बिल के एंडोसर की देयता | Read this article in Hindi to learn about the liability of the endorser of bill.

(1) अप्रतिष्ठा की सूचना:

जब कोई विपत्र परिपक्वता तिथि पर अप्रतिष्ठित कर दिया जाता है तथा उसके धारक या पृष्ठांकन को अप्रतिष्ठा की सूचना दे दी जाती है अथवा उन्हें किसी भी अधिकृत स्रोत से प्राप्त हो जाती है, तो वह पृष्ठांकक धारक को अप्रतिष्ठा से उत्पन्न क्षति की पूर्ति के लिए दायी होगा ।

(2) क्षतिपूर्ति के लिए दायी नहीं होना:

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यदि पृष्ठांकक ने पृष्ठांकन करते समय स्वयं ये अप्रतिष्ठा के परिणामों से मुक्त कर लिया हो अथवा पृष्ठांकन के समय कोई ऐसी शर्त लगा दी हो जो दातव्य तिथि तक पूरी नहीं हुई हो अथवा उसने पृष्ठांकिती से अनुबन्ध करके स्वयं को अप्रतिष्ठा के दायित्व से मुक्ति पा ली हो तो पृष्ठांकक विपत्र की अप्रतिष्ठा की दशा में उपर्युक्त प्रकार से दायी नहीं होगा ।

(3) पूर्व-पक्ष की अनुबन्ध क्षमता:

विलेख के धारक द्वारा न्यायालय में क्षतिपूर्ति के लिए दावा प्रस्तुत करने पर पृष्ठांकक किसी पूर्व पक्ष की अनुबन्ध क्षमता अथवा उसके हस्ताक्षरों की प्रामाणिकता से इन्कार नहीं कर सकता ।

(4) काल-तिरोहित पृष्ठांकन:

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विनिमयसाध्य विलेख अधिनियम की धारा 35 के अनुसार यदि किसी विलेख की प्रतिष्ठा के पश्चात् उसका पृष्ठांकन कर दिया जाता है तो विलेख का पृष्ठांकन उस विलेख की राशि के भुगतान के लिए उसी प्रकार उत्तरदायी होगा जिस प्रकार माँग पर देय (Payable on Demand) विलेख के लिए कोई उत्तरदायी व्यक्ति होता है ।

(5) भुगतान का दायित्व:

किसी विलेख का भुगतान होने तक उसका प्रत्येक पूर्व-पक्ष विलेख के यथाविधिधारी (Holder in Due Course) के प्रतिदायी होता है । एक प्रतिज्ञा-पत्र तथा चैक का लेखक तथा विनिमय-विपत्र का आहार्यी विपत्र की स्वीकृति तक प्रमुख ऋणी (Principal Debtor) की तरह रहते हैं ।

विपत्र की स्वीकृति के पश्चात् स्वीकर्ता प्रमुख ऋणी बन जाता है । अन्य सभी पक्षकार प्रत्याभू (Surety) रहते है । विभिन्न प्रत्याभूओं में प्रत्येक पहले वाला प्रत्याभू बाद वाले प्रत्याभू के लिए प्रमुख ऋणी रहता है ।

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दायित्व से मुक्ति (Discharge from Liability):

एक पृष्ठांकन अपने दायित्व से निम्नलिखित परिस्थितियों में मुक्त हो जाता है:

(1) जब विलेख का भुगतान कर दिया जाता है ।

(2) जब एक बिल का धारक आहार्यी को बिल की स्वीकृति पर विचार करने हेतु 48 घण्टे से अधिक की अवधि का समय देता है तथा इसकी पुष्टि पृष्ठांकक द्वारा नहीं की जाती ।

(3) यदि विलेख का धारक पूर्व पृष्ठांकन की स्वीकृति के बिना कोई ऐसा कार्य करता है जिससे विलेख के अप्रतिष्ठित हो जाने पर पृष्ठांकन को अपने पूर्व पक्ष के विरुद्ध कार्यवाही के कर सकने का अधिकार पूर्णतः अथवा अंशतः समाप्त हो जाता है तो पृष्ठांकक अपने दायित्व से उस सीमा तक मुक्त हो जाता है जिस सीमा तक कार्यवाही करने के उसके अधिकार में कमी आई है ।

(4) जब विलेख का धारक जान-बूझकर (भूलवश नहीं) विलेख के स्वीकर्ता या पृष्ठांकक का नाम काट दे ।

(5) यदि विलेख का पृष्ठांकन करते समय पृष्ठांकक ने कोई शर्त लगा दी हो तथा विलेख की दातव्य तिथि तक वह शर्त पूरी नहीं हुई हो ।

(6) जब पृष्ठांकन किया हो ।

(7) जब पृष्ठांकन करने के पश्चात् पृष्ठांकिती विलेख में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन (Material Alteration) कर दे ।

(8) जब विलेख का धारक किसी विधि से विलेख के लेखक, स्वीकर्ता या पृष्ठांकक को उनके दायित्व से मुक्त कर दे ।