फैशन की दुनिया पर निबंध! Here is an essay on ‘World of Fashion’ in Hindi language.
”जो आग हैं, जैसा आप इस क्षण महसूस करते हैं और जो आप में चल रहा है, वही फैशन द्वारा प्रतिबिम्ब होना चाहिए ।”
फैरेल विलियम्स ने फैशन को इन्हीं शब्दों में परिभाषित किया है । ”मेरी प्रगति या अगति का यह, मापदण्ड बदलो तुम । मैं अभी अनिश्चित हूँ ।” ‘दुष्यन्त कुमार’ की ये पंक्तियाँ समय के साथ तेजी से बदलते फैशन के सन्दर्भ में सही प्रतीत होती है ।
सचमुच फैशन की दुनिया इतनी परिवर्तनशील होती है कि जो पहनावा आज प्रचलित है, हो सकता है वह कुछ दिनों के बाद प्रचलन में न हो । वैश्वीकरण के इस दौर में यूरोप के रहन-सहन का प्रभाव थे विश्व पर पड़ा है आज पूरे विश्व में यूरोप के पहनावे को प्राथमिकता दी जाती है । भारत जैसा विकासशील देश भी भला इससे कैसे अछूता रह सकता है ।
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मेट्रो, मॉल और मल्टीप्लेक्स के बढ़ते कल्वर ने भारत के युवा वर्ग में फैशन की नई चाह पैदा कर दी है । मीडिया ने भी फैशन को अत्यधिक प्रभावित किया है । आज लोग फिल्म में और टेलीविजन देखकर अपने पसन्दीदा कलाकारों की वेश-भूषा को अपनाना चाहते हैं ।
बदलते प्रचलन के अनुरूप कपड़े डिजाइन करने वाले को फैशन डिजाइनर कहा जाता है । वह कपडे की बनावट, रंग एवं व्यक्ति पर इसके विशेष प्रभाव कीं कल्पना करने में सक्षम होता है किस व्यक्ति पर किस प्रकार के कपडे अच्छे लगेंगे वह इसका भी अनुमान आसानी से लगा लेता है, इसलिए सिनेमा जगत् के कलाकार पर्दे पर अधिक खूबसूरत दिखने के लिए अपना अलग फैशन डिजाइनर नियुक्त करते है ।
रितु कुमार, रितु बेरी, मुजफ्फर अली, सत्या पॉल, तरुण बालिया, मनीष मल्होत्रा, नीता लूला, रोहित बल इत्यादि भारत के कुछ प्रसिद्ध फैशन डिजाइनर है । फैशन डिजाइनर, संस्कृति एवं सामाजिक व्यवहार से प्रभावित होकर कपड़े डिजाइन करते है सभी फैशन डिजाइनरों का उद्देश्य कपड़ों के माध्यम से उपभोक्ता के सौन्दर्य में वृद्धि कर उन्हें सन्तुष्ट करना होता है ।
कपड़ों को डिजाइन करते समय इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि उन्हें किस मौसम में या किस अवसर पर पहनना है । जाड़े के कपडों और गर्मी के कपडों में काफी अन्तर होता है । शादी अथवा पार्टी आदि अक्सरों पर पहने जाने वाले कपड़े विशेष तौर से आकर्षक बनाए जाते हैं । सभ्यता की शुरूआत के साथ ही फैशन की शुरूआत मानी जा सकती है सभ्यता-संस्कृति में परिवर्तन के साथ ही लोगों के पहनावे में अन्तर देखने को मिलता है ।
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फैशन के अन्तर्गत पहनावा ही नहीं, बल्कि आचार एवं व्यवहार भी समाहित है ‘सर फ्रांसिस बेकन’ ने फैशन को परिभाषित करते हुए कहा है- ”यह जीवित रूपों और सामाजिक व्यवहार में कला को साकार करने का प्रयास मात्र है ।” प्राचीनकाल से ही भारत के दूसरे देशों से व्यापारिक सम्बन्ध रहे हैं और उस समय भी विदेशों में भारतीय कपडे लोकप्रिय थे ।
भारतीय सूती, मलमल एवं रेशम के कपड़े यूरोप के देशों में लोकप्रिय थे । यूरोप में आई ओद्योगिक क्रान्ति और अंग्रेजों के भारत पर अधिकार के कारण भारतीय कपडा उद्योग की स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा । इन सबके बावजूद भारतीय कपड़ों की विशिष्टता एवं आकर्षण के कारण ये पूरी दुनिया में आज भी लोकप्रिय हैं ।
वैश्वीकरण के कारण अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में वृद्धि हुई है और एक देश की संस्कृति ने दूसरे देश की संस्कृति को प्रभावित किया है । पिछले कुछ वर्षों में भारतीय पहनावे को अन्तर्राष्ट्रीय पहचान मिली है । इस समय भारतीय कपड़ों के मुख्य बाजार संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, इटली, रूस, कनाडा इत्यादि देश हैं ।
देश में विदेशी फैशन के आने से पूर्व यहाँ के स्त्री वर्ग में चोली, सलवार-कमीज और साडी का, जबकि पुरुष वर्ग में धोती, कुर्ता, लुगी और पायजामा का प्रचलन था, किन्तु आज यहाँ के लोग इन परम्परागत वस्त्रों की जगह रंग-बिरंगी टी-शर्ट, टॉप और जीन्स आदि पहनना अच्छा और सुबिधाजनक समझते हैं ।
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आज फैशन विश्वभर में एक उद्योग का रूप ल चुका है । आज भारतीय फैशन उद्योग का देश के कुल औद्योगिक उत्पादन में 14% हिस्सा है सकल घरेलू उत्पाद का 8% इसी उद्योग से प्राप्त होता है । भारतीय फैशन उद्योग 38 मिलियन लोगों को रोजगार प्रदान करता है । भारत के कुल निर्यात में इसका 21% हिस्सा है ।
मुम्बई, दिल्ली, चेन्नई, बंगलुरु हैदराबाद, पुणे एवं लखनऊ शहर इस उद्योग के लिए विशेष तौर से जाने जाते है । फैशन डिजाइनिंग व टेक्सटाइल डिजाइनिंग जैसे कोर्स करने के बाद लगभग समीडिजाइनरों को रोजगार मिल जाता है ।
आज हमारे देश में इस क्षेत्र की कई अग्रणी और बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपने रिटेल आउटलेट देशभर में प्रस्तुत कर रही हैं और इसका सीधा अर्थ है- इस क्षेत्र में रोजगार के ढेरों अवसरों का उपलब्ध होना । किसी प्रतिष्ठित संस्थान से फैशन एवं टेक्सटाइल डिजाइन का कोर्स पूरा करने के बाद भारत सरकार के कपड़ा मन्त्रालय के अधीन सरकारी नौकरी मिलने की भी पूरी सम्भावना रहती है ।
फैशन व टेक्सटाइल के क्षेत्र में डिजाइनरों के लिए न सिर्फ एक्सपोर्ट हाउस, कपड़ा मिल, डिजाइन स्टूडियो और गैर-सरकारी संगठनों में रोजगार के पर्याप्त अवसर मौजूद रहते हैं, बल्कि एक स्वतन्त्र डिजाइनर के रूप में कार्य की शुरूआत कर एक उद्यमी के रूप में करियर बनाने का बेहतर विकल्प भी मौजूद रहता है ।
फैशन के बढ़ते प्रचार-प्रसार को देखते हुए भारत के कई सरकारी व निजी संस्थानों में इससे सम्बन्धित पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैं । इण्डियन स्कूल ऑफ बिजनेस (आईएबी) ने वर्ष 2006 में फैशन व्यापार का पालक्रम शुरू किया । वर्ष 2008 में फैशन फाउण्डेशन ऑफ इण्डिया (एफएफआई) की स्थापना की गई, जिसका उद्देश्य भारतीय फैशन उद्योग को विश्वस्तरीय बनाना है ।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (निफ्ट) एवं इण्डियन इस्टीटूयूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (आईआईएफटी) भारत में फैशन डिजाइनिंग की शिक्षा देने वाले अग्रणी संस्थान हैं । इधर कई वर्षों से फैशन डिजाइन काउंसिल ऑफइण्डिया ने भी भारतीय फैशन उद्योग को काफी बढावा दिया है ।
देश के फैशन डिजाइनरों को इसके माध्यम से अपने हुनर के प्रदर्शन के लिए मच दिए जा रहे हैं । कपड़ा मन्त्रालय एवं अन्य सम्बन्धित सरकारी निकाय के द्वारा फैशन उद्योग को मदद दी जा रही है । आज भारत में कृषि उद्योग के बाद फैशन उद्योग ही सबसे बड़ा उद्योग है आज भारत कपास उत्पादन के क्षेत्र में विश्व का तीसरा, सिल्क के क्षेत्र में दूसरा और मानव निर्मित रेशों के क्षेत्र में पाँचवाँ सबसे बड़ा उत्पादक देश है वर्तमान समय में हमारे देश में फैशन शो एवं फैशन वीक का चलन भी तेजी से बढता जा रहा है ।
भारत में वर्ष 1932 में पहली बार ताज होटल में फैशन शो का आयोजन हुआ था । ‘फेमिना ग्रूप’ द्वारा मिस इण्डिया प्रतियोगिता की शुरूआत वर्ष 1982 में की गई थी । तब से लेकर आज तक भारत की कितनी ही सुन्दरियों ने मिस वर्ल्ड और मिस यूनिबर्स का खिताब जीता है ।
आज पूरे विश्व पर पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के बावजूद भारतीय फैशन की माँग विदेशों में बढ़ती जा रही हे । अतः भारत सरकार को नई-नई योजनाओं का गठन करके भारतीय फैशन उद्योग को और बढ़ावा देने की आवश्यकता है । तभी हम आने वाले समय में न्यूयॉर्क स्थित फिक्यू एवेन्यू और लन्दन स्थित फैशन स्ट्रीट की तरह भारत में भी फैशन स्ट्रीट की कल्पना कर सकते है ।
आज हम सभी भारतीयों को ‘बिल कनिंघम’ की तरह फैशन के बारे में सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है । उन्होंने फैशन को मानव के प्रत्येक दिन के जीवन की वास्तविकता की रक्षा करने वाला कवच कहा है ।