Read this article in Hindi to learn about:- 1. स्पेक्ट्रोफोटोमीटर का अर्थ  (Meaning of Spectrophotometer) 2. स्पेक्ट्रोफोटोमीटर के सिद्धान्त (Principle of Spectrophotometer) 3. संरचना (Structure) 4. विभिन्न प्रकार (Different Types).

स्पेक्ट्रोफोटोमीटर का अर्थ  (Meaning of Spectrophotometer):

वर्ण क्रमीय ज्योतिमिति/स्पेक्ट्रोफोटोमीटरी (Spectrophotometry) भौतिकी एवं रासायनिकी (Physics and Chemistry) का एक उप-खण्ड (Sub-Division) है, जिसके द्वारा विकीर्ण ऊर्जा (Radiant Energy) की माप तरंगदैर्ध्य (Wavelength) आवृत्ति (Frequency) या तरंग संख्या (Wave Number) के रूप में की जाती है ।

अत: एक शरीर/काय (Body) के द्वारा संवाहित/परावर्तित (Transmitted/Reflected) विकीर्ण ऊर्जा की तुलना दूसरे तंत्र के द्वारा संवाहित/परावर्तित विकीर्ण ऊर्जा से की जाती है, तो उसे एक स्टैण्डर्ड/मानक (Standard) माना जाता है ।

विभिन्न प्रकार के आधुनिक उपकरण विद्युत-चुम्बकीय वर्णक्रम (Electromagnetic Spectrum) की तरंगदैर्ध्य (Wavelength) के विस्तृत क्षेत्र को व्यवस्थित करते हैं ।

ADVERTISEMENTS:

विभिन्न वर्णक्रम (Spectrum Range) की अनुमानतः सीमा है- क्ष-किरण (X-Rays) 1 से 100 ऐंग्स्ट्राम (Angstrom-Å), पराबैंगनी (Ultra-Violet) 10-400 मिलिमाइक्रान्स (Milli-Microns-mµ) दृष्टिगत (Visible) 400-700mµ इन्फ्रारेड/अवरक्त (Infrared) 0.7 से 500 माइक्रोन्स (µ-Microns) से अधिक एवं सूक्ष्म तरंग (Micro-Wave) 0.1 से 1.00m µ ।

इन इकाइयों (Units) के मध्य परस्पर सम्बन्ध को निम्नलिखित के द्वारा दर्शाया जाता है:

1Å = 01mµ = 10-4µ = 10-8µ

इन सभी क्षेत्रों से स्पेक्ट्रोफोटोमीटर/वर्णक्रममापी (Spectrophotometer) दृष्टिगत (Visible) क्षेत्रों का विश्लेषण के लिए रासायनिक प्रयोगशाला में अत्यधिक रूप से उपयोग होता हैं । अधिकांश पदार्थ विभिन्न रंगीन व्युत्पन्नों में परिवर्तन के पश्चात् वर्णक्रमीय ज्योतिमिति (Spectrophotometry) के द्वारा निर्धारित किए जाते हैं ।

ADVERTISEMENTS:

किसी भी भौतिक गुण जो कि एक विशिष्ट अवयव या यौगिक का लक्षण होता है, को उसके विश्लेषण का एक आधार बनाते हैं । विकीर्ण ऊर्जा (Radiant Energy) की पदार्थों से परस्पर क्रिया एक वैश्लेषिक उपकरण (Analytical Tool) के रूप में कार्य करती है ।

विकीर्ण ऊर्जा के लिए पराबैंगनी (Ultraviolet) एवं वर्णक्रम (Spectrum) के दृष्टिगत भाग में पदार्थों के अवशोषण को मापने के लिए जो उपकरण उपयोग में लाते हैं । उनके विभिन्न नामों से जाना जाता हैं । जैसे- स्पेक्ट्रोफोटोमीटर (Spectrophotometer) केलोरी मीटर (Colorimeter), फ्लोरो मीटर (Flourimeter) आदि ।

स्पेक्ट्रोफोटोमीटर के सिद्धान्त (Principle of Spectrophotometer):

स्पेक्ट्रो फोटोमीटर (Spectrophotometer) मुख्य रूप से प्रकाश के नियमों पर कार्य करते हैं:

ADVERTISEMENTS:

(1) लैम्बर्टस् नियम (Lambert’s Law),

(2) बीरस नियम (Beer’s Law) ।

जब प्रकाश एक वर्णिक/मोनोक्रोमेटिक (Monochromatic) या विषमांगी/हैटेरोजीनस (Heterogenous), एक समांगी/होमोजीनस (Homogenous) समांगी माध्यम में गिरता है, अनुवर्ती प्रकाश का एक भाग प्रतिबिम्बत (Reflected) होता है तथा कुछ भाग माध्यम में शोषित हो जाता है ।

शेष भाग संवाहित प्रकाश की तीव्रता को IO से दर्शाया जाता है, शोषित प्रकाश की तीव्रता से Ia और संवाहित प्रकाश It (Transmitted Light) से एवं परावर्तित (Reflected) प्रकाश को Ir से दर्शाया जाता है ।

तब- Io = Ia + It + Ir

ग्लास सेल (Glass Cell) के उपयोग करने के कारण वायु काँच के अन्तरापृष्ठ (Interface) के लिए यह कहा जाता है कि अनुवर्ती प्रकाश का लगभग (4%) भाग परावर्तित होता है- It सामान्यतया नियन्त्रण के उपयोग के कारण बाहर निकाला जाता है, जैसे कि तुलनात्मक सेल (Comparative Cell) ।

अत: Io = Ia + It

माध्यम की मोटाई के अनुसार प्रकाश के शोषण में परिवर्तन की खोज का श्रेय लैम्बर्ट (Lambert) को दिया जाता है ।

(1) लैम्बर्ट्स नियम (Lambert’s Law):

इस नियम के अनुसार जब एकवर्णीय (Monochromatic) प्रकाश एक परादर्शक माध्यम में संवाहित होता है, तब माध्यम की मोटाई के साथ तीव्रता की दर में कमी प्रकाश की तीव्रता के अनुपात में होती है ।

गणना की दृष्टि से जब शोषित माध्यम की मोटाई में वृद्धि होती है, तब उत्सर्जनीय (Emitted) प्रकाश की तीव्रता घातीय रूप से कम होती है या दी गई माध्यम की कोई भी स्तर के ऊपर आवर्ती प्रकाश का कुछ अंश शोषित करती है ।

हम नियम को विभेदी/अंतराक्षयी समीकरण (Differential Equation) के द्वारा दर्शाते हैं:

-dI / dI = KI

जिसमें:

I = λ तरंगऔर्ध्य की आवृत्ति प्रकाश की तीव्रता,

l = संवाहित प्रकाश की तीव्रता,

K = तरंगदैर्ध्य (Proportionality Factor) ।

समीकरण (2) का समाकलन तथा प्रक्षेपण I = Io जब 1 = 0 तब हमको प्राप्त होता है-

In Io / It = KI

या

It = Io.e-kl

जहाँ Io = आवर्ती (i) प्रकाश की तीव्रता जो कि शोषित माध्यम की मोटाई I पर गिरती है ।

It = संवाहित प्रकाश की तीव्रता ।

K = तरंगदैर्ध्य (Wavelength) एवं शोषित माध्यम जो उपयोग हुआ का नियतांक (Constant) । प्राकृतिक से साधारण लघुगणक/लॉगेरिथ्म (Logarithm) में परिवर्तन कर हमको प्राप्त होता है-

It = Io-10-0.4343ki = Io-10-KI

जहाँ k = k / 2.3026 इसके अवशोषण गुणांक (Absorption Coefficient) कहते हैं ।

अवशोषण गुणांक (Absorption Coefficient) को इस प्रकार परिभाषित करते हैं कि यह प्रकाश की तीव्रता को I/10 कम करने के लिए मोटाई (1 cm) की आवश्यकता है जो कि उसका पारस्परिक/अन्योन्य (Reciprocal) होता है । यह समीकरण (4) का अनुगनम करता है-

It / Io = 0.1 = 10-kI या k1 = 1 एवं k = 1 / 1

It / Io का अनुपात आवर्ती प्रकाश (Incident Light) का प्रभाजित भाग (Fraction) है जो कि माध्यम की मोटाई 1 अपरादर्शिता (Opacity) है तथा माध्यम का ऐब्सोर्बेन्स (Absorbance) AC पूर्व में इसके प्रकाशीय घनत्व (Optical Density-D) या विलोपन = Extinction E कहते थे को दर्शाया जाता है-

A = log Io / It

एक मान्य तरंगदैर्ध्य (Wavelength) के लिए माध्यम ऐबसोर्बेन्स सहित 1 होता है आवर्ती प्रकाश के 10% भाग को संवाहित करता है ।

(2) बीरस नियम (Beer’s Law):

एक वर्णिक प्रकाश की किरण (Ray of Monochromate Light) की तीव्रता घोल की सान्द्रता से घातांक रूप से (Exponentially) कम होती है ।

2.303 log10 (Io / I) = k’C

जिसमें C = प्रकाश शोषण करने वाले पदार्थ की सान्द्रता ।

लैम्बर्ट एवं बीरस नियम को मिलाकर-

log e (Io / I) = kCZ

या

2.303 log 10(Io / I) = kCZ

जब प्रकाश एकवर्णिक (Monochromatic) नहीं होता है तब लैम्बर्ट का नियम, बीरस नियम से विचलित होता है । कोई भी संचरण सान्द्रता के सम्बन्ध के परीक्षण का अनुवर्तन log O(Io/I) या log T का अंकन (Plot) सान्द्रता के विरुद्ध कर सकता है ।

यदि परिणाम सीधी रेखा में होता है, जो कि उद्गम (Origin) से निकलता है, परिणाम को सत्यापित करता है, यदि घोल सत्यापित नहीं करता है, तब अवशोषण के अंशशोधन वक्र (Calibration Curve) को मानक की सान्द्रता के विरुद्ध अंकित किया जा सकता है ।

स्पेक्ट्रोफोटोमीटरी (Spectrophotometry) के स्केल के अंशांकन (Caliberation) को सीधे अवशोषकता के द्वारा पढ़ा जाता है । कभी-कभी प्रतिशत संचरण के द्वारा भी पढ़ा जा सकता है ।

Io = प्रकाश तीव्रता या शुद्ध विलायक (Solvent) द्वारा संवाहित होती है या प्रकाश की तीव्रता जो घोल में प्रवेश करती है । It = प्रकाश की तीव्रता जो घोल में से निकलती है या घोल के द्वारा संवाहित होती है ।

यह नोट किया जाता है कि:

(1) अवशोषण गुणांक (Absorption Coefficient)- इकाई पथ लम्बाई की अवशोषकता k = A/t or It = Io-10-kt होती है ।

(2) विशिष्ट अवशोषण गुणांक (Specific Absorption Coefficient)- इकाई पथ लम्बाई एवं इकाई सान्द्रता की अवशोषकता होती है ।

Es = A / cI या It = Io-10-Escl

(3) मोलर अवशोषण (Molar Absorption Coefficient)- यह विशिष्ट अवशोषण गुणांक 1 mol L-1 की सान्द्रता एवं पथ लम्बाई 1cm के लिए होता है ।

ԑ = A / cl.

स्पेक्ट्रोफोटोमीटर की संरचना (Structure of Spectrophotometer):

विभिन्न प्रकार के उपकरण अवशोषण के मापने के लिए पाये जाते हैं ।

एक प्रारूपी स्पेक्ट्रोफोटोमीटर (Spectrophotometer) में निम्नलिखित आवश्यक घटक (Essential Components) होते हैं:

(i) प्रकाश का स्त्रोत (Source of Light) ।

(ii) एक वर्णिक इकाई (Monochromator Unit) ।

(iii) प्रकाश सम्प्रेषण का अभिज्ञापक (A Detector for Light Transmitted) ।

(iv) सम्प्रेषण को पढ़ने/ज्ञात करने वाला मीटर (Meter to Read the Transmission) ।

प्रकाश का स्रोत दृश्यमान वस्तु में कार्य करता है, इन्फ्रारेड (Infrared) एवं पराबैंगनी क्षेत्र के पास तापदीप्ति लैम्प (Incandascent Lamp) है, जिसमें टंगस्टन फिलामेण्ट (Tungsten Filament) होता है । पराबैंगनी क्षेत्र (Ultraviolet Region) के लिए हाइड्रोजन या ड्‌यूटेरियम लैम्प (Hydrogen or Deuterium Lamp) का उपयोग होता है ।

अनेक स्पेक्ट्रोफोटोमीटर में प्रकाश को कोलिमेटिंग/समांतरित (Collimating) लेन्स को दर्पण (Mirror) का उपयोग कर समानान्तर बनाया जाता है । इससे पूर्व कि यह एकवर्णिकी (Monochromator) इकाई के ऊपर से गुजरती है, जो कि एक घूर्णन प्रिज्म (Rotating Prism) एवं छिद्र युक्त फिल्टर से बना होता है ।

प्रिज्म प्रकाश को विभिन्न तरंग पट्टिकाओं (Wave Bands) में विघटित करता है और फिल्टर कुछ तरंग लम्बाई (Wave Length) के प्रकाश को निकालता है । फिल्टर का द्वारा/छिद्र समायोज्य (Adjustable) होता है । यह अत्यधिक संकरा हो सकता है 0.5 nm तक ।

कुल स्पेक्ट्रोफोटोमीटर (Spectrophotometer) में वियोजित होता है । उपकरण में एक प्रादर्श धारक (Sample Holder) होता है । जो कि एकवर्णिकी (Monochromator) इकाई एवं अभिज्ञापक (Detector) के बीच में स्थित होता हैं । प्रादर्श ट्यूब्स (Sample Tubes) ग्लास (Glass) या फ्यूज सिलिका की बनी होती है जिसकी मोटी भित्ति 1mm एवं आन्तरिक व्यास 1cm होता है ।

अभिज्ञापक (Detector) प्रकाश संवेदी होता है जो कि वर्णक्रमीय क्षेत्र (Spectral Region) में रेखीय अनुक्रिया (Linear Response) देता है । यह विद्युत्‌मापी से सम्बन्धित होता है, जो कि प्रादर्श से गुजरने वाले प्रकाश की वास्तविक/सही मात्रा को पढ़ता है ।

वर्णक्रमीय ज्योतिमिति (Spectrophotometry) दृष्टिगोचर क्षेत्र में अनेक अकार्बनिक यौगिकों एवं वर्णकों (Pigment) के निर्धारण में अधिक लाभकारी होता है । पराबैंगनी वर्णक्रमीय ज्योतिमिति (Ultraviolet Spectrometry) का उपयोग सुगंधित (Aromatic) एवं हैटैरोसायक्लिक कार्बनिक यौगिकों (Heterocyclic Organic Compounds) के निर्धारण के लिए होता है । इन्फ्रारेड वर्णक्रमीय ज्योतिमिति (Infrared Spectrophotometry) का उपयोग गैसों के लिए होता है ।

विभिन्न प्रकार के स्पेक्ट्रो फोटोमीटर (Different Types of Spectrophotometer):

मुख्य रूप से स्पेक्ट्रोफोटोमीटर दो प्रकार के होते है:

(1) एकल पुंज स्पेक्ट्रोफोटोमीटर (Single Beam Spectrophotometer),

(2) द्विगुणीय पुंज स्पेक्ट्रोफोटोमीटर (Double Beam Spectrophotometer) ।

(1) एकल पुंज स्पेक्ट्रोफोटोमीटर (Single Beam Spectrophotometer):

प्रकाश स्रोत A प्रतिबिम्ब, संघनित दर्पण B (Condensing Mirror) एवं विकर्ण दर्पण (Diagonal Mirror) के द्वारा प्रवेश छिद्र (Entrance Slits) D पर फोकस किया जाता है । दो छिद्र जो कि ऊर्ध्व रूप (Vertically) में एक-दूसरे पर स्थिर होते हैं, प्रवेश छिद्र, नीचे की ओर स्थित होता है ।

प्रकाश जो कि समान्तरित दर्पण (Collimating) E पर गिरता है वह समानान्तर एवं परावर्तित होकर क्वार्ट्ज प्रिज्म/स्फटिक दर्पण (Quartz Prism) F पर गिरता है प्रिज्म की उल्टी/विपरीत (Back) सतह ऐलुमिनाइस्ट (Aluminised) होती है, जिससे कि प्रकाश प्रथम सतह पर अपवर्तित (Refracted) होकर प्रिज्म के द्वारा परावर्तित हो जाता है । प्रिज्म में से निकलकर यह पुन: अपवर्तित होता हैं ।

छिद्र D की दिशा में समान्तरित दर्पण स्पेक्ट्रम/वर्णक्रम (Spectrum) को फोकस करते हैं । तरंगदैर्ध्य (Wavelength) का प्रकाश, जिसके लिए प्रिज्म को सुव्यवस्थित/निर्धारित किया गया है, मोनोक्रोमेटर (Monochromator) में से होकर निर्गम द्वारा (Exit Slit) से बाहर आकर अवशोषणीय कोशिका/सैल (Absorption Cell) G से फोटोसेल H (Photocell) में चला जाता है । फोटोसेल अनुक्रिया कर विस्तृत/विस्तीर्ण होकर (Amplified) मीटर M पर अंकित हो जाता है ।

प्रकाश स्रोत (Light Source) A में दो लैम्प (Lamps) होते हैं- एक टंगस्टन-हैलोजेन लैम्प (Tungsten-Halogen Lamp), दृष्टिगत एवं स्पेक्ट्रम के पास वाले पराबैंगनी भाग के लिए तथा दूसरा ड्‌यूटेरियम लैम्प (Deuterium Lamp) पराबैंगनी के लिए । यह लैम्प गतिशील भुजा पर स्थिर होते हैं, जो कि प्रत्येक लैम्प को सही चाही गयी संपादित स्थिति (Operating Position) पर लाते हैं ।

इस प्रकार दो फोटो नलिकाएं होती हैं और जैसे ही लैम्प परिवर्तित होते हैं उपयुक्त नलिका को फोकल बिन्दु पर लाते हैं । उपकरण के आधुनिक रूपान्तरण में विवर्तन जाली (Diffraction Grating) के स्थान पर प्रिज्म (F) को परिवर्तित किया गया है ।

(2) द्विगुणीय पुंज स्पेक्ट्रोफोटोमीटर (Double Beam Spectrophotometer):

यह आधुनिक सामान्य उपयोग वाला पराबैंगनी तथा दृश्यमान स्पेक्ट्रोफोटोमीटर होता है, जो निरन्तर स्वचालित स्कैनिंग क्रिया द्वारा 200-800nm के बीच का स्पेक्ट्रम उत्पन्न करता हैं ।

इस उपकरण में टंगस्टन एवं ड्‌यूटेरियम (Tungsten and Deuterium) लैम्प स्रोत से उत्पन्न एकल वर्णक्रमीय विकिरण का पुंज दो समान पुंजों में विभाजित हो जाता है, इसमें से एक पुंज प्रेषण सेल (Reference Cell) से निकलता है तथा दूसरा पुंज सैम्पल सेल (Sample Cell) से निकलता है ।

प्रेषण सेल के पदार्थों के अवशोषण का संकेत स्वतः ही सैम्पल सेल से कम हो जाता है और कुल संकेत (Net Single) सैम्पल घोल के पदार्थों के अवशोषण के समान प्राप्त होते हैं ।

पुंज का विभाजन (Splitting) एवं रीकॉम्बिनेसन (Recombination) दो रोटेटिंग सेक्टर दर्पण (Rotating Sector Mirror) के द्वारा पूर्ण होता है जो कि एक समान मोटर के साथ लगे होते हैं और ये एक साथ कार्य करते हैं ।

उपयोग (Uses):

(1) स्पेक्ट्रोफोटोमीट्री का उपयोग बायो केमिस्ट्री, एन्जाइमों की सान्द्रता तथा यौगिकों की पहचान के लिए किया जाता है ।

(2) अभिक्रिया पदार्थ के लुप्त होने की माप कर निर्धारित किया जा सकता है ।

(3) यौगिक की सान्द्रता का मापन प्रकाशीय घनत्व माप कर लिया जा सकता है ।

प्रतिदीप्ति स्पेक्ट्रोस्कोपी (Fluorescence Spectroscopy):

इस स्पेक्ट्रोस्कोपी में उत्तेजन (Excitation) तथा उत्सर्जन (Emission) स्पैक्ट्रा दोनों को रेकोर्ड किया जा सकता है । जब एक अणु विकिरण को अवशोषित करता है, तो इससे अधिक λ वाली विकिरणे उत्सर्जित होती है । यह घटना प्रतिदीप्ति (Fluorescence) कहलाती है ।

इस प्रकार एक योगिक UV क्षेत्र में विकिरण का अवशोषण करने के पश्चात् दृश्य प्रकार को उत्सर्जित करता है । प्रतिदिप्ती वह परिघटाना है, जिसमें इलेक्ट्रोन उत्तेजित अवस्था (Excited State) से ग्राउण्ड स्टेट में इलेक्ट्रोन चक्रण (Spin) में परिवर्तन बिना प्रकाश का उत्सर्जन होता है ।

सामान्यतया अधिकांश कार्बनिक अणु कमरे के तापमान पर ग्राउण्ड स्टेट में होते हैं । ये अणु प्रकाश को अवशोषित करते हैं, तो इलेक्ट्रोन ग्राउण्ड स्टेट से उच्च ऊर्जा स्तर में चले जाते हैं, तो ऊर्जा का अवशोषण होता है ।

परिणामतः उत्तेजित अणु की ऊर्जा तीव्रता से अवरोहित होती है एवं निम्नतर उत्तेजित अवस्था (Lowest Excited State) की न्यूनतम कंपन्न ऊर्जा (Minimum Vibrational Energy) तक आ जाती है ।

यद्यपि अधिकांश अणु UV तथा दृश्य क्षेत्र में अवशोषण करते हैं लेकिन कुछ ही कार्बनिक अणु प्रतिदीप्ति को उत्पन्न करते हैं । क्योंकि इन अणुओं से ग्राउण्ड स्टेट में आने के पश्चात् उत्सर्जित ऊर्जा 10-8 Second से भी कम समय (Single Transition) वाली होती है ।

इससे एक प्रतिदीप्त शिखर (Fluorescent Peak) उत्पन्न होता है । जबकि प्रस्फुरदिप्ती (Phosphorescence) में अवशोषित ऊर्जा का विलंबन से उत्सर्जन होता है, जो Triplet Singlet Transition को निरुपित करता है ।

प्रतिदिप्ती तथा प्रस्फुरदिप्ती दोनों परिघटनाओं में उत्सर्जित प्रकाश, अवशोषित प्रकाश की तुलना में अधिक λ वाला होता है । प्रतिदिप्ती में उत्सर्जित प्रकाश अध्ययन किये जाने वाले गुण के अनुसार विशिष्ट होता है ।

संरचना (Structure):

प्रतिदिप्ती (Fluorimeter) में निम्न संरचनायें होती हैं:

(1) मर्करी लैंस (Mercury Lamp),

(2) मोनोक्रोमेटर (Monochromater),

(3) क्यूवेट (Cuvette),

(4) प्रकाश सेल (Photo Cell),

(5) प्रवर्द्धक (Amplifier) ।

3200 Å से अधिक की तरंगों पर काँच वाली क्यूवेट का उपयोग किया जाता है एवं 3200 Å से कम तरंगों के लिये सिलिका की क्यूवेट का उपयोग किया जाता है । साथ ही उपयुक्त प्रतिदिप्ती के निर्धारण के लिये ताप नियंत्रण इकाई (Temperature Control Unit) होनी चाहिए । जब प्रतिदिप्ती की तीव्रता में कमी आने पर प्रतिदर्श का तापमान 30°C से 25°C हो जाता है ।

जब प्रकाशीय विकिरणें मोनोक्रोमेटर से गुजरती है तो प्रकाश का Dispersion हो जाता है । यह मोनोक्रोमेटिक प्रकाश जब, प्रतिदर्श (Sample) में से गुजरता है, तो प्रतिदर्श के अणु उत्तेजित हो जाते हैं । इन उत्तेजित अणुओं से प्रतिदिप्ती या प्रस्फुरदिप्ती उत्सर्जित होते हैं जो द्वितीय मोनोक्रोमेटर में प्रवेश करते हैं ।

मोनोक्रोमेटर के द्वारा अधिकतम प्रतिदिप्ती के अनुसार तरंगदैर्ध्य का चयन होता है जो अंत में डिटेक्टर पर स्ट्राइक करती है व अंत में इसे रेकोर्डर में रेकार्ड कर लिया जाता है । स्पेक्ट्रों क्लोरीमेट्री अवशोषण तकनीकी की तुलना में हजार गुणा संवेदी होती है ।

इस यंत्र में 100 पिकोग्राम तक की मात्रा को प्रेक्षित किया जा सकता है । इसकी अत्यधिक संवेदिता, फोटोसेल सर्किट में उत्पन्न करंट के प्रवर्द्धन (Amplification) के करण होती है । दो मानोक्रोमेटर की उपस्थिति के कारण इसकी स्पेक्ट्रम चयनात्मकता प्रेरित होती है ।

उपयोग (Uses):

(1) मात्रात्मक एवं गुणात्मक विश्लेषण में इनका व्यापक उपयोग होता है

(2) आहार में Vit-B के विश्लेषण में,

(3) माइटोकॉण्ड्रिया में NADH के निर्धारण में,

(4) हॉर्मोन के मात्रात्मक विश्लेषण में,

(5) एंजाइम गत्यात्मकता के निर्धारण में,

(6) प्रोटीन संरचना के अध्ययन में,

(7) NAD+ व NADP+ संबंधित अभिक्रियाओं के विश्लेषण में,

(8) कोशिका झिल्ली की संरचना के अध्ययन में इसका उपयोग किया जाता है ।