भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम: शीर्ष चौदह भूमिकाएं | Public Sector Enterprises in India: Top 14 Roles in Hindi. These roles are:- 1. रोजगार की उत्पत्ति (Generation of Employment) 2. शुद्ध घरेलू उत्पाद में भाग (Share in Net Domestic Product) 3. प्राकृतिक साधनों का विकास (Development of Natural Resources) 4. विकास प्रवृतिक (Development Orientation) and a Few Others.

देश के स्वतन्त्रता प्राप्त कर लेने के पश्चात तथा देश में आयोजन के आरम्भ से सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका बढ रही है । हम जानते हैं कि निजी क्षेत्र का स्वरूप ऐसा है कि वह ऐसे उद्योग स्थापित करने में असमर्थ है जहां पूंजी की अत्यधिक आवश्यकता हो तथा उत्पादन का समय लम्बा हो ।

साथ ही, ऐसी पूंजी पर लाभ की प्राप्ति अनिश्चित होती हे । इसके अतिरिक्त वह उद्योग जहां आधुनिक तथा नवीनतम तकनीक की आवश्यकता होती है वह निजी क्षेत्र के व्यापारियों की पहुँच के बाहर होते हैं । दूसरी ओर सार्वजनिक क्षेत्र ने आर्थिक विकास में प्रभुत्वशाली और गतिशील भूमिका निभानी होती है ।

भारतीय योजना आयोग ने ठीक ही कहा है कि सार्वजनिक क्षेत्र से आशा की जाती है कि वह मीलिक एवं युक्ति संगत महत्व अथवा जनउपयोगी सेवाओं के स्वरूप वाले उद्योग का विकास करेगा । …… इसलिए इनकी भूमिका का विस्तृत विचार निम्नलिखित तत्त्वों से बनाया जा सकता है जो भारतीय अर्थव्यवस्था में सुदृढ़ योगदान कर रहे हैं ।”

Role # 1. रोजगार की उत्पत्ति (Generation of Employment):

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सार्वजनिक क्षेत्र सबसे बडा रोजगार प्रदान करने वाला व्यवस्थित क्षेत्र है । भारत में 70 प्रतिशत काम करने वाले लोग सार्वजनिक क्षेत्र में कार्यरत हैं, दूसरे शब्दों में 243 लाख रोजगार प्राप्त लोगों में से 194.66 लाख लोग व्यवस्थित सार्वजनिक क्षेत्र में रोजगार प्राप्त किये हुए हैं । बैंकों एवं खानों में राष्ट्रीर्यकरण से सार्वजनिक क्षेत्र की स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है ।

Role # 2. शुद्ध घरेलू उत्पाद में भाग (Share in Net Domestic Product):

सार्वजनिक क्षेत्र शुद्ध घरेलू उत्पाद में योगदान दे रहा है । वर्तमान मूल्यों पर मापने से सार्वजनिक क्षेत्र का भाग वर्ष 1951-52 में कठिनता से 75 प्रतिशत था जबकि वर्ष 1994-95 में यह 23 प्रतिशत तक बढ गया ।

Role # 3. प्राकृतिक साधनों का विकास (Development of Natural Resources):

यह देखा गया है कि अल्प विकसित देश इसलिए निर्धन नहीं होते कि उनके पास प्राकृतिक साधनों की कमी है बल्कि इस कारण से निर्धन होते हैं कि उनके प्राकृतिक साधनों का पूर्ण विकास नहीं हो पाता । निजी उद्योग इन साधनों का निजी स्वार्थ के लिए सन्दोहन करते हैं ।

कई बार उनका कम प्रयोग किया जाता है और कई बार दुरुपयोग । इसलिए सार्वजनिक क्षेत्र इन प्राकृतिक साधनों का सदुपयोग करके समाज की प्रगति में सहायता करता है । इस सम्बन्ध में तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग (ONGC) शानदार कार्य कर रहा है ।

Role # 4. विकास प्रवृतिक (Development Orientation):

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सार्वजनिक क्षेत्र की विकासशील देशों में सबसे पहली तथा सबसे जरूरी नियोजित आर्थिक वृद्धि एवं पुन: वितरण योग्य न्याय के आधार पर विकास-योग्य प्रवृत्ति की आवश्यकता है । यदि वृद्धि की नियोजित प्रक्रिया उपस्थित है तो निर्धनता का दुष्चक्र तोड़ा जा सकता है । परिणामस्वरूप, यह अर्थव्यवस्थाओं अधिक पूंजी निर्माण के लिए बचतों को गतिशील एवं उपयोगी बनाने में सहायक है ।

एक और स्थिति उत्पन्न होती है जो उपभोक्ता वस्तुओं की ओर अधिक ध्यान देती है । गावो और छोटे शहरों में निर्धन लोगों की क्रय शक्ति लघु उद्योगों और कृषि क्षेत्र के विकास से दृढ़ होती है परन्तु इस पग की कुछ सीमाएं हैं । इन कमियों को पूरा करने के लिए सरकार उन्हें विभिन्न सुविधाएं जैसे मशीनरी, खाद, कच्चा माल आदि सार्वजनिक उद्योगों द्वारा उपलब्ध करवाती है ।

Role # 5. संरचना (Infrastructures):

अर्थव्यवस्था का विकास संरचनात्मक सुविधाओं पर निर्भर करता है । कृषि तथा मौलिक एवं आवश्यक उद्योगों का विकास नहीं हो सकता जब तक कि पर्याप्त सिंचाई, विद्युत, ऊर्जा तथा यातायात सुविधाएं उपलब्ध न हो । विकासशील एवं अल्प विकसित देशों की स्थिति विकसित देशों की तुलना में बहुत दुर्बल है ।

इस प्रकार सरकार देश के विकास की गति को बनाये रखने के लिए संरचनात्मक सुविधाएं प्रदान करती है, क्योंकि संरचनात्मक सुविधाओं के उत्पादन पर बहुत व्यय करना पड़ता है जिसे कि निजी क्षेत्र उपलब्ध करवाने की क्षमता नहीं रखता क्योंकि वह तुरन्त लाभ का इच्छुक होता है ।

Role # 6. अर्थव्यवस्था पर नियन्त्रण (Control over Economy):

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पूर्व निर्धारित लक्ष्यों के अधिक इच्छित परिणाम प्राप्त करने के लिए अर्थव्यवस्था पर सरकार का प्रभावी नियन्त्रण आवश्यक है । यद्यपि योजनाबन्दी, प्रबन्धन, राजकोषीय मौद्रिक नीति वृद्धि की प्रक्रिया को आरम्भ करने के यन्त्र हैं परन्तु फिर भी कुछ गम्भीर समस्याओं के कारण ये आवश्यकताएं पूरी नहीं कर सकते ।

एक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में, आर्थिक शक्ति समृद्ध लोगों के हाथी में रहती है जिससे निर्धन एवं अमीर लोगों में अन्तराल विस्तृत होता है ।

सार्वजनिक क्षेत्र इसके प्रतिकूल, निम्नलिखित ढंगों से हानिकारक परिणामों को कम करने में सहायता करता है:

(i) सार्वजनिक क्षेत्र से प्राप्त लाभ समाज के निर्धन वर्ग के कल्याण के लिए प्रयोग किये जायें ।

(ii) कच्चे माल के मूल्य स्थिर रखे जायें ।

(iii) स्कूल, पार्क, अस्पताल तथा निर्धन वर्गों को उनकी अपनी लागत पर बोनस उपलब्ध कराये जायें ।

(iv) युद्ध उपयोगी वस्तुओं के उत्पादन के लिए मशीनरी उपलब्ध करवाई जाये ।

Role # 7. साधनों की गतिशीलता (Resource Mobilization):

विकास एवं पूंजी निर्माण की प्रक्रिया में साधनों की गतिशीलता महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । अकेला निजी क्षेत्र इस प्रक्रिया को पूंजी के अभाव के कारण नहीं अपना सकता ।

पूंजी निर्माण प्रायः निम्नलिखित तीन ढंगों से हो सकता है:

(i) कुछ निर्धारित सीमा तक बचत अवश्य की जाये ।

(ii) वृद्धि की दर बढ़ाने के लिए साधनों की गतिशीलता आवश्यक है इसके लिए पूंजी का प्रयोग किया जाये ।

(iii) उत्पादन बढाने के लिए समस्त पूंजी का प्रयोग किया जाये ।

इस कार्य के लिए साधनों को एकत्रित करने में सरकार एक एजेन्ट का काम करती है तथा करों, ऋणों और घाटे की वित्त व्यवस्था द्वारा साधन एकत्रित करती है ।

तालिका 1.1 में दिखाए अनुसार, 1950-51 के दौरान सकल पूंजी गठन में सार्वजनिक क्षेत्र का योगदान 27.3% था जो 1960-61 में 53.1% तक बढ़ गया और 1990 तक यह 40-50 % के बीच था । निजीकरण नीति का प्रभाव 2000-01 में सार्वजनिक यह दुबारा 2012-13 में 34.6% तक बढ़ा ।

Role # 8. सामाजिक कल्याण (Social Welfare):

वास्तव में सार्वजनिक क्षेत्र निर्धन एवं निर्बल वर्गों की कल्याण वृद्धि का पर्याप्त उपाय है । पेस्क्यूएल सारासीनो (Pasquale Saraceno) के अनुसार, ”हमारा लक्ष्य इस्पात एवं कारें बनाना नहीं है बल्कि इस्पात और कार को सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक उन्नति का यन्त्र बनाना है ।”

निजी एकाधिकार ऐसे क्षेत्रों में निवेश करने से झिझकते हैं जहां लाभ के अवसर कम हों । वह उन परियोजनाओं पर बल देते हैं जहां से उन्हें अधिकतम लाभों की आशा होती है । यहाँ तक कि निजी उद्योगपति लाभ कमाने का लक्ष्य रखते हुए जन कल्याण को भी अनदेखा कर देते हैं । परन्तु केवल सार्वजनिक क्षेत्र ही साधारण जनता के हितों का ध्यान रखता है तथा न कोई लाभ न कोई हानि के नियम अनुसार कार्य करता है ।

Role # 9. अनुमाप की मितव्ययताओं की सम्भावना (Scope of Economies of Scale):

निजी क्षेत्र में अस्वस्थ प्रतियोगिता की प्रवृत्ति होती है जिससे राष्ट्रीय पूजी का बड़ा भाग व्यर्थ जाता है । इस प्रकार नये उद्योगों की स्थापना के लिए धन तथा पहलकदमी का अभाव होता है जिसके परिणामस्वरूप वह अनुमाप की मितव्ययताओं को प्राप्त करने में असफल होते हैं ।

परन्तु सार्वजनिक क्षेत्र अनुमाप की आन्तरिक एवं बाहरी मितव्ययताओं को उत्पन्न करने में सहायक होता है तथा उत्पादक मार्गों की ओर निवेश को सुविधाजनक बनाता है जिससे आर्थिक वृद्धि तेजी से बढ़ती है । यहां तक कि विकसित पूंजीवादी देश अपनी लागत पर आर्थिक वृद्धि को बनाये नहीं रख सकते तथा उन देशों में भी सार्वजनिक क्षेत्र को पहल दी जाती है ।

Role # 10. रक्षा सम्बन्धी उद्योगों पर नियन्त्रण (Control over Defense Industries):

एडम स्मिथ (Adam Smith) ने देश की सुरक्षा के दृष्टिकोण से रक्षा उद्योगों पर सरकार के नियन्त्रण का सुझाव दिया यदि रक्षा सम्बन्धी साजो-सामान निजी क्षेत्र के नियन्त्रण में हो तो यह किसी समय भी देश के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है । संक्षेप में आधुनिक समय में सरकार को रक्षा क्षेत्र का नियन्त्रण अपने हाथों में रखना चाहिए क्योंकि इस क्षेत्र की व्यवस्था पर बहुत धन खर्च करना पड़ता है ।

Role # 11. सन्तुलित आर्थिक विकास (Balanced Economic Development):

सार्वजनिक क्षेत्र में सन्तुलित आर्थिक विकास लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । दूसरे शब्दों में यह निर्यात को प्रोत्साहित करता है तथा आयात के लिए स्थानापन खोजता है ।

इसलिए तर्कसंगत व्यवहार से सार्वजनिक उद्योग अन्तरालों को भर सकते हैं तथा आत्म–निर्भरता और स्वयं-आधारित वृद्धि को प्राप्त कर सकते हैं नर्कस (Nurkes’s) का सन्तुलित विकास का नियम तथा हिरस्चमन (Hirschman’s) का असन्तुलित विकास, अर्थव्यवस्था की वृद्धि की प्राप्ति के लिए भारी मात्रा में निवेश की आवश्यकता की मांग करते हैं ।

Role # 12. पूंजी निर्माण (Capital Formation):

एक देश के विकास के लिए पूंजी निर्माण को एक मौलिक तत्व माना जाता है । सार्वजनिक क्षेत्र पूजी निर्माण के महत्वपूर्ण यन्त्र माने जाते हैं क्योंकि यह लाभ मूल्य नीति पर आधारित होते हैं । दूसरे शब्दों में वह पूंजी निर्माण के लिए आवश्यक वातावरण उत्पन्न करते हैं जो पूंजी निर्माण को जन्म देता है ।

Role # 13. विदेशी कमाई का साधन (Source of Foreign Earnings):

आर्थिक विकास के लिए बहुत व्यय की आवश्यकता होती है जोकि घरेलू साधनों द्वारा सम्भव नहीं है । दूसरी ओर अल्प-विकसित देशों के निर्यात कुछ आरम्भिक उत्पादों तक सीमित होते हैं । इस प्रकार इस संदर्भ में सार्वजनिक उद्यम विदेशी विनिमय कमाने का प्रभावी साधन बनते हैं ।

Role # 14. सन्तुलित क्षेत्रीय विकास (Balanced Regional Development):

देश के आर्थिक विकास की गति को तेज करने के लिए सन्तुलित क्षेत्रीय विकास अति आवश्यक है । निजी उद्यम पिछड़े क्षेत्रों में तथा जोखिमपूर्ण निवेशों से झिझकते हैं परन्तु यदि सार्वजनिक उद्यम इन क्षेत्रों में स्थापित किये जाते हैं तो यह आर्थिक विकास की गति को तीव्र कर सकते हैं । तीन इस्पात परियोजनाओं की भिलाई, रउरकेला और दुर्गापुर में स्थापना, आस-पास के क्षेत्रों के औद्योगीकरण के अच्छे उदाहरण हैं ।

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