लोकसभा पर निबंध | Essay on the Lok Sabha in Hindi.

Essay # 1. लोकसभा का प्रारम्भ (Introduction to Lok Sabha):

लोकसभा भारतीय संसद का निम्न सदन कहलाता है, जिसमें जनता का प्रतिनिधित्व होता है । इसके सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से गुप्त मतदान द्वारा चुने जाते हैं । भारतीय मूल संविधान में इसके सदस्यों की संख्या 500 निश्चित की गई थी लेकिन समय-समय पर इस संख्या में परिवर्तन होता रहा है ।

31वें संविधान संशोधन के द्वारा लोकसभा के सदस्यों की संख्या 545 निश्चित की गई, परंतु 1987 के गोवा, दमन और दीव पुनर्गठन अधिनियम द्वारा यह निश्चित किया गया कि लोकसभा की अधिकतम संख्या 552 हो सकती है जिसमें राज्यों के 530 सदस्य तथा संघ राज्य क्षेत्रों से 20 सदस्य तथा दो सदस्य राष्ट्रपति द्वारा एंग्लो-इंडियन समुदाय से मनोनीत किए जा सकते हैं । इसके साथ-साथ इसमें अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए कुछ सीटों का आरक्षण भी किया गया है ।

लोकसभा के सदस्यों का चुनाव जनता द्वारा प्रत्यक्ष तौर पर किया जाता है । भारत का प्रत्येक नागरिक जिसकी आयु 18 वर्ष की है, वोट देने का अधिकारी है । चुनाव के लिए समस्त देश को उतने ही चुनाव क्षेत्रों में बांट दिया जाता है, जितने सदस्य चुनने होते हैं । लोकसभा के स्थान विभिन्न राज्यों में जनसंख्या के आधार पर बांटे जाते हैं और यह प्रयास किया जाता है कि राज्यों के प्रतिनिधि तथा राज्य की जनसंख्या में एकरूपता हो ।

Essay # 2. लोकसभा के सदस्यों की योग्यताएं (Lok Sabha Members’ Qualifications):

ADVERTISEMENTS:

लोकसभा के सदस्य बनने के लिए निम्नलिखित योग्यताएँ होनी जरूरी हैं:

1. वह भारत का नागरिक हो ।

2. वह 25 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो ।

सदस्यों के लिए अयोग्यताएँ (Disqualifications for Members):

ADVERTISEMENTS:

1. यदि वह सरकार के अधीन किसी लाभ के पद पर आसीन हो ।

2. यदि वह पागल हो ।

3. यदि वह दिवालिया हो ।

4. भारत का नागरिक नहीं हो ।

ADVERTISEMENTS:

5. संसद की किसी विधि के द्वारा अयोग्य हो ।

कार्यकाल (Tenure):

मूलरूप से लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष था, लेकिन 42वें संविधान संशोधन द्वारा लोकसभा का कार्यकाल 6 वर्ष कर दिया गया परंतु 44वें संशोधन के द्वारा इसका कार्यकाल पुन पांच वर्ष कर दिया गया । अतः अब लोकसभा का कार्यकाल पांच वर्ष का है ।

आपातकाल में संसद स्वयं विधि द्वारा इसके कार्यकाल में एक बार में एक वर्ष तक की वृद्धि कर सकती है । 1976 में लोकसभा का कार्यकाल दो बार एक-एक वर्ष के लिए बढ़ाया गया था । प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति लोकसभा को पांच वर्ष से पूर्व भी भंग कर सकता है ।

लोकसभा का अधिवेशन राष्ट्रपति द्वारा ही बुलाए तथा स्थगित किये जाते हैं । इस संबंध में यह नियम है कि लोकसभा की दो बैठकों में 6 माह से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए । लोकसभा तथा राज्यसभा दोनों की गणपूर्ति इसकी कुल संख्या का दसवां भाग होना चाहिए ।

Essay # 3. लोकसभा अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष (Speaker and Vice President of Lok Sabha):

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 93 में लोकसभा के अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष के पदों की व्यवस्था की गई है । अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव लोकसभा की प्रथम बैठक में लोकसभा के सदस्यों द्वारा लोकसभा के सदस्यों में से ही किया जाता है । अध्यक्ष लोक सभा की अध्यक्षता करता है और उसकी अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष अध्यक्षता करता है ।

प्रायः देखा जाता है कि अध्यक्ष सत्तारूढ दल से तथा उपाध्यक्ष प्रमुख विपक्षी दल से संबंधित होता है लेकिन किसी भी लोकसभा अध्यक्ष से यह आशा की जाती है कि वह दलगत राजनीति से ऊपर उठकर निष्पक्ष रूप से सदन के ‘विवेक प्रहरी’ की तरह कार्य करे ।

लोकसभा के अध्यक्ष (स्पीकर) का कार्यकाल उसके निर्वाचन से लेकर लोकसभा के विघटन के पश्चात् नव-निर्वाचित लोकसभा की प्रथम बैठक के ठीक पूर्व तक होता है । नवीन लोकसभा की बैठक की अध्यक्षता वह नहीं कर सकता । अध्यक्ष को 14 दिन की पूर्व सूचना पर एक संकल्प द्वारा लोकसभा के तत्कालीन सदस्यों के बहुमत द्वारा प्रस्ताव पारित करके पद से हटाया जा सकता है ।

सदस्यता का अंत:

कुछ विशेष अवस्थाओं में लोकसभा के सदस्यों की सदस्यता का अंत हो जाता है, जिनमें से निम्नलिखित अवस्थाएं हैं:

1. यदि कोई सदस्य 60 दिन से अधिक लोकसभा के अधिवेशन से अनुपस्थित रहे और उसने इसकी पूर्वानुमति न ली हो, तो उसकी सदस्यता समाप्त की जा सकती है ।

2. निर्वाचन के पश्चात् यदि सदस्य सरकारी नौकरी प्राप्त कर ले या फिर सरकार से आर्थिक लाभ प्राप्त करने लगे ।

3. अगर कोई व्यक्ति कई निर्वाचन क्षेत्रों से लोकसभा का सदस्य चुना जाता है तो वह केवल एक निर्वाचन-क्षेत्र का ही सदस्य रह सकेगा । अन्य क्षेत्रों की सदस्यता समाप्त की जाती है ।

4. यदि कोई व्यक्ति लोकसभा तथा राज्य की किसी विधानसभा आदि का सदस्य बन जाए तो उसे किसी एक स्थान से त्याग-पत्र देना होगा ।

5. स्वयं अध्यक्ष को लिखकर सदन की सदस्यता से त्याग-पत्र देना ।

लोकसभा स्पीकर के कार्य व शक्तियाँ (Functions and Power of the Speaker of Lok Sabha):

लोकसभा के अध्यक्ष स्पीकर का कार्य अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि संसद की संपूर्ण कार्यवाही का सफल संचालन उसी के द्वारा किया जाता है ।

अध्यक्ष के महत्वपूर्ण कार्यों का वर्णन निम्न प्रकार से किया जा सकता है:

1. बैठकों की अध्यक्षता करता है:

स्पीकर का सबसे महत्वपूर्ण कार्य बैठकों की अध्यक्षता करना व सदन में अनुशासन व व्यवस्था बनाए रखना है । उसके द्वारा ही बैठक के प्रारंभ और समापन का समय निश्चित किया जाता है । उसके द्वारा दी गई आज्ञा का पालन सभी सदस्य करते हैं ।

2. संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता:

संविधान के अनुसार जब सदनों में किसी विधान के विषय में मतभेद उत्पन्न हो जाते हैं तो अनुच्छेद-108 के तहत संयुक्त बैठक बुलाई जाती है, जिसकी अध्यक्षता स्पीकर द्वारा की जाती है ।

3. सदन की बैठक स्थगित करना:

संविधान के द्वारा अध्यक्ष को सदन की बैठक स्थगित करने की शक्ति प्राप्त है । यदि सदन में गंभीर अव्यवस्था उत्पन्न हो जाए या फिर सदन के सदस्यों की गणपूर्ति न हो तो सदन की बैठक स्थगित की जाती है ।

4. धन विधेयक का निर्णय:

कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं इसका निर्णय प्रायः अध्यक्ष द्वारा ही किया जाता है । यदि अध्यक्ष किसी विधेयक के विषय में यह निर्णय दे कि यह धन विधयेक है तो उसका निर्णय अंतिम होगा ।

5. नेता से परामर्श:

स्पीकर लोकसभा का अध्यक्ष होता है, जबकि प्रधानमंत्री लोकसभा का नेता होता है । स्पीकर सदन के नेता से परामर्श करके सरकारी कार्य का क्रम निर्धारित करता है, जैसे कि उन बिलों का क्रम क्या हो जिन्हें सदन में रखा जाना है, आदि ।

6. व्यवस्था बनाये रखना:

सदन में अनुशासन और व्यवस्था बनाये रखना प्रायः स्पीकर का महत्वपूर्ण कार्य है । यदि कोई सदस्य व्यवस्था गा करता है तो अध्यक्ष उसके विरुद्ध कार्यवाही करते हुए उसे सदन से बाहर भेज सकता है । इसके अतिरिक्त असंसदीय भाषा का प्रयोग करने वाले सदस्यों के विरुद्ध भी कार्यवाही करता है ।

7. सर्वोच्च अधिकारी:

अध्यक्ष, लोकसभा में सर्वोच्च अधिकारी है । लोकसभा में दिये जाने वाले भाषण अध्यक्ष को संबोधित करके दिये जाते है । अध्यक्ष के द्वारा ही भाषणों का समय निश्चित किया जाता है ।

विविध कार्य:

इसके अतिरिक्त विविध प्रकार के कार्यों का सम्पादन स्पीकर द्वारा किया जाता है:

1. सदन में किसी विषय पर पक्ष तथा विपक्ष के मत समान होते हैं तो अध्यक्ष पक्ष अथवा विपक्ष में अपना मत देता है, जिसे निर्णायक मत कहते हैं ।

2. अध्यक्ष किसी भी सदस्य को अपने विवेक के आधार पर उसे अपनी मातृ-भाषा में बोलने का अधिकार प्रदान कर सकता है ।

3. अध्यक्ष सदन में राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करता है ।

4. लोकसभा की समितियाँ जैसे ‘कार्यमंत्रणा समिति’, ‘सामान्य प्रयोजनने समिति’ और ‘नियम समिति’ अध्यक्ष के नेतृत्व में ही काम करती है और अध्यक्ष ही इनका सभापति होता है ।

5. अध्यक्ष विधेयकों तथा संकल्पों में प्रस्तावित संशोधनों को पटल पर रखता है ।

6. वह सदन के सदस्यों के अधिकारों की रक्षा करता है ।

7. लोकसभा के प्रक्रिया एवं नियमों से संबंधित मामलों में अध्यक्ष को पूर्ण अधिकार मिले हुए हैं ।

8. राष्ट्रपति तथा संसद के मध्य संपूर्ण पत्र-व्यवहार अध्यक्ष द्वारा ही होता है ।

लोकसभा अध्यक्ष:

नाम:

1. गणेश वासुदेव मावलंकर

2. एम॰ अनन्तशयनम आयंगर

3. एम. अनन्तशयनम आयंगर

4. हुकुम सिंह

5. नीलम संजीव रेड्‌डी

6. डा॰ गुरु दयाल सिंह ढिल्लों

7. डा॰ गुरु दयाल सिह ढिल्लों

8. बलीराम भगत

9. नीलम संजीव रेड्‌डी

10. के॰ एस॰ हेगडे

11. डा॰ बलराम जाखड़

12. डा॰ बलराम जाखड

13. रवि राय

14. शिव राज पाटिल

15. पी॰ ए॰ संगमा

16. जी॰ एम॰ सी॰ बालयोगी

17. जी॰ एम॰ सी॰ बालयोगी

18. मनोहर जोशी

19. सोमनाथ चटक

20. मीरा कुमार

21. सुमित्रा महाजन

कार्यकाल:

1. 15 मई, 1952 से 27 फरवरी 1956

2. 8 मार्च, 1956 से 10 मई, 1957

3. 11 मई, 1957 से 16 अप्रैल, 1962

4. 17 अप्रेल, 1962 से 16 मार्च, 1967

5. 17 मार्च. 1967 से 19 जुलाई, 1969

6. 8 अगस्त, 1969 से 17 मार्च, 1971

7. 22 मार्च, 1971 से 1 दिसम्बर, 1975

8. 15 जनवरी, 1976 से 25 मार्च, 1977

9. 26 मार्च, 1977 से 13 जुलाई, 1977

10. 21 जुलाई, 1977 से 21 जनवरी, 1980

11. 22 जनवरी, 1980 से 15 जनवरी, 1985

12. 16 जनवरी, 1985 से 18 दिसम्बर, 1989

13. 19 दिसम्बर, 1989 से 9 जुलाई, 1991

14. 10 जुलाई, 1991 से 22 मई, 1996

15. 23 मई, 1996 से 23 मार्च, 1998

16. 24 मार्च, 1998 से 19 अक्तूबर, 1999

17. 22 अक्तूबर, 1999 से 3 मार्च, 2002

18. 10 मई, 2002 से 2 जून, 2004

19. 4 जून, 2004 से 31 मई, 2009

20. 4 जून, 2004 से 4 जून, 2014

21. 6 जून, 2014 से अब तक

Essay # 4. लोकसभा की शक्तियाँ एवं कार्य (Powers and Functions of the Lok Sabha):

लोकसभा लोकप्रिय सदन है क्योंकि इसके सदस्यों का चुनाव जनता द्वारा प्रत्यक्ष निर्वाचन के आधार पर किया जाता है । लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल द्वारा ही सरकार बनाई जाती है, जिसका नेतृत्व प्रधानमंत्री करता है । इस दृष्टि से लोकसभा संसद की सबसे महत्वपूर्ण इकाई है । प्रायः लोकसभा द्वारा जिन शक्तियों व कार्यों का प्रयोग किया जाता है, वही संसद की शक्तियाँ एवं कार्यों के रूप में जानी जाती हैं ।

लोकसभा को प्राप्त शक्तियों और कार्यों का वर्णन निम्न रूपों में किया जोता है:

1. विधायी शक्तियों:

लोकसभा संसद का महत्वपूर्ण अंग है । संसद को प्राप्त विधायी शक्तियों का प्रयोग व्यवहार में लोकसभा के द्वारा ही किया जाता है । लोकसभा की इच्छा के विरुद्ध कोई कानून पास नहीं किया जा सकता । लोकसभा संघीय सूची और समवर्ती सूची में दिए गए विषयों पर राज्यसभा के साथ मिलकर कानून बनाती है ।

यदि किसी राज्य में संवैधानिक व्यवस्था फेल हो जाए तो उस राज्य के लिए कानून लोकसभा में ही बनाए जाते हैं । हालांकि साधारण विधेयक संसद के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है, परंतु महत्वपूर्ण विधेयक लोकसभा में ही प्रस्तुत किये जाते हैं ।

लोकसभा की स्वीकृति के पश्चात विधेयकों को राज्यसभा में भेजा जाता है । राज्यसभा की स्वीकृति के पश्चात उन्हें राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाता है । यदि राज्यसभा विधेयक को पास न करे या फिर छ: मास तक उस पर कोई कार्यवाही न करे तो राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुलाता है, जिसमें लोकसभा का अध्यक्ष सभापतित्व करता है ।

ऐसे अधिवेशन में लोकसभा की ही विजय होती है, क्योंकि उसके सदस्यों की सज्जा राज्यसभा के सदस्यों की संख्या से दोगुनी होती है । अतः इस प्रकार की बैठक में विधेयक के भाग्य का निर्णय लोकसभा की इच्छानुसार ही होता है ।

2. संविधान संशोधन शक्ति:

संविधान के अनुच्छेद 368 के अनुसार लोकसभा संविधान में संशोधन करने के लिए प्रस्ताव पास कर सकती है, लेकिन संविधान में तब तक संशोधन नहीं हो सकता, जब तक राज्यसभा निश्चित बहुमत से उस प्रस्ताव को पास न कर दे ।

लोकसभा राज्यसभा से मिलकर ही संविधान में संशोधन कर सकती है । संविधान संशोधन के संबंध में लोकसभा और राज्यसभा की शक्तियाँ समान हैं, परंतु संविधान में यह स्पष्ट नहीं है कि यदि दोनों सदनों में किसी विधेयक पर गतिरोध उत्पन्न हो जाए तो उसे कैसे दूर किया जाए ।

3. न्यायिक शक्तियाँ:

लोकसभा को कुछ न्यायिक शक्तियाँ भी प्राप्त होती है । राष्ट्रपति के विरूद्ध महाभियोग में संसद के दोनों सदनों में से एक आरोप लगाता है तथा दूसरा सदन जांच करके दो तिहाई बहुमत से निर्णय देता है । यदि दोनों सदन महाभियोग का प्रस्ताव पास कर दें तो राष्ट्रपति को त्याग-पत्र देना पड़ता है । उप-राष्ट्रपति के विरुद्ध आरोप लगाने का अधिकार केवल राज्यसभा को है, परंतु उसमें निर्णय देने का अधिकार लोकसभा को है ।

लोकसभा राज्यसभा के साथ मिलकर सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को महाभियोग द्वारा हटा सकती है । लोकसभा राज्यसभा के साथ मिलकर मुख्य चुनाव आयुक्त, महान्यायवादी तथा नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के विरुद्ध दोषारोपण के प्रस्ताव पास कर सकती है ।

ऐसा प्रस्ताव पास होने पर राष्ट्रपति संबंधित अधिकारी को हटा सकता है । इसके साथ-साथ लोकसभा उस व्यक्ति अथवा संस्था को भी दंड दे सकती है जो इसके विशेषाधिकार का उल्लंघन करते हैं ।

4. निर्वाचक मंडल के रूप में कार्य:

लोकसभा द्वारा निर्वाचक मंडल के रूप में कुछ कार्यों का भी निर्वाह किया जाता है । लोकसभा के अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष का चुनाव लोकसभा के द्वारा किया जाता है । इसके अतिरिक्त संविधान के अनुच्छेद 54 के अनुसार वह राज्यसभा के सदस्यों तथा राज्य विधानसभाओं के सदस्यों के साथ मिलकर राष्ट्रपति का निर्वाचन करता है । उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में भी लोकसभा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है ।

5. वित्तीय शक्ति:

संविधान के अनुसार लोकसभा को वित्त पर पूरा नियंत्रण प्राप्त होता है । अनुच्छेद 109 के अनुसार धन विधेयक लोकसभा में ही प्रस्तुत किये जा सकते हैं और उसी के द्वारा वार्षिक बजट पास किया जाता है । सब प्रकार के खर्चों की रैंचीकृति भी वही प्रदान करता है ।

बजट तथा वित्तीय विधेयकों को केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है । लोकसभा में पास होने के पश्चात् ऐसे विधयेक राज्यसभा में भेजे जाते हैं । इस संबंध में राज्यसभा को बहुत अधिक शक्तियां प्राप्त नहीं हैं । राज्यसभा को 14 दिन के अंदर ऐसे विधेयकों को अपनी सिफारिशों सहित वापस करना पड़ता है ।

यदि राज्यसभा इनको 14 दिन के अंदर वापस न करे या किन्हीं ऐसी सिफारिशों के साथ वापस करे जो लोकसभा को स्वीकार न हो तो लोकसभा उन विधेयकों को उसी रूप में, जिसमें उसने पहले पास किया था, राष्ट्रपति को स्वीकृति के लिए भेज देता है । राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने पर यह विधेयक दोनों सदनों से पास किया हुआ समझा जाता है ।

6. कार्यकारिणी पर नियंत्रण की शक्ति:

संसदीय शासन प्रणाली के अधीन मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होता है । लोकसभा के सदस्य मंत्रियों तथा उनके कार्यों के संबंध में प्रश्न पूछ सकते हैं तथा संबंधित मंत्री को उनका उत्तर देना पड़ता है ।

लोकसभा के सदस्य सरकार के किसी भी कार्य की कडी आलोचना कर सकते हैं तथा उसके संबंध में प्रस्ताव भी पास कर सकते है । लोकसभा मंत्रिपरिषद के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव भी पास कर सकती है, जिससे मन्त्रिपरिषद को त्याग-पत्र देना पड़ता है । मन्त्रिमंडल में अधिकांश सदस्य लोकसभा से लिए जाते हैं ।

निम्नलिखित साधनों के द्वारा लोकसभा कार्यपालिका पर नियंत्रण बनाये रखती है:

(i) प्रश्न काल:

लोकसभा के अधिवेशन के दिनों में प्रतिदिन प्रश्नों का एक घंटा निश्चित होता है । सदस्य नियमानुसार मंत्रियों से कोई प्रश्न पूछ सकते है । मंत्रियों को इन प्रश्नों का उत्तर देना पड़ता है ।

(ii) स्थगन प्रस्ताव:

कोई भी सदस्य किसी सार्वजनिक महत्व वाले विषय पर बहस करने के लिए स्थगन प्रस्ताव पेश कर सकता है । यदि अध्यक्ष उस प्रस्ताव को दाखिल कर ले, तो सदन की कार्यवाही रोक कर सदन उस विषय पर बहस करता है । ऐसी बहस के समय मंत्रियों की आलोचना की जाती है ।

(iii) ध्यानाकर्षण प्रस्ताव:

यदि सदन का कोई सदस्य सदन का ध्यान किसी महत्वपूर्ण घटना की ओर आकर्षित करना चाहता हो, तो वह ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पेश कर सकता है । ऐसे प्रस्ताव प्रायः मंत्रियों का ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रस्तुत किये जाते हैं ।

(iv) अविश्वास प्रस्ताव:

यदि लोकसभा समस्त मंत्रिपरिषद के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पास कर दे, तो मंत्रिपरिषद को त्याग-पत्र देना पड़ता है । इसके अतिरिक्त कार्यपालिका पर नियंत्रण की शक्ति के अंतर्गत ही लोकसभा संघ लोक सेवा आयोग, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक, वित्त आयोग, अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग आदि की रिपोर्ट पर विचार करता है ।

विविध कार्य:

उपरोक्त शक्तियों के अतिरिक्त लोकसभा के द्वारा विविध कार्यों को पूरा किया जाता है:

1. लोकसभा राज्यसभा के साथ मिलकर राष्ट्रपति द्वारा घोषित आपातकलीन घोषणाओं को स्वीकार अथवा रद्द करता है ।

2. लोकसभा राज्यसभा के साथ मिलकर सर्वोच्च तथा उच्च न्यायालयों के अधिकार-क्षेत्रों में परिवर्तन कर सकता है ।

3. लोकसभा राज्यसभा के साथ मिलकर राष्ट्रपति पर महाभियोग लगा सकता है ।

4. लोकसभा राज्यसभा के साथ मिलकर दो या दो से अधिक राज्यों के लिए संयुक्त लोक सेवा आयोग या उच्च न्यायालय की स्थापना कर सकता है ।

5. लोकसभा राज्यसभा के साथ मिलकर संघ में नए राज्यों को सम्मिलित करती है, राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं तथा नामों में परिवर्तन कर सकती है ।

यह उच्च अथवा द्वितीय सदन है । इसमें राज्यों का प्रतिनिधित्व होता है । राज्यों का प्रतिनिधित्व समानता के आधार पर नहीं है, अपितु जनसंख्या के आधार पर होता है । बडे राज्यों के प्रतिनिधि अधिक तथा छोटे राज्यों के कम प्रतिनिधि होते हैं । संविधान के अनुच्छेद 80 के अनुसार राज्य-सभा के सदस्यों की अधिकतम सच्चा 250 हो सकती है ।

इनमें से 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा ऐसे लोगों में से मनोनीत किए जाते हैं, जिन्हें कला, साहित्य, विज्ञान और सामाजिक सेवा के संबंध में विशेष ज्ञान व अनुभव हो । शेष 238 सदस्यों का निर्वाचन प्रत्येक राज्य की विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति की एकल संक्रमणीय मत प्रणाली द्वारा किया जाता है । संघ राज्य-क्षेत्रों के प्रतिनिधि उस विधि से निर्वाचित होते हैं, जिसे संसद विधि द्वारा निर्धारित करे ।

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