चिह्नित करने के लिए प्रयुक्त उपकरण की सूची | List of Tools Used for Marking in Hindi

चिह्नित करने के लिए प्रयुक्त उपकरण की सूची |.

1. स्क्राइबर (Scriber):

स्क्राइबर एक तेज धार वाला औजार है जिसका प्रयोग मार्किंग करते समय लाइनें खींचने के लिए किया जाता है । इनके प्वाइंट को 12 से 15 के कोण में ग्राइडिग किया रहता है । भारतीय स्टैण्डर्ड के अनुसार से 125 से 200 मि.मी. तक लंबाई में पाये जाते हैं ।

मेटीरियल:

ADVERTISEMENTS:

स्क्राइबर प्रायः हाई कार्बन स्टील से बनाया जाता है और इसका प्याइंट हार्ड व टेम्पर किया रहता है ।

प्रकार:

प्रायः निम्नलिखित प्रकार के कफ प्रयोग में लाये जाते हैं:

i. स्ट्रेट स्क्राइबर:

ADVERTISEMENTS:

इस प्रकार के स्क्राइबर का एक सिरा सीधा व नुकीला होता है और इसकी बॉडी प्लेन या नर्लिंग की हुई होती है । इसका प्रयोग साधारण मार्किंग करते समय लाइनें खींचने के लिए किया जाता है ।

ii. बेन्ट स्क्राइबर:

इस प्रकार के स्क्राइबर का एक सिरा सीधा व नुकीला होता है और दूसरे सिरे का 90 के कोण में मोड़ कर नुकीला कर दिया जाता है ।

इसके सीधे सिरे का प्रयोग साधारण लाइनें लगाने के लिए किया जाता है और मुड़े हुए सिरे का प्रयोग निम्नलिखित कार्यों के लिए किया जाता है:

ADVERTISEMENTS:

(क) किसी जॉब पर छोटे-छोटे मापों की लाइनें लगाने के लिए जैसे 1 मि.मी., 1.5 मि.मी. इत्यादि (सरफेस गेज की सहायता से) ।

(ख) लेथ मशीन पर फोर जॉ चॅक में जॉब को सेंटर में बांधते समय चैक करने के लिए (सरफेस गेज की सहायता से) ।

(ग) किसी बेलनाकार खोखले जॉब की अंदरूनी सतह पर लाइनें खींचने के लिए । बेंट टाइप स्क्राइबर का प्रयोग सरफेस गेज के साथ व अलग से भी किया जा सकता है ।

iii. एडजस्टेबल स्लीव स्क्राइबर:

इस प्रकार के स्क्राइबर में स्लीव होती है जिसकी बॉडी पर नर्लिंग की हुई होती है और इसकी पूरी लंबाई में सेंटर से गोल सुराख बना होता है जिसमें साधारण स्क्राइबर को लगाया जा सकता है और इधर-उधर कहीं पर भी समायोजित करके क्लेम्प किया जा सकता है ।

iv. आफसेट स्क्राइबर:

ऑफसेट स्क्राइबर को वर्नियर हाइट गेज के साथ प्रयोग में लाया जाता है जिससे शुद्धता में मार्किंग की जा सकती है ।

सावधानियां:

I. स्क्राईबर की नोंक की धार तेज रखनी चाहिए जिससे सही मार्किंग की जा सके ।

II. इसकी नोंक को हार्ड सरफेस पर ठोंकना नहीं चाहिए ।

III. यदि इसको प्रयोग में न लाया जा रहा हो तो इसके ज्वाइंट पर कार्क इत्यादि लगा कर रखना चाहिए ।

2. डिवाइडर (Divider):

डिवाइडर एक प्रकार का मार्किंग टूल है । इसकी दो टांगें होती हैं जिनके सिरे नुकीले अर्थात् तेज धार वाले होते हैं । ये प्रायः हाई कार्बन स्टील से बनाये जाते है और इनके प्वाइंट को हार्ड व टेम्पर कर दिया जाता है । इनको माइल्ड स्टील से भी बनाया जा सकता है और प्वाइंट को केस हार्ड किया जा सकता है । कार्य के अनुसार ये कई साइज में पाये जाते हैं जैसे 100,150,200 मि.मी. इत्यादि ।

साइज:

डिवाइडर का साइज उसकी रिवॉट या पिवट पिन के सेंटर से प्याइंट तक की दूरी से लिया जाता है जैसे डिवाइडर स्प्रिंग टाइप 150 मि. मी. ।

प्रकार:

प्रायः निम्नलिखित प्रकार के पाये जाते हैं:

I. स्प्रिंग प्वाइंट डिवाइडर:

इस प्रकार के डिवाइडर में उसकी दोनों टांगों को एक चपटे स्प्रिंग द्वारा जोड़ा जाता है और दोनों टांगों को एक नट व स्क्रू की सहायता से समायोजित किया जा सकता है । स्प्रिंग का तनाव होने के कारण इसके द्वारा आसानी से शुद्ध माप ली जा सकती है । इस प्रकार के डिवाइडर का प्रयोग वर्कशाप में अधिकतर किया जाता है ।

II. फर्म ज्वाइंट डिवाइडर:

इस प्रकार के डिवाइडर में इसकी दोनों टांगों को एक रिवेंट और वॉशर की सहायता से जोडा जाता है । इसको केवल हाथ की सहायता से खोला या बंद किया जाता है । इसमें स्क्रू व नट का प्रबंध नहीं रहता । इस प्रकार के डिवाइडर का प्रयोग स्प्रिंग ज्वाइंट डिवाइडर की अपेक्षा कम किया जाता है ।

उपयोग:

वर्कशाप में डिवाइडर प्रायः निम्नलिखित कार्यों के लिए प्रयोग में लाये जाते हैं:

i. किसी जॉब की सरफेस पर चाप या वृत्त खींचने के लिए ।

ii. किसी जॉब की सरफेस पर खींची हुई लाइन को बराबर भागों में बाटने के लिए ।

iii. स्टील रूल से माप को जॉब पर स्थानान्तर करने के लिए ।

सावधानियां:

i. डिवाइडर के ज्वांइट तेज धार वाले होने चाहिए ।

ii. यदि डिवाइडर के प्याइंट घिस जाए तो उन्हें अलग-अलग ग्राइंडिंग नहीं करना चाहिए बल्कि दोनों को एक साथ मिलाकर ग्राइंड करना चाहिए जिससे प्वाइंट छोटे-बड़े नहीं हो सकेंगे ।

iii. फर्म ज्वाइंट डिवाइडर की रिवॉट न अधिक कसी हुई और न अधिक ढीली होनी चाहिए ।

iv. यदि इसका प्रयोग न किया जा रहा हो तो इसको तेल या ग्रीस लगा कर रखना चाहिए ।

3. ट्रैमल (Trammel):

इसका प्रयोग बड़े साइज के वृत व चाप की मार्किंग करने के लिया किया जाता है । ये कार्य के अनुसार 15 से 50 से.मी. तक पाये जाते हैं ।

बनावट:

इसकी बनावट में एक स्टील की छड़ होती है जिसकी बीम कहते हैं । बीम के ऊपर दो स्लाइडिंग हैड होते हैं जिनको इस पर इधर-उधर खिसकाया जा सकता है । इन स्लाइडिंग हैडों को कसने के लिए क्लैम्पिंग नट लगे होते हैं । स्लाइडिंग हैडों के साथ स्क्राइबर फिट किए जाते हैं ।

किसी-किसी ट्रेमल में एक स्लाइंडिग हैड के साथ कैरियर भी जुडा रहता है जिसके द्वारा सूक्ष्म एडजस्टमेंट भी किया जा सकता है क्योंकि इसके साथ एडजस्टमेंट स्क्रू भी फिट रहता है । स्लाइंडिंग हैड को क्लेम्पिंग नट की सहायता से बीम पर कहीं पर भी माप के अनुसार कसा जा सकता है और कैरियर की सहायता से सूक्ष्म एडजस्टमेंट कर सकते हैं । इस पर भी माप को स्टील रूल से लिया जाता है ।

सावधानियां:

I. ट्रैमल के स्क्राइबर के प्याइंट तेज धार वाले होने चाहिए ।

II. समय-समय पर ट्रैमल को तेल या ग्रीस लगा देनी चाहिए जिससे इसको जंग लगने से बचाया जा सके ।

4. पंच (Punch):

जब कोई जाँच बनाया जाता है तो जॉब बनाने के लिए पहले उस पर मार्किंग मीडिया लगाया जाता है और ड्राइंग के अनुसार मार्किंग की जाती है कार्य करते समय बार-बार जॉब को छूने से मार्किंग मिट सकती है । इसलिए की हुई मार्किंग को स्थाई बनाने की आवश्यकता होती है ।

इसके लिए एक टूल प्रयोग में लाया जाता है जिसे पंच कहते हैं । पंच के द्वारा मार्किंग की हुई लाइनों पर डॉट लगा दिये जाते हैं जिससे की हुई मार्किंग जॉब बनाने के अंतिम समय तक दिखाई दे सकती है ।

इसकी बॉडी अष्टभुज आकार की होती है या उसको बेलनाकार बनाकर नर्लिंग कर दिया जाता है ।

इसकी बनावट में निम्नलिखित भाग होते है:

(i) हैड

(ii) बाडी

(iii) प्वाइंट ।

मेटीरियल:

पंच प्रायः हाई कार्बन स्टील के बनाये जाते हैं और इनके प्वाइंट को हार्ड व टेम्पर कर दिया जाता है ।

साइज:

पंच का साइज इसकी पूरी लंबाई और इसके व्यास से लिया जाता है । जैसे पंच 150 × 12.5 मि.मी. ।

प्रकार:

i. डॉट पंच:

इस प्रकार के पंच के प्याइंट को 600 के कोण में ग्राइंड करके बनाया जाता है । इसका प्रयोग मार्किंग करने के पश्चात् लाइनों पर डॉट लगा कर उन्हें स्थायी करने के लिए किया जाता है ।

ii. सेंटर पंच:

इसके प्वाइंट को 90C के कोण में ग्राइंड करके बनाया जाता है । इसका मुख्य प्रयोग ड्रिल होल करने के लिए उसके सेंटर प्वाइंट की पंचिग करने के लिए किया जाता है क्योंकि कटिंग ऐंगल बडा होता है इसलिए जो डॉट लगया जायेगा वह कुछ बडे आकार का और अधिक गहरा लगेगा जिससे ड्रिल का वैब उसमें आसानी से बैठ जायेगा । इस प्रकार ड्रिल होल सेंटर में होगा और आउट नहीं हो पायेगा ।

iii. प्रिक पंच:

इसके प्वाइंट को 30 के कोण में ग्राइंड करके बनाया जाता हैं । इसका प्रयोग प्रायः नर्म धातु के जॉब पर की हुई मार्किंग की लाइनों को डाट लगाकर स्थाई करने के लिए किया जाता है । जैसे तांबा, पीतल, एल्युमीनियम के जॉब इत्यादि ।

iv. ऑटोमेटिक पंच:

इस प्रकार का पंच एक प्रकार का आधुनिक पंच है जिसका प्रयोग करते समय मार्किंग हैमर से चोट लगाने की आवश्यकता नहीं होती । इसमें एक स्प्रिंग होती है और एक नर्लिंग की हुई कैप । यदि गहरा पंच लगाना हो तो कैप को घुमा कर नीचे की ओर कर दिया जाता है । पंचिंग करते समय इसको हाथ से दबाव डाला जाता है जिससे स्प्रिंग की सहायता से पंच का निशान लग जाता है । इसका प्वाइंट कार्य के अनुसार 90 या 60 के कोण में हो सकता है ।

सावधानियां:

I. पंच का प्वाइंट तेज धार वाला होना चाहिए ।

II. लगे हुए डाट्स के बीच की दूरी न बहुत अधिक हो न बहुत कम । यह दूरी 3 से 6 मि.मी. तक रखी जा सकती है ।

III. सेंटर पंच का प्रयोग करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पंच को सेंटर व गहराई में लगना चाहिए जिससे ड़िल होल ठीक सेंटर में किया जा सके ।

IV. यदि किसी पंच का प्वाइंट खराब हो गया है तो उसका प्रयोग नहीं करना चाहिए बल्कि उसको दुबारा ग्राइंड करके प्रयोग में लाना चाहिए ।

V. यदि किसी पंच का हैड छत्रक अर्थात् खराब हो गया हो तो उसका प्रयोग नहीं करना चाहिए ।

5. सरफेज गेज (Surface Gauge):

सरफेस गेज एक प्रकार का मार्किंग टूल है जिसके साथ दो सिरों वाला स्क्राइबर लगा रहता है । इस स्क्राइबर का एक सिरा सीधा व दूसरा सिरा 90 में मुड़ा होता है । सरफेस गेज को मार्किंग ब्लॉक और स्क्राइबिंग ब्लॉक भी कहते हैं ।

प्रकार:

प्रायः निम्नलिखित प्रकार के सरफेस गेज प्रयोग में लाये जाते हैं:

I. फिक्स्ड सरफेस गेज:

इस प्रकार के सरफेस गेज में एक गोलाकार या चौरस आकार का बेस होता है जिसके साथ एक स्पिण्डल स्थाई रूप से जुडा रहता है या इसको चूड़ी की सहायता से जोड़ा जाता है । इस पर साइज खोलने के लिए स्लाइडिंग स्नग की सहायता से स्क्राइबर को अंदाज से ऊपर-नीचे करके साइज खोला जाता है । इसके द्वारा शुद्धता में माप खोलने के लिए कठिनाई होती है । इसलिए इसका प्रयोग वर्कशाप में कम किया जाता है ।

II. यूनिवर्सल सरफेस गेज:

इस प्रकार के सरफेस गेज में स्पिण्डल सरफेस गेज के बेस के साथ प्रत्यक्ष रूप से नहीं जुड़ा रहता बल्कि एक रॉकर आर्म के साथ जुड़ा रहता है जिसका संबंध बेस से होता है । इस प्रकार के सरफेस गेज को आसानी से समायोजित

किया जा सकता है और इसमें फाइन एडजस्टिंग स्क्रू का प्रबंध होने के कारण इसके द्वारा 1 या 1/2 मि.मी, तक की छोटी-छोटी मापों को भी सेट किया जा सकता है । इस सरफेस गेज से फिक्स्ड सरफेस गेज की अपेक्षा अधिक शुद्धता में मार्किंग की जा सकती है । इसलिए ऐसे सरफेस गेज का प्रयोग वर्कशाप में अधिकतर किया जाता है ।

इसके प्रायः निम्नलिखित मुख्य भाग होते है:

(i) बेस:

यह सरफेस गेज का सबसे नीचे का भाग होता है जिसके ऊपर रॉकर आर्म और गाइड पिनें फिट रहती हैं । यह प्रायः कास्ट आयरन का बनाया जाता है ।

(ii) स्पिण्डल:

यह प्रायः माइल्ड स्टील का बना होता है और केस हार्ड कर दिया जाता है । यह रॉकर आर्म के साथ जुड़ा रहता है ।

(iii) स्क्राइवर:

यह प्रायः हाई कार्बन स्टील से बना होता है और इसके प्वाइंटों को हार्ड व टेम्पर कर दिया जाता है । इसका प्रयोग लाइनें खींचने के लिए किया जाता है ।

(iv) स्क्राइबर स्नग:

यह पिलर पर ऊपर और नीचे स्लाइड कर सकता है । इसका प्रयोग स्क्राइबर को निश्चित ऊंचाई तक सैट करने के लिये किया जाता है ।

(v) रॉकर आर्म:

यह प्रायः बेस पर बने हुए खांचे में स्क्रू व स्प्रिंग की सहायता से जुड़ा रहता है ।

(vi) फाइन एडजस्टिंग स्क्रू:

यह प्रायःरोकर आर्म के साथ जुड़ा रहता है जिसका प्रयोग फाइन एडजस्टिंग के लिये किया जाता है ।

(vii) स्पिण्डल लॉक नट:

यह प्रायः रॉकर आर्म के साथ लगा रहता है जिसका प्रयोग स्पिण्डल को क्लेम्प करने के लिए किया जाता है । इसकी सहायता से पिलर को किसी भी कोण में कसा जा सकता है ।

(viii) गाइड पिनें:

ये स्टील की बनी हुई पिनें होती है जो कि बेस के साथ जुड़ी रहती हैं । इनको ऊपर नीचे एडरजस्ट किया जा सकता है । जब सरफेस प्लेट के किनारे से या मशीन के बेड के किनारे से समानान्तर लाइनें खिंचनी हों तो गाइड पिनें प्रयोग में लाई जाती हैं ।

उपयोग:

I. सरफेस गेज का प्रयोग समानान्तर और सीधी लाइनें खींचने के लिए किया जाता है ।

II. इसका प्रयोग समानान्तर साइडों को चैक करने के लिए भी किया जाता है ।

III. इसका प्रयोग लेथ मशीन पर फोर जॉ चॅक में जॉब को सेंटर में बांधते समय भी किया जाता है ।

मार्किंग विधि:

i. सरफेस प्लेट को अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए ।

ii. जॉब के साइज के अनुसार सरफेस गेज, ऐंगल प्लेट या ‘वी’ ब्लॉक और स्टील रूल का चयन कर लेना चाहिए । यदि संभव हो तो कंबीनेशन सेट में रूल का प्रयोग करना चाहिये ।

iii. स्टील रूल को ऐंगल प्लेट का सहारा देकर पकड़ लेना चाहिये ।

iv. सरफेस गेज के स्क्राइबर स्नग को ढीला करके ड्राइंग की माप के अनुसार अंदाज से खोल लेना चाहिए ।

v. शुद्ध माप के लिए फाइल एडजस्टिंग स्क्रू का प्रयोग करके सही माप लेनी चाहिये ।

vi. स्टील रूल को हटा कर उसकी जगह पर जॉब को रखकर मार्किंग की लाइनें लगा लेनी चाहिये । यदि जॉब टेढ़ा मेढ़ा हो तो उसे ऐंगल प्लेट के साथ क्लेम्प करके मार्किंग करनी चाहिए और गोल जॉब को ‘वी’ ब्लॉक पर सहरा देकर मार्किंग करनी चाहिये ।

सावधानियां:

I. स्क्राइबर का प्वाइंट तेज धार वाला होना चाहिए ।

II. स्क्राइबर का मुड़ा हुआ सिरा प्रायः नीचे की ओर रखना चाहिए ।

III. जहां तक संभव हो मार्किंग करते समय स्पिण्डल को सीधा रखना चाहिये ।

IV. सरफेस गेज के स्क्राइबर को सेट करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि स्क्राइबर का प्वाइंट स्पिण्डल के नजदीक होना चाहिए । यदि दूर होगा तो मार्किंग करते समय कंपन होगी ।

V. माप लेने के पश्चात् स्क्राइबर को स्क्राइबर स्नग के साथ अच्छी तरह से कस देना चाहिये ।

VI. यदि स्क्राइबर के द्वारा एक लाइन खींची जा चुकी है तो उस पर दूसरी लाइन नहीं खींचनी चाहिए ।

VII. यदि इसका प्रयोग न किया जा रहा हो तो स्क्राइबर को स्पिण्डल के समानान्तर रखना चाहिए और इसे तेल या ग्रीस लगाकर रखना चाहिये ।

6. ‘वी’ ब्लॉक (Vee Block):

परिचय गोल आकार के जॉब की मार्किंग करते समय और उन पर मशीनिंग इत्यादि आपरेशन जैसे ड्रिलिंग, सरफेस ग्राइंडिंग, मिलिंग फेसिंग आदि करते समय उन्हें सहारा देकर पकड़कर मार्किंग व मशीनिंग इत्यादि करने की आवश्यकता पड़ती है ।

इस प्रकार गोल आकार के जॉब को सहारा देने के लिए ‘वी’ ब्लॉक । प्रयोग में लाये जाते हैं । गोल आकार के जॉब को इसके वी ग्रूव में रख कर और क्लेम्प के द्वारा टाइट करके मार्किंग, मशीनिंग इत्यादि आसानी से कर सकते हैं । सभी परिस्थितियों में ‘वी’ ब्लाक का शीर्ष कोण 90 होता है ।

विवरण:

i. ‘वी’ ब्लॉक का विवरण उसके नामिनल साइज (लंबाई), उसमें न्यूनतम और अधिकतम व्यास के जॉब को क्लैम्प करने की क्षमता, ग्रेड और इंडियन स्टैण्डर्ड के नंबर के अनुसार दिया जाता है ।

ii. मैच्ड पेयर वाले ‘वी’ ब्लॉक को ‘M’ अक्षर के साथ इंगित किया जाता है ।

iii. यदि क्लेम्प साथ में है तो ‘With Clamp’ इंगित किया जाता है ।

ग्रेड:

‘वी’ ब्लॉक प्रायः ग्रेड A और ग्रेड B में पाये जाते हैं । ‘A’ ग्रेड वाले ‘वी’ ब्लॉक अधिक परिशुद्ध होते हैं और 100 मि.मी. लंबाई तक पाये जाते हैं तथा B ग्रेड की परिशुद्धता अपेक्षाकृत कम होती है जो कि 300 मि.मी. लंबाई तक पाये जाते हैं ।

मेटीरियल:

‘B’ ग्रेड वाले प्रायः क्लोज्ड ग्रेन कास्ट ऑयरन तथा ‘A’ ग्रेड वाले ‘वी’ ब्लॉक हाई क्वालिटी स्टील से बनाये जाते हैं ।

प्रकार:

भारतीय स्टेण्डर्ड (B.I.S) के अनुसार निम्नलिखित चार प्रकार के ‘वी’ ब्लॉक पाए जाते हैं:

I. सिंगल लेवल सिंगल ग्रूव ‘वी’ ब्लॉक:

इस प्रकार के ‘वी’ ब्लॉक में केवल एक ‘वी’ ग्रूव और दोनों साइडों पर एक-एक आयताकार स्लॉट बने होते हैं, जिनमें क्लेम्प को पकडा जाता है ।

II. सिंगल लेवल डबल ग्रूव ‘वी’ ब्लॉक:

इस प्रकार के ‘वी’ ब्लॉक में एक ‘वी’ ग्रूव और दोनों साइडों पर दो-दो आयाताकार स्लॉट बने होते है जिनमें दो अलग-अलग पोजीशन में क्लेम्प को पकड़ा जा सकता है ।

III. डबल लेवल सिंगल ग्रूव ‘वी’ ब्लॉक:

इस प्रकार के ‘वी’ ब्लॉक के टॉप और बॉटम में दो ‘वी’ ग्रूव बने होते है और दोनों साइडों पर एक-एक आयताकार ग्रूव बना होता है ।

IV. मैच्ड पेयर ‘वी’ ब्लॉक:

इस प्रकार के ‘वी’ ब्लॉक जोड़े में पाए जाते है जिसमें दोनों ‘वी’ ब्लॉकों का साइज और परिशुद्धता का ग्रेड एक जैसा होता है । इनको नंबरों या अक्षरों में इंगित किया जाता है । इस प्रकार के ‘वी’ ब्लॉकों का प्रयोग लंबी शाफ्टों को मशीन टेबल या मार्किंग ऑफ टेबल पर समानान्तर आश्रय देने के लिए किया जाता है ।

उपयोग:

1. मार्किंग करते समय गोल आकार के जॉब को सहारा देकर पकडने के लिये इसका प्रयोग किया जाता है जिससे मार्किंग आसानी से की जा सकती है ।

2. किसी गोल जॉब में ड्रिलिंग, मशीनिंग इत्यादि आपरेशन करने के लिए सहारा देने और पकडने के लिए ‘वी’ ब्लॉक का प्रयोग किया जाता है ।

‘वी’ ब्लॉक की शुद्धता चैक करने की विधि:

एक शुद्ध सरफेस प्लेट को अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिये और उसके ऊपर एक ही नं. या साइज के दो ‘वी’ ब्लॉकों को एक सींध में रख कर इनके ऊपर एक बेलनाकार टेस्टिड बार जिसको शुद्धता में टनिंग करके बनाया गया हो, को रख कर उसके दोनों सिरों को डायल टेस्ट इंडिकेटर से चैक करना चाहिए । यदि दोनों सिरों की रीडिंग अलग-अलग हो तो ‘वी’ ब्लॉक अशुद्ध होगा ।

सावधानियां:

I. कार्य करने से पहले और बाद ‘वी’ ब्लॉक को अच्छी तरह से साफ कर देना चाहिये ।

II. इनको गिरने से बचाना चाहिये और इनकी सरफेस को स्कैच लगने से बचाना चाहिये ।

III. यदि ‘वी’ ब्लॉक का प्रयोग न किया जा रहा हो तो इनको तेल या ग्रीस लगाकर इनके निजी स्थान पर रख देना चाहिए ।

IV. लंबे जॉब को सहारा देने के लिए एक ही नं. या साइज के दो ‘वी’ ब्लॉकों अर्थात् एक ही नं. के ‘वी’ ब्लॉकों का जोडा प्रयोग में लाना चाहिये ।

7. ऐंगल प्लेट (Angle Plate):

ऐंगल प्लेट 90 के कोण में और कास्ट ऑयरन से बनी होती है जिसकी प्रत्येक बाहरी दिखाई देने वाली सतहों को समकोण में अच्छी तरह से मशीनिंग करके ग्राइंड कर दिया जाता है । इनका अधिकतर प्रयोग मार्किंग करते समय जॉब को सहारा देने के लिये और उन्हें क्लैम्प करने के लिये किया जाता है किसी-किसी ऐंगल प्लेट में आयताकार आकार की नालियां बनी होती हैं जिनका प्रयोग बोल्ट की सहायता से जॉब को क्लेम्प करने के लिये किया जाता है ।

मेटीरियल:

ऐंगल प्लेटें प्रायः क्लोज्ड ग्रेन कास्ट ऑयरन या स्टील से बनायी जाती हैं ।

साइज:

केल प्लेट विभिन्न साइजों में पाई जाती है । साइज को नंबरों में इंगित किया जाता है जैसे साइज न. 1 में लंबाई 125 मि.मी. चौड़ाई 75 मि.मी. और ऊंचाई 100 मि.मी. होती है । साइज प्रायः 1 से 10 नंबर तक होते हैं जिनमें 1 से 6 नंबर तक ग्रेड 1 और 7 से 10 नंबर तक ग्रेड 2 के लिए होते हैं ।

ग्रेड:

ऐंगल प्लेट प्रायः ग्रेड 1 तथा ग्रेड 2 में पाई जाती है । ‘1’ ग्रेड वाली ऐंगल प्लेट अपेक्षाकृत अधिक परिशुद्ध होती है जो कि प्रायः टूल रूम में प्रयोग होती है । ‘2’ ग्रेड वाली ऐंगल प्लेट प्रायः मशीन शॉप में प्रयोग होती है । इस के अतिरिक्त प्रिसिजन ऐंगल प्लेंटे भी पाई जाती है जिसका प्रयोग इंस्पेक्शन कार्यों के लिए किया जाता है ।

विवरण:

ऐंगल प्लेट को उसके नंबर, ग्रेड और इंडियन स्टैण्डर्ड नं. से इंगित करते है जैसे- ऐंगल प्लेट साइज नं 2, ग्रेड 2 – IS:623 ।

प्रकार:

प्रायः निम्नलिखित प्रकार की ऐंगल प्लेट प्रयोग में लाई जाती है:

i. प्लेन सॉलिड ऐंगल प्लेट:

इस प्रकार की ऐंगल प्लेट अपेक्षाकृत छोटे साइज की होती है जोकि प्रायः मार्किंग करते समय जॉब को आश्रय देने के लिए की जाती है ।

ii. स्लॉटिड ऐंगल प्लेट:

इस प्रकार की ऐंगल प्लेटें अपेक्षाकृत बडे साइज की होती है, जिसकी दोनों प्लेन सरफेसों पर स्लॉट बने होते हैं जिनमें क्लेम्पिग बोल्ट लगा कर जॉब को बाधा जा सकता है ।

iii. स्विवल ऐंगल प्लेट:

इस प्रकार की ऐंगल प्लेट एडजस्टेबल होती है, जिसकी दोनों प्लेन सरफेसों को किसी भी ऐंगल में सेट किया जा सकता है । ऐंगल की सेटिंग के लिए इस पर ग्रेजुएशन भी बनी होती है । किसी भी पोजीशन में सेट करने के लिए इसके साथ एक बोल्ट व नट भी लगा होता है ।

iv. बॉक्स ऐंगल प्लेट:

इस प्रकार की ऐंगल प्लेट अपेक्षाकृत कम प्रयोग होती है । इस ऐंगल प्लेट का लाभ यह है कि एक बार जॉब को सेट कर देने के बाद जॉब को बॉक्स के साथ ही घुमा कर अगला मार्किंग या मशीनिंग आपरेशन किया जा सकता है ।

सावधानियां:

a. कार्य करने से पहले और बाद में ऐंगल प्लेट को साफ रखना चाहिए ।

b. समय-समय पर इन पर तेल या ग्रीस लगाते रहना चाहिए जिससे इनको जग लगने से बचाया जा सकता है ।

c. इनको गिरने से बचाना चाहिए ।

d. एडजस्टेबल ऐंगल प्लेट को कार्य के अनुसार कोण में समायोजित करके इस के नट और बोल्ट को अच्छी तरह से टाइट कर देना चाहिए ।

8. मार्किंग ऑफ टेबल (Marking Off Table):

इसके ऊपर मार्किंग करने वाले टूल्स और जॉब को रख कर मार्किंग की जाती है ।

बनावट:

इसकी बनावट में वर्गाकार या आयताकार आकार की कास्ट ऑयरन की प्लेट होती है जिसको माइल्ड स्टील के बने स्टैण्ड के ऊपर फिट किया रहता है । यह स्टैण्ड प्रायः ऐंगल ऑयरन या चैनल से बनाया जाता है इसकी ऊंचाई फर्श से 75 से. मी से 90 से.मी. तक रखी जा सकती है । प्रायः 90 × 90 × 80 से. मी का मार्किंग ऑफ टेबल प्रयोग में लाया जाता है ।

सावधानियां:

a. कार्य करने से पहले इसको अच्छी तरह से साफ कर लेना ।

b. इस पर हथौडी की चोट नहीं लगानी चाहिए ।

c. कार्य करने के बाद इसको अच्छी तरह से साफ करके तेल लगा देना चाहिए ।

9. सरफेस प्लेट (Surface Plate):

सरफेस प्लेट प्रायः वर्गाकार या आयताकार आकार की बनी होती है । इसका अधिकतर प्रयोग जॉब की सरफेस को चैक करने के लिये किया जाता है । छोटे-छोटे जॉबों पर मार्किंग करने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है । भारतीय स्टैण्डर्ड (B.I.S.) के अनुसार प्रायः 50 × 50 से. मी. ओर मोटाई 2.5 से 5.0 से.मी. 100 × 100 से.मी. और मोटाई 5.0 से 7.5 से.मी. वाली सरफेस प्लेटें प्रयोग में लाई जाती है । इसके अतिरिक्त 15 × 10 से.मी. से 10 × 75 से.मी. तक और इससे बड़े साइज में भी सरफेस प्लेटें पाई जाती हैं ।

मेटीरियल:

मेटीरियल के अनुसार सरफेस प्लेटें निम्नलिखित होती हैं:

i. कास्ट ऑयरन सरफेस प्लेट:

यह क्लोज्ड ग्रेन कास्ट ऑयरन से बनाई जाती है । इसकी दो साइडों पर एक दूसरे के विपरीत दो हैंडल लगे होते हैं बड़े साइज की सरफेस प्लेटों को स्टैण्ड पर फिट किया जाता है ।

ii. ग्रेनाइट सरफेस प्लेट:

यह एक प्रकार के पत्थर से बनाई जाती है जिसे ग्रेनाइट कहते हैं । इस पर जंग नहीं लगता और उष्मा और ताप का भी प्रभाव नहीं पड़ता । कार्य करते समय इस पर स्क्रैच भी पड़ जायें तो इसकी शुद्धता में अंतर नहीं आता । कार्य के अनुसार ये कई आकारों और साइजों में पाई जाती है ।

iii. ग्लास सरफेस प्लेट:

यह शीशे की बनी होती है जिसका प्रयोग छोटे कार्यों के लिये किया जाता है । इस पर जंग नहीं लगता । कार्य के अनुसार ये कई आकारों और साइजों में पाई जाती हैं ।

iv. विवरण:

कास्ट ऑयरन सरफेस प्लेटों को उनकी लंबाई, चौड़ाई, ग्रेड और इंडियन स्टैण्डर्ड नंबर के अनुसार निर्दिष्ट किया जाता है जैसे-कास्ट ऑयरन सरफेस प्लेट 2000 × 1000 मि.मी. ग्रेड-1-IS:2285 ।

v. ग्रेड:

सरफेस प्लेट प्रायः ग्रेड 1, 2 और 3 में पाई जाती है । ग्रेड 1 वाली सरफेस प्लेट अपेक्षाकृत अधिक प्रयोग में जाती हैं ।

प्रकार:

I. वर्कशाप सरफेस प्लेट:

इस प्रकार की सरफेस प्लेट प्रायः वर्कशाप में साधारण कार्यों के लिये प्रयोग में लाई जाती है । इस सरफेस प्लेट की शुद्धता 0.025 मि.मी. होती है ।

II. इंस्पेक्शन सरफेस प्लेट:

इस प्रकार की सरफेस प्लेट का प्रयोग वर्कशाप सरफेस प्लेट को चैक करने के लिये किया जाता है । इसकी शुद्धता वर्कशाप सरफेस प्लेट से अधिक होती है जो कि 0.0025 मि.मी. होती हैं ।

III. मास्टर सरफेस प्लेट:

इस प्रकार की सरफेस प्लेट की शुद्धता इंस्पेक्शन सरफेस प्लेट की अपेक्षा बहुत अधिक होती है । इनका प्रयोग इंस्पेआन सरफेस प्लेट को चैक करने के लिये किया जाता है । इस की शुद्धता मिमी. होती हैं ।

IV. सरफेस प्लेट पर जॉब की सरफेस टेस्ट करने की विधि:

जॉब की सरफेस को रेती के द्वारा फिनिश करने के बाद उसकी सरफेस को सरफेस प्लेट के द्वारा चैक किया जा सकता है । ऐसा करने के लिये सरफेस प्लेट पर प्रशियन क्यू की पतली तह लगा देनी चाहिये और जॉब की सरफेस को उस पर रगड़ना चाहिये ।

इससे जॉब की सरफेस जहां-जहां पर ऊंची होगी वहां पर प्रशियन ब्लू के निशान आ जायेंगे । इन निशानों को स्क्रैपर के द्वारा खुरच कर साफ किया जाता हैं । इस प्रकार यह क्रिया तब तक करते रहना चाहिये जब तक पूरी सरफेस पर प्रशियन ब्लू के निशान न आ जाये । इस प्रकार जॉब की सरफेस को सरफेस प्लेट पर टेस्ट किया जा सकता है ।

सावधानियां:

a. सरफेस प्लेट पर कटिंग टूल्स को नहीं रखना चाहिये जिससे उसकी सरफेस की शुद्धता खराब हो सकती है ।

b. यदि सरफेस प्लेट का प्रयोग न किया जा रहा हो तो उसके ऊपर तेल की पतली तह लगाकर उसे लकड़ी के ढक्कन से ढक देना चाहिये ।

c. कभी भी जॉब को सरफेस प्लेट पर रखकर पंचिंग नहीं करनी चाहिये ।

10. पेरेलल ब्लॉक्स (Parallel Blocks):

पेरेलल ब्लॉक्स प्रायः जोड़े में पाए जाते हैं जिनकी लंबाई चौड़ाई एक समान होती है । इनका प्रयोग मार्किंग, मशीनिंग और चैकिंग करते समय वर्कपीस को समानान्तर प्लेन में आश्रय देने के लिए किया जाता है ।

विवरण:

सॉलिड पेरेलल ब्लॉक्स को उनको ग्रेड, साइज और इंडियन स्टैण्डर्ड नंबर के अनुसार निर्दिष्ट किया जाता है । जैसे सॉलिड पेरेलल ब्लॉक A 10 मिमी. × 20 मि.मी. × 150 मिमी. I.S.- 4241 ।

ग्रेड:

पेरेलल ब्लॉक्स दो ग्रेडों में पाए जाते हैं- ग्रेड-A और ग्रेड-B । ग्रेड-A वाले ब्लॉक्स का प्रयोग टूल रूम में प्रिसीजन कार्यों और ग्रेड-B वाले ब्लॉक्स का प्रयोग मशीन शॉप में साधारण कार्यों के लिए किया जाता है ।

प्रकार:

प्रायः निम्नलिखित प्रकार के पेरेलल ब्लॉक्स पाए जाते है:

I. सॉलिड पेरेलल ब्लॉक्स:

ये पेरेलल ब्लॉक्स स्टील के पीसों से आयताकार आकार में बनाए जाते हैं जिन्हें हार्ड व ग्राइंड कर दिया जाता है और कभी-2 इन्हें लैपिंग द्वारा फिनिश भी किया जाता है । इनका अधिकार प्रयोग मशीन शॉप में साधारण कार्यों के लिए किया जाता हैं ।

II. एडजस्टेबल पेरेलल ब्लॉक्स:

इन पेरेलल ब्लॉक्स में दो टेपर्ड ब्लॉक्स होते हैं जो कि एक टोंग और ग्रूव असेम्बली में परस्पर स्लाइड करते हैं । इन ब्लाकों को समायोजित किया जा सकता है और निश्चित ऊंचाई तक सेट किया जा सकता है ।

11. कम्बीनेशन सेट (Combination Set):

कई कार्य ऐसे होते हैं जिन पर विभिन्न प्रकार के आपरेशन करने पड़ते हैं । इन आपरेशनों के अनुसार उन पर मार्किंग करनी पड़ती है और आपरेशन करते समय विभिन्न औजारों से चैक करना पड़ता है । इसलिये विभिन्न प्रकार के अलग-अलग औजार मार्किंग और चैकिंग करने के लिये टूल्स स्टोर से लेने व उन्हें रखने में काफी समय खर्च होता है और कठिनाई भी हो सकती है ।

इसलिये इस कमी को दूर करने के लिए एक ऐसा टूल बनाया गया है जिससे कई प्रकार की मार्किंग और चैकिंग की जा सकती है । इस टूल को कम्बीनेशन सेट कहते हैं । इसकी बनावट में एक रूल, एक स्क्वायर हैड, एक सेंटर हैड और एक प्रोट्रेक्टर हैड होता है । इस सेट का प्रयोग स्टील रूल की तरह, किसी कोण की मार्किंग और चैकिंग के लिये और किसी गोल जॉब का सेंटर निकालने के लिये किया जा सकता है ।

साइज:

कम्बीनेशन सेट का साइज उसके रूल या ब्लेड की लंबाई के अनुसार लिया जाता है । जैसे कम्बीनेशन सेट 300 मि.मी. ।

यार्ट्स:

कम्बीनेशन सेट के निम्नलिखित पार्ट्स होते हैं:

I. रूल या ब्लेड:

यह प्रायः एलॉय स्टील या हाई कार्बन स्टील या हाई कार्बन स्टील से बनाया जाता है जिसको हार्ड व टेम्पर किया जाता है । इसके एक ओर पूरी लंबाई पर आयताकार आकार की नाली कटी रहती है जिससे लॉक स्क्रू और पिन की सहायता से दूसरे तीनों हैडों को पकड़ा जाता है ।

इसके ऊपर स्टील रूल के समान इंचों व मिलीमीटर में निशान बने होते हैं । इसका प्रयोग स्टील रूल की तरह मार्किंग व माप की चैकिंग करने के लिये किया जाता है । प्रायः 12” या 30 से.मी. लंबाई वाला ब्लेड प्रयोग में लाया जाता है । इसके अतिरिक्त यह 60 से.मी. तक लंबाई में भी पाया जाता है ।

II. स्क्वायर हैड:

यह प्रायः कास्ट स्टील से बनाया जाता है । इसमें यदि ब्लेड या रूल को फिट कर दिया जाये तो एक ओर 900 का कोण और दूसरी ओर 450 का कोण बनता है । इस प्रकार इसका प्रयोग 900 और 450 के कोणों की मार्किंग करने के लिये और जॉब को 900 और 450 के कोण में चैक करने के लिये किया जाता है ।

इसका प्रयोग किसी जॉब की गहराई मापने व चैक करने के लिये भी किया जा सकता है । इसके साथ स्टिट लेवल भी लगा रहता है जिससे इसका प्रयोग किसी सरफेस का लेवल उस चैक करने के लिये भी किया जा सकता है । इसके साथ ही स्क्राइबर भी फिट रहता है जिससे लाइनें खींची जा सकती हैं ।

III. प्रोट्रैक्टर हैड:

यह कास्ट स्टील का बना होता है जिसमें एक डिस्क होती है । जिस पर 0 से 180 तक निशान बने होते हैं । इसमें ब्लेड या रूल को फिट करके किसी भी कोण में सेट करके जॉब को कोण में मापा व चैक किया जा सकता है । इसमें एक स्प्रिंट लेवल जुड़ा रहता है जिससे इसका प्रयोग लेवल चैक करने के लिये किया जा सकता है ।

IV. सेंटर हैड:

यह कास्ट स्टील का बना होता है । जिसकी दो बाजू होती हैं और इनको आपस में 90 के कोण में बनाकर फिनिश कर दिया जाता हे । यदि इसमें ब्लेड या रूल फिट कर दिया जाये तो दोनों बाजू 45 के कोण में बराबर बट जाती है इसका मुख्य प्रयोग किसी गोल जॉब का सेंटर निकालने के लिये किया जाता ।

सावधानियां:

(i) इसका प्रयोग रफ सरफेस पर नहीं करना चाहिये ।

(ii) इसको कटिंग टूल्स के साथ मिलाकर नहीं रखना चाहिये ।

(iii) इसको गिरने से बचाना चाहिये ।

(iv) कार्य में लाने से पहले इसको अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिये और कार्य में लाने के बाद भी अच्छी तरह से साफ करके तेल लगा कर रखना चाहिये ।

(v) कार्य में लाते समय केवल एक ही हैड प्रयोग में लाना चाहिये और दूसरे हैडों को सावधानीपूर्वक संभाल कर रख देना चाहिये ।

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