ई॰स॰ १९३४ में सविनय अवज्ञा आंदोलन समाप्त हुआ । इंग्लैंड की संसद ने भारतीयों को संवैधानिक अधिकार प्रदान करनेवाले कानून को ई॰स॰ १९३५ में पारित किया । इसके द्‌वारा भारतीयों को अधिक कानूनी अधिकार प्राप्त होनेवाले थे ।

१९३५ का कानून:

इस कानून में अंग्रेज शासित प्रांतों एवं रियासतदारों को मिलाकर संघ राज्य स्थापित करने का प्रावधान था । इसके अनुसार अंग्रेज शासित प्रदेशों का प्रशासन भारतीयों को सौंपा जाना था । रियासतदारों ने संघ राज्य में सम्मिलित होने से इसलिए अस्वीकार किया क्योंकि ऐसा करने से उन्हें अपनी स्वायत्तता से हाथ धोना पड़ता । अत: इस कानून में बताई गई संघ राज्य की योजना कार्यान्वित नहीं हो सकी ।

प्रांतीय चुनाव:

ई॰स॰ १९३५ के कानून से राष्ट्रीय कांग्रेस संतुष्ट नहीं थी फिर भी राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस कानून के तहत होनेवाले प्रांतीय चुनावों में सम्मिलित होने का निश्चय किया । ई॰स॰ १९३७ में देश के ग्यारह प्रांतों में चुनाव हुए । उनमें से आठ प्रांतों में राष्ट्रीय कांग्रेस के मंत्रिमंडल सत्ता में आए ।

शेष तीन प्रांतों में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं था । फलस्वरूप वहाँ मिलेजुले मंत्रिमंडल बनाए गए । राष्ट्रीय कांग्रेस के मंत्रिमंडलों ने जनकल्याणकारी एवं रचनात्मक कार्य किए । उन्होंने राजनीतिक बंदियों को कारावास से मुक्त किया । दलित समाज के सुधार हेतु कार्य किए । व्यवसायप्रधान शिक्षा प्रारंभ की । शराब बंदी की । किसानों के लिए ऋण निवारण कानून बनाया ।

द्‌वितीय विश्व युद्ध और राष्ट्रीय कांग्रेस:

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ई॰स॰ १९३९ में यूरोप में द्‌वितीय विश्व युद्ध प्रारंभ हुआ । तत्कालीन वाइसराय लिनलिथगो ने यह घोषणा की कि विश्व युद्ध में भारत इंग्लैंड की ओर से सम्मिलित हुआ है । जबकि इंग्लैंड यह दावा कर रहा था कि यूरोप में वह लोकतंत्र की रक्षा हेतु युद्ध कर रहा है ।

तब राष्ट्रीय कांग्रेस ने यह माँग की कि यदि यह दावा सही है तो इंग्लैंड भारत को तुरंत स्वतंत्रता प्रदान करे । इंग्लैंड ने इस माँग को तुरंत स्वीकार करने से इनकार किया । फलस्वरूप नवंबर १९३९ में राष्ट्रीय कांग्रेस के मंत्रिमंडलों ने त्यागपत्र दिए ।

व्यक्तिगत सत्याग्रह:

यह दिखाई देने पर कि अंग्रेज सरकार राष्ट्रीय कांग्रेस की माँगों के प्रति लापरवाही बरत रही है, कांग्रेस ने युद्ध के विरोध में प्रचार करने का निश्चय किया और निर्णय किया कि इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति कानून को भंग करेगा । इसे व्यक्तिगत सत्याग्रह कहते है । इनमें सबसे पहले सत्याग्रही आचार्य विनोबा भावे थे । उनके पश्चात लगभग पच्चीस हजार कार्यकर्ताओं ने यह सत्याग्रह किया ।

क्रिप्स योजना:

इंग्लैंड ने द्‌वितीय विश्व युद्ध में जापान के विरोध में अमेरिका का पक्ष लिया । जापानी सेना भारत की पूर्वी सीमा के निकट आकर रुक गई थी । यदि जापान भारत पर आक्रमण करता है तो उसका प्रतिकार करने के लिए इंग्लैंड को भारत के सहयोग की आवश्यकता प्रतीत होने लगी । अत: इंग्लैंड के प्रधानमंत्री चर्चिल ने स्टैफर्ड क्रिप्स को भारत भेजा ।

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मार्च १९४२ में क्रिप्स भारत आए । उन्होंने भारतीयों के सम्मुख एक योजना रखी परंतु इस योजना से भारत का कोई भी राजनीतिक दल संतुष्ट नहीं हुआ । इस योजना में पूर्ण स्वतंत्रता का स्पष्ट उल्लेख नहीं था । अत: राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस योजना को अस्वीकार किया । क्रिप्स योजना में पाकिस्तान की निर्मिति का समावेश नहीं था; इसलिए मुस्लिम लीग ने भी इस योजना को ठुकरा दिया ।

भारत छोड़ो आंदोलन:

क्रिप्स योजना के बाद राष्ट्रीय कांग्रेस ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए प्रखर आंदोलन प्रारंभ करने का निश्चय किया । १४ जुलाई १९४२ को वर्धा में राष्ट्रीय कांग्रेस की कार्यकारिणी ने प्रस्ताव पारित किया जिसमें यह माँग की गई थी कि अंग्रेज भारत में अपनी सत्ता को तुरंत समाप्त कर भारत को स्वतंत्रता प्रदान करे । साथ ही यह चेतावनी भी दी गई थी कि यह माँग स्वीकार न होने पर राष्ट्रीय कांग्रेस भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अहिंसापूर्ण आंदोलन प्रारंभ करेगी ।

भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव:

७ अगस्त १९४२ को मुंबई के गोवालिया टैंक के मैदान (क्रांति मैदान) पर राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन प्रांरभ हुआ । मौलाना अबुल कलाम आजाद इस अधिवेशन के अध्यक्ष थे । वर्धा में राष्ट्रीय कांग्रेस की कार्यकारिणी द्‌वारा पारित अंग्रेज भारत छोड़कर चले जाएँ; इस प्रस्ताव पर मुंबई के अधिवेशन में मुहर लगनेवाली थी ।

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८ अगस्त को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव रखा । यह प्रस्ताव भारी बहुमत से पारित हुआ । इस अधिवेशन में गांधीजी के नेतृत्व में देशव्यापी अहिंसापूर्ण आंदोलन प्रारंभ करने का भी निर्णय लिया गया ।

गांधीजी ने कहा, “तुममें से प्रत्येक स्त्री-पुरुष को इस क्षण से यह समझ लेना है कि हम स्वतंत्र हो गए हैं और स्वतंत्र भारत के नागरिक के रूप में आचरण करना चाहिए । हम या तो भारत को स्वतंत्र करेंगे अथवा ये भगीरथ प्रयास करते हुए मर ही जाएंगे ।” गांधीजी ने जनता को ‘करेंगे या मरेंगे’ की भावना से भरकर बलिदान हेतु तत्पर रहने का जोशीला आह्वान किया ।

जन आंदोलन का प्रारंभ:

आंदोलन प्रारंभ होने से पूर्ब ही सरकार ने उसे कुचलने का प्रयास किया । ९ अगस्त के तड़के ही गांधीजी, मौलाना आजाद, जवाहरलाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल आदि प्रमुख नेताओं को बंदी बनाया गया । इन नेताओं को बंदी बनाए जाने का समाचार संपूर्ण देश में जंगल की आग की भांति फैल गया ।

जनता का आक्रोश चरम सीमा पर पहुँच गया । विभिन्न स्थानों पर लोगों ने जुलूस निकाले । पुलिस ने आंदोलनकारियों पर लाठियाँ चलाई, गोलीचालान किया; फिर भी लोग भयभीत नहीं हुए । लोगों ने असंख्य स्थानों पर सरकारी कार्यालयों को अपने अधिकार में लेने का प्रयास किया । जेलों, पुलिस थानों, रेल स्थानकों पर लोगों ने हमले किए क्योंकि ये स्थान अंग्रेजी शासन के दमन तंत्र के प्रतीक बन चुके थे । पुलिस ने लोगों पर गोलियाँ चलाई ।

नंदुरबार में विद्‌यालय जानेवाले छात्रों ने तिरंगी झंडा लेकर जुलूस निकाला । ‘वंदे मातरम्’ के नारे लगाए । क्रोधित पुलिस ने छोटे बच्चों पर भी गोलियाँ चलाईं । इस गोलीबारी में शिरीष कुमार नामक एक छात्र ने अपना बलिदान दिया । महाराष्ट्र में चिमूर, आष्टी, यावली, महाड़, गारगोटी आदि कई गाँवों में बच्चों से लेकर वृद्धों ने धैर्य और संकल्प के साथ आंदोलन किए जो सदैव स्मरणीय रहेंगे ।

भूमिगत आंदोलन:

ई॰स॰ १९४२ के अंत में जनता के इस आंदोलन को नया मोड़ प्राप्त हुआ । आंदोलन की बागडोर भूमिगत हुए युवा समाजवादी कार्यकर्ताओं के हाथ में आई । इस कार्य में जयप्रकाश नारायण, डा॰ राममनोहर लोहिया, छोटूभाई पुराणिक, अच्युतराव पटवर्धन, अरुणा आसफ अली, युसूफ मेहरअली, सुचेता कृपलानी, एस॰एम॰ जोशी, शिरूभाऊ लिमये, ना॰ग॰ गोरे, यशवंतराव चव्हाण, मगनलाल बागड़ी आदि नेता अग्रसर थे ।

रेल की पटरियाँ उखाड़ना, दूरभाष के तार काटना, पुलों को ध्वस्त करना जैसे कार्य कर आंदोलनकारियों ने संचार और सरकारी व्यवस्था को अस्तव्यस्त कर दिया । वर्तमान रायगढ़ जिले की कर्जत तहसील के भाई कोतवाल के ‘आजाद दस्ता’ नागपुर के जनरल आवारी की ‘लाल सेना’ जैसे संगठनों ने कई महीनों तक सरकार की नाक में दम कर रखा । मुंबई में विकल जवेरी, उषा मेहता और उनके साथियों ने एक गुप्त प्रसारण केंद्र स्थापित किया । इसे ‘आजाद रेडियो’ कहा जाता था ।

इस पर राष्ट्र भक्ति के गीत गाए जाते, देश में चल रहे आंदोलन के समाचार प्रसारित किए जाते, देश भक्ति के भाषणों का प्रसारण किया जाता । फलत: जनता को आंदोलन आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन मिलता । ऐसे प्रसारण केंद्र कोलकाता, दिल्ली और पुणे में कुछ समय तक चलें ।

समांतर सरकार:

बंगाल के मिदनापुर, उत्तर प्रदेश के बलिया और आजमगढ़, बिहार के भागलपुर और पूर्णिया जिले के लोगों ने अपने-अपने क्षेत्रों से अंग्रेज अधिकारियों को खदेड़ दिया और वहां समांतर सरकारें स्थापित कीं ।

ई॰स॰ १९४२ में क्रांति सिंह नाना पाटील ने सातारा जिले में समांतर सरकार की स्थापना की । वे वहाँ की जनता के प्रेरणा स्थान थे । उन्होंने अपने सहयोगियों की सहायता से वहाँ के अंग्रेजी शासन को समाप्त किया और जनता की सरकार क्रांति सिंह नाना पाटील स्थापित की ।

लगान वसूल करना, कानून एवं व्यवस्था को बनाए रखना, अपराधियों को दंड देना जैसे कार्य समांतर सरकार करती थी । इस सरकार में गठित लोक न्यायालयों (पंचायत) में न्याय किया जाता था और लोग उसे स्वीकार करते थे ।

इसी भांति बालकों के मन पर राष्ट्र भक्ति के संस्कार अंकित करने हेतु राष्ट्र सेवा दल, आजाद सेना, तूफान सेना आदि संगठन बनाए गए । साहुकारी का विरोध, शराब बंदी, साक्षरता का प्रसार, जाति भेद का विरोध जैसे रचनात्मक कार्य भी इस सरकार ने किए । परिणामस्वरूप समांतर सरकार को जनता का भारी समर्थन प्राप्त हुआ ।

अगस्त क्रांति का स्वरूप:

ई॰स॰ १९४२ के इस जन आंदोलन की दावाग्नि संपूर्ण देश में धधक उठी । लाखों भारतीयों ने स्वतंत्रता प्राप्ति के उद्देश्य को पूरा करने के लिए पराकाष्ठा का बलिदान दिया । असंख्य लोगों ने अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया ।

आंदोलनकारी इतनी विपुल संख्या में थे कि उन्हें बंद करने के लिए सो की जेलें भी कम पड़ गई । साने गुरु जी, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज आदि के राष्ट्र भक्ति के गीतों ने आंदोलनकारियों को प्रोत्साहित

किया । इस राष्ट्र व्यापी आंदोलन को ‘अगस्त क्रांति’ भी कहा जाता है ।

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