Here is an essay on ‘Natural Disasters’ for class 5, 6, 7, 8, 9 and 10. Find paragraphs, long and short essays on ‘Natural Disasters’ especially written for school and college students in Hindi language.

Essay on Natural Disasters


Essay Contents:

  1. Essay on Drought
  2. Essay on Floods
  3. Essay on Cyclones
  4. Essay on Earthquakes
  5. Essay on Tsunami
  6. Essay on Cloudburst

Essay # 1. सूखा (Drought):

ADVERTISEMENTS:

विभिन्न भूगोलवेत्ताओं ने सूखे की अलग-अलग पी: रभाषाएं प्रस्तुत की हैं । भारत के जलवायु विभाग के अनुसार यदि लगातार 22 दिनों तक 0.25 से.मी. से कम वर्षा रिकॉर्ड की जाये तो सूखा घोषित कर दिया जाता है । परन्तु यह परिभाषा भारत के सभी भागों के लिए उपयुक्त नहीं । मेघालय के पठार, विशेषकर चेरापूंजी एवं मासिनराम में यदि 15 दिन में 0.25 से.मी. वर्षा रिकॉर्ड न की जाये तो सूखे की परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है ।

भारत में प्रायः सूखा मानसून-फेल होने के कारण पड़ता है । 1982 तथा 2009 में जब अल-नीनो सबल था तो भारतीय मानसून विफल हुआ और देश के अधि कतर भागों में सूखा पड गया था । प्रत्येक पाँच वर्ष में दो साल सूखा पड़ता है । 

(i) राजस्थान के मरुस्थलीय तथा अर्द्ध-मरुस्थलीय क्षेत्र:

अरावली पर्वत के पश्चिम में थार का मरुस्थल फैला हुआ है । राजस्थान के मरुस्थल एवं निकटवर्ती अर्द्ध-मरुस्थलीय भागों में औसत वार्षिक वर्षा 15 सेन्टीमीटर से 60 सेन टीमीटर तक होती है । यहाँ वर्षा की विविधता 20 से 60 प्रतिशत से अधिक है । फलस्वरूप यह भारत का सबसे अधिक सूखाग्रस्त क्षेत्र है ।

ADVERTISEMENTS:

(ii) पश्चिमी घाट का पूर्वी वर्षा रहित क्षेत्र:

यह क्षेत्र आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र एवं कर्नाटक के उत्तरी पश्चिमी भाग में फैला हुआ है । इस क्षेत्र में भी औसत वार्षिक वर्षा 60 सेन्टीमीटर से कम और वर्षा की वि. विधता 30 प्रतिशत से अधिक है । यहाँ भी प्रायः सूखे की परिस्थिति बनी रहती है ।

(iii) अन्य सूखाग्रस्त क्षेत्र:

ओडीशा के कालाहाण्डी प. बंगाल के पलिया-बांकुरा जिले बुन्देलखण्ड (यूपी.) बघेलखण्ड एमपी. लद्दाख तथा तमिलनाडु के मदुरई इत्यादि जिलों में प्रायः मानसून फेल होने पर सूखा पड़ जाता है ।

ADVERTISEMENTS:

भारत में सूखे के कारण बहुत बार अकाल पड़े हैं, जिनमें से निम्नलिखित वर्षों में सूखे के कारण भारी जान-माल की हानि हुई थी:

1961-63 – बिहार एवं बंगाल का अकाल

1965-66 – महाराष्ट्र का अकाल

1966-67 – ओडीशा का अकाल

1982-83 – हरियाणा – राजस्थान

1987-88 – बोलनगिरि – कालाहांडी (ओड़ीशा)

2009-10 – भारत के अधिकतर भाग ।

सूखा-प्रबन्धन:

भारत सरकार ने सूखाग्रस्त क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया है तथा ऐसे क्षेत्रों के रहने वालों के लिये बहुत-सी राहत की योजनायें तैयार की हैं । 1987 से पहले सूखाग्रस्त क्षेत्रवासियों को अनाज-चारे की सहायता तथा रोजगार का प्रावधान किया जाता था । इस प्रकार की योजनाओं का भारत सरकार पर भारी वित्तीय दबाव पड़ता । 1987 के पश्चात सरकार ने ऐसे क्षेत्रों के लिये चौमुखी विकास की योजना तैयार की हैं ।


Essay # 2. बाढ़ (Floods):

नदी का जलस्तर ऊँचा होकर (ऊपर उठकर) जब किनारों को पार करके आस-पास के क्षेत्रों में फैल जाये तो उसको बाढ़ कहते हैं ।

नदी में बाद निम्न कारणों से आती है:

1. अत्यधिक वर्षा,

2. बाँध का टूट जाना,

3. नदी मार्ग में यदि हिम का बांध बन गया हो और वह टूट जाए

4. ऊँचा ज्वार- भाटा, या;

5. चक्रवात के कारण सागर का जल? थल पर चढ़ जाये ।

भारत में अधिकतर बाढ़ अचानक अधिक वर्षा के कारण आते हैं । बाढ़ की भीषणता यद्यपि अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग होती है । भारत सरकार के राष्ट्रीय बाढ़ आयोग के अनुमान के अनुसार भारत की 40 मिलियन हैक्टेयर भूमि बाढ़ के प्रकोप में आ सकती हैं ।

अधि कतर बाढ़ गंगा-ब्रह्मपुत्र के बेसिन में आती है । भारत के जिन राज्यों में बाढ़ की बारम्बारता अधिक है उनमें आन्ध्र प्रदेश, असम, बिहार, गुजरात, ओडीशा, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल उल्लेखनीय हैं । एक अनुमान के अनुसार भारत में बाद से प्रति वर्ष पाँच करोड़ लोग प्रभावित होते हैं तथा दो अरब रुपये से अधिक का आर्थिक नुकसान होता है ।


Essay # 3. चक्रवात (Cyclones):

भारत में बंगाल की खाड़ी, खम्भात की खाड़ी और अरब सागर में उष्णकटिबंधीय चक्रवात आते रहते हैं । अधिकांश चक्रवात प्रायः सितम्बर और अक्टूबर के महीनों में आते हैं । इन चक्रवातों की उत्पत्ति के बारे में अभी तक विश्वसनीय ज्ञान प्राप्त नहीं है ।

बंगाल की खाड़ी में आने वाले चक्रवातों से भारतीय पूर्वी तटीय मैदान पर भारी नुकसान होता है । खम्भात की खाडी के तटों पर भी इन से भारी नुकसान पहुँचता है । प. बंगाल तथा ओडीशा के तट पर अप्रैल और मई के महीनों में आने वाली तूफानी हवाओं को ”काल-बैसाखी” कहते हैं । 


Essay # 4. भूकम्प (Earthquakes):

भूकम्प पृथ्वी कम्पन होते हैं, जो लचीलेपन की क्षमताओं से दूर दबाव पड़ने से चटानों के फटने या उनमें दरार आने और अचानक ही संचलन से उत्पन्न होते हैं ।

भूकम्प को पृथ्वी की ऊपरी सतह में ‘फोकस’ अथवा ‘हाइपोसेण्टर’ के नाम से जाने जाने वाले बिंदू अथवा स्थल में पपड़ीदार चट्‌टानों के अचानक हिलने से उत्पन्न हुए झटकों की शृंखला भी कहा जाता है । भारत में बड़े भूकम्पों को तालिका 10.29 दर्शाया में  गया है ।


Essay # 5. सुनामी (Tsunami):

भूकम्प से उत्पन्न होने वाली ऊँची सागरीय लहरों को सुनामी कहते हैं । सुनामी लहरों की गति बहुत तीव्र होती है जो कभी 2400 किलोमीटर प्रति घंटा से अधिक हो जाती है । तटों के निकट पहुँचकर इन लहरों की ऊँचाई पाँच छह मीटर से अधिक हो जाती है जिन से भारी जान-माल का नुकसान होता है ।


Essay # 6. मेघ प्रस्फोट (Cloudburst):

16 जून, 2013 की हिमालायी सुनामी के रूप में जाने जाना वाला उत्तराखण्ड का वर्षा प्रस्फोट भारत के हाल के इतिहास में वर्षा प्रस्फोट की सबसे भयानक आपदाओं में से एक है ।

मेघ प्रस्फोट (Cloud Burst) अचानक होने वाली भारी बारिश है जिससे भयंकर बाढ़ (Flash-Flood) आ जाती है । वर्षा प्रस्फोट कभी-कभी ओले तथा गर्जन के साथ वर्षण (Precipitation) है, जो सामान्यता कुछ मिनटों में मूसलाध वर्षा करके जल्द समाप्त हो जाती है ।

परन्तु अत्यधिक वर्षा के कारण भारी बाढ़ आ जाती है । बाढ़ के अतिरिक्त वर्षा प्रस्फोट भूस्कलन (Landslides), बर्फीले तूफान, हिमस्सलन (Avalanches), मृदासर्पण (Solifluction), पंकवाह (Mudflow), भूवाह (Earthflow), मलबे की बौछार, शैलस्खलन, अवतलन (Subsidence), अवपतन (Slumps), भूमि सपर्ण (Soil-Creep) और व्यापक तबाही के रूप में विनाशकारी हालात पैदा करने की क्षमता रखता है ।

सामान्यतः वर्षा प्रस्फोट, कपासी-काले बादलों (Cumulous-Numbus Clouds) से होता है । ये बादल सागर स्तर से 15 किलोमीटर तक की ऊँचाई तक विकसित हो सकते हैं ।

कई वर्षा प्रस्फोटों में एक घंटे में से. मी. (5.2) इंच तक वर्षा हो सकती है । वर्षा की बून्दों का आकार बहुत बड़ा होता है । संक्षेप में अचानक भारी, अल्पकालिक और अक्सर पूर्वानुमान न की जा सकते काली (Unpredictable) बारिश का वर्णन करने के लिये वर्षा-प्रस्फोट शब्द का प्रयोग किया जाता है ।

वर्षा प्रस्फोट की विशेषता-वर्षा लैंगमुइर वर्षण (Langmuir-Precipitation) के नाम से जानी जाती है, जिसमें वर्षा की बूँदें गिरते समय आपस में टकरा कर बड़ी बूँदें बन जाती हैं । ऐसी बूँदें आकार में बड़ी होने के साथ तेजी से गिरती हैं । लैंगमुइर वर्षण प्रक्रिया केवल उन बादलों के लिये लागू होती है जो हिमांक बिन्दू (Freezing Point) से ऊपर होते हैं ।

वर्षा प्रस्फोट के बादल के सबसे ऊपर के भाग में तापमान 5 से.मी. से कम नहीं होता । ऐसे कपासी-काले बादलों (Cumulou-Rimbus) में विभिन्न आकार (Size) की बूँदें अलग-अलग वेग के साथ गिरती हैं, जिसके कारण वे पृथ्वी के धरातल की ओर आते हुये एक-दूसरे से टकरा कर और भी बड़े आकार की बन जाती हैं ।

बादल प्रस्फोट में बूँदों का आकार सामान्य से बहुत अधिक बड़ा होता है जो तीव्र गति एवं वेग के साथ गिरती हैं । बादल प्रस्फोट में कभी-कभी बूँदें इतने शोर के साथ गिरती हैं कि वह डरावनी भयानक एवं कष्टदायक हो जाती हैं ।

मौसम विज्ञानियों के अनुसार बादल प्रस्फोट में वर्षा की दर लगभग 10 सेमी. प्रति घंटा होती है । यह वर्षा कपासी-काले बादलों से होती है जिनकी पृथ्वी धरातल से लेकर कई किलोमीटर तक होती है । वर्षा प्रस्फोटन के दौरान चन्द मिनटों में 20 सेमी. से अधिक वर्षा हो जाती है ।

वर्षा प्रस्फोटन से जान-माल तथा सम्पत्ति का भारी नुकसान होता है जो प्रायः भयानक प्राकृतिक आपदा का रूप ले लेती है । उत्तराखण्ड में 16 जून, 2013 का आदल प्रस्फोट ने बडे पैमाने पर मन्दाकनी घाटी में जान-माल की हानि पहुँचाई थी सामाजिक मूलभूत ढाँचे (सड़कों, मार्गो इत्यादि) को भारी नुकसान पहुँचा था ।

यदि बादल प्रस्फोट की वर्षा की घंटों तक जारी रहे तो उससे अचानक भारी एवं भयंकर बाद आ जाती है, सड़कें टूट जाती हैं, मार्गों के स्थान पर, नाले-नालियाँ बन जाती है, जिससे परिवास तथा एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने में भारी बाधा पडती है । पशु-पक्षी पानी में बह जाते हैं, और चरम-मामलों में यह समूचे शहर को बहा ले जाती है ।

वर्ष 2013 की 16 जून, 2013 के बादल प्रस्फोट में मन्दाकनी नदी की घाटी में स्थिति, केदारनाथ, रामबाड़ा, गौरी कुण्ड इत्यादि को ऐसी बाद के प्रकोप को झेलना पडा था । इस त्रासदी (Tragedy) के प्रकोप और विनाश को देखते हुये इसको हिमालयी सुनामी (Himalaya Tsunami) का नाम दिया गया था । 16 जून, 2013 का बादल प्रस्फोट, भारत के हाल के इतिहास में सबसे बड़ी आपदाओं में से एक माना जाता है ।

बादल-प्रस्फोट (Cloud-Burst) प्रायः गर्मी के मौसम में होता है । खेती करने वाले समुदाओं में कभी-कभी उनका स्वागत भी किया जाता है क्योंकि इनसे होने वाली वर्षा से मुर्झाई एवं सूखी फसलें हरी-भरी हो जाती हैं । प्रभावित लोग ऐसे समय पर जान बचाकर नदी के बहाव से दूर पर्वतों की ऊँचे ढलानों की ओर पलायन करते हैं । (तालिका 10.30)

भारतीय उपमहाद्वीप में, वर्षा प्रस्फोट सामान्यतया तब होती है जब आर्द्रता मुक्त मानसूनी बादल (बंगाल की खाडी या अरब सागर से उठकर उत्तरी भारत की ओर अग्रसर होते हैं । यह आर्द्र मानसूनी हवायें हिमालय से टकराकर ऊपर उठती हैं और कभी-कभी प्रति घंटा 75 मि.मी. जैसी घनी बरसात करती हैं ।

उत्तराखंड बादल प्रस्फोट (हिमालयी सुनामी):

‘देवभूमि’ उत्तराखंड अपने भव्य हिमाच्छदित शिखरों सुन्दर जंगलों एवं विस्मयजनक कल-कल करती नदियों के कारण भारतीय संस्कृति में एक पवित्र प्रदेश माना जाता है । लाखों तीर्थयात्री एवं पर्यटक प्रतिवर्ष उत्तराखंड राज्य में श्रद्धा से आते हैं । इन सभी आकर्षणों के बावजूद उत्तराखंड राज्य अति संवेदनशील पारिस्थितिकी मण्डल (Ecosphere) है ।

उत्तराखंड में अचानक बादल-प्रस्फोट भूस्थलन बर्फीले तूफान और आकस्मिक बाढ़ जैसी आपदायें आती रहती हैं । किसी भी विकास परियोजना को तैयार करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिये कि प्राकृति को स्थान और आदर दोनों चाहिये ।

बादल-प्रस्फोट, भूस्खलन और आकस्मिक बाढ़ उत्तराखण्ड में लगभग प्रत्येक वर्ष घटित होती हैं । उत्तराखण्ड राज्य के आधुनिक इतिहास में 16 जून, 2013 का वर्ष बादल प्रस्फोट (Cloud Burst) एक अभूतपूर्व-विपदा थी । इस प्राकृतिक आपदा से जीवन संपत्ति फसलों और संरचनात्मक ढांचे को भारी नुकसान पहुँचा था ।

बहुत-से राजमार्गों के क्षतिग्रस्त होने पुल बह जाने बिजली व दूरभाष सेवाओं के ठप हो जाने होटलों व धर्मशालाओं के नष्ट हो जाने के कारण बहुत-सी ग्रामीण बस्तियों से संपर्क टूट गया था । बहुत-से लोग बाढ़ में डूब गये भारी जानी व माली नुकसान हुआ इसलिये इस आपदा को ‘हिमालयी सुनामी’ (Himalayan Tsunami) का नाम दिया गया था ।

उत्तराखण्ड वर्षा प्रस्फोट से भागीरथी, अलकनन्दा, खासतौर से मन्दाकनी नदी घाटियों के लगभग 48,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल को हानि पहुँची थी । इस आपदा में केदारनाथ तीर्थस्थल रामबाड़ा गौरी कुण्ड तथा गुप्तकाशी स्थलों एवं कस्बों को भारी नुकसान पहुँचा था  ।

बादल प्रस्फोट एक प्राकृतिक घटना एवं आपदा है । इस घटना में बहुत थोड़े समय में अत्यधिक वर्षा हो जाती है । 16 जून 2013 को उत्तराखण्ड में भारी विनाशकारी बादल प्रस्फोट हुआ था । पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी के विशेषज्ञों के अनुसार विपदा घटित होने की प्रतीक्षा में थी ।

पहाड़ों पर अवैध निर्माण, होटलों के रूप में जर्जर ढांचों की भारी संख्या में अबाधित वृद्धि, जिनका दिखावे के तौर पर रखरखाव किया जाता है तथा जंगलों को भारी मात्रा में काटना, बहुमंजिली इमारतों का निर्माण आदि इस त्रासदी के लिये उत्तरदायी माने जाते हैं । मानव के द्वारा प्राकृति से अत्यधिक छेड़छाड़ के कारण ही यह घटना घटित हुई थी ।

उत्तराखण्ड की नदियों पर 150 से अधिक बाँध बनाकर पन बिजली उत्पादन की योजनायें बनाई गई । निर्णयकर्ताओं और नियोजिकों ने उत्तराखण्ड को ‘ऊर्जा प्रदेश’ और भारत की ‘पर्यटक राजधानी’ के रूप में बदलने का महत्वकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया जो पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण के सिद्धान्तों के विरुद्ध है ।

इसके अतिरिक्त अंधाधुंध वनोन्मूलन, भवनों का अविवेकपूर्ण निर्माण, सड़क निर्माण के लिये चट्‌टानों को विस्फोट से उडाना, पर्यावरण कानूनों के क्रियान्वयन का अभाव और पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment) के उदासीनतापूर्ण क्रियान्वयन ने उत्तराखण्ड राज्य को आपदाओं एवं प्राकृतिक संकटों के प्रति संवेदनशील बना दिया है कि प्राकृतिक शक्तियों को मानवीय हस्तक्षेप के द्वारा वश में करना एक भ्रम है ।

भारत के सभी पर्वतीय क्षेत्रों के लिये एक धारणीय विकास (Sustainable Development) के लिये पारिस्थितिकी विज्ञान के सिद्धान्तों पर एक दीर्घकालीन नियोजन अपनाने की तत्काल आवश्यकता है ।

वर्षा प्रस्फोट विपदा का प्रबन्धन (Cloudburst Management):

वर्षा प्रस्फोट के घटित होने पर जीवन एवं संपत्ति की क्षति को कम करने के लिये निम्न उपाय करने से भारी लाभ हो सकता है:

(i) वैज्ञानिक एवं विश्वसनीय आँकड़ों पर आधारित पारिस्थितिकी संवेदनशील का सीमांकन करनी । नदियों में जल के अधिकतम एवं न्यूनतम जल-अपवाह को निर्धारित करना चाहिये ।

(ii) मौसम सम्बंधी सूचनाओं का उचित प्रबंध तथा प्रसारण करके लोगों में जागरूकता उत्पन्न करनी चाहिये ।

(iii) ग्रामीण एवं नगरीय बस्तियों के लिये सुरक्षित स्थानों का चयन करना चाहिये ।

(iv) सड़कों, मकानों की निर्माण तकनीकों व संरचनात्मक ढांचे के विकास के लिये अपनाई जाने वाली विधियों का व्यापक नवीकरण एवं पुनरीक्षण किया जाना चाहिये ।

(v) बांधों और सड़कों को बनाने के लिये किये जाने वाले विस्फोट पहाड़ों को कमजोर कर देते हैं और पेड़ों की जड़ों को हिला देते हैं । ऐसे विस्फोट रोके या न्यूनतम किये जाने चाहिये ।

(vi) नदी, पोखर, तालाबों के द्वारा अतिक्रमण पर सख्ती से प्रतिबंध लगाया जाना चाहिये ।

(vii) विकास और नियोजन में बड़े बांधों के स्थान पर लघु जल विद्युत परियोजनाओं को वरीयता दी जानी चाहिये ।

(viii) पर्वतीय भागों में अनुशासित पर्यटन पर बल दिया जाना चाहिये ।

(ix) दामोदर घाटी परियोजना के नमूने पर विकास की योजनायें बनानी चाहिये ।

(x) वाहनों की बहुतायत से प्रदूषण फैलता है, इसलिये पर्यावरण को बचाने के लिये वाहनों का उचित प्रबंधन करना चाहिये ।

(xi) हिमालय सुनामी जैसी त्रासदी से निपटने के लिये आपदा प्रबन्धन को सक्षम होना चाहिये और फौरन राहत के उपये करने चाहिये ।

(xii) संवेदशील क्षेत्रों में मनोरंजन केन्द्रों को इस प्रकार विकसित करना चाहिये कि उनका पारिस्थितिकी पर कम-से-कम प्रतिकूल प्रभाव पड़े ।

(xiii) प्राकृतिक आपदा का मुकाबला करने के लिये जरूरी संसाधनों और भौतिक आधारभूत ढांचे को मजबूत किया जाना चाहिये ।

(xiv) राहत और पुनर्वास उपायों में कोई भेद-भाव नहीं करना चाहिये ।

(xv) वर्षा-प्रस्फोट के बाद के उपायों में मलबे और पत्थरों के नीचे दबे लोगों को निकालने के लिये तुरन्त प्रभावी प्रबन्ध करने चाहिये ।

(xvi) पयर्टन धार्मिक स्थलों के आसपास अत्यधिक व अनियंत्रित विकास में भारी योगदान देता है । धार्मिक स्थलों से प्राधिकरण नहीं होने दिया जाना चाहियें ।

(xvii) प्रभावित क्षेत्रों में पीने के पानी खाने और दवाईयों का तुरन्त प्रबन्ध होना चाहिये । त्रासदी के बाद महामारी प्रबंधन करना चाहिये ।

(xviii) संवेदनशील स्थानों पर बहुमंजिली इमारतों के निर्माण की अनुमति नहीं होनी चाहिये । यदि ये कदम साथ-साथ उठाये जायें तो वर्षा प्रस्फोट त्रासदी को बहुत हद तक कम किया जा सकता है ।


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