यूनाइटेड किंगडम में लोक सेवा: इतिहास, वर्गीकरण और भर्ती | Read this article in Hindi to learn about:- 1. ब्रिटेन लोकसेवा का इतिहास  (History of Civil Service) 2. नोर्थकोट-ट्रेवेल्यान रिपोर्ट (1854) (Northcote-Trewellian Report) 3. फुल्टन रिपोर्ट (1968) (Fulton Report) 4. केंद्रीय कार्मिक एजेंसी (Central Personnel Agency) 5. ब्रिटेन लोकसेवा का  वर्गीकरण  (Classification of British Civil Service) 6. ब्रिटेन लोकसेवा की भर्ती  (Recruitment for British Civil Service) and Other Details.

Contents:

  1. ब्रिटेन लोकसेवा का इतिहास  (History of Civil Service)
  2. नोर्थकोट-ट्रेवेल्यान रिपोर्ट (1854) (Northcourt-Trevelyan Report)
  3. फुल्टन रिपोर्ट (1968) (Fulton Report)
  4. केंद्रीय कार्मिक एजेंसी (Central Personnel Agency)
  5. ब्रिटेन लोकसेवा का  वर्गीकरण  (Classification of British Civil Service)
  6. ब्रिटेन लोकसेवा की भर्ती  (Recruitment for British Civil Services)
  7. ब्रिटेन लोकसेवा की प्रशिक्षण (Training  for British Civil Services)
  8. ब्रिटेन लोकसेवा की पदोन्नति (Promotion  of British Civil Service)
  9. ब्रिटेन लोकसेवा की वेतन एवं सेवा-शर्तें  (British Civil Service – Salary and Terms of Service)
  10. व्हिट्‌ले कौंसिलें  (Whitley Council)

1. ब्रिटेन लोकसेवा का इतिहास  (History of Civil Service):

उन्नीसवीं सदी के मध्य तक  ब्रिटेन में लोकसेवा की संरक्षण प्रणाली (Patronage System) प्रचलित थी । लोकसेवा के पदों को राजनीतिक पुरस्कार या व्यक्तिगत पक्षपात के तौर पर बाँटा जाता था । अपेक्षित योग्यता रखने वाला आम नागरिक पक्षपात के बिना लोकसेवा में प्रवेश नहीं पा सकता था ।

इस तरह की भ्रष्टाचार से प्रशासन में भ्रष्टाचार और अकुशलता पनपती थी फिर भी भ्रष्टाचार, मितव्ययता, कार्यकुशलता और सार्वजनिक पदों के लोकप्रिय अधिकारों के प्रति बढ़ते हुए सरोकार से 19वीं सदी के मध्य में आधुनिक लोकसेवा का जन्म हुआ ।

ADVERTISEMENTS:

जैसे-जैसे ब्रिटिश लोकसेवा का विकास होता गया, यह नोर्थकोट-ट्रेवेल्यान रिपोर्ट (1854) की सिफारिश पर आधारित सिद्धांतों पर संगठित होती गई । बाद में अनेक समिति और आयोगों की सिफारिशों पर इसमें कुछ परिवर्तन किए जाते रहे ।

इनमें प्रमुख थे- प्ले फेयर कमीशन (1875), रिड्‌ले कमीशन (1886-90), मैकड़ानेल कमीशन (1912-15), हाल्डेन कमेटी (1918), ब्रेडबरी कमेटी (1918-19), टॉमलिन कमीशन (1929-31), बार्लो कमेटी (1943), ऐसीटन कमेटी (1944), मास्टरमैन कमेटी (1948), प्रिसले कमीशन (1953-55), प्लॉडेन कमेटी ऑन कंट्रोल ऑफ पब्लिक एक्सपेंडीचर (1961) और मॉर्टन कमेटी (1963) ।

1968 की फुल्टन कमेटी के द्वारा नैदानिद लक्षणों के आधार पर सदी के साठवें दशक के अंत में लोक सेवा को बड़े स्तर पर दोबारा पुनर्गठित किया गया । हाल के समय में कुछ छोटे-मोटे फेरबदल निम्नलिखित कुछ रिपोर्टों की सिफारिशों के आधार पर किए गए । इनमें से प्रमुख डेवीज रिपोर्ट (1969 पद्धति II पर) सरकारी गोपनीयता अधिनियम 1911 पर फ्रैंक्स रिपोर्ट (1972), मेगा व रिपोर्ट (1982), एटकिंसन रिपोर्ट (1983), सर रोबिंस रिपोर्ट (1988) और इब्स रिपोर्ट (1988) ।


2. नोर्थकोट-ट्रेवेल्यान रिपोर्ट (1854) (Northcote-Trewellian Report):

अप्रैल 1853 में ब्रिटिश राजकोष ने नोर्थकोट-ट्रेवेल्यान समिति को नियुक्त किया । ‘ब्रिटेन में स्थायी लोकसेवा का संगठन’ पर इसकी रिपोर्ट 1853 में प्रकाशित हुई ।

ADVERTISEMENTS:

इसकी मुख्य सिफारिशें इस प्रकार हैं:

1. भर्तियों में पक्षपात प्रणाली समाप्त होनी चाहिए ।

2. भर्तियाँ खुली प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षाओं द्वारा होनी चाहिए ।

3. एक लोकसेवा आयोग का गठन होना चाहिए । अर्ध-न्यायिक स्वायत्ता प्राप्त यह संस्था भर्ती प्रक्रिया के यथोचित प्रबंधन के लिए उत्तरदायी होनी चाहिए ।

ADVERTISEMENTS:

4. सेवाओं में पदोन्नति का आधार योग्यता होनी चाहिए न कि वरिष्ठता ।

5. प्रशासन के बौद्धिक पक्ष को इसके यांत्रिक पक्ष से अलग करना चाहिए । दूसरे शब्दों में, लोकसेवा के पदों को दो वर्गों, अर्थात उच्चतर वर्ग और निम्नतर वर्ग में विभाजित किया जाना चाहिए । उच्चतर वर्गों को बौद्धिक और निम्नतर वर्गों को यांत्रिक काम करने चाहिए । इन दोनों वर्गों की भर्ती के तरीके अलग-अलग होने चाहिए ।

6. निम्नतर पदों की भर्ती की आयु 17 से 21 वर्ष तथा उच्चतर वर्गों के लिए यह आयु 19 से 25 वर्ष तक होनी चाहिए । अत: लोकसेवा में भर्ती को नौजवानों तक सीमित कर दिया और परिपक्व लोगों की भर्ती के विचार को अस्वीकार कर दिया गया ।

7. वरिष्ठ लोकसेवकों का चयन सामान्य बौद्धिक क्षमता के आधार पर होना चाहिए न कि विशेषज्ञ ज्ञान के आधार पर दूसरे शब्दों में, खुली प्रतियोगात्मक परीक्षा तकनीकी अथवा व्यावसायिक विषयों की बजाए उदार कला विषयों में विश्वविद्यालय स्तर की होनी चाहिए ।

8. लोकसेवाओं को एकीकृत भर्ती और अंतर-विभागीय पदोन्नतियों के साथ जोड़ दिया जाना चाहिए ।

भर्ती के लिए प्रत्याशियों की परीक्षा लेने के लिए एक स्वतंत्र संस्था के रूप में लोकसेवा आयोग की स्थापना 1855 में ऑर्डर-इन-कौंसिल के द्वारा की गई थी । प्रारंभ में यह केवल उन प्रत्याशियों की परीक्षा लेती थी जिनको विभागाध्यक्षों द्वारा मनोनीत किया जाता था ।

लेकिन 1870 के बाद यह खुली प्रतियोगिताओं को आयोजित करने लगी और तब से ये पद्धति प्रासंगिक लोक सेवाओं में प्रवेश का एकमात्र रास्ता बन गयी । ब्रिटेन में योग्यता प्रणाली 1870 सें ही वास्तविक रूप ले सकी थी ।


3. फुल्टन रिपोर्ट (1968) (Fulton Report):

1966 में ब्रिटिश सरकार ने लोकसेवा के सम्बन्ध में फुल्टन कमेटी को नियुक्त किया । इसका कार्य गृह लोकसेवा के ढाँचे, भर्ती, प्रशिक्षण और प्रबंधन की जाँच करना और इसमें सुधार की सिफारिशें करना था । कमेटी ने अपनी रिपोर्ट 1968 में प्रस्तुत की और यह प्रेक्षण किया कि ”मौजूदा गृह लोकसेवा अब भी मूलत: नोर्थकोट-ट्रेवेल्यान रिपोर्ट के उन्नीसवीं शताब्दी के दर्शन की देन है । इसके सामने बीसवीं सदी के उत्तरार्ध वाले कार्य हैं । हम यही समझ पाए हैं और हम इसी का इलाज तलाशने की कोशिश कर रहे हैं ।” इसने कुल मिलाकर 158 सिफारिशें कीं ।

लोकसेवा से संबंधित महत्त्वपूर्ण सिफारिशें निम्नलिखित हैं:

1. लोकसेवा को व्यवस्थित करने के लिए लोकसेवा के एक नए विभाग का गठन किया जाना चाहिए । इसका प्रमुख प्रधानमंत्री हो और इसमें लोकसेवा आयोग को मिला देना चाहिए । गृह लोकसेवा का प्रमुख लोकसेवा विभाग के स्थायी सचिव को बनाया जाना चाहिए ।

2. तमाम वर्गों को समाप्त करके इनकी जगह एकमात्र एकीकृत पदानुक्रम ढाँचे का निर्माण किया जाना चाहिए जिसके अंतर्गत ऊपर से नीचे तक सभी लोकसेवक आते हों । प्रत्येक पद का क्रम कार्य मूल्यांकन के द्वारा निर्धारित किया जाना चाहिए ।

3. रंगरूटों को प्रवेश-पश्चात प्रशिक्षण देने के लिए एक लोकसेवा विद्यालय स्थापित किया जाना चाहिए । इसमें प्रशासन, प्रबंधन, अर्थशास्त्र और अन्य संबंधित विषयों के प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में होने चाहिए ।

पाठ्यक्रम में विशेषज्ञों के लिए प्रबंधन प्रशिक्षण की व्यवस्था भी हो । इनके अतिरिक्त विद्यालय को तरह-तरह के अल्पकालीन पाठ्यक्रम उपलब्ध कराने के साथ-साथ महत्त्वपूर्ण शोध कार्य भी करने चाहिए ।

4. लोकसेवा और अन्य रोजगारों (अर्थात विश्वविद्यालय तथा निजी क्षेत्र) के बीच अधिक गतिशीलता होनी चाहिए । विलंबित प्रवेश तथा अल्पकालीन नियुक्तियों के अवसरों का विस्तार किया जाना चाहिए ।

5. विश्वविद्यालय स्नातकों को भर्ती करते समय रोजगार के सम्बंध में उनके पाठ्यक्रम की प्रासंगिकता का भी ध्यान रखना चाहिए अर्थात भर्ती के समय प्रासंगिक उपाधियों को वरीयता देनी चाहिए ।

6. लोकसेवा को चाहिए कि वह विशेषज्ञों तथा प्रशासकों, दोनों के बीच अधिक व्यावसायिकता को बढ़ावा दे । विशेषज्ञों को प्रबंधन में अधिक प्रशिक्षण देना चाहिए और उनको अधिक उत्तरदायित्वों तथा अधिक व्यापक आजीविका के अवसर मिलने चाहिए । जबकि प्रशासकों को वित्तीय प्रशासन तथा सामाजिक प्रशासन के विशेष क्षेत्रों में विशेषज्ञ बनने को प्रोत्साहित करना चाहिए ।

7. कैरियर प्रबंधन पर अधिक ध्यान देना चाहिए ।

8. प्रत्येक कार्यालय विभाग में नियोजन इकाई स्थापित करनी चाहिए जिसके निदेशक की सीधी पहुँच संबंधित विभाग के मंत्री तक हो ।

9. मुख्य विभागों में वरिष्ठ नीति सलाहकार का पद होना चाहिए जो स्थायी सचिव के पद के अतिरिक्त हो ।

10. सरकारी गोपनीयता नियमों को ढीला करना चाहिए और प्रशासनिक प्रक्रिया को जनता की जानकारी और सलाह के लिए अधिक खुला करना चाहिए ।

11. मंत्रियों को यह छूट मिलनी चाहिए कि वे परामर्श के लिए विशेषज्ञों को अस्थाई आधार पर नियुक्त कर सकें ।

12. सभी प्रमुख विभागों में प्रबंध न सेवा इकाइयों का गठन किया जाना चाहिए ।

13. भर्ती प्रणाली के बदलावों तथा पूरे सेवाकाल के दौरान आंतरिक प्रोन्नति के अवसरों में वृद्धि के माध्यम से लोक सेवकों के शैक्षिक एवं सामाजिक आधार का विस्तार किया जाना चाहिए ।


4. केंद्रीय कार्मिक एजेंसी (Central Personnel Agency):

31 अक्टूबर, 1968 तक ब्रिटेन की केंद्रीय कार्मिक एजेंसी ब्रिटिश कोषागार थी और यही लोकसेवा का प्रंबंध करती थी । लेकिन 1 नवंबर, 1968 को फुल्टन कमेटी रिपोर्ट की सिफारिशों पर लोकसेवा विभाग की स्थापना की गई ।

इस विभाग ने केंद्रीय कार्मिक एजेंसी की जगह ले ली और लोकसेवा आयोग को एक स्वतंत्र इकाई के तौर पर अपने अंतर्गत ले लिया । परंतु मितव्ययता के विचार से 1981 में इस विभाग को समाप्त कर दिया गया और इसके कार्यों को कोषागार तथा प्रबंधन एवं कार्मिक कार्यालय के बीच बाँट दिया गया ।

1987 में, प्रबंधन एवं कार्मिक कार्यालय को समाप्त कर दिया गया और इसका स्थान लोकसेवा मंत्री कार्यालय ने ले लिया । संसद में आजकल ब्रिटिश लोकसेवा का प्रबंधन कोषागार तथा लोकसेवा मंत्री कार्यालय द्वारा किया जाता है जोकि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के नियंत्रण में काम करता है ।


5. ब्रिटेन लोकसेवा का वर्गीकरण (Classification of British Civil Service):

फुल्टन पूर्व काल में ब्रिटिश लोकसेवा निम्न चार प्रमुख वर्गों में विभाजित थी और इसमें से प्रत्येक की अपनी आंतरिक पदक्रम संरचना थी:

a. प्रशासनिक वर्ग,

b. कार्यपालक वर्ग,

c. लिपिक वर्ग,

d. विशेषज्ञ वर्ग ।

1968 की फुल्टन कमेटी रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि सारे वर्गों को समाप्त कर एकमात्र पदक्रम ढाँचे को रखना चाहिए । रिपोर्ट में कहा गया था- सभी लोक सेवकों को एक अकेले पदक्रम ढाँचे में संगठित करना चाहिए जिसमें विभिन्न कुशलताओं तथा उत्तदायित्वों से मेल खाने वाले विभिन्न वेतनमानों की उपयुक्त संख्या हो और प्रत्येक पद के पदक्रम का निर्धारण कार्य के निष्पादन द्वारा होता हो ।

इस सिफारिश को लागू करने के लिए ‘समूह’ और ‘प्रवर्ग’ मूल्यांकन के अंतर्गत भूतपूर्व वर्गों का विलय कर दिया गया । 1971 में प्रशासन के निचले स्तर को कार्यपालक वर्ग तथा लिपिक वर्ग में विलीन करके एक ‘प्रशासनिक समूह’ का निर्माण किया गया ।

इस समूह के भीतर विभिन्न श्रेणियों इस प्रकार थीं:

i. वरिष्ठ कार्यकारी अधिकारी,

ii. उच्चतर कार्यकारी अधिकारी,

iii. प्रशासनिक प्रशिक्षु,

iv. कार्यकारी अधिकारी,

v. प्रशासनिक अधिकारी,

vi. प्रशासनिक सहायक ।

परंतु, सेवाओं में ऊर्ध्वाधर अवरोध (Vertical Barriers) अभी भी मौजूद हैं । एकीकृत पदक्रम प्रणाली केवल 1972 में निर्मित ‘खुले ढाँचे’ में थी ।

1986 में ‘खुले ढाँचे’ के अंतर्गत निम्न सात सर्वोच्च पदक्रम आते थे:

पदक्रम 1 – स्थायी सचिव,

पदक्रम 2 – उपसचिव,

पदक्रम 3 – अवर सचिव,

पदक्रम 4 – कार्यकारी निदेशक,

पदक्रम 5 – सहायक सचिव,

पदक्रम 6 – वरिष्ठ प्रधानाध्यापक,

पदक्रम 7 – प्रधानाध्यापक ।


6. ब्रिटेन लोकसेवा कीभर्ती (Recruitment for British Civil Services):

ब्रिटेन की लोकसेवा में भर्ती लोकसेवा आयोग द्वारा संचालित प्रतियोगिता परीक्षाओं पर आधारित है । सफल प्रत्याशियों की सूची आयोग नियुक्ति विभाग को भेजता है । 1945 तक उच्च लोकसेवा अर्थात प्रशासनिक वर्ग में प्रवेश का एकमात्र मार्ग पद्धति I था । इसके अंतर्गत होने वाली परीक्षा में लिखित अर्हता परीक्षा के बाद साक्षात्कार होता था ।

लिखित परीक्षा लेख, भाषा, सामयिक मामलों तथा ऐच्छिक विषयों में होती थी । 1945 में एक वैकल्पिक पद्धति मैथड II शुरू की गई । इसमें व्यक्तिगत और सामूहिक साक्षात्कारों पर जोर दिया गया था । लोकसेवा चयन बोर्ड दो दिन के विस्तारित साक्षात्कार के लिए प्रत्याशियों को ग्राम्य गृह (Country House) में ले जाते थे ।

अत: इस पद्धति को कंट्री हाउस पद्धति भी कहा जाता था । इस प्रकार 1970 से लोकसेवा में प्रवेश के लिए प्रत्याशियों की योग्यता और उपयुक्तता परखने का एकमात्र उपाय मैथड II हो गया । 1971 में फुल्टन कमेटी की सिफारिशों पर नए प्रशासनिक समूह में कैरियर के लिए मैथड II की तर्ज पर प्रशासनिक प्रशिक्षुओं के चयन की एक प्रणाली की शुरूआत की गई ।

चुने हुए प्रत्याशियों (प्रशासनिक प्रशिक्षुओं) को दो वर्ष के लिए परिवीक्षाधीन (Under Probation) रखा जाता है । उसके बाद लोकसेवा विद्यालय में सोलह सप्ताह के प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के लिए भेज दिया जाता है ।


7. ब्रिटेन लोकसेवा की प्रशिक्षण (Training  for British Civil Services):

ब्रिटेन में उच्चतर ‘लोकसेवाओं के लिए औपचारिक प्रशिक्षण की संस्था का संकेत लोकसेवक प्रशिक्षण पर एशीटन कमेटी रिपोर्ट (1944) से प्राप्त होता है । 1943 में, सर राल्फ एशीटन की अध्यक्षता में नियुक्त इस कमेटी ने उच्चतर लोकसेवा अर्थात प्रशासनिक वर्ग में प्रवेश करने वालों के प्रशिक्षण के लिए केंद्रीयकृत प्रंबंध करने की सिफारिश की थी । इसकी सिफारिश पर ब्रिटिश कोषागार में एक प्रशिक्षण एवं शिक्षण विभाग का गठन किया गया । उसका काम उच्चतर लोकसेवकों के लिए प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों का समन्वय तथा संचालन करना था ।

ब्रिटेन में प्रशिक्षण के मुख्य केंद्र निम्नलिखित हैं:

1. एडमिनिस्ट्रेटिव स्टाफ कॉलेज-प्रबंधन का बाह्य प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए हेनले-आन-थेम्स पर 1948 में स्थापित ।

2. सेंटर फॉर एडमिनिस्ट्रेटिव स्टडीज, लंदन में 1963 में स्थापित ।

3. रॉयल कालेज ऑफ डिफेंस स्टडीज, लंदन, कूटनीतिक सेवाओं के लिए प्रशिक्षण देता है ।

4. सिविल सर्विस कॉलेज ।

ब्रिटेन का मुख्य प्रशिक्षण केंद्र सिविल सर्विस कालेज है । इसकी स्थापना फुल्टन कमेटी की सिफारिश पर 1969 में की गई थी । इसका एक मुख्यालय और दो क्षेत्रीय केंद्र हैं । मुख्यालय सनिंगडेल पार्क में स्थित है जबकि क्षेत्रीय केंद्र लंदन और एडिनबर्ग में है ।

इसके निम्नलिखित चार कार्य हैं:

1. प्रशासन के वित्तीय, आर्थिक या सामाजिक क्षेत्रों में यह नई भर्ती (प्रशासनिक अथवा सामान्य) के लिए पोस्ट एंट्री ट्रेनिंग देता है ।

2. विशेषज्ञों के लिए प्रशासन एवं प्रबंधन में विशेषीकृत पाठ्यक्रम उपलब्ध कराता है ।

3. प्रशासन से संबंधित समस्याओं पर शोध करता है ।

4. जो विभाग कार्यपालकों तथा लिपिक कर्मचारियों को प्रशिक्षण देते हैं उनको सामान्य मार्गदर्शन और सलाह देता है ।


8. ब्रिटेन लोकसेवा की पदोन्नति (Promotion  of British Civil Service):

ब्रिटेन की लोकसेवा में पदोन्नति विभागीय मामला है । प्रत्येक विभाग का प्रमुख विभागीय बोर्डों का गठन करता है । मंत्री और स्थायी सचिव को पदोन्नति के मामलों पर सलाह देता है । वार्षिक रिपोर्टों में कर्मचारियों का मूल्यांकन असाधारण, बहुत अच्छा, संतोषजनक, उदासीन और खराब के रूप में किया जाता है ।

तत्पश्चात प्रत्याशियों को निम्न प्रवर्गों में वर्गीकृत किया जाता है:

(क) पदोन्नति के लिए असाधारण रूप से उपयुक्त ।

(ख) पदोन्नति के लिए अत्यंत उपयुक्त ।

(ग) पदोन्नति के लिए उपयुक्त ।

(घ) पदोन्नति के लिए अभी उपयुक्त नहीं ।

पदोन्नति पद्धति के महत्त्वपूर्ण तत्व इस प्रकार हैं:

1. जिन पदों को पदोन्नतियों द्वारा भरा जाना है, उनके बारे में प्रत्याशियों को काफी समय पहले से सूचित किया जाता है ।

2. पदोन्नति के लिए प्रत्याशी की उपयुक्तता का निर्धारण किसी एक व्यक्ति के द्वारा नहीं, बल्कि बोर्ड के द्वारा किया जाता है ।

3. पीड़ित पक्ष को पदोन्नति संबंधी निर्णयों के विरुद्ध अपील करने का अधिकार है, परंतु कोई भी अपील विभाग प्रमुख से ऊपर के प्राधिकारी से नहीं की जा सकती है ।

4. व्यवहार में स्थायी सचिव, उप सचिव, वित्त अधिकारी तथा संस्थापना अधिकारी के पदों पर पदोन्नति के लिए प्रधानमंत्री की सहमति आवश्यक है ।


9. ब्रिटेन लोकसेवा की वेतन एवं सेवा-शर्तें  (British Civil Service – Salary and Terms of Service):

1. 1971 से ब्रिटेन में लोक सेवकों के वेतन ‘प्रिस्टले फार्मूला’ के आधार पर तय किए जाते हैं । इसमें सिफारिश की गई थी कि उच्चतर वेतनमान सरकारी आय नीतियों तथा निजी क्षेत्र के वेतनमानों पर आधारित होना चाहिए । वेतन का निर्धारण एवं नियंत्रण ब्रिटिश कोषागार एवं कार्मिक विभाग द्वारा किया जाता है ।

2. वेतन के अलावा ब्रिटेन में लोक सेवकों को कई-तरह के भत्ते दिए जाते हैं जिन्हें प्रचलित मूल्य सूचकांक के आधार पर तय किया जाता है ।

3. ब्रिटेन के लोक सेवकों को संगठन बनाने का अधिकार मिलता है । अपनी राजनीतिक विचारधारा का समर्थन करने के लिए उनको ट्रेड यूनियनों के साथ जुड़ने का अधिकार भी प्राप्त है, परंतु केवल डाकघर कर्मचारियों की यूनियन ही लेबर पार्टी से जुड़ी है ।

4. ब्रिटेन के लोकसेवक कानून के अधीन हड़ताल के अधिकार से वंचित नहीं हैं, लेकिन हड़ताल करना एक अनुशासनात्मक अपराध है ।

5. ब्रिटेन में उच्चतर लोकसेवकों के राजनीतिक अधिकारों और गतिविधियों पर पूरा प्रतिबंध है । यह प्रतिबंध लोकसेवा की मध्य और निचली श्रेणियों के लिए क्रमश: कम कठोर होता जाता है । निचली श्रेणी के कर्मचारी लगभग सभी राजनीतिक गतिविधियों में भाग ले सकते हैं । लोकसेवकों की राजनीतिक गतिविधियों पर सरकार की नजर रहती है ।

ब्रिटेन में लोकसेवकों की राजनीतिक गतिविधियों पर मास्टरमैन कमेटी ने 1949 की अपनी रिपोर्ट में कहा था:

(क) जनतांत्रिक समाज में सभी नागरिकों के लिए यह वांछित है कि राज्य के मामलों में उनको अपनी बात कहने का अवसर प्राप्त हो और जहाँ तक संभव हो, सार्वजनिक जीवन में वे सक्रिय भूमिका अदा करें ।

(ख) सार्वजनिक हित यह माँग करते हैं कि लोकसेवा में राजनीतिक निष्पक्षता बनी रहे । इस निष्पक्षता में विश्वास इस देश की सरकार की संरचना का एक अनिवार्य अंग है ।

अत: मास्टरमैन कमेटी ने नोट किया था कि- ‘राजनीतिक निष्पक्षता की मौजूदा परंपरा में कोई भी कमजोरी’ ‘राजनीतिक’ लोकसेवा के जन्म लेने की दिशा में पहला कदम होगी इस तरह की व्यवस्था सार्वजनिक हितों और दीर्घकाल में स्वयं लोकसेवा के विपरीत होगी ।

6. ब्रिटेन में लोकसेवकों के लिए सेवा निवृति की आयु 60-65 वर्ष है । वे सेवा निवृत्ति के बाद मिलने वाले सामान्य लाभों को प्राप्त करने के अधिकारी होते हैं ।


10. व्हिट्‌ले कौंसिलें (Whitley Council):

ब्रिटेन में शासक (राज्य) और कर्मचारियों (स्टॉफ) के बीच सेवा-शर्तों को लेकर होने वाले विवादों पर समझौते करने और उनको निपटाने के लिए किले कौंसिलों की एक संस्था है ।

वहाँ की इस बेजोड़ संस्था के बारे में निम्नलिखित बिंदुओं को नोट किया जा सकता है:

1. सेवायोजकों (Employers) और कर्मचारियों के परस्पर संबंधों पर गठित व्हिट्‌ले कमेटी की सिफारिशों के आधार पर इन परिषदों की स्थापना सबसे पहले निजी उद्योगों में 1917 में की गई थी ।

2. लोकसेवा के क्षेत्र में इन परिषदों की स्थापना 1919 में रैम्जे-बनिंग कमेटी की सिफारिश पर हुई थी ।

3. लोकसेवा में ये परिषदें राष्ट्रीय विभागीय और स्थानीय स्तरों पर काम करती हैं । राष्ट्रीय परिषद सेवा के उन मामलों से निपटती हैं जो संपूर्ण लोकसेवा को प्रभावित करते हैं । यही काम विभागीय तथा स्थानीय मामलों में विभागीय तथा स्थानीय परिषदों द्वारा किया जाता है ।

4. व्हिट्‌ले परिषदों के सभी स्तरों पर इनमें राज्य (सेवायोजक) और स्टाफ (कर्मचारी) के प्रतिनिधि होते हैं । सरकारी पक्ष का प्रतिनिधित्व अधिकारी वर्ग (निदेशक और पर्यवेक्षक) करते हैं जबकि कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व मध्य और निचले प्रवर्ग के कर्मचारियों द्वारा किया जाता है ।

5. सरकारी और कर्मचारी पक्ष अपनी समझौता वार्ताएँ व्हिट्‌ले परिषदों की तंत्र प्रणाली से चलाते हैं जो तीन स्तरों पर काम करती है । अत: व्हिट्‌लेवाद सरकार तथा कर्मचारियों के बीच समय-समय पर होने वाले विचार विमर्श की एक प्रणाली है जिसका उद्देश्य सेवा-शर्तों के विवादों को हल करना है ।

6. राष्ट्रीय व्हिट्‌ले परिषद में 54 सदस्य होते हैं । उनमें प्रत्येक पक्ष के 27 सदस्यों के साथ सरकार की ओर से एक अध्यक्ष होता है । जब कि उपाध्यक्ष कर्मचारियों की ओर से होता है । कौंसिल के अध्यक्ष का कार्य-गृह लोकसेवा का प्रमुख करता है ।

7. व्हिट्‌ले परिषदों को केवल सिफारिशें करने के अधिकार होते हैं, निर्णय लेने के नहीं । ये केवल सलाहकार संस्थाएँ हैं । इसके अतिरिक्त ये कोई व्यक्तिगत मामले नहीं ले सकतीं । विभागीय परिषदों (लगभग 70) मंत्रालयों के अंतर्गत काम करती हैं और राष्ट्रीय कौंसिल सरकार के केंद्रीय सलाहकार की भूमिका अदा करती हैं ।

8. वेतन, सेवा के घंटों और अवकाशों के मामलों में सरकारी और कर्मचारी पक्षों के बीच विवाद होने की स्थिति में मध्यस्थता का प्रावधान किया गया है ।

9. लोकसेवा मध्यस्थता ट्रिब्यूनल की स्थापना 1936 में की गई थी । इसमें एक अध्यक्ष और दो सदस्य होते हैं । इसके निर्णय अंतिम होते हैं जिनको मात्र संसद द्वारा ही बदला जा सकता है ।

10. व्हिट्‌ले परिषदों के उद्देश्य इस प्रकार हैं:

(क) कर्मचारियों की सेवा-शर्तों से संबंधित शिकायतों पर खुली चर्चा के लिए तंत्र प्रदान करना ।

(ख) सेवायोजक (राज्य) और लोक सेवकों की आम सभा (कर्मचारियों) के बीच अधिकतम सहयोग हासिल करना जिससे कि लोकसेवाओं की कार्यकुशलता और कर्मचारियों की सुख-सुविधाओं में वृद्धि की जा सके ।

(ग) समस्याओं का हल निकालने में लोकसेवा के प्रशासकों, कार्यपालकों तथा लिपिक वर्गों के अनुभवों एवं विभिन्न दृष्टिकोणों को एक मंच पर लाया जाए ।

11. उपरोक्त उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए व्हिट्‌ले परिषद निम्नलिखित कार्य करती है:

(क) कर्मचारियों के अनुभवों और विचारों का उपयोग करने के सर्वश्रेष्ठ साधन प्रदान करना ।

(ख) जिन शर्तों के अतंर्गत वे काम करते हैं, उनका निर्धारण और पालन करने के लिए कर्मचारियों को अधिक उत्तरदायी बनाना ।

(ग) भर्ती, काम के घंटों, पदोन्नति, अनुशासन, कार्यकाल, वेतन तथा सेवा निवृत्ति को नियंत्रित करने वाले सामान्य सिद्धातों को तय करना । पदोन्नति तथा अनुशासन के व्यक्तिगत मामलों पर चर्चा की अनुमति नहीं होती है ।

(घ) उच्चतर प्रशासनिक एवं संगठनात्मक पदों पर बैठे लोक सेवकों को आगे की शिक्षा और प्रशिक्षण हेतु प्रोत्साहन देना ।

(ङ) इस विषय पर कर्मचारियों के सुझावों पर अधिकतम विचार के लिए कार्यालय तंत्र तथा संगठन में सुधार करना ।

(च) लोकसेवकों के रोजगार के संबंध में उनकी प्रस्थिति को प्रभावित करने वाले कानूनों को प्रस्तावित करना ।