योजना के शीर्ष नौ उद्देश्यों | Top 9 Objectives of Planning. Read this article in Hindi to learn about the top nine objectives of planning in India. The objectives are:- 1. वृद्धि का उच्च दर (High Rate of Growth) 2. निवेश आय अनुपात को बढ़ाना (Raising Investment-Income Ratio) 3. सामाजिक न्याय (Social Justice) 4. निर्धनता का उन्मूलन (Removal of Poverty) 5. पूर्ण रोजगार (Full Employment) and a Few Others.

भारत कई वर्षों से यहां तक कि देश की स्वतन्त्रता के पूर्व काल से ही आर्थिक विकास के लिये कड़ा संघर्ष कर रहा है । स्वतन्त्रता की प्राप्ति के पश्चात, देश के सर्वपक्षीय विकास के लिये सामाजिक एवं आर्थिक रणनीतियों की उचित सम्बद्धता और समन्वय सम्बन्धी जागृति और भी बढ गई है । इसके लिये आर्थिक आयोजन को सभी बुराइयों के लिये रामबाण माना जाता है ।

इस प्रकार आयोजन के दीर्घकालिक उद्देश्यों पर विभिन्न योजना दस्तावेजों में विचार किया गया है तथापि भारत में आयोजन के मौलिक उद्देश्यों का वर्गीकरण विकास, आधुनिकीकरण, आत्मनिर्भरता और सामाजिक न्याय शीर्षकों के अधीन किया गया है ।

यहां तक कि छठी पंचवर्षीय योजना के खाके में उस ढंग का वर्णन किया है जिस में प्रयोजन को विशेष उद्देश्यों में अनुवादित किया है जो योजना से योजना बदलते रहे हैं । अतः, स्पष्टतया, यह उद्देश्य राष्ट्रीय आय बढ़ा कर आर्थिक विकास, आत्म निर्भरता, पूर्ण रोजगार, आधुनिकीकरण और सामाजिक न्याय हो सकते हैं ।

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भारतीय योजनाओं के मुख्य उद्देश्यों का विस्तार इस प्रकार हैं:

Objective # 1. वृद्धि का उच्च दर (High Rate of Growth):

राष्ट्रीय आय और प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि भारतीय आयोजन का सर्वप्रथम और प्रमुख आवश्यक उद्देश्य है । यदि अर्थव्यवस्था में प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाना है तो आवश्यकता है कि उत्पादन का स्तर जनसंख्या में वृद्धि की तुलना में अधिक तीव्रता से बड़े ।

विभिन्न योजनाओं को, योजनानुसार देखने से स्पष्ट है कि प्रथम पंचवर्षीय योजना में राष्ट्रीय आय में 11 प्रतिशत वृद्धि का लक्ष्य रखा गया जबकि राष्ट्रीय आय 10 प्रतिशत तक बढ़ गई । दूसरी योजना में राष्ट्रीय आय में योजनाकाल के दौरान 25 प्रतिशत बुद्धि का लक्ष्य रखा गया परन्तु यह लक्ष्य प्राप्त नहीं हो सका ।

तथापि, राष्ट्रीय आय में वृद्धि कठिनता से 4 प्रतिशत प्रति वर्ष हुई । पुन: तीसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान 5 प्रतिशत प्रति वर्ष राष्ट्रीय आय की वृद्धि का लक्ष्य निश्चित किया गया, तीसरी योजना के दौरान राष्ट्रीय आय में वृद्धि 11.2 प्रतिशत थी । चौथी योजना में 5.8 प्रतिशत वृद्धि प्राप्त करने की कल्पना की थी, वार्षिक वृद्धि दर 5 प्रतिशत प्राप्त करने की आशा थी परन्तु वास्तव में 56 प्रतिशत प्राप्त हुआ ।

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पांचवीं, छठी, सातवीं और आठवीं योजनाओं ने क्रमशः 5.0 प्रतिशत, 5.2 प्रतिशत, 5 प्रतिशत तथा 5.6 प्रतिशत का वृद्धि दर प्राप्त किया । नवम और दसवीं योजना ने 7.0 प्रतिशत और 9.0 प्रतिशत का लक्ष्य रखा जब कि ग्याहरवीं पंचवर्षीय योजना का लक्ष्य 10 प्रतिशत से अधिक था । अतः उच्चवृद्धि दर निर्धारित करना प्रत्येक क्रमिक योजना का सामान्य उद्देश्य है ।

Objective # 2. निवेश आय अनुपात को बढ़ाना (Raising Investment-Income Ratio):

एक निश्चित काल में निवेश के आयोजित दर की प्राप्ति आवश्यक है ताकि वास्तविक निवेश को राष्ट्रीय आय के एक अनुपात के रूप में उच्च स्तर पर लाया जा सके ।

यह दो कारणों से महत्वपूर्ण माना गया है:

पहले- उत्पादन क्षमता में ऐसी वृद्धि उत्पादन बढ़ाने के लिये आवश्यक है ।

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दूसरे- अर्थव्यवस्था में पूँजी संग्रह को लाने की आवश्यकता है ताकि भविष्य की उत्पादन क्षमता की वृद्धि सुनिश्चित की जा सके, यदि इस उद्देश्य को प्राप्त नहीं किया जाता तो इसके अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक प्रतिघात होंगे ।

पुन: देश की उत्पादक क्षमता में निवेश में वृद्धि के कारण बचतों में भी अनुकूल वृद्धि होती है । जब तक देश बचतों का उत्पादक दिशाओं में निवेश नहीं करता तब तक वह निर्धनता से छुटकारा नहीं पा सकता । इसलिये यह अत्यावश्यक है कि निर्धारित समय के भीतर निवेश का आयोजित दर प्राप्त किया जाये जिससे राष्ट्रीय आय का उच्च स्तर प्राप्त होगा ।

Objective # 3. सामाजिक न्याय (Social Justice):

भारत की पंचवर्षीय योजनाओं का एक अन्य प्रमुख उद्देश्य है- जन साधारण तथा समाज के दुर्बल वर्गों को सामाजिक न्याय उपलब्ध कराना । सामाजिक न्याय का अर्थ है आय असमानताओं को कम करना और निर्धनता का निष्कासन । हमारे देश की पंचवर्षीय योजना के खाके में इन दोनों पहलूओं पर भली-भान्ति ध्यान दिया गया है ।

अतः इसमें दो पहलू सम्मिलित है जो इस प्रकार हैं:

(1) आय और सम्पत्ति के वितरण की असमानताओं को कम करना तथा

(2) आर्थिक शक्ति के केन्द्रीकरण को रोकना ।

भारत में, आय और सम्पत्ति के वितरण में विस्तृत असमानताएं विद्यमान हैं । आय में विद्यमान असमानता की वर्तमान मात्रा, किसी प्रजातान्त्रिक व्यवस्था के लिये अस्वीकार्य होगी अतः इसे कम किया जाना चाहिये ।

हमारे योजना निर्माता प्रजातान्त्रिक समाजवाद के लिये वचनबद्ध हैं और समतावादी समाज के समर्थक हैं । दूसरी पंच वर्षीय योजना में हमने समाज के समाजवादी ढांचे की घोषणा की हैं । वास्तव में इसका अर्थ है गरीबी रेखा से नाच के लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाना ।

जहां तक आय, धन और अवसरों के वितरण का सम्बन्ध है, समृद्ध और निर्धन के बीच अन्तराल को कम करना तथा यह सुनिश्चित करना कि विकास के लाभ को कुछेक समृद्ध लोग ही ना निगल जायें । इस सम्बन्ध में योजना आयोग ने सत्य ही अवलोकन किया है कि उच्च आय से उत्पन्न होने वाली असमानताओं को घटाने के लिये प्रतिबन्धक उपायों और राजकोषीय पगों की आवश्यकता होगी । सन 1991 की औद्योगिक नीति ने MRTP एक्ट, FERA और उदारवाद की अन्य व्यवस्थाओं में प्रभावशाली संशोधन किये हैं जिससे आय और धन में असमानता बहुत कम हो जायेगी ।

Objective # 4. निर्धनता का उन्मूलन (Removal of Poverty):

चौथी पंचवर्षीय योजना के अन्त तक यह महसूस किया जाता था कि विकास के लाभ निर्धनता की समस्या से निपटने के योग्य नहीं हो पाये । पांचवीं योजना की अवधारणा में स्पष्ट परिवर्तन था जिसके परिणामस्वरूप ‘न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम’ (Minimum Needs Programme) का आगमन हुआ ।

इससे पहले ग्रामीण समाज की उन्नति के लिये 20 सूत्रीय आर्थिक कार्यक्रम था । इस दृष्टिकोण का समर्थन करते हुये, योजना आयोग ने नई छठी योजना (1980-85) के दस्तावेज में वर्णन किया कि देश में निर्धनता का प्रचलन अभी भी बहुत ऊँचा था तथा निर्धनता से निपटने के आवश्यक उपायों की आवश्यकता थी ।

इस योजना ने निर्धनता रेखा को, मासिक प्रति व्यक्ति व्यय के मध्य बिन्दु श्रेणी के रूप में परिभाषित किया जिन की दैनिक खुराक 2,400 उष्मांक (कैलोरी) प्रति व्यक्ति ग्रामीण क्षेत्रों में थी तथा शहरी क्षेत्रों में 2100 उष्मांक थी । इस सम्बन्ध में विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में अनेक पग उठाये गये हैं ।

फलतः निर्धनता रेखा के नीचे की प्रतिशतता 37 प्रतिशत से घट कर 22 प्रतिशत तक आ जायेगी । संक्षेप में, भारत की पंचवर्षीय योजनाओं में निर्धनता उन्मूलन का कार्यक्रम जारी रहेगा ।

Objective # 5. पूर्ण रोजगार (Full Employment):

बेरोजगारी, अल्पविकसित देशों की दीर्घकालीन समस्या है । यद्यपि भारत एक विकासशील देश के रूप में सामने आया है । फिर भी यह अदृश्य बेरोजगारी की तीव्र समस्या की पकड़ में है ।

अतः भारतीय आयोजन का महत्वपूर्ण उद्देश्य ऐसी स्थितियों का निर्माण करना है जिससे पूर्ण रोजगार की प्राप्ति हो और बेरोजगारी या अल्प-बेरोजगारी और अदृश्य बेरोजगारी समाज हो ।

वास्तव में, किसी भी योजना काल के दौरान, पूर्ण रोजगार कार्यक्रम को उचित प्राथमिकता प्राप्त नहीं हुई है । अतः अशोक रुद्रा ने ठीक ही कहा है कि भारत में सरकार ने कभी भी सुप्रभाषित रूप में अपनी रोजगार नीति का निर्माण नहीं किया है ।

इस के विपरीत, इस तथ्य को मानते हुये, पूर्ण रोजगार सदैव, विशेषतया दूसरी पंचवर्षीय योजना से, आर्थिक आयोजन का मुख्य उद्देश्य रहा है । तब से श्रम गहन उद्योगों और लघु उद्योगों, ग्रामीण विकास कार्यक्रमों, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (NREP) आदि पर बल दिया गया है जिसके कारण ग्रामीण समुदाय में विश्वास जागृत हुआ है क्योंकि उनसे अतिरिक्त रोजगार अवसरों की रचना की आशा की जाती है ।

अतः सभी योजनाओं ने क्रमिक योजना काल के दौरान रोजगार की वृद्धि का लक्ष्य रखा है । रोजगार के यह कार्यक्रम आय में विस्तृत असमानताओं को कम करने का लक्ष्य भी रखते हैं । हाल ही के वर्षों में रोजगार के प्रति धारणा में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ है ।

Objective # 6. तीन मुख्य बाधाओं को कम करना (Alleviating Three Main Bottlenecks):

आयोजन का एक अन्य उद्देश्य तीन बाधाओं को कम करने के लिये विभिन्न उपाय करना है । ये बाधाएँ हैं- कृषि उत्पादन, उत्पादक वस्तुओं के निर्माण की क्षमता और भुगतानों का सन्तुलन । विभिन्न योजनाएं किसी न किसी प्रकार अर्थव्यवस्था में आन्तरिक और बाहरी स्थायित्व की प्राप्ति के लिये इन मुख्य बाधाओं को दूर करने के लिये प्रयत्नशील रही है ।

भारत में कृषि क्षेत्र का एक विशेष स्थान रहा है क्योंकि अधिकतर जनसंख्या, स्पष्ट अथवा परोक्ष रूप में अपने निर्वाह के लिये इस पर निर्भर है । यह खाद्य पदार्थों और कच्चे माल का स्रोत है तथा इससे खाद्य पदार्थों का आयात समाप्त होता है । आत्म-निर्भर होने के लिये खाद्य-पदार्थों का उत्पादन भारतीय आयोजन का मुख्य उद्देश्य है । इस प्रकार कृषि एवं उद्योग दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं ।

औद्योगिक विकास इस लिये महत्वपूर्ण है क्योंकि यह गैर-कृषि वस्तुएँ उपलब्ध करता है । पूंजी वस्तुओं के उत्पादन की पर्याप्त क्षमता की कमी को मौलिक एवं मुख्य उद्योगों की क्षमता के विस्तार के उद्देश्य पर बल दे कर पूरा किया जाता है ।

दूसरी योजना में माहालेनोबिस मॉडल के अधीन ऐसे उद्योगों की स्थापना से संबन्धित आधारभूत मुक्ति तैयार की गई जिसने बदले में देश के भीतर औद्योगिक विकास को जन्म दिया । भारत के आर्थिक विकास के मार्ग में तीसरी बाधा भुगतानों का विपरीत सन्तुलन है । प्रारम्भिक वस्तुओं का निर्यात विकास की आयात आवश्यकताओं के लिये अपर्यायात होता है ।

अतः भारतीय योजनाकर्ता व्यवहार्य भुगतानों के सन्तुलन के उद्देश्य पर बल देते हैं । यह उद्देश्य विदेशी सहायता पर निर्भरता अथवा हमारे अपने अर्जन में आन्तरिक भुगतानों को पूरा करने के दायित्व से बचाता है । अतः औद्योगिक क्षमता में वृद्धि और खाद्य पदार्थों में आत्म निर्भरता अन्य देशों पर निर्भरता कम करती है ।

Objective # 7. आत्म-निर्भरता प्राप्त करना (Attaining Self-Reliance):

भारतीय योजना का एक अन्य लक्ष्य है आत्म-निर्भरता की प्राप्ति । पहली दो योजनाएं इस लक्ष्य पर इतना बल नहीं दे पायीं क्योंकि उनका निर्माण पुन: प्रतिष्ठित करने तथा मूलभूत एवं मुख्य उद्योगों की स्थापना करने के लिये किया गया था ।

अतः तीसरी पंचवर्षीय योजना में आत्म-निर्भरता के सम्बन्ध में स्पष्ट रूप में वर्णन किया गया कि विदेशी सहायता पर निर्भरता को चौथी योजना में बहुत कम कर दिया जायेगा ।

यह नियोजित किया गया है कि PL-480 के अन्तर्गत खाद्य अनाजों के रिआयती आयातों को समाप्त कर दिया जायेगा । चौथी योजना के अन्त तक विदेशी सहायता के शुद्ध ऋण व्यय और ब्याज भुगतानों को वर्तमान स्तर की तुलना में आधे तक कम कर दिया जायेगा । परन्तु इस क्षेत्र में निष्पादन सन्तुष्टि की सीमा से बहुत कम था ।

इसके दो कारण थे:

(1) वर्ष 1972-73 में सूखे की स्थितियां विद्यमान थीं जिसके परिणाम स्वरूप उच्च कीमत पर बड़े स्तर पर खाद्य अनाजों का आयात करना पड़ा एवं

(2) तेल के मूल्यों में तीव्र वृद्धि के कारण देश का आयात व्यय बहुत बढ़ गया ।

कुछ सीमा तक भारत ने आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में सफलता प्राप्त की है । वर्ष 1991-92 में देश खाद्य पदार्थों के आयात को कम करने में सफल हुआ है क्योंकि सरकार खाद्य अनाजों के बफ्फर स्टॉकों का निर्माण करने में सफल हुई है जिससे हम खाद्य पदार्थों के सकट से निपटने के योग्य हुये हैं, विशेषतया उस समय पर जब फसलें खराब हो गई ।

पूँजी साज-सामान से सम्बन्धित देश की उन्नत देशों पर निर्भरता बहुत कम हो गई आजकल इन्जीनियरी सामान मुख्य रूप में निर्यात किया जाता है । संक्षेप में आत्मनिर्भरता का नारा अभी अधूरा है । इसे तभी पूरा किया जा सकता है यदि देश बड़े स्तर पर घरेलू पैट्रोलियम साधनों की खोज करें ताकि इस क्षेत्र में अत्याधिक अभाव को पूरा किया जा सके, साथ ही ऊर्जा का वैकल्पिक साधन भी खोजने की आवश्यकता है ।

Objective # 8. आधुनिकीकरण (Modernisation):

आधुनिकीकरण का विचार सबसे पहली बार छठी पंचवर्षीय योजना में प्रस्तुत किया गया । सामान्य भाव में इस का अर्थ है तकनीक का आधुनिकीकरण । परन्तु छठी योजना का ड्राफ्ट, ‘आधुनिकीकरण’ को, एक आर्थिक गतिविधि के संरचनात्मक और संस्थानिक ढांचे में परिवर्तन के रूप में दर्शाता है ।

उत्पादन के खण्डीय गठन में एक परिवर्तन, कृषि गतिविधियों में विविधता, तकनीकी विज्ञान में उन्नति तथा आविष्कार, सामन्ती प्रणाली से आधुनिक स्वतन्त्र तत्व में परिवर्तन का आवश्यक भाग है ।

कृषि क्षेत्र में पर्याप्त उपलब्धि हुई है । उद्योग और संरचना में भी महत्वपूर्ण आधुनिकीकरण देखा गया है । जहां हमें देखना चाहिये कि देश बेरोजगारी, निर्धनता दूर करने और आधुनिकीकरण के लक्ष्यों के बीच संघर्ष का सामना कर रहा है ।

Objective # 9. अर्थव्यवस्था में असन्तुलन को समायोजित करना (Redressing Imbalances in the Economy):

भारत ने अर्थव्यवस्था में क्षेत्रीय असमानताओं और असन्तुलनों का अनुभव किया जोकि विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के ध्यान का केन्द्र है । प्राकृतिक और मानवीय साधनों का उचित प्रयोग किया जाना चाहिये ताकि सामान्य व्यक्ति की प्रतिव्यक्ति आय और उसके जीवन स्तर में वृद्धि हो ।

अतः हमारी विभिन्न पंच वर्षीय योजनाओं ने आर्थिक असन्तुलनों के सुधार तथा सन्तुलित क्षेत्रीय विकास पर बल दिया है । इन दीर्घकालिक उद्देश्यों के साथ हमारी योजनाओं ने अल्पकालिक लक्ष्यों पर भी बल दिया है । जैसे स्फीति नियन्त्रण, उद्योगीकरण, शरणार्थियों को पुन: बसाना और संरचनात्मक सुविधाओं का निर्माण ।

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