मानव पूंजी: अर्थ और प्रपत्र | Read this article in Hindi to learn about:- 1. मानवीय पूंजी का अर्थ और (Meaning and Significance of Human Capital) 2. मानवीय संसाधनों के विकास के रूप (Forms of Development of Human Resources) 3. समस्याएं (Problems).

मानवीय पूंजी का अर्थ और महत्तता (Meaning and Significance of Human Capital):

मानवीय पूंजी गठन शब्द का अर्थ, “व्यक्तियों की संख्या को प्राप्त करने और बढ़ाने की प्रक्रिया जिनमें कौशल, शिक्षा और अनुभव होता है जो देश के आर्थिक और राजनीतिक विकास के लिए महत्वपूर्ण होते हैं । इस प्रकार, यह मनुष्य में निवेश और उसके विकास के साथ एक रचनात्मक उत्पादक संसाधन के रूप में जुड़ा होता है ।”

प्रोफैसर मेयर के अनुसार – “मानवीय पूंजी गठन व्यक्तियों की संख्या को प्राप्त करने और बढ़ाने की प्रक्रिया है जिनमें कौशल, शिक्षा और अनुभव होता है जो देश के आर्थिक और राजनीतिक विकास के लिए महत्वपूर्ण होता है ।”

मानवीय पूंजी की महत्तता (Significance of Human Capital):

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आर्थिक विकास की प्रक्रिया में, भौतिक पूंजी के संचय करना ज्यादा महत्वपूर्ण होता है । अर्थव्यवस्था में भौतिक पूंजी का विकास मानवीय पूंजी गठन की दर पर निर्भर करता है । इस प्रकार मानवीय पूंजी गठन के विकास की योजना में ज्यादा महत्तता को देना चाहिए ।

विकास की कुंजी मानव और उसकी योग्यताएं मूल्य और आचरण हैं जिन्हें विकास की प्रक्रिया को तेज करने के लिए बदलना पड़ता है । अन्य तरफ यदि मानवीय पूंजी में कम निवेश होता है तो दर जिस पर अतिरिक्त भौतिक पूजी जिसका उत्पादक तौर पर प्रयोग किया जाता है वह कम होगी और यह विकास की बाधा का परिणाम होगी ।

मानवीय पूंजी आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । हाल ही के अध्ययन जिन्हें Schultz, Harbison और Kendrick द्वारा किया गया है । USA में उत्पादन के विकास का बड़ा हिस्सा उत्पादकों को बढ़ा सकता है जो पूंजी गठन का परिणाम होता है ।

प्रो. गिलबर्थ ने अवलोकित किया कि, ”हमें अब औद्योगिक विकास के बड़े हिस्से को न केवल बड़े पूंजी निवेश से प्राप्त किया है बल्कि आदमी में निवेश से और सुधारों नें सुधरे मानवों को लाया है ।” एडिम स्मिथ देश की स्थायी पूंजी के स्टॉक में सभी प्रवासियों की लाभकारी योग्यताओं को शामिल करते हैं ।

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तकनीकी जानकारी और कौशल समाज के अभौतिक साधनों को बनाते हैं जिसमें भौतिक पूंजी का उपयोग नहीं किया जा सकता । मार्शल शिक्षा को राष्ट्रीय निवेश मानते हैं और यह सभी पूंजी में सबसे मूल्यवान है जिसका निवेश इन्सानों पर किया जाता है ।

मानवीय पूंजी के अभाव में जो UDCs में धीमी गति के लिए जिम्मेदार होता है । UDCs साधारणतया दो समस्याओं का सामना करती है । इनमें महत्वपूर्ण कौशल का अभाव होता है जिसकी जरूरत औद्योगिक क्षेत्र के लिए होती है और इनमें अतिरिक्त श्रम शक्ति होती है ।

अतिरिक्त श्रम की मौजूदगी महत्वपूर्ण कौशल की कमी के कारण होती है । इस प्रकार मानवीय पूजी गठन का उद्देश्य मनुष्य में जरूरी कौशल को पैदा करके इन समस्याओं के हल से होता है । जिसमें उन्हें लाभकारी रोजगार दिया जाता है । UDCs न केवल आर्थिक रूप से पिछड़ा है बल्कि लोगों की गुणवत्ता उत्पादक एजेंटों के रूप में कम होती है ।

Prof. Myint बताते हैं कि – “यह तब तेजी से पहचाना जा रहा है कि कई UDCs को वापिस आयोजित किया गया, जो बचतों की कमी द्वारा कौशल और जानकारी की कमी द्वारा उत्पादक निवेश में पूंजी को अवशोषित न करने के लिए अपने संगठनात्मक ढांचे की सीमित क्षमता का नतीजा होता है । UDCs में, अकुशल मानवीय शक्ति की अत्यधिक संख्या और तकनीकी प्रशिक्षण की कमी और उच्च शिक्षित कर्मचारी होते हैं । Prof. Meier मानते हैं कि मानवता में निवेश अग्रिम देशों में विकास का मुख्य स्रोत है और UDCs में मानवता निवेश की नगण्य मात्रा है जो लोगों की क्षमता का विस्तार करने में थोड़ी है जिससे तेजी से बढ़ते विकास की चुनौती को पूरा किया जाए ।”

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विकसित योजना के लिए स्वास्थ्य हालातों का सामना करने के लिए वर्तमान सुरक्षा जालों को लाने की जरूरत है, जो वर्षों के लाभदायक विकास को कमजोर करता है, भेदनीय करता है । भारत 15 और 59 वर्षों के बीच की कार्यकारी आयु की जनसंख्या के अनुपात के साथ जनसांख्यिकीय क्रांति की कगार पर है, जो 2001 में लगभग 58% से बढ्‌कर 2021 में 64% से ज्यादा होगी ।

एक भारी संख्या जो 20-35 वर्ष के नौजवानों के बीच की होगी । विश्व में सबसे कम उस के बड़े राष्ट्र, मानवीय विकास इसके लिए अत्यधिक आर्थिक महत्तता को मानते हैं जैसे कि जनसांख्यिकीय लाभांश को तभी लिया जा सकता है । यदि यह जवान जनसंख्या सेहतमंद, शिक्षित और कुशल हो ।

मानवीय विकास पर जोर ने हाल ही में हमारे मुख्य सामाजिक सूचकों की रोशनी में महत्तता को प्राप्त किया है । यह धारणा मुख्य सामाजिक क्षेत्र कार्यक्रमों के लिए बजट समर्थन में पर्याप्त वृद्धि में वर्ष 2012-13 के दौरान प्रभावित हुई जैसे प्रधान मन्त्री ग्राम सड़क योजना, पिछड़े क्षेत्रों के ग्रांट फंड, शिक्षा का अधिकार, सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन और ग्रामीण पीने का पानी और स्वास्थ्य योजनाएं ।

2014 मानवीय विकास रिपोर्ट मानवीय विकास सूचक मूल्यों को दिखाती है और इन मूल पैरामीटरों के सम्बन्ध में 187 दर्जा के लिए दर्जा है जैसे लम्बे और स्वस्थ जीवन को जीना, शिक्षित और ज्ञानवान बनाना और अच्छी जीवन चर्या का आनन्द लेना । 2013 में भारत का HDI मूल्य 0.586 था, और इसकी 187 देशों में से 135 पर जगह थी ।

इसमें ब्राजील 79, चीन 91 और दक्षिणी अफ्रीका 118 पर और यह बंगला देश और पाकिस्तान से थोड़ा आगे है । चीन ने 2008 और 2013 के बीच 10 स्थान आगे आ कर स्थिति में सुधार किया है । भारत केवल एक दर्जा आगे हुआ है । इस प्रकार अन्तराल को घटाने के लिए काफी कुछ करना बाकी है ।

लिंग समानता के सम्बन्ध में, HDR ने भारत को 152 देशों में 127वां स्थान दिया है और इसमें लिंग असमानता सूचक 0.563 है । 14.9 देशों के लिए GII उस सीमा को बताता है जिसमें लिंग असमानता, स्वास्थ्य, सशक्तिकरण और श्रम बाजार भागीदारी में राष्ट्रीय प्राप्तियों को कमजोर करती है ।

भारत के विकासशील देश के साथ तुलना में G20 ग्रुपिंग भी भारत को लिंग समानता मुद्दों पर कम रोशनी डालता है । HDI के विपरीत, एक उच्च GII मूल्य घटिया प्रदर्शन को दिखाते । लिंग विकास सूचक (GDI), मानवीय विकास के तीन मूल पैरामीटरों के अनुसार लिंग असमानता का माप करता है जैसे-स्वास्थ्य, शिक्षा और आर्थिक संसाधनों पर पहुँच ।

GDI की गणना 148 देशों में की गई है । भारत में महिला HDI मूल्य 0.52 है जो पुरुषों के 0.63 की तुलना में है । इसके नतीजन GDI का मूल्य 0.828 है । इसकी तुलना में, बंगला देश और चीन का 0.908 और 0.939 के मूल्यों के साथ उच्च दर्जा है ।

इस प्रकार भारत HDI पर सभी देशों के 25% निम्न में है । इसका दर्जा नीचे से GII पर 20% है । यह सांख्यिकी भारत में लिंग असमानता के उच्च स्तर को और भारतीय समाज में महिलाओं और लड़कियों की बुरी स्थिति को दिखाती है ।

अन्य चिन्ता शिशु लिंग अनुपात में गिरावट है (CSR-लड़कियां प्रति लडकों पर जिनकी आयु 0-4 या 0-5 है) भारत में यह 1961 में 976 से 2011 में 918 हो गई; SRS (2013) (रिपोर्ट 2011-13) के लिए 909 के कड़े देती है । वैश्विक रूप में CSR की गणना प्रति 100 लड़कियों पर लड़कों की होती है ।

तालिका 17.1 में दिखाए मुख्य सामाजिक-आर्थिक प्रोफाइल पैरामीटर प्रमुख क्षेत्रों को दिखाते हैं ।

मानवीय संसाधनों के विकास के रूप (Forms of Development of Human Resources):

ऐसे कई मानवीय संसाधनों के रूप हैं ।

मानवीय संसाधनों के विकास के कई रूप निम्न में हैं:

1. शिक्षा और प्रशिक्षण

2. स्वास्थ्य

3. घर

4. पानी की पूर्ति ओर स्वच्छता

5. गरीबी

6. असमानता

7. बेरोजगारी

8. कमजोर वर्गों का विकास ।

1. भारत में शिक्षा का विकास (Development of Education in India):

पूर्ण रूप से जनसांख्यिकीय लाभांश के लाभों को लेने के लिए भारत को अपनी जनसंख्या के लिए शिक्षा प्रदान करनी पड़ती है जिसमें अच्छी शिक्षा होती है । बारहवीं योजना का ड्राफ्ट अध्यापक के प्रशिक्षण और मूल्यांकन पर जोर देता है । विस्तारित प्राथमिक नामांकनों से पास होने वालों को सैकण्डरी स्कूलों में क्षमता बनाने की जरूरत पर भी जोर देता है ।

उच्च और तकनीकी शिक्षा (Higher and Technical Education):

भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली विश्व की एक सबसे बड़ी प्रणाली है जिसमें कई कालेज और विश्वविद्यालय आते हैं । आजादी के समय पर, केवल 20 विश्वविद्यालय और 500 कॉलेज; लाख विद्यार्थियों के साथ थे । यह संख्या 690 विश्वविद्यालयों और विश्व स्तर के संस्थानों से बढ़ कर 2012-13 में 35,820 कॉलेजों तक पहुंच गई ।

690 विश्वविद्यालयों, 44 केन्द्रीय विश्व विद्यालयों, 306 राज्य विश्व विद्यालयों, 145 राज्य निजी विश्वविद्यालयों, 130 डीमड विश्व विद्यालयों, 60 राष्ट्रीय महत्ता वाले संस्थानों के साथ अन्य संस्थानों और 5 संस्थानों को राज्य वैधानिक अधिनियम के तहत स्थापित किया गया ।

तालिका 17.2 दिखाती है कि शिक्षा के क्षेत्र में अत्यधिक प्रगति को प्राप्त किया गया । योजनाओं के दौरान, शिक्षा संस्थानों की संख्या और विद्यार्थियों की संख्या काफी बड़ी है । प्राइमरी स्कूलों की कुल संख्या 1950-51 में 7.1 लाख से बढ कर 2012-13 में 7.1 लाख हो गई, जबकि मिडल स्कूलों की संख्या इसी अवधि दौरान 13,600 से बढ़ कर 4.8 लाख हो गई । समान रूप से, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की संख्या भी 1950-51 में 578 और 27 से बढ कर 2010-11 में 35820 और 690 हो गई ।

शिक्षा चुनौतियां (Educational Challenges):

जनगणना 20011 के अनुसार, केवल 73% साक्षरता को प्राप्त किया गया, 80.9% पर पुरुषों की साक्षरता औरतों की साक्षरता को 64.6% पर अभी तक उच्च है । इस तथ्य के बावजूद पूर्ण के 9.6% अंकों की तुलना में 10.9% अंकों तक बढ़ी है ।

बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार का अधिनियम 2009 को केन्द्र द्वारा भारत में एलीमेंटरी शिक्षा की पहुंच के साथ-साथ गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए केन्द्र द्वारा बनाया गया था । सर्व शिक्षा अभियान को RTE अधिनियम के लागूकरण के लिए बनाया गया ।

SSA की रूपरेखा को शैक्षिक वर्ष 2014-15 से निजी बिना सहायता वाले स्कूलों में कमजोर वर्गों के साथ बच्चों के कम-से-कम 25% दाखिलों के लिए किए खर्चों के लिए अदायगी को शामिल करने के लिए संशोधित किया गया । प्राइमरी स्कूलों में कुल संख्या ने 2013-14 में 132 लाख को छुआ है और अपर प्राइमरी संख्या ने 67 मिलियन को छुआ है । यह बदलते जनसांख्यिकी आयु ढाँचे के साथ रेखा में है ।

शिक्षा के समग्र मानक वैश्विक मानकों से भिन्न हैं । PISA (Programme for International Student Assessment) जिसने 2009 में गरीब वर्ग के भारतीयों जिनकी आयु 15 वर्ष थी के कौशल और जानकारी का माप किया जो हमारी शिक्षा प्रणाली में अंतरालों को बताते हैं । ASER (Annual Status of Education Report) खोजें 2005 से ग्रामीण भारत में 5 से 16 वर्ष की आयु के वर्गों के बीच सीखने के निम्न स्तरों को बताती है ।

1. RTE Act और The Juvenile Justice Act, 2000 को रोजगार के बजाए शिक्षा में बच्चों को लाने के लिए बनाया गया । इसमें 15-18 आयु के वर्गों के नौजवानों को अनुमति थी । भारत में लगभग 100 मिलियन जवान लोग इस श्रेणी में आते हैं क्योंकि सबसे वोकेशनल कौशल प्रोग्राम और नौकरी स्थापन में प्रवेश के लिए शिक्षाओं की आयु सीमा 18 से पहले संभव नहीं, इससे जनसंख्या की बड़ी संख्या असंगठित क्षेत्र में आ सकी । अवसर अन्तरालों को बताने के लिए एक प्रकार की जानकारी या कौशल में शोध की और इसे सुधारने की जरूरत है ।

2. प्राइमरी स्कूलों के साथ सैकण्डरी स्कूलों में कई स्कीमों को शुरू किया जैसे मिड डे मील स्कीम, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान, मॉडल स्कूल स्कीम और साक्षर भारत । व्यस्क शिक्षा को लागू किया गया । SB का केन्द्र महिला साक्षरता है । इसके साथ प्रशिक्षित अध्यापकों की कमी भी इसकी समस्या है । इसमें अध्यापक शिक्षा संस्थानों में भर्तियां की जाती हैं । एक नए चार वर्षीय एकीकृत कार्यक्रम जैसे B.A./B.Ed और BSC/B.Ed को शुरू किया गया है ।

3. भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली विश्व में सबसे बड़ी है जिसमें कई कॉलेज और विश्व-विद्यालय हैं । 2005 में 350 विश्व विद्यालयों और 16,982 कॉलेजों की संख्या 2013-14 में बढ़ कर 713 विश्व विद्यालय, 36,739 कॉलेज और 11,343 डिप्लोमा स्तरीय संस्थान हैं ।

इसमें मांग की पूर्ति के साथ और शिक्षा नीति को रोजगार अवसरों के साथ मिलाने की जरूरत है । इस प्रकार उच्च शिक्षा को फलदायक होने की जरूरत है । यह भविष्य रोजगार अवसरों को पैदा करेगी और विद्यार्थियों के लिए उपयुक्त विषयों को प्रदान करेगी ।

उच्च शिक्षा में Gross Enrollment Ratio 2005-06 में लगभग 11.6% से 2012-13 में 21.1% तक दुगनी हो गई । 2012-13 में हाजिर विद्यार्थियों की 29.6 मिलियन संख्या 2005-06 में 14.3 मिलियन हो गई ।

2. स्वास्थ्य (Health):

विकासशील अर्थव्यवस्था का मुख्य लक्ष्य स्वस्थ मानव शक्ति होता है । दोनों स्वास्थ्य और कम पोषण मानव शक्ति की गुणवत्ता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है, परन्तु UDCS में लोग आधे पेट खाये हुए और कुपोषित होते हैं जिसके नतीजे घटिया किस्म की मानव शक्ति होती है ।

लोगों के भोजन में प्रोटीन और विटामिनों की भी कमी होती है और स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव के कारण लोगों में बीमारियां आम होती हैं । UDCS में मानव शक्ति की गुणवत्ता को सुधारने का सबसे अच्छा ढंग उन्हें पर्याप्त भोजन देना और बढ़िया पोषण देना है, बढ़िया स्वच्छ सुविधाओं को देना और स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाओं को देना है जिससे लोगों में उत्पादकता और कौशल बढेगा ।

मानवीय पूजी है जिनमें, ”नयी और विस्तारित सरकारी सेवाओं की जरूरत भूमि प्रयोग और कृषि की नई विधियों के लिए नयी प्रणालियों को पेश करने के लिए संचार के नये साधनों को विकसित करने के लिए औद्योगिकीकरण को बढ़ाने के लिए शिक्षा प्रणाली को निर्मित करने के लिए पड़ती है । अन्य शब्दों में, नवीकरण या स्थायी या पारम्परिक समाज से बदलाव की प्रक्रिया, रणनीतिक मानव पूजी की बडी मात्रा की मांग करती है ।”

3. हाऊसिंग विकास (Housing Development):

भोजन, कपड़ा, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं के अलावा, देश के नागरिकों को अन्य सुविधाओं जैसे घर, पानी की पूर्ति ओर स्वच्छता आदि की जरूरत होती है । शिक्षा और स्वास्थ्य की तरह, अन्य सुविधाएं भी कार्यकारी शक्ति की उत्पादकता की भी प्रभावित करती है । कर्मचारियों की उत्पादकता की गैर-मौजूदगी में भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । घर, सुरक्षित पीने का पानी, पर्याप्त सीवरेज और निकासी और प्रदूषण मुक्त वातावरण स्वास्थ्य जीवन के लिए बहुत अनिवार्य होता है ।

आवास (Housing):

घर मूल मानवीय जरूरत है । घर हमें सर्दी, गर्मी, वर्षा आदि से बचाते हैं । दिन के कार्य के बाद, हम अपने परिवार के साथ रहना हैं । हम वहाँ आराम करना चाहते हैं और अगले दिन के कार्य को करने के लिए अपने आप को तैयार करते हैं । इसके अतिरिक्त घर का निर्माण लोगों को रोजगार देता है ।

4. पानी की पूर्ति और स्वच्छता (Water Supply and Sanitation):

शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास सुविधाओं के साथ, देश के नागरिकों को कुछ सामाजिक सुविधाओं की जरूरत पड़ती है । ये सुविधाएं पानी की पूर्ति, स्वच्छता, पार्क, सीवरेज और निकास प्रणाली आदि हैं ।

शहरी और ग्रामीण इलाके के लोगों के लिए पानी की आपूर्ति सुरक्षित पीने के पानी को देने के लिए की जाती है । दूरवर्ती गावों में पीने के पानी की आपूर्ति की जानी चाहिए । भारत में ऐसे 50,000 से ज्यादा गांव हैं जहां पर अभी तक पीने का पानी नहीं है । उचित स्वच्छता, सीवरेज और निकास प्रणाली की स्थिति अभी भी हैरान करने वाली है । स्वच्छता हमारे इर्द-गिर्द के वातावरण को साफ और ताजा रखती है ।

सामाजिक सुविधाओं का सम्बन्ध सीधे उत्पादन के साथ नहीं होता, परन्तु यह कार्यकारी बल की उत्पादकता को प्रभावित करता है । यद्यपि सामाजिक सुविधाएं या तो औद्योगिक कर्मचारियों द्वारा या कृषि करने वाले श्रमिकों की अनुपस्थिति में अपनी उत्पादकता को खो देती हैं और इससे उत्पादन प्रभावित होता है । यह जाना गया है कि भारतीय मजदूरों की निम्न उत्पादकता का कारण अनुचित सामाजिक सुविधाओं का होना है ।

 

(A) पानी की आपूर्ति (Water Supply):

मानवीय संसाधनों के विकास का महत्वपूर्ण पहलू पीने के पानी की आपूर्ति का प्रावधान है ।

राष्ट्रीय जल आपूर्ति और स्वच्छता कार्यक्रम की स्थापना 1954 में की गई थी । यह कार्यक्रम स्वास्थ्य योजना का हिस्सा था जो राज्यों को उनके शहरी और ग्रामीण जल आपूर्ति और स्वास्थ्य सुविधाओं में सहायता देता था । Central Public Health and Engineering Organisation (CPED) को 1954 में स्थापित किया गया जो राज्य सरकारों को तकनीकी परामर्श और सहायता उनकी स्कीमों को बनाने में देता था । फंडों के अभाव और मौजूदा संसाधनों की कमी के कारण जल आपूर्ति सुविधाओं की धीमी गति के लिए जिम्मेदार थे ।

(B) पीने का पानी और स्वच्छता (Drinking Water and Sanitation):

(i) ग्रामीण पीने का पानी (Rural Drinking Water):

ग्रामीण आवासों का 73.91% पूरी तरह से ग्रामीण क्षेत्रों में सुरक्षित पीने के पानी के प्रावधान से ढका है जिसका माप सुरक्षित पीने के पानी के 40 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन के प्रावधान के साथ लिया जाता है । ग्यारहवीं पंच-वर्षीय योजना के दौरान 7,98,967 निवासों के लक्ष्य के विरुद्ध 31 मार्च, 2012 तक 66505 को कवर किया गया ।

भारत निर्माण के तहत ग्रामीण पीने के पानी की आपूर्ति के लिए वित्तीय व्यय 2005-06 में 4,098 करोड़ से 2012-13 में रु. 10,500 करोड़ बढा । सभी अनावृत्ति निवासों की सूचना 1 अप्रैल, 2012 को दी गई । जनगणना 2011 के अनुसार 84.2% ग्रामीण परिवार में सुधरी पीने के पानी की आपूर्ति है ।

 

(ii) स्वच्छता (Sanitation):

स्वच्छता में मानव अवशेषों को हटाने, वर्षा के पानी के निकास और बर्बाद पदार्थों और कुछ को इकट्‌ठा करने और निपटान करने के लिए प्रबन्ध किया जाता है । उचित स्वच्छाता स्वास्थ्य, उत्पादकता, कुशलता और जीवन की गुणवत्ता के लिए सबसे महत्वपूर्ण शर्त है ।

1. शहरी इलाकों में स्वच्छता सुविधाएं (Sanitation Facilities in Urban Areas):

शहरी स्वच्छता की स्थिति ग्रामीण स्वच्छता से अच्छी है । 3119 में से केवल 198 कस्बों को 1980 में सीवरेज सुविधा प्रदान की गई । एक दर्जे के कस्बों में से आधे से ज्यादा बिना सीवरेज प्रबन्ध के हैं । कुल शहरी जनसंख्या का केवल 30% को 1989 में सीवरेज सुविधाएं दी गई ।

2. ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता सुविधाएं (Sanitation Facilities in Rural Areas):

स्वच्छता परिस्थितियां भारत की आजादी के 50 वर्षों के बाद भी यहाँ के ग्रामीण इलाकों में मौजूद नहीं हैं । लगभग 98% ग्रामीण परिवारों में शौचालय नहीं है । यह आशा थी कि ग्रामीण जनसंख्या के 25% को 1990 तक स्वच्छता सुविधाएं दी जाएगी, परन्तु ऐसा नहीं हो पाया । शौचालयों का निम्न लागत का डिजाइन कई ग्रामीण इलाकों में विकसित किया जा चुका है ।

सीवरेज कार्यक्रम शहरी विकास क अभिन्न हिस्सा है । संयुक्त राष्ट्रों ने 1981 से 1990 तक के 10 सालों को अन्तर्राष्ट्रीय पेय जल आपूर्ति बेगैर स्वच्छता दशक घोषित किया । भारत ने सभी लोगों के लिए स्वच्छता सुविधाओं को प्रदान करने के लिए प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं ।

U.N सहायता के साथ शहरी स्वच्छता के लिए निम्न लागत की तकनीकों को विकसित करने के लिए प्रयास किए जा चुके हैं । कई राज्यों में छोटे कस्बों में पानी बन्द शौचालयों को बनाने के पोग्राम को छठी योजना के दौरान पेश किया गया था ।

120 शहरी सीवरेज और निकास योजना को पूरा किया गया और अन्य 110 स्कीमों को छठी योजना अवधि दौरान लिया गया ।

ग्रामीण स्वच्छता (Rural Sanitation):

जनगणना के अनुसार केवल 32.7% ग्रामीण परिवारों को शौचालय सुविधाएं दी गई । TSC को दुबारा नाम निर्मल भारत अभियान दिया गया जिसका उद्देश्य ग्रामीण भारत को निर्मल भारत में परिवर्तित करना था । इसके लिए कम्यूनिटी परिपूर्णता धारणा को लिया गया और 2022 तक सभी ग्रामीण परिवारों के लिए 100% स्वच्छता को प्राप्त करना है ।

NBA प्रोजैक्टों को 607 ग्रामीण जिलों में रु. 22,672 करोड़ के कुल खर्च के साथ, रु. 14,888 करोड़ के केन्द्रीय हिस्से के साथ मंजूर किया गया । NBA के लिए आबंटन 2011-12 में रु. 1500 करोड़ से 2012-13 में रु. 2500 करोड़ तक बढे । NBA के अधीन, व्यक्तिगत परिवार के लिए प्रलोभनों का प्रावधान शौचालय इकाइयों को व्यापक करता है जो गरीबी रेखा के नीचे ही था जो SCs/STs, छोटे और सीमांत परिवारों, भूमि-रहित श्रमिकों; शारीरिक रूप से विकलांग, औरतों और सभी कला, परिवारों से संबंधित हो ।

5. गरीबी (Poverty):

योजना आयोग प्रत्येक पांच वर्षों में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण आफिस द्वारा किए गए पारिवारिक उपभोक्ता खर्चो पर बड़े नमूना सर्वेक्षण से आकड़ों का प्रयोग कर गरीबी का अनुमान लगाता है । यह गरीबी रेखा को महीनावार प्रति व्यक्ति उपभोक्ता खर्च के आधार पर बताता है । योजना आयोग द्वारा अनुमान लगाई गरीबी के लिए विधि समय-समय पर क्षेत्र में निर्यातों द्वारा की गई सिफारिशों पर आधारित होती है ।

2009 में प्रोफैसर सुरेश डी तेंदुलकर पूर्ण भारत के स्तर पर गरीबी रेखा की गणना की जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 447 MPCE और शहरी इलाकों के लिए 579, 2004-05 में थी । योजना आयोग साल 2009-10 के लिए गरीबी रेखा और अनुपातों को तेंदूलकर कमेटी की सिफारिशों के अनुसार पारिवारिक उपभोक्ता खर्च सर्वेक्षण से NSS वे राऊंड (2009-10) डेटा का प्रयोग कर अपडेट किया ।

यह अनुमान है कि गरीबी रेखा पूर्ण भारत में MPCE 2009-10 में ग्रामीण क्षेत्रों के लिए रु. 673 और शहरी क्षेत्रों के लिए रु. 860 थी । देश में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों का प्रतिशत 2004-05 में 37.2% से घटकर 2009-10 में 29.8% हो गया । यहां तक कि पूर्ण अवधि में, गरीब लोगों की संख्या इस अवधि के दौरान 52.4 लाख तक गिर गई । इस प्रकार गरीबी 2004-05 और 2009-10 के बीच 1.5% अंक प्रति साल पर औसत रूप से गिर गई है ।

निर्धनता (Poverty):

निर्धनता का नया अनुमान साल 2011-12 के लिए है । इन अनुमानों को तेंदूलकर कमेटी विधि द्वारा पारिवारिक उपभोग व्यय सर्वेक्षण का प्रयोग करके लगाया गया है । जिसे NSSO द्वारा इसके 68वें राऊंड (2011-12) के आकड़ों द्वारा इकट्‌ठा किया गया । सात वर्षों के विस्तार पर निर्धनता 37.2% से घट कर 2011-12 में 21.9% हो गई जो ग्रामीण लोगों की संख्या में तेज गिरावट है ।

6. असमानता (Inequality):

HDR असमानता का माप करता है और आय गिनी गुणांक को दर्शाता है जो व्यक्तियों के बीच आय की असमानता का माप करता है । भारत के लिए गिनी ग्रणक 2010-11 में 36.8 था । इस संबंध में, भारत में असमानता कई अन्य विकासशील देशों से कम है ।

उदाहरण के लिए साऊथ अफ्रीका (57.8), ब्राजील (53.9), थाइलैंड (53.6), टर्की (40.8), चीन (41.5), श्रीलंका (40.3), मलेशिया (46.2), वियतनाम (37.6) के साथ-साथ अन्य देश जैसे यू. एस. ए. (40.8), हांगकांग (43.4), अर्जनटाइना (45.8), इजराइल (39.2), बुल्गरिया (45.3) आदि, का मानवीय विकास सूचक के सम्बन्ध में बहुत ऊँचा दर्जा है ।

ग्रामीण-शहरी अन्तराल को हटाने के लिए महीनावार प्रति व्यक्ति व्यय (MPCE) सबसे पहले पारिवारिक स्तर को बताता है जिसमें एक मूल्य दिया जाता है जो प्रत्येक व्यक्ति या परिवार के रहने के स्तर के उपयोग को बताता है ।

68वें राऊंड (2011-12) NSS की प्रावधानिक खोजों के अनुसार, औसत MPCE रु. 1281.45 और रु. 2401.68 ग्रामीण और शहरी भारत के लिए ग्रामीण-शहरी आय असमानता को दिखाता है । यद्यपि, महीनावार प्रति व्यक्ति ग्रामीण उपभोग 2009-10 पर 2011-12 में 18 प्रतिशत तक बढ़ा, जबकि महीनावार प्रति व्यक्ति शहरी उपभोग केवल 13.3% बढ़ा ।

सामाजिक क्षेत्र के खर्च में प्रवृत्तियां (Trends in Social Sector Expenditure):

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का साधारण सरकार द्वारा सामाजिक सेवाओं पर खर्च पर डेटा कुल खर्च के अनुपात के रूप में मिश्रित प्रवृत्ति को दिखाता है । यह 2010-11 में 24.7 से कम होकर 2012-13 में 22.9% हो गया, परन्तु 2013-14 में 24.1% हो गया और फिर दोबारा 2014-15 में 22.3% कम हो गया । GDP के प्रतिशत के रूप में, सामाजिक सेवाओं पर खर्च 2009-10 में 6.7% से गिर कर 2014-15 में 6.7% हो गया ।

शिक्षा पर खर्च 3.1% से कम होकर 3.1% और स्वास्थ्य 1.4% से गिरकर 1.2% हो गया । 2008-09 का वैश्विक सकट और 2011-12 का यूरो क्षेत्र सकट 2008-09 के दौरान रु. 3,80,628 से 2011-12 में रु. 5,80,868 करोड़ और आगे 2014-15 के दौरान रु. 8,68,476 करोड़ हो गया ।

भारत में स्वास्थ्य देखभाल पर सरकारी खर्च GDP का केवल 1.2% थे जो कुल सरकारी खर्च का 4% है, और कुल स्वास्थ्य खर्च के 30% से कम है । सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च के निम्नतम स्तर को प्राप्त करने में असफलता वांछनीय स्वास्थ्य नतीजों का प्राप्त करने के लिए एकल सबसे महत्वपूर्ण शर्त रह गई ।

तेजी से बढ़ते निजी क्षेत्र के विकास और संभावना का पता लगाना महत्वपूर्ण होता है, अन्तर्राष्ट्रीय अनुभव दिखाते हैं कि स्वास्थ्य नतीजे और वित्तीय सुरक्षा सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च के पूर्ण और सापेक्ष स्तरों के साथ नजदीकी रूप से संबंधित हैं ।

भारत की जनसंख्या का लगभग 48% औरतों का है । सामाजिक-आर्थिक ढांचे में उनका स्थान सुरक्षित करने की जरूरत है क्योंकि यह बड़ी जनसंख्या के विचार में बदलाव की मांग करता है । सरकार को स्थायी नीतियों के द्वारा इस बदलाव को सुविधाजनक करने की जरूरत है । शिक्षा का निम्न स्तर और कौशल की कमी श्रम शक्ति की बड़ी संख्या के निम्न आय स्तर के लिए जिम्मेदार है जिसके कारण असमानता होती है ।

इसमें नतीजन, सरकार कौशल विकास के साथ-साथ मेक इन इंडिया पर जोर देती है जिसमें रोजगार अवसरों को पैदा किया जाता है क्योंकि जनसांख्यिकीय अनुमान चेतावनी देते हैं कि जनसांख्यिकी लाभांश का वचन दीर्घ समय तक चलने वाला नहीं होगा ।

किसी भी दशा में 2050 से परे नहीं, भारत के अगले दो दशकों में इस जनसांख्यिकीय खिड़की का लाभ लेने की जरूरत है । देश के चुनौती अब जनसांख्यिकी ‘बोझ’ को घटा कर और अन्तर्राष्ट्रीय और घरेलू दोनों, के विभिन्न क्षेत्रों में नियोक्ताओं की जरूरतों के लिए मानव शक्ति की गुणवत्ता को बढ़ा कर विकास के लिए अवसरों को बढ़ा कर बदलने की जरूरत है । पंचायती राज संस्थानों और ULBs बदलाव के एजेंट के रूप में की महान प्रासंगिकता ।

7. बेरोजगारी (Unemployment):

बेरोजगारी दर 1993-94 से 2004-05 तक धीमी गति पर बड़ी । मगर, 2009-10 में, बेरोजगारी दर में गिरावट आई थी जो CDs के आधार पर सापेक्ष रूप से ज्यादा थी । इसके बावजूद नगण्य रोजगार विकास, बेरोजगारी दर 2004-05 में 8.2% से गिरकर 2009-10 में 6.6% हो गई । बेरोजगार व्यक्ति की कुल संख्या 2004-05 में 34.5 मिलियन से गिरकर और 2009-10 में 28 मिलियन से गिरकर 65 मिलियन व्यक्तियों द्वारा कम हुई ।

बेरोजगारी में गिरावट 2009-10 में रोजगार में सीमांत विकास के बावजूद यह नौजवानों का शिक्षित अनुपात श्रम बजट में भागीदारी की तुलना में ज्यादा बढ़ने के कारण था । यह उच्च शिक्षा में विद्यार्थियों की संख्या में वृद्धि में बढौतरी, 1990-91 में 49.25 लाख से बढ्‌कर 2009-10 में 169.75 लाख हो गई । इसी तरह कक्षा 1-8वीं में सकल दर्ज अनुपात 2004-05 में 93.54 से बढ़ कर 2010-11 में 104.3, हो गया । शिक्षा के अधिकार का कानून और कार्यक्रम जैसे सर्व शिक्षा अभियान का भी इसमें योगदान था ।

महात्मा गांधी (NREGA):

सरकार के इस फ्लैगशिप प्रोग्राम का लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में परिवारों की जीविका की सुरक्षा को बढ़ाने पर था जिसमें प्रत्येक परिवार के लिए वित्तीय वर्ष में मजदूरी वेतन रोजगार के कम से कम सौ दिनों को प्रदान किया जाता है जिनके व्यस्क सदस्य स्वयं सेवी अकुशल हस्त कार्य को करते हैं जिसमें औरतों की एक-तिहाई भागीदारी की अवधि होती है ।

मनरेगा मजदूरी रोजगार प्रदान करती है । मनरेगा को सभी ग्रामीण क्षेत्रों में लागू किया गया । 2012-13 के लिए कुल व्यय में से रु. 33,000 करोड मंजूर किए गए, रु. 25,894.03 करोड को दिया गया और 4.39 करोड़ परिवारों को 156.01 करोड़ व्यक्तियों को रोजगार प्रदान किया जात । जिसमें 82.58 करोड़ (53%), औरतों को, 34.56 करोड़ (22%), अनुसूचित जातियों को और 24.90 करोड़ (16%) अनुसूचित कबीलों को प्रदान किया जाता है ।

राष्ट्रीय स्तर पर, मनरेगा के तहत प्रदान की जाने वाली औसत मजदूरी 2006-07 में रु. 65 से बढकर 2011-12 में रु 15 तक हो गई । कृषि क्षेत्र की समझौता शक्ति बढ़ गई । यहां तक कि निजी क्षेत्र की मजदूरी दिखाए गए कई अध्ययनों में बड़ी ।

राष्ट्रीय ग्रामीण जीविका मिशन-आजीविका [National Rural Livelihood Mission (NRLM)]:

स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (SSGY)/NRLM एवं रोजगार कार्यक्रम है जिसे अप्रैल 1999 से लागू किया गया जिसका उद्देश्य सहायक ग्रामीण गरीब परिवारों को आय पैदा करने वाली सम्पत्तियों को बैंक ऋण और सरकारी अनुदानों के द्वारा प्रदान करके गरीबी रेखा से ऊपर उठाना है ।

ग्रामीण गरीबों को स्वयं सहायता समूहों में व्यवस्थित किया जाता है और उसकी योग्यताओं को प्रशिक्षण और कौशल विकास द्वारा निर्मित किया जाता है । इस योजना को PRIs की सक्रिय भागीदारी द्वारा लागू किया जायेगा । SGSY की शुरूआत से 42.05 लाख SHGS को बनाया गया जिसमें 60.6 लगभग औरतें SHGS हैं ।

स्वर्ण जयंती साहारी रोजगार योजना [Swarna Jayanti Shahari Rozgar Yojana (SJSRY)]:

SJSRY को 1 दिसम्बर 1997 को प्रस्तुत किया गया जिसका लक्ष्य शहरी बेरोजगार और अर्द्ध-रोजगार वाले लोगों को लाभकारी रोजगार देना उन्हें स्वयं रोजगार उद्यम स्थापित करने के लिए और मजदूरी रोजगार अवसरों को बनाने के लिए प्रोत्साहित करना है ।

इस योजना का पुनरोत्थान अप्रैल 2009 को किया गया । 2012-13 वर्ष के लिए SJSRY के लिए सालाना बजट प्रावधान रु. 838 करोड़ है और इसमें रु. 516.77 करोड़ को 7 फरवरी 2013 तक जारी किया गया । कुल 4,06,947 लोगों ने 2012-13 के दौरान इस योजना से लाभ लिया ।

8. कमजोर वर्गों के लिए कल्याण (Welfare for Weaker Sections):

(i) औरत और बाल विकास (Women and Child Development):

औरतें कई सामाजिक सूचकों जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा और आर्थिक अवसरों में पुरुषों से पीछे हैं । इस प्रकार उन्हें संसाधनों के उपयोग के अभाव और उनकी कमजोरी के कारण विशेष ध्यान की जरूरत है । औरतों और बाल विकास के लिए योजना की सीमा और कवरेज विभिन्न योजना स्कीमों के तहत योजना खर्च में प्रगतिकारी रूप से बढ़ा, मनरेगा के तहत औरतों के लिए रोजगार बढ़ाया ।

GB के लिए आबंटन कुल बजट के प्रतिशत के रूप में 2005-06 में 2.79% से बढ्‌कर 2012-13 में 5.91% हो गया । औरतों और बच्चों के विकास के आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण के लिए कुछ महत्वपूर्ण स्कीमों और नीति प्राथमिकताएं एकीकृत बाल विकास सेवा स्कीम, औरतों के सशक्तिकरण के लिए राष्ट्रीय मिशन, राष्ट्रीय महिला कोष, औरतों के विरुद्ध हिंसा को बताने की नीतियां हैं ।

(ii) SCS, STS, OBCS और अन्य कमजोर वर्गों का कल्याण और विकास (Welfare and Development of SCs, STs, OBCs and Other Weaker Sections):

आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण और सामाजिक रूप से नकारे वर्गों को शिक्षा के रूप में उठाना और समाज के सीमांत वर्गों का विकास करना । प्रोग्रामों को राज्य और सहकारी एपेक्स निगमों और NGOs द्वारा समाज के सीमांत वर्गों को ऊपर उठाने के लिए लागू किया जाता है । अनुसूचित कबीलों के कल्याण और विकास के लिए 4090 करोड़ के व्यय को 2012-13 के लिए वार्षिक योजना में बनाया गया ।

पर्यावरण (Environment):

पर्यावरण आस-पास का क्षेत्र और परिस्थितियां हैं जिसके तहत एक व्यक्ति या एक वस्तु मौजूद होती है और अपने चरित्र को विकसित करती है । पर्यावरण दो मूल कारकों-भौतिक और जैविक से बना होता है । भूमि, पानी और वायु इसके भौतिक कारक हैं, जबकि पौधे और जन्तु इसके जैविक कारक हैं । पर्यावरण और मनुष्य के बीच बहुत नजदीकी सम्बन्ध होता है ।

पृथ्वी पर जीवन की मौजूदगी भौतिक पर्यावरण के बिना संभव नहीं है यानि भूमि, पानी और वायु । भौतिक पर्यावरण पौधों और जानवरों के लिए जीविका का स्रोत है । आदमी पौधों और जानवरों से भोजन प्राप्त करता है । पृथ्वी पर आदमी की मौजूदगी पौधों और जानवरों के बिना असम्भव होती है ।

अच्छे स्वास्थ्य, सन्तुलित विकास और ताजे पर्यावरण को प्राप्त करने के लिए एक व्यक्ति को भौतिक वातावरण जैसे भूमि, पानी और वायु को प्रदूषित करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए । समान समय पर, एक व्यक्ति को न केवल पौधों और जानवरों को सुरक्षित करना चाहिए बल्कि अपने उचित और अच्छे विकास के लिए गंभीर कोशिशें भी करनी चाहिए ।

भारत में मानवीय संसाधन विकास की समस्याएं (Problems of Human Resource Development in India):

भारत में मानवीय संसाधन विकास कई समस्याओं का सामना करता है ।

उनमें महत्वपूर्ण बातों को निम्न में बताया गया है:

1. निम्न प्राथमिकता (Low Priority):

निम्न प्राथमिकता हमारी योजना में मानवीय संसाधनों के विकास के अनुसार होती हैं । क्षेत्र जैसे कृषि, उद्योग आदि को शीर्ष प्राथमिकता दी जाती है । हम अपने विकास पर ज्यादा से ज्यादा खर्च करते हैं । मानवीय संसाधनों का विकास केवल कृषि, उद्योग, यातायात आदि की वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के बाद जगह लेता है ।

2. मानव शक्ति योजना का अभाव (Lack of Manpower Planning):

गरीब मानव शक्ति योजना के कारण, हमारे देश में बेरोजगारी की समस्या बढ़ रही है । हमारे मानवीय संसाधन बिना उपयोग के रह जाते हैं और वे बर्बाद हो जाते हैं ।

3. क्षेत्रीय असन्तुलन (Regional Imbalances):

भारत में मानवीय संसाधन विकास असन्तुलित हो गया है । देश के विभिन्न क्षेत्रों में मानवीय संसाधनों के विकास के लिए सुविधाओं के सम्बन्ध में व्यापक अन्तर है । कुछ राज्यों ने मानवीय संसाधन विकास कार्यक्रमों को प्रस्तुत किया है । कई अन्य राज्यों में, ऐसे प्रोग्रामों का अभाव है । ग्रामीण और शहरी इलाकों के बीच असमानता सबसे ज्यादा चिन्हित है ।

4. वापसी की निम्न दर (Low Rate of Return):

मानवीय संसाधन विकास पर निवेश की वापसी की दर साधारणतया निम्न होती है । इस प्रकार, निजी निवेशक अपने विकास में ज्यादा रुचि नहीं लेता ।

5. जनसंख्या का तेज विकास (Rapid Growth of Population):

भारत में, जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है । गरीब देश, जैसे भारत, इतनी बड़ी जनसंख्या के विकास के लिए संसाधनों उपयोग मुश्किल पाता है । हमारे पास एक और सीमित वित्तीय संसाधन होते हैं और दूसरी ओर कुछ प्राथमिक क्षेत्र होते हैं । इन प्राथमिक क्षेत्रों के प्रति व्यक्ति लाभों को मानवीय संसाधन विकास के प्रति व्यक्ति लाभों से ज्यादा माना जाता है ।

6. प्रतिभा-पलायन की समस्या (Problem of Brain Drain):

प्रतिभा-पलायन द्वारा, हमारा अर्थ अन्य विकसित देशों के लिए प्रशिक्षित और कुशल व्यक्तियों के बड़े पैमाने के प्रवास से होता है इन प्रशिक्षित व्यक्तियों को अपने खुद के देश में अच्छी नौकरी नहीं तो वे काम के लिए विदेशों में जाते हैं और जो उन्हें रोजगार के बढिया अवसर देते हैं ।

प्रतिभा पलायन के दो गंभीर नतीजे होते हैं । इसमें से एक, अपनी शिक्षा और प्रशिक्षम पर काफी रकम खर्च करते हैं । दूसरा, देश इन योग्य व्यक्तियों के योगदान से वंचित हो जाता है । यदि हम देश से आगे प्रतिभा पलायन को रोकना चाहते हैं तो हमें उन्हें रोजगार अवसरों का देना होगा ।

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