पूर्ण अधिकार पर एडमंड बर्क का भाषण । Speech of Edmund Burke on “The Absolute Right” in Hindi Language!

एडमण्ड बर्क ब्रिटिश सांसद और राजनीतिक विचारक थे । उन्होंने सन् 1788 में वारेन हस्टिंग्स के महाभियोग के मामले में अदालत में यह भाषण दिया था । आदरणीय लोर्ड्स, आपने उन सिद्धान्तों को सुना जिनके आधार पर वारेन हेस्टिंग्स ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन एशिया के भूभाग पर आधिपत्य बनाये हुए हैं ।

अपने विचार प्रस्तुत करते हुए उन्होंने घोषणा की है कि वह अपनी इच्छा के अनुरूप कार्य करने वाले शासक थे और निरंकुश अधिकारों का प्रयोग करते रहे हैं । उन्होंने अपने सभी कामों को इस ढाल के पीछे छिपा लिया है । उनका कहना है: ‘मैं एशिया के संविधान को केवल अपने कार्य करने के दस्तुर से जानता हूं ।’

क्या आप यह सुनना उचित समझेंगे कि व्यक्ति के भ्रष्ट कार्य शासन के सिद्धान्त बनाते हैं ? उनके पास स्वेच्छाचारी अधिकार थे । आदरणीय लॉर्ड्स ईस्ट इण्डिया कम्पनी के पास उन्हें देने के लिए कोई निरंकुश अधिकार नहीं थे । सम्राट के पास भी उन्हें देने को निरंकुश अधिकार नहीं थे । आप सम्माननीय लॉर्ड्स के पास सांसदों के पास या समस्त विधायिका के पास भी उन्हें देने को ऐसे निरंकुश अधिकार नहीं हैं ।

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हमारे पास किसी को देने के लिए कोई निरंकुश अधिकार नहीं हैं; क्योंकि निरंकुश अधिकार ऐसी वस्तु है जो न तो किसी व्यक्ति के पास हो सकती है, न ही वह दे सकता है । कोई व्यक्ति अपने आपको भी कानूनन अपनी इच्छा से संचालित नहीं कर सकता किसी अन्य को संचालित करने की तो बात की क्या ! हम सबका जन्म अधीनता में हुआ है ।

सब उच्च व निम्न शासक व शासित एक महान ? कभी न परिवर्तित होने वाले पूर्ववर्ती विधान के अधीन हैं । यह विधान हमारी सभी युक्तियों परिकल्पनाओं हमारी सभी संवेदनाओं से सबसे ऊपर हमारे अस्तित्व से पूर्ववर्ती रहा है । इसके माध्यम से हम ब्रह्माण्ड के चिरन्तन ढांचे से आबद्ध हैं जिससे बाहर हम इधर-उधर भी नहीं हो सकते ।

यह महान विधान हमारी संविदा की परिपाटी से नहीं उपजा है, अपितु यह हमारी संविदा व परिपाटी को वह ताकत व दण्ड-विधान देता है, जो उनके पास हैं । यह हमारे खोखले संस्थानों से नहीं उपजा । हमें प्रत्येक अच्छी भेंट भगवान् से मिली है ।

सभी शक्तियां ईश्वर की हैं । जो शक्तियां देता है और केवल वही जो शक्तियों का स्रोत है, वह शक्ति के स्रोत से इतर किसी अन्य द्वारा इनका उपयोग सहन नहीं करता । इस प्रकार यदि मनुष्य पर मनुष्य का सारा आधिपत्य ईश्वरीय व्यवस्था के कारण है, तो यह उसे प्रदत्त करने वाले के शाश्वत विधान से नियन्त्रित है । कोई भी मानव अधिकरण उसमें बदलाव नहीं कर सकता ।

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न वह, जो उसे कार्यान्वित करता है, न ही वे जो उसके द्वारा शासित हैं । यदि वे ऐसी प्रथा चलाने की मूर्खता करें जो उनके जीवन आजादी व सम्पत्ति को विधि-नियन्त्रित न करके किसी व्यक्ति की अपनी इच्छा के अधीन करती हो तो ऐसी प्रथा मान्य नहीं होगी । विजयी होने के कारण भी ऐसी निरंकुश सत्ता हासिल नहीं की जा सकती ।

न ही कोई राजा उत्तराधिकार में इसे पा सकता है; क्योंकि कोई भी व्यक्ति धोखाधड़ी लूटमार या हिंसा का उत्तराधिकारी नहीं हो सकता ।  निरंकुश अधिकार देने वाला और उन्हें पाने वाला दोनों ही समान रूप से दोषी हैं । संसार में जहां भी ऐसी निरंकुशता नजर आये प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि अपनी पूरी ताकत से उसका विरोध करे । विधि-विधान और निरंकुश अधिकारों की सतत दुश्मनी है ।

आप न्यायाधिकारी का नाम लें तो मैं कहूंगा-औचित्य । आप किसी अधिकार या सत्ता का नाम लें तो मैं कहूंगा-सुरक्षा । यह कहना कि कोई भी व्यक्ति निरंकुश अधिकार पा सकता है, निबन्धन का व्याघात होगा धार्मिकता में प्रभु की निन्दा होगी राजनीति में दुष्टता होगी ।  प्रत्येक पद के साथ उसके कर्तव्य भी जुड़े होते हैं ।

आखिर कोई न्यायाधिकारी किसलिए होता है ? यह सोच कि वह अधिकार के लिए दण्डाधिकारी बना है, बेबुकूफी ही होगी । सभी न्यायाधीश न्याय के उस चिरन्तन विधान से निर्देशित होते हैं, जिसके द्वारा हम सभी शासित हैं । हम चाहें, तो ये बन्धन तोड़ सकते हैं, लेकिन हमें यह भी जान लेना चाहिए कि मनुष्य का जन्म विधि-विधान से नियन्त्रित रहने के लिए हुआ है ।

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जो इस विधान के स्थान पर अपनी इच्छा को रखता है, वह भगवान का दुश्मन है । आदरणीय लॉर्ड्स मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं कि श्री हेस्टिंग्स की सरकार एक दमन-तन्त्र था । यह व्यक्तियों पर डाका डालने, जनता को लूटने-खसोटने ब्रिटिश शासन की समस्त व्यवस्था तितर-बितर करने का तन्त्र था ।

इसका उद्देश्य किसी भी सरकार के पास ज्यादा-से-ज्यादा जितने अधिकार हो सकते हैं, उन्हें प्राप्त करना और किसी भी सरकार के समक्ष जो साझे लक्ष्य होते हैं, उन्हें नष्ट करना था । मैं ब्रिटेन के सभी निवासियों की ओर से वारेन हेस्टिंग्स पर इन सभी दुष्टताओं का आरोप लगाता हूं ।

आदरणीय लॉर्ड्स हमें इस महान् न्याय के लिए क्या चाहिए ? हमें प्रयोजक कारण चाहिए ? इसके लिए आपके पास उत्पीड़ित शासकों का मामला है, तबाह की गयी बेगमों और महारानियों का मामला है, नष्ट किये गये प्रान्तों और राज्यों का मामला है ।

आप गुनाहगार के गुनाह के विषय में जानना चाहते हैं । क्या इससे पहले कभी किसी को इससे ज्यादा असमान अधिकार दिये गये थे ? आपको भारत में इस जैसा कोई अन्य गुनाहगार हूंने पर भी नहीं मिलेगा । वारेन हेस्टिंग्स ने वहां इतना माल-मत्ता भी शेष नहीं छोड़ा जिसके दम पर उस जैसा दूसरा गुनाहगार पनप सके ।

आदरणीय लॉर्ड्स आपको अभियोगी चाहिए ? आपके सामने ब्रिटेन की जन-संसद के सदस्य हैं, भारत की समस्त जनता के अपमान व उस पर किये गये अत्याचारों से परिचित व्यक्ति हैं । क्या हमें किसी न्यायाधिकरण की जरूरत है ? आदरणीय लॉर्ड्स इस जैसा न्यायाधीकरण तो आधुनिक संसार में अन्य हो ही नहीं सकता ।

हम भारत और मानवता के कल्याणपूर्ण भरोसे के साथ इसे आपके हाथों में सौंपते हैं । अत: पूर्ण भरोसे व जन-सांसदों के आदेशानुसार मैं श्री वारेन हेस्टिंग्स पर उच्चस्तरीय अपराधों व दुर्व्यवहार का महाभियोग लगाता हूं ।

1. मैं यह उपस्थिति हाउस ऑफ कॉमंस के सदस्यों की तरफ से उन पर महाभियोग लगाता हूं जिनके संसदीय भरोसे को उन्होंने तोड़ा है ।

2. मैं ब्रिटेन के जनसाधारण की तरफ से उन पर महाभियोग लगाता हूं जिनके राष्ट्रीय चरित्र को उन्होंने तिरस्कृत किया है ।

3. मैं भारतीय जनता की तरफ से उन पर महाभियोग लगाता हूं जिनके कानून अधिकारों व आजादी को उन्होंने ध्वस्त किया है, जिनकी सम्पत्तियों का उन्होंने विनाश किया है, जिनके देश को उन्होंने वीरान बना दिया है ।

4. में उन सभी चिरन्तन कानूनों के लिए उन पर महाभियोग लगाता हूं जिनका उन्होंने उल्लंघन क्रिया है ।

5. मैं उन पर उस मानव प्रकृति के नाम पर महाभियोग लगाता हूं जिसका उन्होंने घोर अपमान किया है, उसे चोट पहुंचायी है और उसका दमन किया है । ऐसा उन्होंने जीवन की स्थिति में प्रत्येक उम्र वर्ग लिंग के लोगों के साथ किया है ।

आदरणीय लॉर्ड्स, मैं इस भयंकर प्रकरण के उपसंहार में यहां जन-सांसदों के बीच विदा होने वाली पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी को साक्षी बनाता हूं । इन दोनों के मध्य चिरन्तन विधि-विधान की एक शृंखला के रूप में हम अवस्थित हैं । हम सम्पूर्ण विश्व का प्रत्यक्ष देखने के लिए आह्वान करते हैं कि हम किसी कर्तव्य-पालन में हिचकें नहीं ।

हम किसी धोखेबाजी या लीपा-पोती के दोषी नहीं । हमने अपराध के साथ किसी प्रकार का समझौता नहीं किया । हमें किसी लांछन का डर नहीं-उस संघर्ष के दौरान जो हमने अपराधों दुर्व्यसनों अकूत धन-सम्पत्ति के अभिभूत करने वाले प्रभाव के खिलाफ छेड़ा है ।

आदरणीय लॉर्ड्स ईश्वर की इच्छा कुछ ऐसी रही है कि हम हमेशा किसी महान् बदलाव के कगार पर रहे हैं । एक ओर केवल एक चीज ऐसी है, जो सर्वदा अपरिवर्तनशील है । जो इस विश्व के निर्माण से पहले से थी और जो इसके सारे ताने-बाने के बाबुजूद स्थिर बनी हुई है । मेरा तात्पर्य न्याय से है । वह न्याय जो ईश्वरत्व से नि सूत होता है और हममें से प्रत्येक के हृदय में निवास करता है ।

यह हमें अपने प्रति तथा दूसरों के प्रति व्यवहार को निर्देशित करने के लिए प्रदान किया गया है । जब यह धरती जलकर राख हो जायेगी वह तब भी रहेगा । उस दिन भी जब जीवन बीत जाने के पश्चात् अभियोक्ता हमें उस महान् न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत करेगा । आदरणीय लॉर्ड्स, आपके साथ ऐसा कुछ भी गलत नहीं हो सकता जिसके हम सब सहभागी न बनें ।

लेकिन यदि ऐसा कुछ होता है कि हमने जो भयानक बदलाव देखें हैं, उनके प्रभाव में आ जायें यदि ऐसा होता है कि आप आदरणीय लॉर्ड्स मानव समाज की सभी मर्यादित विशिष्टताओं से विहीन होकर निष्ट्ररता व दुष्टता के प्रभाव में आ जायें उस हत्यारे तन्त्र से प्रभावित हो जायें जिसके विरोध में यशस्वी राजाओं व महारानियों ने अपना खून बहाया और जिन सामन्तों ने उनके राजसिंहासन की रक्षा में दु:ख उठाये तो क्या आपको उस सन्तुष्टि का अहसास होगा, जो उस भयावह दु:ख को सहते हुए भी उन लोगों को हुई थी ?

आदरणीय लॉर्ड्स, यदि आपकी प्रभुता का नाश होता है, तो क्या इतना नाश होगा? यदि आप दृढ़ रहते हैं और मुझे भरोसा है कि आप दृढ़ रहेंगे, आप प्राचीन राजतन्त्र के भाग्य, प्राचीन महान् साम्राज्यों के अधिनियमों, स्वाधीनताओं के साथ अटल रहेंगे ।

मेरी कामना है कि आप अपने अधिकारों के साथ ही अपनी प्रतिष्ठा में भी निर्दोष बने रहें, आप सद्‌गुणों का विकल्प नहीं बनें, अपितु सद्‌गुणों का आभूषण बनें, सद्‌गुणों के सैर क्षक बनें, आप उपद्रवियों के आतक के दीर्घजीवी होने पर उसके खिलाफ लम्बे समय तक दृढ़ता बनाये रखें, आप आहत राष्ट्रों की शरण बनें, आप अटल न्याय के खिलाफ होने वाले सतत प्रतिकारस्वरूप के बदले एक पवित्र मन्दिर की भांति बने रहें ।

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