फ्रांस का संवैधानिक विकास | Constitutional Development of France in Hindi.

फेरेल हडी ने फ्रांस के प्रशासन को क्लासिक प्रशासन के वर्ग में रखा । यहाँ की राजनीतिक प्रणाली लम्बे समय तक राजतन्त्र के अन्तर्गत रही । 1789 की राज्यक्रान्ति ने लुई 16वें के साथ ही राज्यतन्त्र का भी समापन कर दिया । फ्रांसीसी राज्यक्रांति (1789-1815) ने फ्रांस को अनेक ऐसी व्यवस्थाएँ दी जो बाद में फ्रांस की बदलती राजनीतिक संस्कृति को आज तक प्रभावित करती रही हैं । फ्रांस की राजनीतिक प्रणाली राज्यक्रांति से लेकर अब तक इतनी बार बदली है जो किसी दूसरे देश में देखने को नहीं मिलती ।

1. फ्रांस का पहला संविधान 1789 की क्रांति का परिणाम था और मात्र क्रांति के दौर में ही उसके तीन संविधान 1791,1793, और 1795 में बने ।

2. नेपोलियन ने तीसरे संविधान को एक नये रूप में परिवर्तित कर दिया तथा स्वयं फ्रांस का अधिनायक बन बैठा । बाद में उसने 1795 के संविधान को भंग कर स्वयं को सम्राट घोषित कर (1804) फ्रांस में राजतन्त्र को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया ।

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3. 1830 में संवैधानिक राजतन्त्र स्थापित किया गया था जबकि 1848 में स्थापित द्वितीय गणतन्त्र को नेपोलियन तृतीय ने 4 साल की अल्पावस्था में ही नष्ट करके अपने को फ्रांस का सम्राट घोषित कर दिया (1852) ।

4. जर्मनी के हाथों नेपोलियन तृतीय की हार (1870) के बाद 1871 में फ्रांस तृतीय गणतन्त्र के अधीन आया जिसका संविधान 1875 में लागू हुआ ।

5. 1940 में तीसरा गणतन्त्र समाप्त हुआ और चतुर्थ गणतन्त्र ने अपना संविधान 1946 में बनाया । इसका निर्माण एक संविधान सभा ने किया था । यह संविधान अपने पूर्ववर्ती संविधान का ही मामूली संशोधित रूप था जो इतनी कमियों से ग्रस्त था कि 12 वर्षों के अन्तराल में फ्रांस ने 25 मंत्रिमण्डलों का सामना किया । इस गम्भीर राजनीतिक अशांति के दौर में फ्रांस को यूरोप का रूग्ण व्यक्ति मान लिया गया जो उपनाम कभी टर्की के लिये प्रयुक्त होता था ।

पंचम गणराज्य का संविधान (गाल का संविधान 1958):

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अल्जीरिया में फ्रांसीसी सेना के विद्रोह ने सरकार को मजबूर किया कि वह अपनी शक्ति जनरल चार्ल्स डी गाल को सौंप दे । गाल प्रधानमंत्री बना और उसने 39 सदस्यों की सहायता से पंचम गणराज्य का संविधान 3 माह की अल्पावधि में ही बना डाला ।

इस संविधान की जनमत संग्रह द्वारा पुष्टि भी हो गयी । सितम्बर 1958 से लागू यह संविधान ही आज तक कार्यशील है ।

इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित है:

1. लिखित संविधान:

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1958 का फ्रेन्च संविधान लिखित संविधान है । इसमें एक प्रस्तावना सहित 95 अनुच्छेद हैं जो 15 अध्यायों में वर्णित हैं । इतने संक्षिप्त संविधान में अनेक महत्वपूर्ण बातें जैसे विधायिका का गठन, विधि निर्माण प्रक्रिया आदि छूट गई हैं ।

2. गणराज्य:

अनु. 2 फ्रांस को गणराज्य घोषित करता है अर्थात यहाँ का राष्ट्रपति जनता द्वारा निर्वाचित होता है ।

3. स्वतन्त्रता, समानता, और भातृत्वताः

राज्य क्रांति के दौरान इन्हीं तीन मूल्यों पर सर्वाधिक बल दिया गया था जिन्होंने सम्पूर्ण विश्व का मार्गदर्शन किया । इन्हें 5वे संविधान का निशेष अंग बनाया गया है ।

4. एकात्मक व्यवस्था:

इस संविधान ने फ्रांस को एकात्मक राज्य बनाया है । इसमें केन्द्र-राज्यों के मध्य शक्ति विभाजन का प्रावधान नहीं है । केन्द्र के पास सभी शक्तियां हैं जिसका प्रयोग कर वह स्थानीय शासन संस्थाओं की प्रस्थापना या उनका उन्मूलन कर सकता है । इस दृष्टि से फ्रांस ब्रिटेन से भी अधिक एकात्मक राज्य प्रतीत होता है ।

5. कठोर संविधान:

फ्रांस के संविधान में संशोधन का तरीका अत्यन्त कठोर हैं । दोनों सदनों के न्यूनतम 60 प्रतिशत समर्थन द्वारा ही संशोधन हो सकता है । राष्ट्रपति यदि संशोधन करना चाहे तो उसे उस मुद्दे पर सदनों की स्वीकृति के साथ जनमत संग्रह भी करवाना पड़ता है । यही प्रक्रिया सदन के सदस्य द्वारा रखे गये संशोधन प्रस्ताव पर भी अपनायी जाती है ।

फ्रांस के संविधान में गणराज्य को बदलने पर रोक लगा दी गयीं है । अर्थात गणराज्य के स्थान पर राजशाही अब कभी नहीं लायी जा सकेगी । इसी प्रकार फ्रांस के राज्य क्षेत्र में भी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है ।

6. अर्ध अध्यक्षीय या अर्ध संसदीय शासन प्रणाली:

इस संविधान ने फ्रांस को अंशतः अध्यक्षीय और अंशतः संसदीय शासन प्रणालियों की विशेषताओं से मिश्रित शासन प्रणाली दी है ।

इसके दो भाग हैं:

(i) जनता द्वारा सीधा चुना गया राष्ट्रपति जो विधायिका के प्रति उत्तरदायी नहीं है (अध्यक्षीय प्रणाली का गुण) ।

(ii) प्रधानमंत्री और मंत्रीपरिषद जो विधायिका के प्रति उत्तरदायी है । (संसदीय प्रणाली का गुण) ।

लेकिन मंत्रिपरिषद के सदस्य विधायिका के सदस्य नहीं होते हैं और उसमें मतदान भी नहीं करते हैं यद्यपि कार्यवाही में भाग लेते है । राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों कार्यपालिका के शीर्ष पर स्थित हैं और समान शक्तियों का उपभोग भी करते है लेकिन राष्ट्रपति अधिक शक्तिशाली है ।

वस्तुतः मिश्रित संविधान तत्कालीन आवश्यकताओं की उपज मानी जाती है । जिसने फ्रांस को अनिश्चितता और संकट में डाल रखा था । इसलिए फ्रांस के इस संविधान को संकटकाल का शिशु (Child of Crisis) भी कहा जाता है ।

7. द्वि-सदनात्मक विधायिका:

फ्रांस की विधायिका को द्वि सदनीय बनाया गया हैं:

सीनेट – यह उच्च सदन है । सीनेट के 321 सदस्य 9 वर्षों के लिये प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं । यह स्थायी सदन है जिसके 1/3 सदस्य प्रति 3 वर्ष पश्चात सेवानिवृत्त हो जाते है । इन्हें प्रादेशिक क्षेत्रों तथा प्रवासी नागरिकों के प्रतिनिधि चुनते हैं । प्रत्येक सिनेटर (न्यूनतम आयु 35 वर्ष आवश्यक) का एक विकल्प भी चुना जाता है जो मूल सिनेटर की मृत्यु या पदत्याग करने पर उसका स्थान ले लेता है । सिनेटर के लिये न्यूनतम आयु 35 वर्ष आवश्यक है ।

द्वितीय नेशनल असेम्बली (राष्ट्रीय सभा) यह निम्न सदन है । इसका मुख्य कार्य कानून निर्माण और बजट स्वीकृति है । राष्ट्रीय सभा के सभी 577 सदस्य (जिन्हें डिप्टी कहा जाता है) जनता द्वारा सीधे निर्वाचित होते है । अतः यही भारत की लोकसभा की भांती फ्रांस का वास्तविक प्रतिनिधि या लोकप्रिय सदन है ।

इसके लिए एकल सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र है अर्थात एक क्षेत्र से एक सदस्य ही चुना जाता है । उम्मीद्‌वार को जीतने के लिए न्यूनतम कोटा (50 प्रतिशत से अधिक मत) प्राप्त करना आवश्यक है, अन्यथा पुन: मतदान होता है । और ऐसे समय पहले दौर के उन उम्मीद्‌वारों को बाहर कर दिया जाता है जिन्हें 10 प्रतिशत से भी कम मत मिले हों । राष्ट्रीय सभा का सामान्य कार्यकाल 5 वर्ष है यद्यपि इसे समय से पूर्व भी भंग किया जा सकता है ।

8. शक्तिशाली कार्यपालिका और दुर्बल विधायिका:

यद्यपि संविधान ने कार्यपालिका (राष्ट्रपति/प्रधानमंत्री) और विधायिका के कार्यों का बंटवारा कर दिया है तथापि विधायिका पर ऐसे प्रतिबन्ध भी लगाये हैं, जिन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से कार्यपालिका को अधिक शक्तिशाली बना दिया है ।

विधायिका उन्हीं विषयों पर कानून बना सकती है, जिनका उल्लेख संविधान में किया गया है । शेष विषयों पर कार्यपालिका कानून बनाती है जिन्हें कार्यकारी डिक्री (Executive Decree) कहा जाता है ।

राष्ट्रपति 5 वर्ष (पूर्व में 7 वर्ष) के लिए निर्वाचित होता है जो राष्ट्रीय सभा के कार्यकाल के बराबर है ।

9. संवैधानिक परिषद का नियन्त्रण:

इस संविधान ने पहली बार एक सर्वोच्च संवैधानिक परिषद की स्थापना की जो फ्रांसीसी संविधान की अद्वितीय विशेषता है । इस परिषद की भूमिका को देखते हुए इसे तीसरा सदन भी कहा जाता है । इसके सभी 9 सदस्य 9 वर्षों के लिये नियुक्त किये जाते हैं । यह भी एक स्थायी परिषद है जिसके 1/3 सदस्य प्रति 3

वर्ष में रिटायर हो जाते हैं ।

इसका मुख्य कार्य है विधायिका के क़ानूनों तथा कार्यपालिका की कार्यकारी डिक्रियों की न्यायिक समीक्षा करना । यह जनमत संग्रह (लोक निर्णय) की भी जांच करती है और चुनावों की देखरेख भी करती है । चुनाव परिणामों की घोषणा का दायित्व भी परिषद का है । राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल की घोषणा के पूर्व इस परिषद से परामर्श आवश्यक है ।

10. राजनीतिक दलों को संवैधानिक मान्यता:

इस संविधान की यह भी एक अद्वितीय विशेषता है कि इसने राजनीतिक दलों का जिक्र अपने अनुच्छेद 4 में कर दिया है । यह अनुच्छेद राजनीतिक दलों को प्रजातन्त्र तथा राष्ट्रीय सम्प्रभुता के सिद्धांत के प्रति स्वामीभक्त बनाता है ।

11. मानवाधिकार घोषणापत्र पर आधारित प्रस्तावना:

इस संविधान के प्रारम्भ में दी गयी प्रस्तावना एक वृहद् दस्तावेज है जिसका मूल स्रोत 1789 की राज्य क्रांति का मानवाधिकार घोषणापत्र है । इस प्रस्तावना में मूल अधिकार अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों और समझौतों के प्रति निष्ठा तथा फ्रांसीसी संघ आदि का उल्लेख है ।

12. पंथनिरपेक्षता:

राज्य का कोई धर्मघोषित नहीं किया गया है बल्कि सभी व्यक्तियों को धार्मिक स्वतन्त्रता दी गयी है ।

13. मूल अधिकार:

प्रस्तावना ही नागरिकों के मूल अधिकारों का स्रोत है । इसमें रोजगार का अधिकार, स्त्री पुरुष समानता, हड़ताल करने, संघ बनाने की स्वतन्त्रता दी गयी है । भारत के नीति निर्देशक तत्वों में उल्लेखित राज्य के वृद्धों, बच्चों, महिलाओं के संबंध में कल्याणकारी दायित्व फ्रांस के संविधान में मूल अधिकारों के रूप में वर्णित है । लेकिन मूलाधिकारों को न्यायिक उपचार प्राप्त नहीं है ।

14. जनमत संग्रह पर आधारित संविधान:

इस संविधान का निर्माण जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों ने नहीं अपितु जनरल गाल द्वारा नियुक्त 39 सदस्यीय संविधान सभा ने किया था लेकिन जनमत संग्रह में इसे भारी समर्थन मिला । संविधान के तीसरे अनुच्छेद में कहा भी गया है कि ”राज्य की सम्प्रभुता जनता में निहित होगी जो इसका प्रयोग अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से करेगी ।”