पौधों और जानवरों का फैलाव | Read this article in Hindi to learn about the dispersal of plants and animals in Hindi language.

पेड़-पौधों का प्रकीर्णन अथवा परिक्षेपण (Dispersal of Plants):

किसी जीव-जाति के सदस्यों के स्थानांतरण को पेड़-पौधों का प्रकीर्णन एवं स्थानांतरण कहते हैं । प्रकीणन केवल पुनरुत्पादक अवस्था में ही संभव होता है, क्योंकि बड़े पेड़ों और पौधों में अंतर होता है । पेड़ो की तुलना में पेड़/पौधे को सरलता के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करना सरल होता है ।

इन्हीं कारणों से पेड-पौधों के स्थानांतरण पर जलवायु (तापमान एवं वर्षण) का भारी प्रभाव पडता है । वास्तव में पेड़-पौधों का प्रकीर्णन मुख्य रूप से बीजों तथा पौदे-पौध के द्वारा ही होता है । बीजों के द्वारा वनस्पति का प्रसारण सरल तथा अपेक्षाकृत तीव्र होता है ।

वनस्पति का परिक्षेपण पर बीजों की निम्न विशेषताओं पर निर्भर करता है:

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(i) बीजों की विशेषता

(ii) बीजों का प्रसारण/स्थानांतरण करने वाले कारक जल, पवन, पशु, मानव आदि

(iii) स्थानांतरण की गति तथा दूरी

(iv) भौगोलिक बाधाएँ

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(v) सहनशीलता विस्थापन

(vi) महाद्वीपीय विस्थापन

(vii) मानवीय कारक |

बहुत-से ऐसे भी पेड़-पौधे है जो अलिंगी होते हैं, जिनकी उत्पत्ति बल्व, कोर्म, राइजोम इत्यादि प्रकीर्णता बहुत सीमित होता है । इसके विपरीत जो पेड-पौधे बीजों तथा बीजाणु का उत्पादन करते हैं उनका प्रसारण तथा प्रकीर्णन सरलतापूर्वक दूर-दूर तक संभव होता है ।

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जिन पेड़-पौधों का उत्पादन प्रसारण बीजों तथा बीजाणुओं के द्वारा होता है, वे अपने मूल स्थान क्षेत्र से दूर-दूर तक के स्थानों एवं प्रदेशों में अनुकूलन की क्षमता रखते हैं । बीज वाले वृक्षों का स्थानांतरण मुख्यतः बाह्‌य कारकों के द्वारा होता है । कुछ पौधों के बीज बहुत हल्के होते हैं जिनको एक स्थान से दूसरे स्थान पर उठाकर ले जाते हैं ।

आर्किड जैसे पौधों का प्रसारण वायु के द्वारा ही होता है । इसके विपरीत बहुत से पेड़-पौधों का प्रकीर्णन बहते जल (नदियों इत्यादि) के द्वारा होता है । कुछ बीजों के शरीर पर रोयाँ, बाल आदि होते हैं जो पशुओं के शरीर पर लिपट जाते हैं और पशुओं के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रसारण होता रहता है ।

कुछ बीजों को पक्षी खा लेते हैं और उनकी बीट के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर गिराकर उनका प्रसारण करते है । उपरोक्त कारकों के अतिरिक्त मानव, पेड-पौधों के प्रसारण एवं स्थानांतरण का सबसे प्रमुख कारक है । फसलों के बहुत से कीटाणुओं के द्वारा भी पौधों का प्रकीर्णन होता है ।

संक्षिप्त रूप में कहा जा सकता है कि पेड़-पौधों का प्रसारण, पवन, बहते जल, (नदियों), जलधाराओं, पशु-पक्षियों, कीटाणुओं तथा मानव के द्वारा होता है ।

उपरोक्त कारकों में पवन (हवा), जल तथा मानव पेड़-पौधों के प्रसारण एवं स्थानांतरण के प्रमुख कारक है । यद्यपि हल्के वजन के बीजों को हवा उड़ाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती है परंतु इस प्रक्रिया में बहुत से बीज नष्ट भी हो जाते है । पक्षी एवं चिडियाँ बीजों का प्रसारण दूर-दूर के प्रदेशों में करती हैं ।

सागर की लहरों, ज्वार-भाटा, सुनामी, नदियाँ तथा जलधारा के द्वारा बहुत-से बीजों का प्रसारण होता है । वर्तमान युग में उपलब्ध यातायात के साधनों के कारण तीव्र गति से पेड़-पौधों के बीजों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरण करते हैं । अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से भी पेड-पौधों तथा उनके प्रकीर्णन में भारी सहायता मिली है ।

बीजों के प्रकीर्णन में बाधाएं (Constraints in Seed Dispersal):

पेड़-पौधों के प्रकीर्णन में निम्न रुकावटों के कारण बाधाएँ उत्पन्न होती हैं:

(i) छोटे तथा हल्के बीज वायु के द्वारा दूर-दूर तक फैलाये जा सकते हैं, परंतु ऐसे बीजों में नष्ट होने वाले बीजों की संख्या अधिक होती है ।

(ii) बड़े आकार के बीजों का प्रसारण मद गति से होता है, परंतु उनमें से नष्ट होने वाले बीजों की संख्या भी अपेक्षाकृत कम होती है ।

(iii) विभिन्न प्रकार के पेड-पौधों बीजों के आकार तथा मात्रा का भी बीजों के प्रकीर्णन पर प्रभाव पड़ता है । उदाहरण के लिये जो पेड़ वार्षिक तौर पर बीजों का उत्पादन करते हैं, वे अधिक मात्रा में बीज उत्पन्न करते हैं, ऐसे बीजों को दूर-दराज तक ले जाए जा सकते है और उनका प्रसारण तीव्र गति से संभव हो पाता है । इसके विपरीत बहुवर्षी पेड़-पौधों के बीजों का आकार बडा तथा कम होता है । ऐसे बीजों का प्रसारण मद गति तथा सीमित दूरी तक हो पाता है ।

(iv) सागर तथा महासागर पेड़-पौधों के बीजों के प्रसारण में भारी रुकावट प्रस्तुत करते है । महासागर पेड-पौधों तथा उनके बीजों के स्थानांतरण में भारी रुकावट के बावजूद, जल धाराओं के द्वारा बीज दूर-दराज के क्षेत्रों में स्थानांतरित होते रहते हैं । ऊँची पर्वतमालाएँ तथा बड़े मरुस्थल भी पेड-पौधों के बीजों के फैलाओं में भारी रुकावट उत्पन्न करते हैं ।

स्थलीय पशु-पक्षियों का वितरण (Distribution of Land Animals):

पशु-पक्षिओं के प्रादेशिक वितरण, उनकी भौतिक विशेषताओं तथा प्रवसन का अध्ययन किया जाता है । प्रवसन के द्वारा पशु-पक्षी प्राकृतिक वातावरण से अनुकूलन उत्पन्न करते हैं तथा अत्यंत गर्मी-सर्दी, वर्षण तथा सूखे से स्वयं को बचाते है ।

पशु-पक्षियों का प्रकीर्णन (Dispersal of Animals):

पेड-पौधों की तुलना में पशु-पक्षी अधिक स्थानांतरण करते हैं । पशुओं का भोजन, आहार-श्रृंखला जीवन-चक्र तथा पलायन की विधि में अंतर पाया जाता है । पशु-पक्षियों का स्थानांतरण तीव्र, मध्यम, मद अथवा मौसमी गति से होता है । ज्वालामुखी के उदगार, बाद सूखा तथा सुनामी की परिस्थितियों में पशु-पक्षी तीव्र गति से पलायन कर जाते हैं ।

कुछ पशु-पक्षी बहुत तेजी के साथ स्थानांतरण करते हैं, परंतु रेंगने तथा मद गति से चलने वाले प्राणियों का पलायन बहुत धीमा तथा थोड़ी दूरी के लिये होता है । केंचुएँ मंद गति से स्थानांतरण करने वाले प्राणियों में सम्मिलित हैं ।

पशु-पक्षियों के स्थानांतरण पर निम्न कारकों का प्रभाव पड़ता है:

1. प्राकृतिक पर्यावरण (Environmental Factors):

स्थलाकृति, टेरेन तथा जल की उपलब्धता का पशु-पक्षियों के वितरण तथा स्थानांतरण पर गहरा प्रभाव पड़ता है । पशु-पक्षियों के वितरण एवं पलायन पर सागरों, महासागरों, मरुस्थलों, बंजर भूमि, घाटियों, केन्यन तथा भौतिक अवरोधकों का भी भारी प्रभाव पड़ता है । इन्हीं कारणों से हिमालय पर्वत के दक्षिणी तथा उत्तरी भाग के ढलानों के पशु-पक्षियों में भारी अतर पाया जाता है । जल में रहने वाले पशु थल पर स्थानांतरण नहीं कर सकते इसके विपरीत थल पर रहने वाले पशु, सागरों एवं महासागरों जैसी बाधाओं को पार नहीं कर सकते ।

2. जैविकी विशेषताएँ (Biological Factors):

सभी पशु-पक्षी अपने पर्यावरण के अनुसार अनुकूलन करते हैं । कुछ जीव/पशु बिलों में रहते हैं, कुछ रेंगते हैं, कुछ आरोहण करते हैं और कुछ उड़कर स्थानांतरण करते हैं, इन सभी का पशु-पक्षियों के वितरण पर प्रभाव पड़ता है ।

3. मानवीय कारक (Anthropogenic Factors):

वर्तमान काल में पशु-पक्षियों के स्थानांतरण में मानव सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है मानव के द्वारा खरगोश, हिरन, शेर, चीते गाय भैंस, भेड, बकरी घोड़े, गधे, खच्चर, ऊँट, कुत्ते, बिल्ली आदि एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप एक देश से दूसरे देश तथा एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित किया जाता है ।

वास्तव में पशु-पक्षियों का वितरण एवं पलायन बहुत जटिल है । जैसा कि ऊपर वर्णन किया जा चुका है पशु-पक्षियों के वितरण पर भू-आकृतियों, जलवायु, जलाशयों, सागरों, महासागरों मरुस्थलों तथा अन्य रोधकों का घनिष्ठ प्रभाव पड़ता है ।

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