आर्थिक विकास की प्रक्रिया | Read this article in Hindi to learn about Chenery’s hypothesis on the process of economic development.

आर्थिक वृद्धि की प्रक्रिया में सामान्य रूप से कुछ संरचनात्मक परिवर्तन होते है । जैसे-जैसे देश वृद्धि की ओर उन्नत अवस्थाओं को प्राप्त करता है उसकी व्यावसायिक व पेशेगत संरचना या ढाँचे में रूपान्तरण होता है ।

आर्थिक वृद्धि के साथ सामान्यतः सकल राष्ट्रीय उत्पाद में कृषि का प्रतिशत गिरता है, जबकि उद्योग का अंश बढता है । अब देश परिपक्वता की दशा की ओर उन्मुख होता है तो औद्योगिक क्षेत्र का विकास ऊध्र्वमुखी प्रवृत्तियों के सकेत देता है । संरचनात्मक परिवर्तनों की यह प्रतिकृति सभी प्रकार की आर्थिक प्रणालियों में सामान्यत: देखी जाती है ।

प्रो॰ होलिस बी॰ चेनरी अर्थव्यवस्थाओं में हो रही संरचनात्मक विशेषताओं को वृद्धि की प्रक्रिया में ऐसी प्रतिकृतियों के द्वारा स्पष्ट किया जिन्हें सामान्यतः व्यावहारिक रूप से लागू किया जा सकता है ।

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चेनरी की परिकल्पना (Chenery’s Hypothesis):

चेनरी के अनुसार अर्थव्यवस्थाओं की संरचनात्मक विशेषताएँ क्रमिक रूप से कुछ आर्थिक चरों, विशेष रूप से प्रति व्यक्ति आय से सम्बन्धित होती हैं । यह सम्बन्ध न केवल वृद्धि कर रही अर्थव्यवस्थाओं के ऐतिहासिक विकास से, बल्कि अर्थव्यवस्थाओं की Cross-Country व्याख्या पर भी लागू होता है जब किसी विशेष समय बिन्दु पर आय के स्तर भिन्न-भिन्न ही ।

संरचनात्मक विशेषताओं की सामान्य प्रतिकृति चेनरी के अनुसार एक सार्वभौमिक प्रभाव से उत्पन्न होती है जिन्हें समानता प्रोत्साहक कारक कहा जाता है ।

चेनरी ने इन कारकों का वर्गीकरण निम्नवत किया:

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(i) सहज या सुलभ तकनीकी ज्ञान

(ii) समान या समतुल्य मानवीय इच्छाएं

(iii) आयातों व निर्यातों हेतु समान बाजारों तक पहुंच

(iv) आय के स्तर में वृद्धि होने से पूंजी का संचय

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(v) आय वृद्धि से कौशल में वृद्धि |

उपर्युक्त कारकों को प्राथमिक रूप से चेनरी ने विकास की प्रतिकृतियों की व्याख्या हेतु अनुप्रस्थ या आड़ी-काट व्याख्या द्वारा समझाया । उनका विश्वास था कि वृद्धि की प्रतिकृतियों की आडी काट व्याख्या द्वारा जो निष्कर्ष प्राप्त होते हैं उन्हें काल श्रेणी समंकों द्वारा प्राप्त निष्कर्षों के साथ तुलना योग्य पाया जाता है ।

अनुभव सिद्ध प्रमाण (Empirical Evidence):

चेनरी ने अपनी संकल्पना को प्रमाणित करने के लिए प्रतीपगमन विश्लेषण का प्रयोग किया । इस तकनीक के द्वारा सूचीबद्ध घटकों के प्रति आय में परिवर्तन की प्रवृत्ति को निर्धारित किया जाना सम्भव है ।

यह पाया गया कि इन समीकरणों से प्राप्त निष्कर्ष तब अधिक सुधर सकते है जब अध्ययन के अन्तर्गत सम्मिलित देशों के न्यादर्श अधिक निकट के समरूप समूहों में वर्गीकृत किए जाएँ ।

इस प्रकार चेनरी ने पाया कि वृद्धि की कुछ-कुछ भेदात्मक प्रतिकृतियाँ निम्नांकित वर्गों में प्रत्येक के लिए प्रस्तावित की जा सकती है ।

i. बड़े देश

ii. छोटे देश जो उद्योग उन्मुख हैं

iii. छोटे देश जो प्राथमिक उन्मुख हैं

बड़े एवं छोटे देशों के मध्य विभेद का आधार बाजार का आकार लिया गया । बड़े देशों के विपरीत छोटे देशों में बाजार का आकार उद्योगों की तीन में अधिक बाधाएँ उत्पन्न करता है जहाँ पैमाने की मितव्ययिताएँ एक महत्वपूर्ण भूमिका के निर्वाह हेतु ज्ञात होती हैं ।

छोटे देशों की दशा में उद्योग एवं प्राथमिक उन्मुख देशों के मध्य का अन्तर संसाधन आधार की प्रकृति के आधार पर लिया गया । ऐसे छोटे देश (जैसे न्यूजीलैण्ड) जहाँ एक सुदृढ़ संसाधन आधार कुछ प्राथमिक उत्पादों के रूप में विद्यमान था ने इन पर आधारित उद्योगों में विशिष्टीकरण प्राप्त किया तथा विनिर्मित उत्पादों को विदेशी व्यापार के द्वारा प्राप्त किया ।

दूसरी ओर, ऐसे छोटे देश (जैसे बेल्जियम) जहाँ सुदृढ़ संसाधन आधार उपलब्ध न था ने विनिर्माण वस्तुओं के निर्यात में विशिष्टीकरण प्राप्त किया और प्राथमिक वस्तुओं का आयात किया । इस प्रकार का व्यापार विशेषीकरण आधारभूत रूप से संसाधन आधार के अन्तरों द्वारा प्रकट होता है ।

चेनरी ने, विकसित देशों, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, जर्मनी, नार्वे, स्वीडन, यू॰ एस॰ ए॰ कनाडा व जापान देशों की प्रति व्यक्ति सकल आय के सापेक्ष प्राथमिक क्षेत्र व औद्योगिक क्षेत्र के शेयर रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शित किए ।

प्राथमिक क्षेत्र हेतु X अक्ष में सकल राष्ट्रीय उत्पाद प्रति व्यक्ति तथा Y अक्ष में प्राथमिक क्षेत्र का शेयर व दूसरी ओर औद्योगिक क्षेत्र हेतु X अक्ष में प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय उत्पाद तथा Y अक्ष में उद्योग के शेयर के मध्य वक्र खींचे गए ।

उचित काल श्रेणी समंकों का परिकलन समय अवधियों हेतु किया गया । अब दोनों क्षेत्रों के वक्रों की प्रवृत्ति को प्रतिकृति वक्र से दिखाते हुए इनके मध्य निकट की समानता पाई गई । चेनरी ने अनुप्रस्थ काट समंकों का प्रयोग कर प्रतीपगमन वक्र खींचे ।

चेनरी की व्याख्या : सार संक्षेप (Chenery’s Analysis: Conclusion):

प्राथमिक व औद्योगिक शेयर के व्यवहार को चेनरी ने प्रतिकृति वक्र द्वारा प्रदर्शित किया जो प्रति व्यक्ति आय, जनसंख्या, विनियोगों के अनुपात तथा निर्यातों जैसे व्याख्यात्मक चरों पर निर्भर रहते है । ऐसे कुछ चर न्यूनाधिक रूप से प्राथमिक व औद्योगिक शेयर के व्यवहार को निर्धारित करते है जिन्हें प्रतिकृति वक्र दिखाया जाता है ।

चेनरी के वक्र क्या वास्तव में ऐतिहासिक परिवर्तनों को प्रदर्शित करते हैं ? साथ ही अनुप्रस्थ काट के परिवर्तन कितने प्रासंगिक है ? जैसे प्रश्न अनसुलझे है । चेनरी की व्याख्या मात्र वृद्धि की प्रतिकृतियों से सम्बन्धित है जो क्षेत्रीय अंशों या शेयरों की सापेक्षिक महत्ता में होने वाले परिवर्तनों से निर्देशित होते है ।

उनकी व्याख्या में आय की वृद्धि पर की उपेक्षा की गई है जो ऐसे परिवर्तनों को शामिल नहीं करती । चेनरी की व्याख्या में वृद्धि पथ की एक सम-आनुपातिक दिशा से प्रस्थान के अंश पर मुख्यतः केन्द्रित रहा गया है । लेकिन वृद्धि की ऐसी कुछ मात्राएँ हो सकती हैं जो समस्त क्षेत्रों में समानुपातिक रूप से न हो रही हों अर्थात आयोन में ऐसी वृद्धि जो क्षेत्रीय परिवर्तनों को समाहित नहीं करती ।

ऐसे में, चेनरी की व्याख्या केवल व्यापक संरचनात्मक परिवर्तनों की अवधि तक सीमित है जो आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को समाहित करती है । ऐसे में उन समय अवधियों के बारे में कुछ नहीं कहा गया जब संरचना में न्यूनाधिक रूप से कोई परिवर्तन नहीं होते जैसा कि औद्योगीकरण की प्रक्रिया से पूर्ववर्ती समय में होता है ।

चेनरी की व्याख्या वर्तमान समय के विकसित देशों हेतु अनुकरणीय नहीं है अधिकांश विकसित देशों में प्राथमिक शेयर का अंश ऐसी अवस्था तक जा पहुँचा है जिसमें और अधिक वृद्धि की गुंजाइश नहीं है ।

जहाँ तक उद्योग क्षेत्र के अंशदान की प्रवृत्ति है उसमें यह देश एक वृद्धि की अवधि के बाद बदलाव के थम जाने या बहुत कम हो जाने की अवस्था को प्रदर्शित कर रहे है कुछ दशाओं में तो वृद्धि की दर गिरती हुई है । इससे यह संकेत मिलता है कि उन्नत देशों की भावी वृद्धि संरचनात्मक परिवर्तनों के साथ-साथ नहीं चल पाएगी ।