वायुमंडल की संरचना | Composition of the Atmosphere in Hindi.

वायुमंडल अनेक गैसों का मिश्रण है जिसमें ठोस और तरल पदार्थों के कण असमान मात्राओं में तैरते रहते हैं । नाइट्रोजन सर्वाधिक मात्रा में है । उसके बाद क्रमशः ऑक्सीजन, ऑर्गन, कार्बन-डाई-ऑक्साइड, नियॉन, हीलियम, ओजोन व हाइड्रोजन आदि गैसों का स्थान आता है । इसके अलावा जलवाष्प, धूल के कण तथा अन्य अशुद्धियाँ भी असमान मात्रा में वायुमंडल में मौजूद रहती है ।

संसार की मौसमी दशाओं के लिए जलवाष्प, धूल के कण तथा ओजोन अत्यधिक महत्वपूर्ण है । विभिन्न गैसों की 99% भाग मात्र 32 किमी. की ऊँचाई तक सीमित है जबकि धूलकणों व जलवाष्प का 90% भाग अधिकतम 10 किमी. की ऊँचाई तक ही मिलता है ।

नाइट्रोजन (Nitrogen) (78%):

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यह वायुमंडलीय गैसों का सर्वप्रमुख भाग है । लेग्यूमिनस पौधे वायुमंडलीय नाइट्रोजनी पोषक तत्वों की पूर्ति करते हैं ।

ऑक्सीजन (Oxygen) (21%):

यह मनुष्यों व जन्तुओं के लिए प्राणदायिनी गैस है । पेड़-पौधे प्रकाश संश्लेषण क्रिया के द्वारा इसे वायुमंडल में छोडते हैं ।

आर्गन (Argon) (0.93%):

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यह एक अक्रिय गैस है । इसके अलावा वायुमंडल में हीलियम, निऑन, क्रिप्टन, जेनन जैसी अक्रिय गैसें भी अल्प मात्रा में मौजूद रहती हैं ।

कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon-Dioxide) (0.03%):

यह एक भारी गैस है । सौर विकिरण के लिए यह पारगम्य है, किन्तु पार्थिव विकिरण के लिए अपारगम्य है । इस प्रकार यह वायुमंडल में ग्रीनहाउस प्रभाव पैदा करती है । इसकी बढ़ती मात्रा से तापमान में वृद्धि होती है । क्योटो प्रोटोकौल (1997 ई.) के द्वारा इसकी मात्रा में कमी किए जाने के बारे में वैश्विक सहमति बनी है ।

ओजोन (Ozone):

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यद्यपि वायुमंडल में इसकी मात्रा बहुत कम होती है परंतु यह वायुमंडल का एक महत्वपूर्ण घटक है । यह एक छन्नी की भांति कार्य करता है और सूर्य की पराबैंगनी किरणों के विकिरण को अवशोषित कर लेता है । यदि ये किरणें सतह तक पहुँच जाती तो तापमान में तीव्रवृद्धि व चर्म कैंसर का खतरा उत्पन्न हो जाता ।

यह गैस समताप मंडल के निचले भाग में पायी जाती है । 15 से 35 किमी. की ऊँचाई पर यह सघनता से पाया जाता है । जेट वायुयानों से निसृत नाइट्रोजन ऑक्साइड, एयरकंडीशनर, रेफ्रिजेरेटर आदि में प्रयुक्त व निसृत क्लोरो फ्लोरो कार्बन इसकी परत को नुकसान पहुँचाता है ।

एक अनुमान के अनुसार यदि 500 सुपरसोनिक जेट का एक दल प्रतिदिन उड़ान भरता है, तो ओजोन परत में 12% तक ह्रास हो सकता है । ओजोन परत को क्षरित होने से बचाने के लिए मांट्रियल प्रोटोकॉल (1987 ई.) पर सहमति बनी है एवं इसके लिए निरंतर अंतर्राष्ट्रीय प्रयास हो रहे हैं ।

जलवाष्प (Water Vapour):

वायुमंडल में प्रति इकाई आयतन में इसकी मात्रा 0 से 4% तक होती है । उष्णार्द्र क्षेत्रों में यह 4% तक एवं मरूस्थलीय व ध्रुवीय प्रदेशों में अधिकतम 1% तक पायी जाती है । ऊँचाई के साथ जलवाष्प की मात्रा में कमी आती है । जलवाष्प की कुल मात्रा का आधा भाग 2,000 मी. की ऊँचाई तक मिलता है ।

विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर जलवाष्प की मात्रा में कमी आती है । कार्बन डाइऑक्साइड की तरह ही जलवाष्प भी ग्रीनहाउस प्रभाव उत्पन्न करता है व विकिरण ऊष्मा को सुरक्षित रखता है । यह ठोस, द्रव्य व गैस तीनों अवस्था में पाया जाता है । जलमंडल का कुल 0.035% वायुमंडल में सुरक्षित है ।

धूलकण (Dust):

इनमें मुख्यतः समुद्री नमक, सूक्ष्म मिट्‌टी, धुएँ की कालिख, राख, पराग, धूल तथा उल्कापात के कण शामिल होते हैं । ये मुख्यतः वायुमंडल के निचले स्तर अर्थात् क्षोभमंडल में पाए जाते हैं । ध्रुवीय और विषुवतीय प्रदेशों की अपेक्षा उपोष्ण तथा शीतोष्ण क्षेत्रों में धूल के कणों की मात्रा अधिक मिलती है ।

ये धूलकण आर्द्रताग्राही (Hygroscopic) या संघनन (Condensation Nuclei) केन्द्र होते हैं, जहाँ वायुमंडलीय जलवाष्प संघनित होकर वर्षण के विभिन्न रूपों की उत्पत्ति का कारण बनते हैं ।

धूल के कण सूर्यातप को रोकने और उसे परावर्तित करने का कार्य भी करते हैं । ये सूर्योदय और सूर्यास्त के समय प्रकाश के प्रकीर्णन (Scattering) द्वारा आकाश में लाल व नारंगी रंग की धाराओं का भी निर्माण करते हैं । धूलयुक्त कुहरा भी धूलकणों की उपस्थिति में बना घना धुंध ही है ।

वायुमंडल की 80 किमी. की मोटाई में गैसों का मिश्रण लगभग एक सा रहता है । अतः इसे सममंडल (Homosphere) भी कहा जाता है । उसके बाद नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, हीलियम व हाइड्रोजन की अलग-अलग आण्विक परतें मिलती हैं । इसीलिए इसे विषम मंडल (Hetrosphere) भी कहा जाता है ।

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