हेलेन केलर की जीवनी | Helen Kellar Kee Jeevanee | Biography of Helen Kellar in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. हेलन केलर का प्रेरणास्पद कार्य ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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दृष्टि बाधित (अन्ध, मूक, बधिर) अमेरिकन महिला हेलन केलर का आदर्श जीवन प्रत्येक व्यक्ति को यह प्रेरणा देता है कि किसी एक अंग मात्र के खराब हो जाने पर सम्पूर्ण जीवन बर्बाद नहीं हो जाता । न ही व्यक्ति की पूर्ण कार्यक्षमता ही समाप्त हो जाती है । यदि एक अंग खराब है, तो दूसरे अंगों की संवेदी क्षमता स्वत: ही इतनी विशिष्ट हो जाती है कि व्यक्ति अपने लक्ष्य को पाने में सफल हो सकता है ।

2. हेलन केलर का प्रेरणास्पद कार्य:

हेलन केलन का जन्म सन् 1880 में अमेरिका में हुआ था । हेलन जन्म से अन्धी, बहरी, गूंगी नहीं थीं । डेढ़ वर्ष की अवस्था तक वह दूसरे बच्चों की तरह देख-सुन सकती थीं । तुतलाकर बोलती भी थीं, पर अकस्मात् बीमार पड़ जाने पर वह आंख, कान और वाणी खो बैठीं ।

हेलन अन्य बच्चों की अपेक्षा बुद्धिमान् थीं । अपनी असमर्थता पर वह झुंझला उठती थीं । कभी-कभी अपने छोटे भाई-बहिनों को वह मारती-पीटती भी थीं । नहीं तो स्वयं को किसी प्रकार का नुकसान पहुंचाकर अपनी खींज को कुछ हद तक कम करने का प्रयास करती थीं ।

हेलन के माता-पिता उनके दुःख से दुखित हो उठते थे, अत: उन्होंने काफी सोच-विचार के बाद उन्हें अन्धे-बहरों के स्कूल में प्रवेश दिलवा दिया । दैवयोग से उन्हें बोस्टन की अन्ध, मूक, बधिर शाला में सफील्ड सलीवन नामक योग्य अध्यापिका का साथ मिल गया था ।

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वह बहुत संवेदनशील व भाबुक स्वभाव की थीं । वह किसी बीमारी की वजह से अपनी नेत्रज्योति खो बैठी थीं । इस दौरान उन्होंने अंधेपन की पीड़ा को महसूस भी किया था । हालांकि कुछ समय बाद उनकी नेत्रज्योति वापस मिल गयी थी ।

हेलन के दुःखों को समझकर उन्होंने उनकी सम्पूर्ण देखरेख और शिक्षा का भार अपने कन्धों पर ले लिया था । वह हेलन के दुःखों को दूर करने का भरसक प्रयास करती थीं । हेलन को गुड़िया बहुत अच्छी लगती थी । अत: उन्होंने सर्वप्रथम हेलन की हथेली पर उंगलियों से ”डॉल” शब्द लिखा । हेलन को उंगलियों का यह खेल बड़ा ही भाया । ”डॉल” शब्द ने तो मानो एक चमत्कार ही कर दिया था ।

हेलन ने यही शब्द जाकर अपनी मां की हथेली पर लिख दिया था ।  इससे उत्साहित होकर सलीवन ने उनका परिचय नये-नये शब्दों से कराया । सीखने की जिज्ञासा और खुशी के बारे में हेलन ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि ज्यों-ज्यों मैं सीखती जाती थी, त्यों-त्यों वह दुनिया, जिसमें मैं रहती थी, मुझे आकर्षक व सुखमय नजर आती थी ।

सलीवन ने हेलन का परिचय अब अंध-लिपि, यानी ब्रेल से कराया । ब्रेल सीखने के बाद हेलन अपना सारा समय इस लिपि में लिखे हुए साहित्य को पढ़ने में लगा देती थीं । एक दिन अचानक उनके मुंह से टूटे-फूटे शब्द निकल पड़े थे, जिसका अर्थ था-आज बहुत गरमी है ।

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हेलन ने इस सुखद दिवस के असीमित आनन्द का उल्लेख अपनी आत्मकथा में ही किया है । घर की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने केम्ब्रिज स्कूल में दाखिला लिया । 2 वर्ष में ही उन्होंने अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच भाषाओं पर अधिकार कर लिया । कॉलेज की बी॰ ए॰ की परीक्षा 1904 तक प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की ।

पढ़ाई पूरी कर उन्होंने ब्रेल लिपि में कुल 9 पुस्तकें लिखीं, जो विश्व-साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं । हेलन को प्रकृति से बहुत लगाव था । वह वसन्त के खिले फूलों, लहरों पर थिरकती चांदनी, पहाड़ों से झरती बर्फ को महसूस करती थीं और उन्होंने उस अनुभव को अपनी पुस्तकों में लिखा ।

हेलन को नाव खेने, तैरने, घुड़सवारी करने, शतरंज और ताश खेलने का भी शौक था । उन्होंने अविवाहित रहकर अपने आपको समाज-सेवा में लगा दिया । सर्वप्रथम उन्होंने अनाथालय के अंधे, गूंगे, बहरे बच्चों की सेवा का कार्य प्रारम्भ किया ।

मिल्टन अंध सोसाइटी स्थापित कर बेल लिपि में उपयोगी साहित्य प्रकाशित करवाया । हेलन ने यूरोप, आस्ट्रेलिया, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका और भारतीय देशों की यात्राएं भी कीं । इस यात्रा का उद्देश्य अंधे-बहरे लोगों के जीवन में आशा की किरण जगाना था । वह इस उद्देश्य को लेकर जहां भी गयीं, वहां उन्हें हाथों हाथ लिया गया ।

3. उपसंहार:

हेलन ने आत्मविश्वास और सच्ची लगन से जो कार्य प्रारम्भ किया, उसमें उन्हें सफलता मिली । उन्होंने यही साबित कर दिखलाया कि यदि हेलन स्वयं पर ईश्वर का प्रकोप मानकर भाग्य भरोसे बैठे रहती और अपनी अक्षमता पर आंसू बहाती, तो वह कदापि इतना महान् कार्य नहीं कर सकती थीं । हेलन का जीवन यही प्रेरणा देता है कि कांटों पर चलकर ही जीवन की सच्ची राह मिलती है । यह जीवन हारकर रुकने का नाम नहीं है, अपितु जीवन जीने के लिए है ।

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