Read this article in Hindi to learn about the contribution of Fayol to the classical theory of scientific management.

फ्रांसीसी इंजीनियर हेनरी फेयॉल को क्लासिकीय सिद्धांत का पिता माना जाता है । 1916 में फ्रांस में उनकी रचना जनरल एंड इंडस्ट्रियल मैनेजमेंट पहली बार प्रकाशित हुई और 1929 में इसका अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित हुआ ।

वे लोक व असार्वजनिक प्रशासनों में भेद नहीं करते थे । इसलिए उन्होंने लिखा- ”अब हमारे सामने प्रशासन के कई नहीं, बल्कि मात्र एक विज्ञान है जो समान रूप से सरकारी और गैर-सरकारी, सभी मामलों में लागू किया जा सकता है ।”

क्लासिकीय प्रशासनिक चिंतन के विकास में फेयॉल के योगदान का तीन शीर्षकों के अंतर्गत अध्ययन किया जा सकता है:

ADVERTISEMENTS:

(i) किसी औद्योगिक उपक्रम की गतिविधियाँ,

(ii) प्रशासन के संघटक,

(iii) प्रशासन के सिद्धांत ।

किसी औद्योगिक उपक्रम की गतिविधियाँ:

ADVERTISEMENTS:

फेयॉल ने किसी औद्योगिक उपक्रम की सभी गतिविधियों को छह हिस्सों में बाँटा है:

(i) तकनीकी गतिविधियाँ (उत्पादन, विनिर्माण व अनुकूलन),

(ii) वाणिज्यिक गतिविधियाँ (क्रय, विक्रय व विनियम),

(iii) वित्तीय गतिविधियाँ (पूँजी के सर्वश्रेष्ठ उपयोगी की तलाश),

ADVERTISEMENTS:

(iv) सुरक्षा संबंधी गतिविधियों (जान-माल की रक्षा),

(v) लेखा गतिविधियाँ (स्टॉक-ग्रहण, बैलेंस शीट, लागत, सांख्यिकी),

(vi) प्रबंधकीय या प्रशासनिक गतिविधियों (नियोजन, संगठन, निर्देश, तालमेल व नियंत्रण) ।

इस प्रकार फेयॉल के अनुसार प्रशासन के संघटक या कार्य है:

(i) पूर्वानुमान करना व योजना बनाना (प्रिवीयर/प्रिवॉयस) अर्थात् भविष्य की पड़ताल और कार्यवाही की योजना तैयार करना । योजना में एकता, निरंतरता, लचीलेपन और निश्चितता के गुण होने चाहिए ।

(ii) संगठित करना यानी, उपक्रम की द्वैध संरचना (सामग्री और मनुष्य) का निर्माण करना ।

(iii) निर्देशित करना यानी, कर्मचारियों में गतिविधियों की देखरेख ।

(iv) तालमेल करना यानी, सभी गतिविधियों और प्रयासों को एक साथ जोड़ना, एकीकृत करना और उनमें सामंजस्य बिठाना ।

(v) नियंत्रित करना यानी, यह देखना कि सब कुछ तय नियमों और अभिव्यक्त निर्देशों के अनुसार ही हो रहा है ।

फेयॉल के अनुसार प्रशासन ”POCC” को समेटता है, जिसका अर्थ है- योजना (Planning), संगठित करना (Organizing), निर्देशित करना (Commanding), तालमेल (Co-Ordinating) और नियंत्रण (Control) ।

फेयॉल के अनुसार संगठन के उच्च स्तरों पर तकनीकी क्षमता नहीं बल्कि प्रशासनिक क्षमता की जरूरत होती है । इसलिए वे लिखते हैं- ”सीढ़ी के निचले पायदानों पर तकनीकी और ऊपरी पायदानों पर प्रशासकीय क्षमता हावी होती है ।”

उनका मानना था कि प्रशासकीय क्षमता का विकास केवल तकनीकी ज्ञान के जरिए नहीं हो सकता । इसलिए उन्होंने हर स्तर पर कर्मचारियों के प्रशासकीय प्रशिक्षण की सलाह दी । फेयॉल ने अनुभव किया कि किसी प्रशासक (प्रबंधक) में छह विशेषताएँ (गुण/कुशलताएँ) होनी चाहिए-शारीरिक, मानसिक, नैतिक, सामान्य शिक्षा, विशेष ज्ञान और अनुभव ।

प्रशासन के सिद्धांत:

फेयॉल ने प्रशासन के चौदह सिद्धांतों का उल्लेख किया है । वे हैं:

(i) कार्य विभाजन (विशिष्टीकरण),

(ii) प्राधिकार और जिम्मेदारी,

(iii) अनुशासन,

(iv) निर्देशों में एकता,

(v) निर्देशन में एकता,

(vi) सामान्य हितों के समक्ष व्यक्तिगत हितों की अधीनता,

(vii) पारिश्रमिक,

(viii) केंद्रीकरण,

(ix) स्केलीय श्रृंखला (प्राधिकार की रेखा),

(x) क्रम व्यवस्था,

(xi) साम्य,

(xii) कर्मचारियों के कार्यकाल में स्थिरता,

(xiii) पहल,

(xiv) सैन्य भावना ।

फिर भी, फेयॉल ने माना कि प्रशासन के सिद्धांतों की यह सूची पूर्ण और आजमाई हुई नहीं है । इसमें जरूरत के हिसाब से जोड़ा या घटाया जा सकता है । इसलिए उन्होंने लिखा- ”प्रशासन के सिद्धांतों की संख्या की कोई सीमा नहीं । संगठन के मानवीय हिस्से को सुदृढ़ या उसकी कार्यप्रणाली को सुगम बनाने वाला प्रत्येक प्रशासनिक नियम या उपकरण तब तक सिद्धांतों में अपनी जगह बनाए रखता है जब तक अनुभव उसे इस महत्त्वपूर्ण स्थान का अधिकारी साबित करता है ।”

फेयॉल ने यह भी कहा कि प्रशासन के उनके सिद्धांत कठोर नहीं, बल्कि लचीले और हर जरूरत के अनुसार रूपांतरित होने में सक्षम हैं । उन्होंने लिखा- ”कॉरपोरेट निकाय का स्वास्थ्य और सुचारु कार्य व्यवस्था कई स्थितियों पर निर्भर करती है जिन्हें समान रूप से सिद्धांत, नियम, कायदा कह दिया जाता है । किसी भी प्रकार की कठोरता को अलग कर मैं ‘सिद्धांत’ शब्द को अपनाता हूँ, क्योंकि प्रबंधन के कामों में कुछ भी कठोर या पूर्ण नहीं, यह सिर्फ अनुपात का सवाल है । कभी-कभी हमें समान परिस्थितियों में एक ही सिद्धांत को दो बार लागू करना पड़ता है, भिन्न बदलती परिस्थितियों के लिए गुंजायश बनाई जानी चाहिए ।”

आगे फेयॉल ने कहा कि सिद्धांतों को संहिताबद्ध करना अपरिहार्य है । उन्होंने जोर देकर कहा- ”बिना सिद्धांत के आप अंधकार और अव्यवस्था में होते हैं; सर्वोत्तम सिद्धांतों के साथ भी हित; अनुभव और अनुपात पंगु होते हैं । सिद्धांत दिशा बताने वाला प्रकाश स्तंभ है, किंतु यह उन्हीं की मदद कर सकता है, जो पहले से बंदरगाह का रास्ता जानते हैं ।”

फेयॉल के चौदह सिद्धांतों की व्याख्या निम्नलिखित है:

1. कार्य विभाजन (विशिष्टीकरण):

प्राकृतिक व्यवस्था से विशिष्टीकरण का संबंध है । विशिष्टीकरण का उद्देश्य है समान प्रयास में ज्यादा और बेहतर कामों को अंजाम देना । तकनीकी कामों के साथ यह उन कामों पर भी लागू किया जा सकता है जो कई व्यक्तियों और कई प्रकार की क्षमताओं की माँग करते हैं । इसका परिणाम कार्यों का विशिष्टीकरण और शक्ति का पृथक्करण होता है ।

2. प्राधिकार और जिम्मेदारी:

फेयॉल ने प्राधिकार को ”आदेश देने का अधिकार और आज्ञापालन करवाने की शक्ति” के रूप में परिभाषित किया । फेयॉल के अनुसार प्राधिकार और जिम्मेदारी संबंधित और समानुपातिक होते हैं ।

उनके शब्दों में- ”अधिकार की कल्पना जिम्मेदारी के बिना नहीं की जा सकती, अर्थात् प्राधिकार के प्रयोग के साथ अनुशासन के अलावा पुरस्कार और दंड भी जुड़ा है । प्राधिकार का परिणाम जिम्मेदारी है, यह उसका स्वाभाविक फल और अनिवार्य प्रतिरूप है और किसी भी प्रकार के प्राधिकार के प्रयोग पर जिम्मेदारी खुद-ब-खुद पैदा हो जाती है ।”

3. अनुशासन:

आज्ञापालन, प्रयोग, ऊर्जा और आदर के बाह्य प्रतीकों का सम्मान करना अनुशासन है । यह उच्च स्तर के प्रबंधकों के लिए भी उतना ही अनिवार्य है जितना कि निचले स्तर के कर्मचारियों के लिए ।

इसकी स्थापना और इसे बनाए रखने के सर्वोत्तम साधन हैं:

(a) सभी स्तरों पर अच्छे श्रेष्ठतर,

(b) जितना संभव हो उतने स्पष्ट और निष्पक्ष समझौते और

(c) न्यायिक रूप से लागू प्रतिबंध (दंड) ।

4. निर्देशों में एकता:

इससे फेयॉल का आशय यह था कि ”किसी भी प्रकार के काम के लिए कोई कर्मचारी सिर्फ एक श्रेष्ठतर से निर्देश ले ।” आगे उन्होंने जोड़ा कि- ”अगर इसका उल्लंघन हुआ तो प्राधिकार कमजोर हो जाएगा, अनुशासन खतरे में पड़ जाएगा, व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाएगी और स्थिरता पर खतरा हो जाएगा ।” उन्होंने कहा कि कोई व्यक्ति दोहरा निर्देश नहीं मान सकता ।

किसी क्षेत्र में दो श्रेष्ठतर यह सोचते हुए निर्देश जारी करते रहें कि उनका निर्देश ही दोहरे निर्देश का निर्माण कर रहा है, तो फेयॉल के अनुसार, दोहरे निर्देश के ये परिणाम होते है:

(a) दो सदस्यों के बीच प्राधिकार का बँटवारा,

(b) विभागों का अपूर्ण-सीमा-निर्धारण और

(c) अलग विभागों के लगातार आपस में जोड़े जाने से कामों में स्वाभाविक अव्यवस्था और कामों का बुरी तरह निर्धारित होना ।

5. निर्देशन में एकता:

फेयॉल ने निर्देशन में एकता की व्याख्या इस प्रकार की ”समान उद्देश्य वाली गतिविधियों के किसी समूह का एक अध्यक्ष और एक योजना हो ।” उनके अनुसार, यह गतिविधियों में एकता, सामर्थ्य में तालमेल और क्षमता के दिशानिर्देशन के लिए अनिवार्य है ।

उन्होंने यह भी कहा कि निर्देशन में एकता (एक अध्यक्ष व एक योजना) को निर्देशों में एकता से मिलाना नहीं चाहिए । उनके अनुसार- ”निर्देशन में एकता निगम निकाय के स्वस्थ संगठन द्वारा उपलब्ध कराई जाती है, निर्देशों में एकता कर्मचारियों के कामों को सक्रिय कर देती है । निर्देशन ही एकता के बिना निर्देशों में एकता नहीं हो सकती, किंतु यह इसी से पैदा नहीं होती ।”

6. सामान्य हितों के समक्ष व्यक्तिगत हितों की अधीनता:

एक कर्मचारी या कर्मचारियों के समूह के हितों को संगठन के हितों के ऊपर हावी नहीं होना चाहिए । ये दोनों हित जुड़े होने चाहिए ।

इन्हें जोड़ने वाले साधन हैं:

(a) श्रेष्ठतर के कार्यों में दृढ़ता और अच्छे उदाहरण प्रस्तुत करना,

(b) अधिकतम संभव स्पष्ट समझौते,

(c) निरंतर पर्यवेक्षण ।

7. पारिश्रमिक:

यह दी गई सेवाओं की कीमत है । यह उपयुक्त होनी चाहिए और कर्मचारी और मालिक दोनों के लिए संतोषजनक होनी चाहिए ।

पारिश्रमिक की दर इन पर निर्भर करती है:

(a) जीवन की लागत,

(b) कर्मचारियों की उपलब्धता (प्रचुरता या कमी),

(c) सामान्य व्यावसायिक स्थितियाँ,

(d) व्यवसाय की आर्थिक स्थिति,

(e) कर्मचारी का मूल्य और

(f) अपनाए गए भुगतान की पद्धति ।

फेयॉल ने भुगतान की कई पद्धतियों का सुझाव दिया, जैसे:

(a) समय दर,

(b) पीस रेट,

(c) बोनस,

(d) मुनाफे का बँटवारा और

(e) गैर-वित्तीय प्रोत्साहन ।

8. केंद्रीकरण:

कार्य विभाजन की ही तरह केंद्रीकरण का संबंध भी प्राकृतिक क्रम से होता है । इसीलिए फेयॉल ने लिखा है- ”सभी सजीव रचनाओं में, चाहे वे पाशविक हों या सामाजिक, संवेदनाएँ मिलकर मस्तिष्क या निर्देशक हिस्से तक पहुँचती हैं और फिर मस्तिष्क या निर्देशक अंग से उस शरीर के सभी गतिमान अंगों को आदेश भेजे जाते हैं ।”

उन्होंने कहा कि कम या ज्यादा, केंद्रीकरण सभी संगठनों में मौजूद होता है । ”केंद्रीकरण और विकेंद्रीकरण महज अनुपात का सवाल है… हर वह कार्य जो अधीनस्थों के महत्व को बढ़ाता है, विकेंद्रीकरण है और जो कार्य इसे घटाए वह केंद्रीकरण है ।”

9. स्केलीय श्रृंखला (प्राधिकार की रेखा):

फेयॉल ने स्केलीय श्रृंखला की व्याख्या श्रेष्ठतरों की उस श्रृंखला के रूप में की जो सर्वोच्च प्राधिकार से आरंभ होकर निम्नतम श्रेणी तक जाती है । सर्वोच्च प्राधिकारी से निकलने वाली और उस तक पहुँचने वाली सभी सूचनाएँ (श्रृंखला की सभी कड़ियों से गुजरकर) प्राधिकार की सेवा का अनुसरण करती हैं ।

उनके अनुसार, यह संचार की आवश्यकता और निर्देशों में एकता के सिद्धांत, दोनों से निर्देशित होती हैं । यह मार्ग अक्सर धीमा और लंबा होता है, विशेषकर किसी बड़े सरकारी संगठन में ।

अत: फेयॉल ने एक वैकल्पिक मार्ग की सलाह दी जिसे ‘गैंगफ्लैंक’ के रूप में जाना जाता है । जिसमें संचार की गति बढ़ाने के लिए प्रक्रिया की परिधि को छोटा कर दिया जाता है ।

10. क्रम व्यवस्था:

फेयॉल दो प्रकार की कम व्यवस्थाओं की बात करते हैं- भौतिक क्रम व्यवस्था और मानवीय या सामाजिक क्रम । भौतिक क्रम का सूत्र है, ‘हर चीज का एक स्थान और हर चीज अपने स्थान पर ।’ मानवीय क्रम के लिए भी सूत्र समान है, ‘हर किसी के लिए एक स्थान और हर कोई अपने स्थान पर’ (सही जगह पर सही आदमी) ।’

11. साम्य:

साम्य दयालुता और न्याय का मिश्रण है । उन्होंने कहा कि व्यक्तियों के प्रति दयालुता का व्यवहार होना चाहिए ताकि उन्हें पूरी श्रद्धा और लगन से काम करते रहने के लिए प्रेरित किया जा सके । संगठन के सर्वोच्च अधिकारी की यही कोशिश होनी चाहिए कि वह संगठन के सभी स्तरों पर साम्य की समझ को स्थापित करें ।

12. कर्मचारियों के कार्यकाल की स्थिरता:

नए काम का आदी होना और सही ढंग से अंजाम देने में सफल होने के लिए किसी भी कर्मचारी को समय की जरूरत होती है । फेयॉल ने कहा कि खराब संचालन अर्थात् अक्षमता का कारण और प्रभाव दोनों ही कर्मचारियों के कार्यकाल की अस्थिरता है ।

13. पहल:

पहल का अर्थ है- किसी योजना की कल्पना और उसे सफलतापूर्वक कार्यान्वित करने की शक्ति । यह संगठन के सभी स्तरों के कर्मचारियों की लगन और ऊर्जा को बढ़ती है । लेकिन प्राधिकार के सम्मान और अनुशासन के दायरे में ही इसे प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए ।

14. सैन्य भावना:

इसका अर्थ है- किसी संगठन के कर्मचारियों के बीच सामंजस्य और एकता । यह संगठन की शक्ति का महत्त्वपूर्ण स्रोत है । फेयॉल ने कहा कि सैन्य भावना के प्रोत्साहन के लिए निर्देशों में एकता के सिद्धांत का पालन करना होगा तथा फूट डालो और शासन करो के खतरों और लिखित संचार के दुरुपयोग से बचना होगा ।