महिला सशक्तिकरण पर निबंध | Essay on Women Empowerment in Hindi!

महिला सशक्तिकरण पर निबंध | Essay on Women Empowerment


Essay Contents:

  1. महिला सशक्तिकरण का अर्थ
  2. महिला सशक्तिकरण के आर्थिक लाभ
  3. महिला सशक्तिकरण की प्रक्रिया
  4. महिला सशक्तिकरण एवं स्वास्थ्य
  5. महिला सशक्तिकरण के बाधक तत्व

Essay # 1. महिला सशक्तिकरण का अर्थ:

महिला सशक्तिकरण को जेन्डर सशक्तिकरण भी कहा जाता है, विकास और अर्थशास्त्र के सम्बन्ध में विचार विमर्श का एक महत्वपूर्ण मुद्‌दा बन गया है । सभी राष्ट्र, व्यवसाय, समुदाय और समूह उन कार्यक्रमों और नीतियों के कार्यान्वयन से लाभान्वित हो सकते हैं जो महिला सशक्तिकरण के सिद्धान्त को अपनाते हैं ।

मानवाधिकार और विकास के मुद्‌दों पर ध्यान देते समय सशक्तिकरण एक महत्वपूर्ण प्रक्रियागत विषय होता है । मानव विकास एवं क्षमता दृष्टिकोण, सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्य एवं अन्य विश्वसनीय दृष्टिकोण लक्ष्य इस ओर इशारा करते हैं कि सशक्तिकरण एवं सहभागिता एक आवश्यक कदम है, यदि कोई देश गरीबी एवं विकास से जुडे अवरोधों पर विजय पाना चाहता है ।

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जेण्डर सशक्तिकरण अनुमापन:

जेण्डर सशक्तिकरण की नाप जोख जेन्डर सशक्तिकरण अनुमापन के अथवा जेम के माध्यम से की जा सकती है । जेम ये दर्शाते हैं कि किसी देश में महिलाओं की सहभागिता, राजनीतिक और आर्थिक दोनों क्षेत्रों में होती है । जेम की गणना इस बात से की जा सकती है कि संसद में महिलाओं की सीटों का कितना हिस्सा है, कितनी महिला विधायक, वरिष्ठ अधिकारी एवं प्रबंधक है ।

साथ ही, महिला संचालित व्यवसाय और तकनीकी कर्मियों में महिलाओं का कितना हिस्सा है । अन्य उपाय जो महिला सहभागिता एवं समानता के महत्व को हिसाब में लेते है, उनमें शामिल है – जेण्डर पैरिटी इन्डेक्श एवं जेण्डर रिलेटेड डेवलपमेन्ट इन्डेक्स (जीडीआई) ।

महत्वहीनता एवं सशक्तिकरण:

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‘महत्वहीनता’ शब्द समुदायों के अन्तर्गत प्रचलित प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रवृत्तियों की ओर सकेत करता है, जिनके माध्यम से किसी समाज में प्रचालित समूह-मानदंडों का अथवा वांछनीय प्रवृत्तियों का अभाव पाया जाता है तथा व्यापक समुदाय द्वारा इन्हें स्वीकार नहीं किया जाता अथवा अवांछनीय समझा जाता है कभी-कभी ‘महत्वहीन’ किसी दान अथवा कल्याण कार्य पर कम से कम आधारित होता है ।

उनका आत्मविश्वास इसलिये समाप्त हो जाता है कि वे पूरी तरह आत्मनिर्भर नहीं बन पाते । अवसर न मिलने के कारण उनका आत्मसम्मान समाप्त हो जाता है । कभी-कभी समूह किसी व्यापक समुदाय द्वारा महत्वहीन करार दिये जाते है, परन्तु सरकारें प्रायः अनभिज्ञ अत्यंत उत्साही भागीदार होती है ।

उदाहरण के लिये अमरीकी सरकार ने 1964 के सिविल राइट कानून के पहले सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों, विशेषकर अश्वेतों को ‘महत्वहीन’ कर दिया था । ये कानून जाति आधारित स्कूलों एवं सार्वजनिक स्थलों की उपलब्धता पर थोपा गया प्रतिबंध गैर कानूनी करार देता है ।

समान अवसर वाले कानून जो इस प्रकार की महत्वहीनता का पुरजोर विरोध करते हैं, वे अधिकाधिक सशक्तिकरण की हिमायत करते हैं । वे इस बात के भी प्रतीक हैं कि अल्पसंख्यकों और महिलाओं का सशक्तिकरण एक जुटता के जरिये हो रहा है ।

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ऐसे महत्वहीन व्यक्ति, जिनके पास अवसर प्राप्त व्यक्तियों की तुलना में, किसी उपलब्धि के लिये आवश्यक आत्मनिर्भरता नहीं है, वे अपने को स्वयं विकसित कर सकते हैं । परन्तु इसके फलस्वरूप उनमें मनोवैज्ञानिक सामाजिक तथा मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्यायें उत्पन्न हो सकती हैं ।

सशक्तिकरण इस प्रकार एक प्रक्रिया जिसके जरिये महत्वहीन व्यक्तियों के लिये बुनियादी अवसर प्रत्यक्ष रूप से ऐसे व्यक्तियों द्वारा प्राप्त किया जाता है अथवा उन व्यक्तियों की सहायता से जो महत्वहीन नहीं है और जिनके पास अवसर से की उपलब्धता मौजूद है ।

इनमें वे प्रयास भी शामिल हैं जो इस प्रकार के अवसर न उपलब्ध होने के प्रयासों को असरहीन बनाते हैं । सशक्तिकरण में आत्मनिर्भरता से सम्बन्धित कुशलता प्रोत्साहित करना और विकसित करना भी शामिल है तथा इस बात पर ध्यान केन्द्रित रहता है कि समूह के व्यक्तियों की भावी आवश्यकता के लिये किसी दान अथवा कल्याण की आवश्यकता को समाप्त किया जाये ।

ये प्रक्रिया शुरू करना कठिन हो सकता है और इसका प्रभावी कार्यान्वयन उतना ही कठिन, परन्तु सशक्तिकरण परियोजनाओं के ऐसे बहुत से उदाहरण है जो सफल हुये । एक सशक्तिकरण रणनीति ये है कि साधनहीन लोगों को मदद दी जाये ताकि वे अपने गैरलाभकारी संगठन बना सकें और इस निमित्त साधनहीन लोग ही ये जान सकते है कि उन अपने लोगों की सबसे बडी आवश्यकता क्या है । बाहरी लोगों का ऐसे संगठन पर नियंत्रण होने से मार्जिनलाईजेशन को वास्तव में ओर मजबूत करने में मदद मिलेगी ।

उदाहरण के लिये, धर्मादा संगठन यदि समुदाय के बाहर कार्य करते हैं तो इससे समुदाय अशक्त हो सकता है क्योंकि दान अल्प-कल्याण पर निर्भरता बढ सकती है कोई गैर लाभकारी संगठन ऐसी रणनीतियाँ अपना सकता है जिनसे संरचनात्मक परिवर्तन संभव हो सकते हैं और चल रही निर्भरता की आवश्यकता कम हो सकती है ।

उदाहरण के लिये, रेडक्रास देश के लोगों के स्वास्थ्य में सुधार लाने पर अपना ध्यान केन्द्रित कर सकती है परन्तु इसकी नियमावली में इस प्रकार का कोई अधिकार नहीं है कि यह जल वितरण और शुद्धीकरण पद्धतियों स्थापित कर सके यद्यपि ये भी सही है कि इस प्रकार की पद्धति न होने से स्वास्थ्य पर सीधा एवं नकारात्मक प्रभाव पडता है ।

गैर लाभकारी संगठन जो कि देश के लोगों से निर्मित होता है, वह यह सुनिश्चित कर सकता है कि ऐसे संगठन के पास अपना निजी अधिकार हो तथा वे अपना निजी एजेन्डा, योजनायें बना सके और साथ ही आवश्यक संसाधन प्राप्त कर सके । इसके अतिरिक्त ऐसी परियोजनाओं की सफलता के लिये यथा संभव कार्य कर सके । उत्तरदायित्व वहन कर सके तथा श्रेय हासिल कर सके । असफल होने पर वे परिणाम भी भुगतेंगे ।

Essay # 2. महिला सशक्तिकरण के आर्थिक लाभ:

पूरे विश्व में अधिकांश महिलायें अनौपचारिक कार्यक्षेत्र पर आमदनी के लिये आश्रित रहती हैं । यदि महिलायें इतना मजबूत हो जायें कि वे अधिक काम कर सकें तो आर्थिक विकास दिखने की पूरी संभावना नजर आती है । केवल जेन्डर के आधार पर किसी राष्ट्र के कार्य बल की अनदेखी किये जाने का मतलब है कि उस राष्ट्र की अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव डालना ।

इसके अलावा यदि परामर्श, समूहों और व्यापारों में महिला भागीदारी होती है तो कार्यक्षमता में बढोतरी दिखाई पडती है । इस सामान्य अनुमान के लिये कि कैसे मजबूती प्रदान की गई । महिलायें किसी स्थिति को आर्थिक दृष्टि से प्रभावित करती हैं ।

एक अध्ययन से ये पता चला है कि फारचून 500 कम्पनीज के सम्बन्ध में जहाँ निदेशक मण्डल में अधिक महिलायें रही हैं वहीं बेहतर वित्तीय परिणाम हासिल हुये हैं । इस अध्ययन से ये पता चलता है कि महिलायें किसी कम्पनी के समग्र आर्थिक लाभों में किस प्रकार अपना प्रभाव डाल सकती हैं ।

यदि वैश्विक पैमाने पर इसे लागू किया जाये तो फारचून 500 कम्पनी की तरह औपचारिक कार्य बल में महिलाओं के होने से राष्ट्र की आर्थिक उत्पादकता बढती है ।

Essay # 3. महिला सशक्तिकरण की प्रक्रिया:

यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जो व्यक्तियों / समूहों को व्यक्तिगत / सामूहिक शक्ति, प्राधिकार एवं प्रभाव उपलब्ध कराती है तथा इस शक्ति का इस्तेमाल अन्य व्यक्तियों, संस्थाओं अथवा समाज के साथ होने वाले सरोकारों में किया जाता है । दूसरे शब्दों में, सशक्तिकरण का अर्थ लोगों को शक्ति प्रदान करना नहीं है । लोगों के पास बडी मात्रा में शक्ति होती है – ज्ञान और प्रेरणा स्तर पर, जिससे कि वे अपना काम अच्छे ढंग से निपटा सकते हैं ।

यह लोगों को ऐसी निपुणताएँ एवं ज्ञान हासिल करने के लिए प्रोत्साहित करती है, जिनसे उन्हें जीवन अथवा कार्यगत वातावरण में उत्पन्न होने वाली बाधाओं से निजात मिल सकती है और अंततः निजी विकास अथवा समान में विकास करने में मदद मिलती है ।

सशक्तिकरण के अंतर्गत निम्नलिखित अथवा इससे मिलती-जुलती क्षमताएं शामिल हैं:

1. व्यक्तिगत / सामूहिक परिस्थितियों के सम्बन्ध में निर्णय करने की योग्यता ।

2. निर्णय करने के लिए सूचना एवं संसाधनों तक पहुँच बनाने की योग्यता ।

3. कई विकल्पों पर विचार करने एवं उनसे चुनने की योग्यता (केवल हाँ / नहीं, दोनों में से एक / अथवा ही नहीं)

4. सामूहिक निर्णय करते समय सक्रियता दिखाने की योग्यता

5. परिवर्तन करने की योग्यता के सम्बन्ध में सकारात्मक दृष्टिकोण रखना

6. व्यक्तिगत / सामूहिक परिस्थिति में सुधार करने के लिये निपुणताओं को सीखने और उन्हें हासिल करने की योग्यता

7. विनिमय, शिक्षा एवं संलग्नता के जरिये दूसरों के दृष्टिकोण सूचित करने की योग्यता ऐसी विकास प्रक्रिया एवं परिवर्तनों में संलग्न होना जो कभी समाप्त न हो तथा स्वयं प्रारम्भ की गई हो ।

8. स्वयं की सकारात्मक छवि में वृद्धि करना और किसी व्यक्तिगत दाग से बचे रहना ।

Essay # 4. महिला सशक्तिकरण एवं स्वास्थ्य:

इन्टरनेशनल कान्फ्रेन्स ऑन पापुलेशन एण्ड डेवलपमेन्ट (आई.सी.पी.डी) ने यह माना है कि महिलाओं का सशक्तिकरण एवं स्वायत्तता तथा उनके राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं स्वास्थ्य के स्तर में सुधार लाना अपने आप में महत्वपूर्ण लक्ष्य है ।

इसके अतिरिक्त संस्था ने प्रजनन अधिकारों लैंगिक एवं प्रजनन स्वास्थ्य एवं परिवार नियोजन को भी महत्वपूर्ण माना है । अपनी पूर्ण क्षमता को महिलायें हासिल कर सके, इसके लिये आई सी पीडी ड्राफ्ट प्रोग्राम का मानना है कि महिलाओं को उनके प्रजनन अधिकारों के उपयोग की पूर्ण गारण्टी दी जानी चाहिये तथा महिलाओं को अपनी प्रजनन भूमिका का प्रबंध स्वयं करना चाहिये ।

सेक्सुअल एण्ड रिप्रोडक्टिव हेल्थ एण्ड फैमिली प्लानिंग पाँच उप अध्यायों में निन्नलिखित पर ध्यान केन्द्रित करती है:

प्रजनन अधिक एवं प्रजनन स्वास्थ, परिवार नियोजन, यौन जनित बीमारियों एच. आई.वी. संक्रमण, मानव लैंगिकता एवं जेंडर सम्बन्ध तथा किशोर । ड्राफ्ट प्रोग्राम में प्रजनन स्वास्थ्य की परिभाषा इस प्रकार की गई है – ”पूर्ण शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक स्वास्थ्य-सम्पन्नता की स्थिति तथा प्रजनन प्रणाली और इसके कार्यों एवं प्रक्रियाओं से सम्बन्धित सभी मामलों में केवल बीमारी अथवा कमजोरी का न होना ही नहीं ।”

प्रजनन स्वास्थ्य का अर्थ है कि लोग संतोषप्रद और सुरक्षित सेक्स लाइफ बिताते हैं और यह कि उनमें प्रजनन-क्षमता मौजूद है तथा इस बात की आजादी है कि वे ऐसा कब और कितनी बार करना चाहते हैं । ड्राफ्ट प्रोग्राम के अनुसार महिलाओं एवं पुरुषों को इस अधिकार का इस्तेमाल करने के लिए आवश्यक जानकारी तथा सेवाएँ हासिल रहनी चाहिए ।

ड्राफ्ट प्रोग्राम में सेक्सुअल हेल्थ की परिभाषा इस प्रकार की गई है – ”किसी लैंगिक प्राणी के शारीरिक, भावनात्मक बौद्धिक और सामाजिक पहलुओं का समन्वय इस प्रकार हो कि इससे सकारात्मक सम्पन्नता मिले तथा व्यक्तित्व सम्प्रेषण एवं प्रेम के स्तर पर बढोत्तरी हो ।”

दस्तावेज के अनुसार लैंगिक एवं प्रजनन स्वास्थ्य का महत्वपूर्ण पक्ष ये है कि दम्पत्ति एवं व्यक्तियों को ये बुनियादी अधिकार मिले कि वे बिना किसी रोक-टोक के और जवाबदेही के साथ बच्चों की संख्या, उनके बीच अन्तराल तथा समय का निर्धारण वे खुद कर सकें ।

साथ ही ऐसा करने के लिये उनके पास जानकारी और साधन उपलब्ध होने चाहिये । इसमें व्यक्ति की सुरक्षा के प्रति सम्मान तथा मानव शरीर की सम्यूर्णता भी शामिल है । ड्राफ्ट प्रोग्राम इस बात का उल्लेख करता है कि लोगों द्वारा इन अधिकारों का जवाबदेही के साथ इस्तेमाल को प्रोत्साहित करना ।

सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों का आधार होना चाहिये और इनका सम्बन्ध लैंगिक एवं प्रजनन स्वास्थ्य से अत्यन्त सीधा व सटीक होना चाहिये । ऐसे प्रोग्राम में परिवार नियोजन भी शामिल होना चाहिये । ड्राफ्ट प्रोग्राम सभी देशों से यह माया करता है कि वे सभी व्यक्तियों को चाहे उनकी जो भी उम्र हो, प्राथमिक स्वास्थ्य सुरक्षा प्रणाली एवं प्रजनन स्वास्थ्य सेवायें जहाँ तक संभव हो, उपलब्ध कराने का प्रयास करना चाहिये और इस सम्बन्ध में अन्तिम समय सीमा 2015 हो ।

दस्तावेज इस बात का उल्लेख करता है कि प्रजनन स्वास्थ्य सेवा में परिवार नियोजन माता-पिता की देखभाल एवं बच्चे के जन्म के बाद देखभाल, गर्भपात को रोकना तथा गर्भपातजनित परेशानियों का निवारण करना महिलाओं एवं शिशु की स्वास्थ्य सेवा तथा बाँझपन दूर करना एवं उसका इलाज एवं सेक्सजनित रोगों आदि से सम्बन्धित जानकारी एवं सेवाओं को शामिल किया जाना चाहिये ।

ड्राफ्ट प्रोग्राम इस बात पर बल देता है कि महिलाओं को स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रमों में सभी स्तरों पर शामिल किया जाना चाहिये । इसके साथ ही उनकी भागीदारी लैगिक एवं प्रजनन स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रमों के नियोजन, कार्यान्वयन एवं मूल्यांकन में भी होनी चाहिये ।

दस्तावेज इस बात पर भी बल देता हे कि परिवार नियोजन कार्यक्रमों की लम्बे समय तक सफलता के लिये ये अनिवार्य हे कि व्यक्ति को विकल्प चुनने का पूरा-पूरा अवसर दिया जाना चाहिये और किसी प्रकार की जोर-जबरदस्ती नहीं की जानी चाहिये ।

इस समय विकासशील देशों में लगभग 55 प्रतिशत दम्पत्ति परिवार नियोजन का कोई न कोई साधन प्रयोग में लाते हैं । अगर निरपेक्ष रूप से देखा जाये तो ये आंकडा 1960 के दशक से 10 गुना बढोत्तरी दर्शाता है (460 मिलियन दम्पत्ति) तथा प्रतिशत की दृष्टि से ये वृद्धि 5 गुना है ।

परिवार नियोजन कार्यक्रमों ने विकासशील देशों में घटती हुयी बाँझपन दरों को काफी प्रभावित किया है, क्योंकि 1960 के दशक में प्रति परिवार लगभग 6-7 बच्चे होते थे जबकि इस समय उसे 4 बच्चे होते हैं । परन्तु इस दशक की बकाया अवधि के दौरान प्रजनन उम्र वाले दम्पत्तियों की संख्या प्रतिवर्ष कम से कम 18 मिलियन की वृद्धि होगी ।

पूरे संसार में कम से कम 350 मिलियन दम्पत्तियों को आधुनिक परिवार नियोजन सम्बन्धी तरीके उपलब्ध हैं और बहुत से दम्पत्ति ये कहते हैं कि वे अगले गर्भधारण में अन्तर रखना चाहते हैं अथवा उसे रोकना चाहते हैं । सर्वेक्षण आँकडे ये दर्शाते हैं कि पूरे संसार में लगभग 120 मिलियन अतिरिक्त महिलायें इस समय आधुनिक परिवार नियोजन सम्बन्धी प्रणाली अपना सकती है, बशर्ते उन्हें सही जानकारी और सेवायें उपलब्ध हों ।

ये आंकडे और भी बढ जायेंगे, अगर अविवाहित परन्तु लैंगिक दृष्टि से सक्रिय व्यक्तियों को भी इनमें शामिल कर लिया जाये । किशोरों की प्रजनन स्वास्थ्य सम्बन्धी आवश्यकताओं की उपेक्षा व्यापक रूप से मौजूदा सेवाओं द्वारा की गई है ।

ड्राफ्ट प्रोग्राम सरकारों से ये माँग करता है कि वे किशोरों के लिये लैंगिक एवं प्रजनन स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी और सेवायें उपलब्ध कराने पर लगे कानूनी विनियामक और सामाजिक बंदिशों को समाप्त कर दिया जाये ।

एक अन्य महत्वपूर्ण मुददा मानवीय लैंगिकता एवं जेन्डर सम्बन्धों का है तथा ये दोनों मुद्दे इतने घनिष्ठ रूप से जुडे हुये है कि वे परस्पर मिलकर पुरुषों एवं महिलाओं की लैंगिक स्वास्थ्य हासिल करने और बनाये रखने तथा अपने प्रजनन जीवन की देखभाल करने की क्षमता को प्रभावित करते हैं ।

महिलाओं के प्रति हिंसा बहुत अधिक बढ गयी है और एड्‌स तथा यौनजनिक बीमारियों के जोखिम से प्रभावित महिलाओं की संख्या दिन-बदिन बढ रही है । इसका कारण ये है कि उनके पार्टनर का सेक्सुअल बिहेवियर अत्यन्त जोखिम भरा रहता है ।

बहुत से देशों में महिलाओं के स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण जीवन पर्यन्त जोखिम फीमेल जेनाइटल म्यूटिलेशन है । पूरे संसार में यौन जनित बीमारियों की संख्या अत्यन्त उँचे स्तर पर है और इसमें निरन्तर बढोतरी हो रहो है । एच.आई.वी. जैसी महामारी के पैदा हो जाने से स्थिति और अधिक बिगड गयी है ।

ड्राफ्ट प्रोग्राम इस बात पर जोर देता हे कि योनजनित बीमारियों जैसे एच.आई.वी. एड्‌स की घटना पर रोक लगायी जाये अथवा कमी लायी जाये । साथ ही, यह कहता है कि यौन जनित बीमारियों जैसे बाँझपन से पैदा होने वाली परेशानियों का इलाज विशेषकर लडकियों व महिलाओं पर खास ध्यान देते हुये समुचित रूप से किया जाना चाहिये ।

ड्राफ्ट प्रोग्राम के अध्याय-8 हेल्थ मार्बिडिटी एवं मर्टेलिटी में निम्नलिखित तथ्यों पर विचार किया गया है – प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा एवं स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र, बच्चे का जीवन और स्वास्थ्य, महिलाओं का स्वास्थ्य एवं सुरक्षित मातृत्व तथा एच.आई.वी संक्रमण एवं एड्‌स ।

पिछली आधी शताब्दी में पूरे विश्व में जीवन दर समग्र रूप से लगभग 20 वर्ष बडी है तथा जन्म के पहले वर्ष में मृत्यु दर लगभग दो तिहाई कम हो गई हे । फिर भी ड्राफ्ट प्रोग्राम यह उल्लेख करता है कि कई प्रकार के सुधार अभी भी अपेक्षित हैं ।

यह दस्तावेज देशों से यह मांग करता है कि वे ये सुनिश्चित करें कि स्वास्थ्य सुरक्षा सेवायें एवं सुविधायें सभी व्यक्तियों की पहुँच के अन्दर उपलब्ध, स्वीकार्य और किफायती हो । ड्राफ्ट प्रोग्राम में निम्न मृत्यु दर सम्बन्धी व्यापक लक्ष्य दिये गये हैं और इस बात पर विशेष ध्यान दिया गया है कि शिशु, बच्चे तथा माँ की मृत्यु दर में कमी लाई जाये ।

इसमें ये उल्लेख है कि सरकारों का एक उद्देश्य ये होना चाहिये कि लडकियों की अधिक मृत्यु दर को समाप्त किया जाये, जहाँ भी इस प्रकार की घटना दिखायी पडती हो । इससे इस बात को बल मिलता है कि मां की रुग्णता एवं मृत्यु दर में तेजी से और पर्याप्त मात्रा में कमी लायी जाये ।

इन लक्ष्यों की प्राप्ति के विभिन्न मृत्यु स्तरों वाले देशों के सन्दर्भ में निहितार्थ अलग-अलग होंगे । फिर भी, सभी देशों से यह आह्वान किया जाता है कि वे माँ की रुग्णता और मृत्यु स्तरों में इस सीमा तक कमी लायें कि वे सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या न रह जायें ।

महिलायें जिस उम्र में माँ बनना शुरू और खत्म करती हैं, दो बच्चों के बीच का अन्तराल गर्भधारण की कुल संख्या एवं सामाजिक-सांस्कृतिक एवं आर्थिक परिवेश जिनमें महिलायें रहती हैं – ये सब बातें माँ की रुग्णता और मृत्यु दर को प्रभावित करती हैं । स्वयं के चलते अथवा अन्यथा असुरक्षित गर्भपात होने के कारण महिलाओं के स्वास्थ्य पर आने वाले खतरों पर विचार किया जाना आवश्यक है ।

इस बात के विशेष प्रयास किये जाने चाहिये कि प्रत्येक देश में होने वाले गर्भपात के संदर्भ में वस्तुपरक और विश्वसनीय जानकारी नीतियों के बारे में हासिल की जाये । यौन स्वास्थ्य शिक्षा एवं विस्तारित और बेहतर परिवार नियोजन सेवाओं के माध्यम से अवांछित गर्भधारण को रोका जाये तथा इस कार्यक्रम में गर्भ दर को कम करने के लिये समुचित परामर्श भी उपलब्ध कराया जाये ।

सरकारों से ये भी मांग की जाती है कि वे प्रेरित गर्भपात के प्रभाव के स्वास्थ्य सम्बन्धी और सामाजिक दृष्टि से मूल्यांकन करे । इसके साथ ही उन स्थितियों पर गौर करें जिनके चलते महिलाओं को गर्भपात का रास्ता चुनना पडता है और उन्हें पर्याप्त चिकित्सा सेवा एवं परामर्श उपलब्ध करायें ।

सरकारों का ये भी कर्तव्य है कि वे गर्भपात सम्बन्धी कानूनों और नीतियों की समीक्षा करें ताकि वे महिलाओं के स्वास्थ्य एवं उनके कल्याण के प्रति अपनी वचनबद्धता स्थानीय स्थितियों के अनुसार, न कि क्रिमिनल कोर्ट अथवा दण्डात्मक उपायों पर आश्रित होते हुये पूरा करना चाहिए यद्यपि सार्वजनिक नीति का मुख्य उद्देश्य अवांछित गर्भधारण को रोकना तथा गर्भपात की दर में कमी लाना है तथापि महिलाओं को आसानी से अच्छी स्वास्थ्य सेवायें मुहैया करायी जानी चाहिये ।

इन सेवाओं में विश्वसनीय जानकारी, परामर्श ओर चिकित्सा सेवा शामिल है इनका उद्देश्य ये है कि यदि वे ऐसा निर्णय करती हैं तो उनका कानूनन गर्भपात कराया जा सके । इससे असुरक्षित गर्भपात से होने वाली परेशानियों से बचा जा सकेगा, पुनः गर्भपात न हो इस बात को ध्यान में रखते हुये जल्दी से जल्दी गर्भपात के उपरान्त परामर्श, शिक्षा और परिवार नियोजन सेवायें उपलब्ध करायी जानी चाहिये । सभी सरकारों एवं अंतर सरकारी तथा गैर सरकारी संगठनों से ये माँग की जाती है कि वे असुरक्षित गर्भपात को प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या मानते हुये इस पर खुले तौर पर तथा दृढ़ता से कार्यवाही करें ।

सरकारों से ये अपेक्षा है कि वे असुरक्षित गर्भपात से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का आंकलन करे तथा गर्भपात की आवश्यकता को कम करने के लिये विस्तारित एवं बेहतर परिवार नियोजन सेवायें अपनायें । अनचाहे गर्भधारण को रोकने को सदैव उच्चतम प्राथमिकता दी जानी चाहिये तथा गर्भपात की आवश्यकता को समाप्त करने के लिये सभी प्रयास किये जाने चाहिये ।

किसी भी मामले में गर्भपात को परिवार नियोजन के तरीके के रूप में बढावा नहीं दिया जाना चाहिये । ऐसा परिस्थितियों में जहाँ गर्भपात कानूनी हो, महिलाओं को जो गर्भपात की इच्छुक हो उन्हें विश्वसनीय जानकारी तथा सद्भावनापूर्ण परामर्श उपलब्ध होना चाहिये और इस प्रकार का गर्भपात सुरक्षित होना चाहिये ।

सभी मामलों में महिलाओं को वे सभी सेवायें उपलब्ध रहनी चाहिये जो असुरक्षित गर्भपातों से पैदा होने वाली समस्याओं से निपटने के लिये आवश्यक हैं । स्वास्थ्य के सम्बन्ध में एक बडा खतरा एड्‌स का है, चाहे वो विकसित देश हो अथवा अविकसित ।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमानों के अनुसार एड्‌स की कुल संख्या पूरे विश्व में 1993 के मध्य तक 25 मिलियन व्यक्ति थी और इस महामारी के शुरू होने के पश्चात् एच.आई.वी संक्रमित व्यक्तियों की संख्या 14 मिलियन से अधिक हो गई है ।

ड्राफ्ट प्रोग्राम में सरकारों से ये भी माँग की गयी है कि वे एच.आई.वी. एडस के जनसंख्या एवं विकास पर पडने वाले प्रभाव का आकलन करें और विभिन्न सामाजिक क्षेत्रों में इस महामारी के प्रभाव पर ध्यान देना चाहिए ।

Essay # 5. महिला सशक्तिकरण के बाधक तत्व:

महिला सशक्तिकरण एवं समानता के बहुत से बाधक तत्व सम्बन्धित राष्ट्रों एवं समुदायों की संस्कृतियों में ही अन्तर्निहित होते हैं । बहुत सी महिलाएँ इन दबावों को महसूस करती है, जबकि अन्य महिलाएँ पुरुषों की तुलना में निम्न दर्जे की अभ्यस्त हो गई होती है ।

यद्यपि पुरुष, विधायक, गैर-सरकारी संगठन आदि महिला सशक्तिकरण एवं भागीदारी के लाभों से परिचित हैं, परन्तु वे यथास्थिति को भंग किए जाने से डरते हैं तथा सामाजिक मानदण्डों को विकास के मार्ग में बाधक बने रहने का विरोध नहीं कर पाते ।


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