The below mentioned article provides a biography of Iltutmish (1206-36) who was a ruler of Delhi sultanate during medieval period in India.

ऐबक 1210 में चौगान (पोलो) खेलते हुए घोड़े से गिरा और जख्मी होकर चल बसा । उसकी जगह उसके दामाद इल्तुतमिश ने ली । पर इसके लिए सबसे पहले उसे ऐबक के बेटे से लड़ना और उसे हराना पड़ा । इस तरह वश का सिद्धांत, कि पुत्र पिता का उत्तराधिकारी होगा, आरंभ में ही बेकार हो गया ।

इल्तुतमिश को उत्तर भारत में तुर्कों की विजय को वास्तव में सुदृढ़ बनाने वाला सुल्तान मानना चाहिए । उसके सत्तारोहण के समय अली मर्दान खान ने स्वयं को बंगाल और बिहार का राजा घोषित कर दिया ।

उधर ऐबक के साथ के एक गुलाम कुबाचा ने खुद को मुलतान का स्वतंत्र शासक घोषित करके लाहौर पर तथा पंजाब के कुछ भागों पर अधिकार कर लिया । आरंभ में इल्तुतमिश के कुछ साथ के अधिकारी भी जो दिल्ली के आसपास रह रहे थे उसको सुल्तान मानने से हिचक रहे थे ।

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राजपूतों को भी अपनी स्वतंत्रता जताने का अवसर मिल गया और उन्होंने कालिंजर ग्वालियर तथा अजमेर और बयाना समेत पूरे पूर्वी राजस्थान से तुर्क शासन का जुवा उतार फेंका । दिल्ली के पास के स्थानीय क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के बाद अपने शासन के आरंभिक वर्षो में इल्तुतमिश का ध्यान उत्तर-पश्चिम पर लगा रहा ।

गजनी पर ख्वारिज्म शाह की विजय ने उसकी स्थिति के लिए एके नया खतरा पैदा कर दिया । उस समय ख्वारिज्म साम्राज्य मध्य एशिया का सबसे शक्तिशाली राज्य था और उसकी पूर्वी सीमा अब सिंध तक फैल चुकी थी । इस खतरे को टालने के लिए इल्तुतमिश ने लाहौर के लिए कूच किया और उस पर अधिकार कर लिया ।

1218 में ख्वारिज्म साम्राज्य को मंगोलों ने नष्ट कर दिया और एक अत्यंत शक्तिशाली साम्राज्य की नींव रखी । अपने चरमकाल में यह साम्राज्य चीन से यूरोप के भूमध्य सागर के किनारों तक और कैस्पियन सागर से जक्सार्टिस नदी तक फैला हुआ था । मंगोल जब कहीं और फँसे हुए थे इल्तुतमिश ने मुलतान और उच्छ से कुबाचा को बाहर खदेड़ दिया ।

अब दिल्ली सल्तनत की सीमा एक बार फिर सिंध तक जा पहुँची । पश्चिम को सुरक्षित करके अब इल्तुतमिश कहीं और ध्यान देने में समर्थ था । बंगाल और बिहार में इवाज नाम के एक व्यक्ति जिसने सुल्तान गयासुद्‌दीन की उपाधि धारण कर रखी थी, स्वतंत्रता का ऐलान कर दिया । वह एक उदार और योग्य शासक था और उसने बहुत-से सार्वजनिक निर्माणकारी कार्य कराए ।

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उसने पूर्वी बंगाल के सेन राजाओं तथा उड़ीसा और कामरूप (असम) के हिंदू राजाओं पर आक्रमण किया पर उन्हें हरा नहीं सका । 1226-27 में लखनौती के पास इल्तुतमिश के बेटे से लड़ते हुए इवाज की पराजय हुई और वह मारा गया । बंगाल और बिहार एक बार फिर दिल्ली सल्तनत के नियंत्रण में आ गए । लेकिन वे मुश्किल पैदा करने वाले क्षेत्र थे और उन्होंने दिल्ली की सत्ता को बार-बार चुनौती दी ।

लगभग उसी समय इल्तुतमिश ने ग्वालियर और बयाना को फिर से पाने के लिए कदम उठाए । अजमेर और नागौर भी उसके नियंत्रण में रहे । उसने अपनी अधीनता मनवाने के लिए रणथंभौर और जालौर के खिलाफ मुहिमें भेजीं ।

उसने मेवाड़ की राजधानी नागदा (उदयपुर से लगभग 22 किमी) पर भी हमला किया लेकिन राणा की सहायता के लिए गुजरात की सेना के पहुँचने पर उसे पीछे हटना पड़ा । प्रतिशोध लेने के लिए इल्तुतमिश ने गुजरात के चालुक्यों के खिलाफ एक मुहिम भेजी पर उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा और पीछे हटना पड़ा ।

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