रीकॉम्बिनेण्ट डी.एन.ए. का गठन | Read this article in Hindi to learn about the formation of recombinant dna.

(1) वाहक या वेक्टर (Carrier or Vector):

रीकॉम्बिनेण्ट DNA के निर्माण में एक वाहक DNA की आवश्यकता होती है, जिससे असंगत DNA (Foreign DNA) को उससे जोड़ने के बाद कोशिका (Cell) में स्थानांतरित किया जा सके इस कार्य के लिए प्लाज्मिड्‌स (Plasmids) तथा बैक्टीरियोफेज (λ-Bacteriophages) का प्रयोग किया जाता है ।

(a) प्लाज्मिड्स (Plasmids):

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जीवाणुओं के कोशिकद्रव्य में पाये जाते हैं । ये DNA के छोटे व गोलाकार अणु हैं । इनमें बैक्टीरिया के गुणसूत्री DNA से अलग पुनरावृत्ति होती है । ये बैक्टीरियल गुणसूत्र (Bacterial Chromosome) के साथ जुड़ भी सकते हैं । उस अवस्था में इनको एपिसोम (Episome) कहते हैं ।

ये पुन: बैक्टीरियल गुणसूत्र (Bacterial Chromosome) से अलग भी हो जाते हैं । कभी-कभी अलग होते समय इनके साथ बैक्टीरियल गुणसूत्र (Bacterial Chromosome) के कुछ जीन भी आ जाते हैं । दूसरे बैक्टीरिया में पहुंचने पर ये अपने साथ आये हुये जीन्स को भी बैक्टीरिया में पहुँचा देते है ।

(b) बैक्टीरियोफेज DNA:

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बैक्टीरियोफेज (Bacteriophages) ट्रांसडक्शन (Transduction) द्वारा एक बैक्टीरिया (Bacteria) का कुछ आनुवंशिक पदार्थ दूसरे बैक्टीरिया (Bacteria) में पहुँचा देता है । इसके लिए प्रायः λ – बैक्टीरियोफेज (Bacteriophages) का प्रयोग किया जाता है ।

रीकॉम्बिनेण्ट DNA के निर्माण के लिए वेक्टर में निम्नलिखित विशेषताएँ होनी आवश्यक हैं:

(i) वेक्टर (Vector) के DNA में किसी रिस्ट्रिक्शन एण्डोन्यूक्लियेज द्वारा विशेष स्थान पर विभक्त होने की क्षमता होनी चाहिए, ताकि उसे आवश्यकता पड़ने पर विभक्त (Divide) किया जा सके ।

(ii) वेक्टर (Vector) के DNA में असंगत DNA को स्वीकार करने की क्षमता होनी चाहिए ।

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(iii) वेक्टर (Vector) समुचित आकार एवं परिमाण का होना चाहिये ताकि असंगत DNA (Foreign DNA) से जुड़ने के पश्चात् उसे सुगमतापूर्वक दूसरी कोशिका (Cell) में स्थानान्तरित किया जा सके ।

(iv) वेक्टर (Vector) में अवांछित (Undesirable) असंगत DNA को अस्वीकार करने की क्षमता होनी चाहिए ।

(2) यूकैरियोटिक कोशिका के जीन्स को अलग करके कॉम्प्लीमेण्टरी DNA का निर्माण करना (Isolation of Genes from Eukaryotic Cell and Preparation of Complementary DNA = c-DNA):

वाइरस तथा बैक्टीरियल गुणसूत्र (Bacterial Chromosome) के टुकड़ों से अनेक जीन्स या DNA को अलग किया जा चुका है, किन्तु यूकैरियोटिक कोशिकाओं के टूटे हुए गुणसूत्रों के टुकड़ों से किसी विशिष्ट जीन (Gene) या DNA को अलग करना अति कठिन है ।

यूकैरियोटिक कोशिका से जीन या DNA प्राप्त करने के लिए इसके m-RNA द्वारा पूरक या कॉम्प्लीमेन्टरी DNA (c-DNA) का संश्लेषण (Synthesized) किया जाता है ।

इस विधि में एक विशिष्ट जीन के m-RNA (जिनमें विशिष्ट प्रोटीन संश्लेषण का संदेश हो) का संवर्धन तैयार किया जाता है । Template DNA के समान रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज एन्जाइम की उपस्थिति में इसके Reverse Transcription से c-DNA का निर्माण होता है ।

(3) जीन-युक्त वेक्टर का निर्माण (Construction of Gene-Bearing Vector):

उपर्युक्त विधि (Method) से बने संश्लेषित c-DNA (Foreign DNA) कहलाते हैं । इनको वेक्टर में निवेशित (Insert) किया जाता है ।

इसमें निम्नलिखित पद हैं:

(i) सर्वप्रथम बैक्टीरिया (Bacteria) से प्लाज्मिड (Plasmid) को अलग किया जाता है ।

(ii) संश्लेषित c-DNA के दोनों सिरों से Poly-T हटाकर उन्हें चिपचिपें सिरों (Cohesive Ends) में बदला जाता है । c-DNA के दोनों वलयकों के 3’ सिरों पर Terminal Transferase एन्जाइम (Enzyme) की सहायता से कुछ Deoxyribonucleotides को जोड़ा जाता है ।

(iii) रिस्ट्रिक्शन एण्डोन्यूक्लियेज (Restriction Endonuclease) एन्जाइम (Enzyme) द्वारा वेक्टर (प्लाज्मिड) को विशिष्ट स्थान पर काटा जाता है ।

(iv) Terminal Transferase एन्जाइम (Enzyme) की मदद से प्लाज्मिड DNA के दोनों वलयकों के 31 सिरे से पॉलिन्यूक्लिओटाइड जोड़कर चिपचिपे सिरे (Cohesive Ends) बनाये जाते हैं, जिससे यह समंजन योग्य बन जाता है ।

(v) c-DNA के चिपचिपे सिरों (Cohesive Ends) को वाहक DNA के चिपचिपे सिरों के सम्पर्क में रखा जाता है, जिससे उनमें क्षारों के जोड़े बने । एन्जाइम (Enzyme) DNA-Ligase की सहायता से DNA के दोनों टुकड़ों में सहसंयोजन होता है । इस प्रकार r-DNA का निर्माण होता है ।

(4) रिकॉम्बिनेण्ट DNA का ट्रान्सफॉरमेशन (Transformation of Recombinant DNA):

ट्रान्सफॉरमेशन के अन्तर्गत किसी स्वतन्त्र r-DNA को जीवाणु कोशिका में स्थानान्तरित किया जाता है । यदि वह स्थानान्तरण किसी विषाणु की सहायता से सम्पन्न किया जाता है, तब इसे ट्रान्सडक्शन (Transduction) कहते हैं ।

रीकॉम्बिनेण्ट DNA (r-DNA) के निर्माण के बाद वृद्धि तथा पुनरावृत्ति (Replication) के लिए किसी क्लोनिंग जीव (सामान्यतः बैक्टीरिया E. Coli) में स्थानान्तरित (Transfer) किया जाता है । E.Coli कोशिका को r-DNA के प्रवेश हेतु सक्रिय करने के लिए उसे कुछ समय के लिए कैल्सियम क्लोराइड (Calcium Chloride) के विलयन में रखते हैं ।

ऐसी कोशिका (Cell) जिसमें r-DNA या पुन:निर्मित प्लाज्मिड पहुँचता है, ट्रान्सफार्म्ड कोशिका (Transformed Cell) कहते हैं । इस कोशिका (Cell) को वृद्धि एवं प्रजनन के लिए उचित संवर्धन माध्यम (Culture Medium) में रखते हैं ।

परिवर्तित कोशिका (Cell) अलैंगिक विधि द्वारा प्रजनन करके रोपित असंगत जीन (Implanted Foreign Gene) युक्त अनेक कोशिकाएँ (Cell) उत्पन्न करती हैं तथा इनमें उपस्थित r-DNA जीवाणु के प्रोटिन्स के अतिरिक्त उन विशिष्ट प्रोटिन्स का भी संश्लेषण करता है, जो कि रोपित जीन द्वारा निर्देशित होते हैं ।