में भारतीय नागरिकों के 10 मौलिक कर्तव्य दिये गये हैं:  1. संविधान के प्रति निष्ठा और इसके आदर्शो, संस्थाओं, राष्ट्रीयध्वज व गान के प्रति सम्मान, 2. स्वतन्त्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलनों को प्रेरित करने वाले उच्चादर्शो को संजोये रखकर उसका पालन करना, 3. भारत की प्रभुता, एकता और अखण्डता की रक्षा कर उसे अक्षुण्ण बनाना, 4. देश की एकता, अखण्डता की रक्षा एवं राष्ट्रसेवा; 5. समस्त भारतीयों में भाईचारा एवं स्नेह को बढ़ावा देना, महिलाओं की गरिमा की रक्षा; 6. अनेकता में एकता वाली संस्कृति को संरक्षण व सम्मान देना;

7. प्राकृतिक पर्यावरण, जिसमें वन, झीलें और वनजीवन शामिल हैं, को संरक्षण व बढ़ावा देना, जीवित प्राणियों के प्रति रनेह भाव रखना; 8. वैज्ञानिक सोच, मानवता और ज्ञानार्जन की चेतना का विकास; 9. सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा करना और हिंसा का त्याग करना; 10. व्यक्तिगत एवं सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता लाने का प्रयास, जिससे राष्ट्र निरन्तर उन्नति व सफलता की ओर बढ़े ।

7. संघ का स्वरूप कार्यपालिका:

संघीय कार्यपालिक के शीर्ष पर भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति तथा प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में एक मन्त्रिपरिषद् होता है । सघ की कार्यपालिका की शक्ति अनुच्छेद 53 के अनुसार राष्ट्रपति में निहित होती है । इसका प्रयोग वह संविधान के अनुसार स्वयं अथवा अपने अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा करेगा ।

राष्ट्रपति:  राष्ट्रपति का निर्वाचन एक निर्वाचक मण्डल के सदस्य आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा करते हैं । इस निर्वाचक मण्डल में संसद के दोनों सदनों एवं राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य होते हैं ।

राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्षो का होता है । वह इस पद पर पुन: चुना जा सकता है । उसे अनुच्छेद 61 में निहित कार्यविधि एवं महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है । कार्यपालिका के सभी अधिकार राष्ट्रपति में निहित हैं ।

वह इसका प्रयोग संविधान के अनुसार कर सकता है । रक्षा सेनाओं की सर्वोच्च कमान भी राष्ट्रपति के पास होती है । राष्ट्रपति को संसद का अधिवेशन बुलाने, उसे स्थगित करने, उसमें भाषण देने, लोकसभा भंग करने, संवैधानिक, संकटकालीन स्थितियों में अध्यादेश जारी करने, अपराधी की सजा कम करने, माफ करने, उसमें परिवर्तन करने का अधिकार है ।

किसी राज्य में संवैधानिक व्यवस्था असफल हो जाने पर उस सरकार के सम्पूर्ण अधिकार तथा कुछ अधिकार राष्ट्रपति के पास आ जाते हैं । संकटकालीन परिस्थितियों, बाह्य आक्रमण, युद्ध तथा विद्रोह के समय आपातकाल की घोषणा कर सकता है ।

आर्थिक संकट की स्थिति में सरकारी कर्मचारियों के वेतन में कमी भी कर सकता है । वह प्रधानमन्त्री की सलाह से मन्त्रिपरिषद के सदस्यों को पद व गोपनीयता की शपथ दिलाता है । वह उपराष्ट्रपति, राज्यपालों, न्यायाधीशों, मुख्य न्यायाधीश, लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष आदि की नियुक्ति करता है । राष्ट्रपति की अनुमति के बिना कोई भी वित्त विधेयक संसद में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है ।

उपराष्ट्रपति:  उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है । जब राष्ट्रपति बीमारी या अन्य किसी कारण से कार्य करने में असमर्थ रहता है, तो नये राष्ट्रपति के चुने जाने तक वह कार्यवाहक राष्ट्रपति होता

है । उपराष्ट्रपति का चुनाव भी आनुपातिक प्रतिनिधित्व के एकल संक्रमणीय मत द्वारा दोनों सदनों के सदस्य एवं निर्वाचक मण्डल के सदस्यों द्वारा होता है । इनका कार्यकाल 5 वर्ष का होता है ।

मन्त्रिपरिषद:  यद्यपि राष्ट्रपति को गणतन्त्र का संवैधानिक अध्यक्ष माना गया है, तथापि वास्तविक धरातल पर सर्वाधिक शक्तिशाली संस्था व सत्ता और राजनीति का स्त्रोत मन्त्रिपरिषद है । प्रधानमन्त्री ही वास्तविक कार्य निबाहता है ।

संविधान के अनुच्छेद 352 में राष्ट्रपति को आपातकालीन स्थिति का विशेषाधिकार दिया गया है, लेकिन वह आपातकाल तभी लगा सकता है, जब उसे मन्त्रिमण्डल का लिखित परामर्श मिल जाये । प्रधानमन्त्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है तथा अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की सलाह से करता है ।

प्रधानमन्त्री का कर्तव्य है कि वह भारत संघ के कार्यो, प्रशासन, मन्त्रिपरिषद् के निर्णयों व कानूनों से राष्ट्रपति को अवगत कराता रहे । मन्त्रिपरिषद् में 3 तरह के मन्त्री होते हैं: 1. केबिनेट मन्त्री (वे मन्त्री, जो मन्त्रिमण्डल के सदस्य होते हैं) 2. राज्यमन्त्री (जो विभाग का स्वतन्त्र रूप से कार्य संभाले हो) और 3. राज्य तथा उपमन्त्री ।

8. विधायिका: 

संघ की विधायिका को संसद कहते हैं । इसमें राष्ट्रपति और संसद के दोनों सदन-लोकसभा और राज्यसभा-शामिल हैं । संसद की बैठक 6 माह में पिछली बैठक के बाद अवश्य बुलानी चाहिए । कुछ मौकों पर संयुक्त अधिवेशन होता है ।

लोकसभा: लोकसभा के सदस्य वयस्क मताधिकार के आधार पर सीधे चुने जाते हैं । संविधान में इस समय 552 सदस्यों का प्रावधान है । इनमें से 530 सदस्य राज्यों और 20 सदस्य केन्द्र शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करते है ।

राष्ट्रपति को एग्लोइण्डियन समुदाय के सदस्यों को उस स्थिति में मनोनीत करने का अधिकार है, जब उन्हें लगे कि इस समुदाय को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला है । लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्षो का होता है । आपातकाल में यह स्थिति बढ़ाई जा सकती है, किन्तु आपातकाल के दौरान 6 महीने से अधिक नहीं है ।

राज्यसभा: राज्यसभा के सदस्यों की संख्या 250 से अधिक नहीं होगी । इसमें 12 सदस्य साहित्य, संगीत, विज्ञान, कला और समाज सेवा में ज्ञान एवं अनुभव रखने वाले व्यक्ति होंगे । शेष 238 सदस्य राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों के होंगे ।

राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव सम्बन्धित विधान सभाओं के चुने हुए सदस्यों द्वारा एकल संक्रमणीय मत के आधार पर आनुपातिक प्रणाली से होती है । केन्द्रशासित प्रदेशों के प्रतिनिधियों का चुनाव संसद द्वारा निर्धारित कानून के अन्तर्गत किया जा सकता है । राज्यसभा कभी भंग नहीं होती । इसके एक तिहाई सदस्य हर 2 वर्ष बाद अवकाश ग्रहण करते हैं । इसका कार्यकाल 6 वर्ष का होता है ।

संसदीय समितियां: संसद के कार्य के सुचारु संचालन के लिए स्थायी तथा तदर्थ दो प्रकार की समितियां हैं ।

 

9. न्यायपालिका:

राज्य की तीसरी शक्ति कार्यपालिका है । इसे संविधान की मौलिक विधि कहा गया है । यह स्वतन्त्र है । इसके अन्तर्गत केन्द्र तथा राज्य सरकार द्वारा बनाये हुए कानूनों की संवैधानिकता का परीक्षण करते हैं । यदि संविधान के अनुसार असंवैधानिक पाया जाता है, तो न्यायालय को अमान्य करने का पूर्ण अधिकार है । कार्यपालिका एवं विधायिका द्वारा बनाये गये कानूनों का परीक्षण करने का अधिकार उच्चतम न्यायालय को प्राप्त है ।

उच्चतम न्यायालय:  उच्चतम न्यायालय भारत का सर्वोच्च अपीलीय न्यायालय है । इसे देश के राज्यों के उच्च न्यायालयों के निर्णय के विरुद्ध अपील सुनने का अधिकार है । जम्मू-कश्मीर में कुछ विशेष संवैधानिक प्रावधान है । उच्चतम न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश व 7 अन्य न्यायाधीश होते हैं । वर्तमान में मुख्य न्यायाधीश व 25 न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय के लिए निर्धारित हैं ।

मुख्य न्यायाधीश:  मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है । अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय वह मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों का परामर्श ले सकता

है । राष्ट्रपति इन्हें अपनी इच्छानुसार हटा भी सकता है या संसद इसे महाभियोग द्वारा दो तिहाई मत द्वारा हटा सकती है ।

महान्यायवादी (एटार्नी जनरल):  भारत के महान्यायवादी की नियुक्ति राष्ट्रपति ही करता है । राष्ट्रपति की इच्छानुसार वह पद पर बना रह सकता है । महान्यायवादी का कर्तव्य है कि वह भारत सरकार को उन विधि सम्बन्धी कार्य करने व कर्त्तव्यपालन की सलाह दे, जो राष्ट्रपति द्वारा सौंपे गये हैं । इसे भारत के सभी न्यायालयों में सुनवायी करने व संसद की कार्रवाई में भाग लेने को अधिकार प्राप्त है, किन्तु संसद में मतदान का अधिकार नहीं दिया गया ।

उच्च न्यायालय:  देश-भर में 19 उच्च न्यायालय हैं । प्रत्येक उच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश व द्बप्य न्यायाधीश होते हैं, जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति व राज्यपाल के परामर्श से की जाती है । इन्हें महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है ।

10. कार्यपालिका:

भारत के राज्यों के लिए भी संसदीय प्रणाली के अनुसार कार्यपालिका की व्यवस्था की गयी है । इसके अन्तर्गत राज्यपाल, मन्त्रिपरिषद्, विधानमण्डल, विधान परिषद, विधान सभा, केन्द्रशासित प्रदेश, अन्तर्राज्यीय परिषद, पंचायती राज आते हैं ।

राज्यपाल:  राज्य की कार्यपालिका के अन्तर्गत राज्यपाल, मुख्यमन्त्री तथा उसकी मन्त्रिपरिषद होती है । राज्यपाल की नियुक्ति भारत का राष्ट्रपति 5 वर्षो के लिए करता है । मुख्यमन्त्री के नेतृत्व में उसकी मन्त्रिपरिषद् राज्यपाल को उनके कार्यो में सहायता करती है तथा उसे सलाह भी देती है ।

मन्त्रिपरिषद:  मुख्यमन्त्री राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाता है तथा उसी के द्वारा मुख्यमन्त्री की सलाह से अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति की जाती है । मन्त्रिपरिषद् सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होता है ।

विधानमण्डल:  प्रत्येक राज्य में एक विधानमण्डल होता है, जिसके अन्तर्गत राज्यपाल के अतिरिक्त 1 या 2 सदन होते हैं । बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर, उत्तरप्रदेश में विधानमण्डल के दो सदन हैं, जिन्हें विधान परिषद एवं विधान सभा कहते हैं । संसद कानून बनाकर किसी राज्य में एक ही सदन की व्यवस्था कर सकती है ।

विधान परिषद:  प्रत्येक राज्य की विधान परिषद के सदस्यों की कुल संख्या राज्य की विधान सभाओं की कुल संख्या के एक तिहाई से अधिक तथा 40 से कम नहीं होगी । परिषद के एक तिहाई सदस्य उस राज्य की विधान सभा द्वारा उन व्यक्तियों में से निर्वाचित किये जाते है, जो विधान सभा के सदस्य नहीं हैं ।

एक तिहाई सदस्यों का निर्वाचन नगरपालिका, जिला बोर्डों, राज्य के अन्य स्थायी निकायों के सदस्यों के निर्वाचक मण्डल करते हैं । साहित्य सेवा, समाज, विज्ञान, कला तथा सहकारिता आदि में प्रतिष्ठा प्राप्त व्यक्ति इसके सदस्य होते हैं । इसका विघटन नहीं होता । एक तिहाई सदस्य दूसरे वर्ष की समाप्ति पर सेवा निवृत्त होते रहते हैं ।

विधान सभा: किसी राज्य की विधान सभा में अधिक-से-अधिक 500 तथा कम-से-कम 60 सदस्य होते हैं । इनका निर्वाचन राज्य के प्रत्येक क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों के जनसंख्या और निर्धारित स्थानों के बीच संख्या अनुपात जहां तक सम्भव हो राज्य में बशर्ते समान रहे के आधार पर होता है । इसका कार्यकाल 5 वर्षो का है ।

केन्द्रशासित प्रदेश:  केन्द्रशासित प्रदेशों का शासन राष्ट्रपति द्वारा चलाया जाता है । वह अपने ही नियुक्त प्रशासक के माध्यम से कार्य करता है । अण्डमान-निकोबार, दिल्ली, पाण्डिचेरी के शासक उच्च राज्यपाल कहलाते हैं ।

अन्तर्राज्यीय परिषद:  राज्यों के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए परिषद होती है, जो अन्तर्राज्यीय विवादों की जांच-पड़ताल करती है । पारस्परिक हितों से सम्बद्ध विषयों पर विचार-विमर्श व शोध करती है ।

पंचायती राज:  सत्ता के विकेन्द्रीयकरण के लिए भारत के विभिन्न राज्यों में गांव तथा जिलों के स्थानीय स्वशासन की त्रिस्तरीय व्यवस्था है । इसके तीन अंग हैं: 1. ग्राम पंचायत, 2. पंचायत समिति, 3. जिला

परिषद । इसका कार्यकाल 5 वर्षो का है । पंचायती राज का मूल उद्देश्य ग्रामीण स्वशासन संस्थाओं का नियोजन करना तथा विकास कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी निभाना है ।

11. चुनाव आयोग: 

संसद और प्रत्येक राज्य के विधान सभा के जनप्रतिनिधियों के निर्वाचन हेतु एक स्वतन्त्र चुनाव आयोग का गठन किया गया है, जिसका प्रमुख आयुक्त होता है, जिसे अध्यक्ष कहा जाता है, जिसकी नियुक्ति समय-समय पर राष्ट्रपति द्वारा निश्चित की जाती है । यह पहले एक सदस्यीय था, अब बहुसदस्यीय बनाया गया है । इसका कार्यकाल 5 वर्षो का होता है ।

इसकी कार्य व शक्तियां हैं: मतदाता सूचियां बनाना, संसद व राज्य विधान मण्डलों के लिए निर्वाचन, राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति का निर्वाचन, राजनैतिक दलों को मान्यता देना, चुनाव चिह आबंटित करना, निर्वाचन की तिथियां एवं कार्यक्रम घोषित करना, आचार संहिता बनाना, मतदाता सूचियों की तैयारी एवं मुद्रण, मतदान अधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं की नियुक्ति, प्रत्याशियों का नामांकन, जांच व नाम वापसी, चुनाव प्रचार पर निर्धारित अवधि के पश्चात् रोक, चुनाव स्थगन, पुनर्मतदान, मतगणना व परिणाम की घोषणा करना, चुनाव विवाद का निपटारा, व्यय का विवरण रखना । यह एक संवैधानिक प्राधिकरण आयोग है ।

12. उपसंहार:

निष्कर्षत: भारतीय संविधान हमारी लोकतान्त्रिक प्रणाली का आईना है । हमारे संविधान में सर्वोपरि जनता है । जनता के हितों की रक्षा के साथ-साथ समूचे राष्ट्र के लक्ष्यों, आक्श्यकताओं, आकांक्षाओं को इसमें स्थान दिया गया है । राज्य की विधि व्यवस्था का गठन, जनता व सरकार के पारस्परिक सम्बन्धों का निर्धारण इसी के द्वारा होता है । देश के नागरिकों में अपने संविधान के प्रति प्रतिबद्धता एवं सम्मान का भाव होना चाहिए ।

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