स्थानीय स्वशासन व्यवस्था । “Local Self-Government System” in Hindi Language!

पंचायती राज व्यवस्था (भाग 9 एवं अनुच्छेद 243 से 243 ण):

(i) भारतीय संविधान का भाग 4, अनुच्छेद 40 (नीति-निदेशक तत्त्व) ग्राम पंचायतों के गठन की पहल करता है ।

(ii) 1992 में भारतीय संसद द्वारा स्थानीय स्वशासन के क्षेत्र में ऐतिहासिक पहल करते हुए वे संशोधन के तहत पंचायती राज तथा वे संविधान के तहत नगरीय स्थानीय स्वशासन को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया ।

(iii) भारतीय संविधान के भाग 9, अनुच्छेद 243 के 16 उप-अनुच्छेदों में ग्राम पंचायत एवं 18 उप-अनुच्छेदों में नगरीय स्वशासन से सम्बन्धित प्रावधान उपबन्धित किये गये हैं ।

ADVERTISEMENTS:

(iv) भारत में 1952 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम आरम्भ हुआ परन्तु आम जनता प्रत्यक्ष रूप से इस कार्यक्रम से जुड़ नहीं पायी ।

(v) 1957 में उपरोक्त समस्या के निदान के लिए बलवन्त राय मेहता समिति का गठन किया गया एवं 1958 में इस समिति ने अपनी रिपोर्ट दी ।

(vi) बलवन्त राय समिति ने लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण पर आधारित पंचायती राज स्थापित करने की अनुशंसा की जो त्रिस्तरीय वर्गीकरण पर आधारित है ।

(vii) 1958 में सर्वप्रथम आन्ध प्रदेश में लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण का प्रयोग कुछ भाग में किया गया ।

ADVERTISEMENTS:

(viii) भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं॰ जवाहरलाल नेहरू द्वारा 2 अक्टूबर, 1959 को नागौर (राजस्थान) में सर्वप्रथम पंचायती राज व्यवस्था का उद्‌घाटन किया गया ।

(ix) सम्पूर्ण राज्य में पंचायती राज लागू करने वाला देश का पहला राज्य राजस्थान है ।

(x) पंचायती राज संस्थाओं पर विचार करने के लिए 1977 में अशोक मेहता समिति का गठन किया गया, जिसने 1978 में अपनी सिफारिशें प्रस्तुत कीं परन्तु लागू नहीं हो सकीं ।

(xi) 1986 में ग्रामीण विकास मन्त्रालय द्वारा गठित एल॰एम॰ सिंघवी समिति ने ग्राम सभा को पुनर्जीवित करने एवं पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने की सिफारिश की ।

ADVERTISEMENTS:

(xii) संविधान का वा संशोधन अधिनियम 25 अप्रैल, 1993 से लागू है ।

(xiii) भारतीय संविधान का भाग 9 तीन सोपानों में पंचायतों के गठन की व्यवस्था प्रस्तुत करता है ।

ग्राम पंचायत: ग्राम स्तर पर ।

जिला पंचायत: जिला स्तर पर ।

अन्तर्वर्ती पंचायत: ग्राम एवं जिला पंचायतों के बीच ।

(i) परन्तु यह स्तरीकरण उन्हीं राज्यों में होगा जिनकी जनसंख्या 20 लाख से अधिक होगी ।

(ii) राज्य विधानमण्डलों को विधि द्वारा पंचायतों की संरचना के लिए उपबन्ध करने की शक्ति दी गयी है ।

(iii) अनुच्छेद 243 (घ) प्रावधान करता है कि अनुसूचित जाति/जन-जाति के लिए उनकी आबादी के अनुसार आरक्षण दिया जायेगा ।

(iv) अनुच्छेद 243 (घ) अनुसूचित जातियों और जन-जातियों की महिलाओं को आरक्षित स्थानों में एक-तिहाई हिस्सा आवण्टित करने का प्रावधान करता है ।

बलवन्त राय मेहता समिति की प्रमुख सिफारिशें:

बलवन्त मेहता समिति की सिफारिशों को राष्ट्रीय विकास परिषद् (National Development Council) ने 12 जनवरी, 1958 को स्वीकृति प्रदान की । इस समिति की सिफारिशों के मूलतत्त्व निम्नवत् है :

ग्राम पंचायत:  ग्राम स्तर पर पंचायतों के समूह द्वारा इसका गठन किया जाना चाहिए ।

जिला परिषद्:  जिला स्तर पर प्रखण्डों के समूह को मिलकर जिला परिषद् का गठन किये जाने की अनुशंसा समिति द्वारा की गयी ।

(i) प्रत्येक पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन से भरे जाने वाले कुल स्थानों में से एक-तिहाई स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित हैं ।

(ii) पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है ।

(iii) किसी पंचायत के गठन के लिए निर्वाचन 5 वर्षों की अवधि के पूर्व एवं 6 माह की अवधि के अवसान से पूर्व करा लिया जाता है ।

(iv) अनुच्छेद 243 (च) के अनुसार, वे सभी व्यक्ति जो राज्य विधानमण्डल के लिए निर्वाचित होने की अर्हता रखते हैं, पंचायत की सदस्यता ग्रहण कर सकते हैं ।

(v) पंचायत की सदस्यता के लिए न्यूनतम उम्र सीमा 21 वर्ष निर्धारित है ।

(vi) अनुच्छेद 243 (ट) के अनुसार पंचायत चुनावों का सचालन राज्य निर्वाचन आयोग करता है ।

(vii) संविधान की 11वीं अनुसूची मैं ऐसे 29 विषयों का उल्लेख है जिन पर पंचायतें कानून बना सकती है ।

(viii) अनुच्छेद 329 के तहत पंचायतों के निर्वाचन की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाने के पश्चात् न्यायालय इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती है ।

नगरीय शासन भाग 9 (क); अनुच्छेद 243 (त) से 243 (य) (छ):

(i) संविधान का भाग 9 (क) एक जून, 1993 को प्रवृत्त हुआ । इसके द्वारा नगरीय क्षेत्र में स्थानीय स्वशासन को संवैधानिक आधार प्रदान किया गया ।

(ii) नगरीय स्वशासन की संस्थाएँ नगरपालिका (Municipality) कहलाती हैं ।

ये तीन प्रकार की होती हैं:

नगर पंचायत (Municipal Panchayat): ऐसे क्षेत्रों के लिए जो ग्रामीण क्षेत्र से नगर में परिवर्तित हो रहे हैं ।

नगर परिषद (Municipal Council): छोटे नगर क्षेत्र के लिए ।

नगर निगम (Municipal Corporation): बड़े नगर क्षेत्र के लिए ।

(i) नगर को वार्डों में बांट दिया जाता है । वार्ड पार्षदों में से महापौर (Mayor) का निर्वाचन किया जाता है । महापौर किसी नगर का प्रथम नागरिक होता है । उसका चुनाव एक वर्ष के लिए किया जाता दो ।

(ii) विजयवाड़ा (आन्ध्र प्रदेश) की नगर निगम का चुनात सीधे प्रत्यक्ष निर्वाचन से होता है ।

(iii) भारत में वर्तमान में लगभग 1700 नगरपालिकाएं कार्यरत हैं । नगरपालिका ऐसे स्थान पर स्थापित की जाती है, जहां की कुल आबादी का तीन चौथाई भाग कृषि छोड़कर दूसरे पेशे में लगा हुआ है ।

(iv) कोई नगरपालिका तीन प्रकार के सदस्यों : 1.निर्वाचित पार्षद, 2. पदेन पार्षद एवं 3.पौर को मिलाकर गठित होती है ।

Home››Government››