आचार्य नन्ददुलारे बाजपेयी । Biography of Acharya Nandadulare Vajpai in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन वृत्त एवं रचनाकर्म ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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आचार्य नन्ददुलारे बाजपेयी हिन्दी आलोचना के आधार स्तम्भ माने जाते है । वे साहित्यिक समीक्षक, विचारक एवं चिन्तक भी थे । उन्होंने महावीर प्रसाद द्विवेदीजी की सम्पादक कला को भी सामान्य निरूपित किया । उन्होंने आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, द्विवेदी एवं मिश्र बस्तुओं आदि की समीक्षा प्रणालियों की समीक्षा कर; अपनी नवीन समीक्षा शैली के नये मानदण्ड स्थापित किये ।

2. जीवन वृत्त एवं रचनाकर्म:

आचार्य नन्ददुलारे बाजपेयी का जन्म 4 सितम्बर, 1906 को उत्तरप्रदेश के उन्नाव जिले के मगरायर ग्राम में हुआ था । यह बैसवाड़े की भूमि भी कहलाता है । उनकी मृत्यु सम् 1967 में हुई । उनको साहित्यिक प्रतिभा विरासत के रूप में पिता से प्राप्त हुई थी । उन्होंने उच्च शिक्षा काशी विश्वविद्यालय से ग्रहण की ।

बाबू श्याम सुन्दरदास की प्रेरणा से आप अनुसन्धान की ओर प्रेरित हुए । उन्होंने जून 1930 में ”भारत पत्रिका” का सम्पादन कार्य किया । इसके अलावा उन्होंने “सुरसागर” और “रामचरितमानस” का भी सम्पादन कार्य किया । वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलपति भी रहे ।

उन्होंने समीक्षक के रूप में छायावादी कविता और उसके साहित्य के गौरव को प्रतिष्ठापित किया । उन्होंने साहित्यिक पत्र ”भारत” में निराला, पन्त, प्रसाद की कवित्व प्रतिभा, उनके व्यक्तित्व एवं सौन्दर्य, कल्पना संवेदना पर नवीन व सकारात्मक आलोचनाएं लिखीं । भारतीय रस सिद्धान्त व पाश्चात्य समीक्षा साहित्य का तुलनात्मक रूप भी प्रस्तुत किया ।

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उनकी कृतियों में प्रसिद्ध हैं: जयशंकर प्रसाद, हिन्दी साहित्य, बींसवी शताब्दी, आधुनिक साहित्य, महाकवि सूरदास, प्रेमचन्द साहित्यिक विवेचन, नया साहित्य नये प्रश्न, राष्ट्रभाषा की समस्याएं, कवि निराला, कवि सुमित्रानन्दन पन्त, राष्ट्रीय साहित्य और अन्य सम्बन्ध प्रकीर्णिक हिन्दी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, आधुनिक काव्य रचना और विचार, नयी कविता, आधुनिक साहित्य सृजन व समीक्षा, हिन्दी साहित्य का आधुनिक युग रीति और शैली इत्यादि ।

हिन्दी साहित्य और बींसवी शताब्दी में उन्होंने सात समीक्षा सूत्रों का प्रणयन किया । उन्होंने छायावादी, स्वच्छदन्तावाद, सौष्ठववादी, रसवादी, समीक्षक के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की, तथापि वे निष्पक्ष एवं तटस्थ आलोचक के रूप में जाने जाते हैं । वे प्रजातान्त्रिक पद्धति के आलोचक रहे है ।

3. उपसंहार:

डॉ॰ नन्ददुलारे बाजपेयी गम्भीर व तटस्थ समीक्षक, श्रेष्ठ अध्यापक, निर्भय सम्पादक, निर्विवाद व्यक्तित्व थे । उनके व्यक्तित्व की कई दिशा में विवेकवान, निश्छल, सर्जनात्मक मनुष्य, एक पत्रकार एवं सम्पादक की छवि भी शामिल है । वे राष्ट्रीय परम्पराओं के वाहक थे । उन्होंने अपनी समीक्षा पद्धति से साहित्य जगत् को समृद्ध किया है ।

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