कमलेश्वर । Biography of Kamaleshwar in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन परिचय एवं रचनाकर्म ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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आधुनिक हिन्दी कथाकारों में कमलेश्वरजी का अपना अलग स्थान है । इन्होंने हिन्दी कथा-साहित्य को एक सार्थक एवं समानतापरक मोड़ दिया । इन्होंने कथा-साहित्य में रचनात्मकता के साथ जीवन और इतिहास के उदार चिन्तन के नये द्वार भी खोल दिये हैं ।

”कितने पाकिस्तान” उपन्यास के कारण ये वर्तमान में बेहद चर्चित रहे हैं । कथाकार एवं मीडिया मैन तथा पत्रकारिता के क्षेत्र में भी इन्होंने मानक स्थापित किये हैं । इन्होंने अनेक साहित्यिक आंदोलनों का भी संचालन किया है ।

2. जीवन परिचय एवं रचनाकर्म:

इनका जन्म 6 जनवरी 1932 को मैनपुरी उत्तरप्रदेश में हुआ था । इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम॰ए॰ किया । इन्होंने 11 कहानी संग्रह, 10 उपन्यास तथा 20 अन्य पुस्तकें लिखीं । आलोचना, यात्रा विवरण, आत्मकथा एवं संस्मरण भी लिखे ।

इन्होंने नयी कहानियां: ”सारिका”, ”गंगा”, ”कथायात्रा”, ”इंगित”, ”श्री वर्षा” पत्रिका तथा दैनिक जागरण समाचार पत्र आदि का सम्पादन किया । आजकल दैनिक भास्कर राजस्थान के प्रधान सम्पादक हैं । इन्होंने 1959 में भारतीय दूरदर्शन के लिए प्रथम सिक्रप्ट लिखी । सन् 1980-82 में दूरदर्शन के एडीशनल डायरेक्टर जनरल रहे ।

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इन्होंने ”अमानुष”, ”सारा आकाश”, ”फिर भी”, “इसके बाद”, “मि॰ नटवरलाल”, ‘”द बर्निग ट्रेन”, ”राम बलराम”, ”मौसम”, “सौतन”, ”आंधी”, “पति-पत्नी और वो” जैसी 99 हिन्दी फिल्मों का लेखन कार्य किया । ”दर्पण”, “आकाशगंगो”, ”रेत पर लिखे नाम”, “बिखरे पन्ने”, “विराट”, “बेताल पच्चीसी”, ”युग”, ”चन्द्रकान्ता” जैसे सफलतम सीरियल के आप लेखक रहे हैं ।

इन्होंने राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण विषयों पर तथा पण्डित नेहरू, शास्त्री, इन्दिरा गांधी, राजीव गांधी, मदर टेरेसा की अन्तिम यात्रा पर रनिंग  कमेंट्री भी की है ।

इनकी प्रमुख रचनाओं में “राजा निरबंसिया”, ”देवा की मां”, ”भटके हुए लोग”, ”कस्बे का आदमी”, “एक अश्लील कहानी”, ”नीली झील”, ”एक सड़क सत्तावन गलियां”, ”जार्ज पंचम की नाक”, ”मांस का दरिया”, ”डाक बंगला”, ”तीसरा आदमी”, ”समुद्र में खोया हुआ आदमी”, “रातें”, ”लाश”, ”मैं”, “उस रात”, ”कितने पाकिस्तान” इत्यादि प्रमुख हैं ।

कमलेश्वर के लेखन की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इन्होंने जीवनानुभवों को अपने लेखन में उतारा है । कमलेश्वर ने पढ़-पढ़कर उस सक्रान्ति को नहीं झेला वरन् स्वयं जीया है । जीवन-सन्दर्भो, उसके अन्तर्विरोधों के सूत्रों को इन्होंने बड़ी बारीकी से पकड़ा है ।

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इनकी चेतना अपनी सारी उलझनों, कुण्ठाओं और तकलीफों के साथ बड़ी यथार्थता से लेखन में उतरती चलती है । उनका दृष्टिकोण लिखते समय पराजयवादी नहीं, आस्थावान रहता है । उनका साहित्य आत्मीयता, ईमानदारी और गहराई का अनुभव कराता है ।

अपने व्यक्तिगत जीवन में इन्होंने जो संघर्ष व अपमान के क्षण जीये हैं, वे भी पात्रों के माध्यम से इनकी रचनाओं में अपनी उपस्थिति दर्शाते हैं । इनके उपन्यासों में कहानियों में पात्र एवं घटनाएं अत्यन्त सहजता के साथ मनोवैज्ञानिक रूप से चित्रित हुईं है कि पाठक को पढ़ते समय ऐसा प्रतीत होता है, जैसे वह उनमें खुद जी रहा हो ।

कमलेश्वर की कहानियों में युगीन स्थितियों का मूल्यान्वेषी स्वर मिलता है । उनकी कहानी की विकास यात्रा में जीवन के विविध बोध, आयाम दिखाई देते हैं । देवा की मां में पुरानी पीढ़ी के जीवन का सशक्त चित्रण मिलता है । ”नीली झील” में मानवीय संवेदनाओं पर कमलेश्वर की दृष्टि है । ”खोई हुई दिशाएं” में महानगरीय बोध, अकेलेपन, बेगानेपन की ट्रेजेडी है ।

”दिल्ली में एक मौत” में दिखावटी मानवीय संवेदनाएं जीवन्त हुई हैं । ”तीसरा आदमी” उपन्यास में दाम्पत्य जीवन में किसी तीसरे की अमूर्त उपस्थिति हमेशा बनी रहती है । ऐसा तब होता है, जब वह तीसरा अमूर्त पात्र हमारे दिलो-दिमाग पर अमिट रूप से छाया हुआ होता है ।

अमूर्त रूप में इसकी उपस्थिति उतनी ही प्रभावी रहती है, जितनी कि मूर्त रूप में हो सकती है । इसका मनोवैज्ञानिक चित्रण करने में लेखक काफी सफल और सार्थक नजर आता है ।

3. उपसंहार:

कमलेश्वर नयी पीढ़ी के उन सशक्त कथाकारों में अपना अग्रिम स्थान रखते हैं, जिन्होंने लेखन-कला को शिल्प तथा भाषायी स्तर पर नये प्रतिमान दिये हैं । ये अपनी शर्तो पर लिखते हैं । कमलेश्वर ऐसे लेखक हैं, जो कभी थकते नहीं, यह थकना इनके व्यक्तिगत जीवन में भी नहीं होता । वही लेखकीय जीवन में भी नहीं होता ।

लेखन से निरन्तर जुड़े रहना ही इनका स्वभाव है । फिर वह उपन्यास लेखन का क्षेत्र हो या घुमक्कड़ी जीवन का, कोई यात्रा वृत्तान्त हो या फिर पत्रकारिता का क्षेत्र हो । समसामयिक सन्दर्भो से असंग रहना शायद इनके स्वभाव में नहीं । ऐसे साहित्यकार की रचनाधर्मिता पर हिन्दी साहित्य को गर्व है ।

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