भारत के जीवविज्ञान क्षेत्र | Biogeographic Zones of India in Hindi.

भारतीय उपमहाद्वीप में भारी धरातलीय एवं जलवायु विविधता पाई जाती है । इस भौगोलिक विविधता का भारत के पशु-पक्षियों तथा पेड़-पौधों के वितरण पर गहरा प्रभाव पडा है । पारिस्थितिकी विज्ञान के विशेषज्ञों ने भारत को दस प्रदेशों में विभाजित किया है ।

इन प्राणी-भौगोलिक का संक्षिप्त वर्णन निम्न में दिया गया है:

1. भारतीय प्रायद्वीप (Peninsular India):

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यह प्रदेश भारतीय प्रायद्वीप के अधिकतर भाग पर फैला हुआ है । अर्कियन युग के बने भारतीय प्रायद्वीप पर लाल, काले तथा भूरे रंग की मृदा पाई जाती है । इस प्रदेश की प्रमुख वनस्पति में सागौन, तेंदु, साल, महुआ, शीशम, कटहल, सुपारी, हालक, अर्किड तथा फर्न जैसे पतझड़ वाले वृक्ष सम्मिलित हैं ।

भारत के सबसे अधिक क्षतिग्रस्त वन इसी प्रदेश में पाये जाते है । वनों को काट कर बहुत-से वन-क्षेत्र को कृषि के अंतर्गत लाया गया है ।

2. अर्द्ध मरुस्थलीय वनस्पति प्रदेश (The Semi-Arid Floral Region):

पंजाब, हरियाणा, राजस्थान तथा गुजरात प्रांत अर्ध मरुस्थलीय प्रदेश हैं । इस वनस्पति प्रदेश में बबूल, नीम, खेजरी, कन्जु के वृक्ष, काँटेदार झाड़ियाँ तथा नागफनी के पेड-पौधे पाये जाते हैं । इस प्रदेश के अधिकतर जंगलों को साफ करके कृषि के अंतर्गत ले लिया गया है ।

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3. गंगा का मैदान (The Ganga Plain):

लगभग पाँच हजार वर्ष पूर्व गंगा के मैदान में बहुत-सी देशज वृक्ष जातियाँ पाई जाती थीं । बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिये गंगा के मैदान से प्राकृतिक वनस्पति को लगभग साफ कर दिया गया है और भूमि को कृषि उपयोग में ले लिया गया है । गंगा के मैदान में प्रमुख रूप से अर्जुन, शीशम, बरगद, पीपल, महुआ, नीम, जामुन तथा नाना प्रकार की घास पाई जाती हैं ।

4. थार मरुस्थल वनस्पति प्रदेश (The Desert Floral Region):

अरावली के पश्चिम भाग में फैले हुये थार के मरुस्थल में वर्षण की अपेक्षा वाष्पीकरण अधिक होता है । इसकी वनस्पति में बबूल, नागफनी तथा विभिन्न प्रकार की घास प्रमुख हैं ।

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5. हिमालयी वनस्पति प्रदेश (The Himalayan Floristic Region):

हिमालय को वनस्पति के आधार पर दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:

(i) पश्चिम हिमालय तथा

(ii) पूर्वी हिमालय ।

प. हिमालय जम्मू-कश्मीर, हिमाचल-प्रदेश तथा उत्तराखंड में फैला हुआ है प्रमुख वनस्पति में चीड़, सागौन रोडोडेन्ड्रान, अमलतास, आर्किड, बांस तथा चम्पा है । देवदार, बर्च, लार्च, शहबलूत, स्प्रूस, जुनिपर के वृक्ष सम्मिलित हैं । अधिक ऊंचाइयों पर घास के हरे-भरे चरागाह पाये जाते हैं जिनको कश्मीर में मर्ग अथवा अल्पाइन घास के मैदान कहते हैं ।

हिमालय के पूर्वी वनस्पति प्रदेश में जलवायु तुलनात्मक रूप से अधिक आर्द्र है । इस प्रदेश में पतझड़ एवं कोणधारी वनों का मिश्रण पाया जाता है । प्रमुख वृक्षों में साल, सागौन, शीशम, बाँस, चीड़, देवदार, स्प्रूस तथा फर सम्मिलित हैं ।

6. हिमालय-पार वनस्पति प्रदेश (The Trans-Himalayan Floristic Region):

हिमालय पार लद्दाख में ठंडे मरुस्थल जैसी परिस्थति पाई जाती है । औसत वार्षिक वर्षा 20 सी. सी. से कम है तथा शीत ऋतु में कठोर सर्दी पड़ती है । नदियों के किनारे जहाँ जल उपलब्ध है चीड़ और कोणधारी वृक्ष पाये जाते हैं । विस्तृत भाग में प्राकृतिक वनस्पति का अभाव है । कहीं-कहीं कांटेदार झाडियाँ एवं नागफनी भी देखी जा सकती है ।

7. उत्तर पूर्वी वनस्पति प्रदेश (N.E. Indian Floristic Region):

यह वनस्पति प्रदेश भारत के उत्तरी पूर्वी राज्यों में फैला हुआ है । इस वनस्पति प्रदेश में बाँस, चीड़, साल, सागौन, मगनोलिया देवदार, फर तथा सख्त लकड़ी के वृक्ष पाये जाते हैं । पर्वत की ऊँचाइयों पर पौष्टिक घास के चारागाह हैं ।

8. पश्चिम तटीय मैदान (Western Coastal Plain):

पश्चिमी तटीय मैदान का विस्तार गुजरात, महाराष्ट्र, गोआ, कर्नाटक तथा केरल में है । इस प्रदेश में मुख्यतः ऊष्णकटिबंधीय वनस्पति पाई जाती है जिसमें मानसूनी पतझड़ वृक्ष तथा नाना प्रकार की घास और फूलों वाले पौधे सम्मिलित हैं ।

9. भारतीय द्वीप समूह प्राकृतिक वनस्पति (Indian Islands Floristic Region):

भारतीय द्वीपों में प्राकृतिक वनस्पति की दृष्टि से अंडमान-निकोबार द्वीप समूह बहुत महत्त्वपूर्ण हैं । इन द्वीपों में भारी लकड़ी वाले विषुवत रेखीय वृक्ष पाये जाते है । इन वृक्षों पर पत्तों की घनी छतरी पाई जाती है । पेडों पर बहुत-सी बेलें लिपटी रहती हैं ।

10. तटीय कच्छ (Mangrove) वनस्पति प्रदेश (Coastal Mangrove):

मेनग्रोव बड़े आकार की झाड़ियाँ तथा वृक्ष होती हैं जो सागर के लवणीय जल में उगते हैं । भारत पूर्वी तटों (बंगाल की खाड़ी) में मेनग्रोव व प्राकृतिक वनस्पति अधिक है जिसमें सुंद्री वनस्पति महत्वपूर्ण है । सुंद्री के फूल रंग-बिरंगे तथा सुंदर होते हैं । जिनसे कपडों की रंगाई का काम लिया जाता है । इन वृक्षों तथा झंडियों की लकड़ी मजबूत होती है ।

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