डॉ॰ मेघनाथ साहा की जीवनी | Biography of Dr Meghnath in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन परिचय व उपलब्धियां ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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डॉ॰ मेघनाथ साहा भौतिकी तथा खगोल भौतिकी के महान् भारतीय वैज्ञानिकों में विशेष अग्रगण्य हैं । गुलाम भारत के इस महान् वैज्ञानिक ने शिक्षा तथा सामाजिक आर्थिक क्षेत्रों में भी अपनी उल्लेखनीय सेवाएं

दीं । देश की अर्थव्यवस्था में सुधार लाने पर गरीबी हट सकती है, ऐसा उनका विश्वास था ।

2. जीवन परिचय व उपलब्धियां:

मेघनाथ साहा का जन्म 6 अक्तूबर, 1893 में पूर्वी बंगाल के ढाका जिले के सेवराताली गांव में एक विपन्न परिवार में हुआ था । पिता जगन्नाथ साहा और माता भुवनेश्वरी साहा की वे पांचवीं सन्तान थे ।

गांव के प्राइमरी स्कूल में पढ़ाई करने के साथ-साथ वे पिता के सग दुकान में भी उनकी सहायता किया करते थे । 11 कि॰मी॰ दूर मिडिल स्कूल जाकर अपने आगे की पढाई पूरी की ।

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1905 में स्कूल में पढ़ते हुए उन्होंने बंग-भंग के दौरान विरोध प्रकट करते हुए शाला निष्कासन का दण्ड शी भोगा था । 1909 में उन्होंने मैट्रिकुलेशन की परीक्षा उत्तीर्ण करते हुए पूरे प्रान्त में प्रथम स्थान अर्जित किया । 1911 में विज्ञान में इंटरमीडियट की परीक्षा उत्तीर्ण की ।

कलकत्ता के प्रेसीडेन्सी कॉलेज में जगदीशचन्द्र बसु प्रफुल्लचन्द्र राय जैसे विइघनाचार्यो से शिक्षा ग्रहण की । 1913 में गणित में बी०एस०सी तथा 1915 में एम॰एस॰सी॰ की परीक्षा उत्तीर्ण की । वे इण्डियन फाइनेंस की प्रतियोगी परीक्षा में सम्मिलित होना चाहते थे, किन्तु उग्र राजनीतिक विचारधारा के कारण उन्हें वंचित रखा गया । अब उन्होंने गणित और भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में शोधकार्य करने का निश्चय किया ।

1916 में यूनिवर्सिटी ऑफ साइन्स कॉलेज में गणित के अध्यापक नियुक्त हुए । प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर देवेन्द्रमोहन बसु को जर्मनी में नजरबन्द किये जाने पर उन्होंने भौतिक विज्ञान का भी अध्यापन भार ले लिया ।

ऊष्मा तथा थर्मोडायनेमिक्स पढ़ाते-पढ़ाते उन्होंने ऊष्मा पर गहन अध्ययन करते हुए कई महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का लेखन कार्य भी कर डाला । उनके शोध निबन्ध इंग्लैण्ड के फिलोसोफिकल मैगजीन तथा अमेरिका की फिजिकल रिव्यू नामक प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में भी छपे ।

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डॉ॰ साहा ने जिस नवीन सिद्धान्त का प्रतिपादन किया, उसमें यह प्रमाणित किया कि अधिक ऊंचे तापक्रम पर तथा कम दबाव पर सूर्य के वर्णमण्डल के परमाणु आयोनाइज्ड होते हैं । इसी कारण सूर्य के वर्णमण्डल के रश्मिचित्रों में कुछ रेखाएं मोटी दिखाई पड़ती हैं । डॉ॰ साहा का यह सिद्धान्त तारों के रश्मिचित्रों से उसकी दूरी नापने में बहुत सहायक सिद्ध हुआ ।

सितम्बर 1919 में डॉ॰ साहा शोधकार्य पूर्ण करने के उद्देश्य से यूरोप गये । वहां प्रो॰ फाउलर की प्रयोगशाला में व इसके पश्चात् केम्बिज की केवेण्डिश प्रयोगशाला में शोधकार्य किया । फिर जर्मनी जाकर प्रो॰ नर्न्द्व की प्रयोगशाला में कार्य किया । उनके भौतिक सम्बन्धी सिद्धान्तों की सभी वैज्ञानिकों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की ।

जर्मनी में जिन प्रयोगों को प्रारम्भ किया था, भारत आने पर एक सम्पन्न प्रयोगशाला के अभाव में उनके सामने अनेक कठिनाइयां आयीं । देश-विदेश में वैज्ञानिक व्याख्यान देते हुए उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया । 1927 में उन्हें लंदन की रॉयल सोसाइटी में अन्तरिक्ष किरण सिद्धान्त सम्बन्धी कार्य हेतु फैलो निर्वाचित किया ।

तत्पश्चात् इटली में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय भौतिक विज्ञान सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया वहां से उन्होंने वैज्ञानिकों के साथ नार्वे जाकर पूर्ण सूर्यग्रहण की जांच की । इंग्लैण्ड की खगोल सभा के साथ-साथ उन्हें बंगाल की रॉयल एशियाटिक सोसाइटी का फैलो भी निर्वाचित किया गया ।

बम्बई अधिवेशन में उन्होंने ब्रह्माण्ड तथा सृष्टि की उत्पत्ति और असंख्य नक्षत्रों के बारे में कई सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया । उनके प्रयत्नों से ही 7 जनवरी, 1935 को कलकत्ता में नेशनल इंस्टीट्‌यूट ऑफ साइन्सेज की स्थापना की । 1935 में ही अमेरिका के कार्नेगी ट्रस्ट द्वारा उन्हें ऊर्ध्व वायुमण्डल सम्बन्धी कार्य के लिए फैलोशिप दी गयी ।

उन्होंने यह सिद्ध किया कि प्रकाश का दबाव सब पदार्थों पर एक-सा नहीं पड़ता । पदार्थ के अणुओं पर यह दबाव कम या ज्यादा पड़ता है । सूर्य के तापक्रम के कारण सूर्य के प्रकाश में कुछ रंग चमकदार व तेज होते हैं । यदि किसी तत्त्व के परमाणु उन्हीं के आस-पास शोषण करने लगें, तो परमाणु ऊर्जा अवशोषण द्वारा उर्जित हो जाते हैं ।

प्रकाश विज्ञान तथा तापयापन सिद्धान्त की इस खोज ने विकिरण दबाव, धातु, लवणों के रंग सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण खोजें कीं । डॉ॰ साहा 1945-47 तक आणविक अनुसन्धान समिति के अध्यक्ष तथा 1948 में परमाणु शक्ति अनुसन्धान आयोग के अध्यक्ष रहे । विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के गठन एवं राष्ट्रीय पंचांग के निर्माण का श्रेय उन्हीं को जाता है ।

 

 

3 उपसंहार:

डॉ॰ साहा को सम्पूर्ण भारतवर्ष उनकी विज्ञान सम्बन्धी खोजों तथा सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक सुधार के लिए सदा स्मरण रखेगा । विज्ञान के इस महान साधक का प्राणान्त फरवरी 1956 को हो गया ।

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