योजना की शीर्ष चौदह उपलब्धियां | Top 14 Achievements of Planning. Read this article in Hindi to learn about the top fourteen achievements of planning in India. The achievements are: 1. राष्ट्रीय आय में वृद्धि (Increase in National Income) 2. प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि (Increase in per Capita Income) 3. पूँजी निर्माण की दर में वृद्धि (Increase in Rate of Capital Formation) 4. कृषि का विकास (Development of Agriculture) and a Few Others.

आयोजन की प्रभावपूर्णता का अनुमान लगाने के लिये आवश्यक है कि देश में पचास वर्षों की योजनाबन्दी की प्राप्तियों का अध्ययन किया जाये ।

इनका निम्नलिखित शीर्षकों के अधीन अध्ययन उचित होगा:

Achievement # 1. राष्ट्रीय आय में वृद्धि (Increase in National Income):

राष्ट्रीय आय, क्योंकि विकास का संकेतक है, इसलिये यह पिछले पचास वर्षों के दौरान अर्थव्यवस्था की प्रगति को दिखा सकती है । सन 1950-51 से लेकर सन 1996-97 तक 1980-81 के मूल्यों पर राष्ट्रीय आय में 5.39 प्रतिशत की वृद्धि हुई । आयोजन के प्रथम पचास वर्षों के दौरान देश की राष्ट्रीय आय 3.8 प्रतिशत प्रति वर्ष के औसत वृद्धि दर से बढ़ती रही ।

ADVERTISEMENTS:

प्रथम पंचवर्षीय योजना के दौरान राष्ट्रीय आय का वार्षिक वृद्धि दर जोकि 3.6 प्रतिशत थी, कुछ उतार-चढावों का अनुभव करने के पश्चात पांचवीं योजना के दौरान 4.9 प्रतिशत के स्तर तक पहुंच गया तथा पुन: सातवीं योजना के दौरान 5.8 प्रतिशत तक और आठवीं योजना के दौरान 6.8 प्रतिशित तक पहुंच गया और अन्त में नवम योजना के दौरान यह 5.4 प्रतिशत था ।

अतः भारत में राष्ट्रीय आय का वार्षिक वृद्धि दर जो कि प्रथम योजना से लेकर पंचम योजना काल के दौरान 5.0 प्रतिशत से कम था, छठी, सातवीं, आठवीं, नवम और दसवीं योजना के दौरान यह 5.0 प्रतिशत के अंक को पार कर गया ।

अतः नियोजन के पहले तीस वर्षों के दौरान अर्थात वर्ष 1950-51 से 1980-81 तक राष्ट्रीय आय की वार्षिक औसत वृद्धि दर वर्ष 1980-81 की कीमतों पर 34 प्रतिशत था । वर्ष 1980-81 से 1990-91 तक अर्थव्यवस्था ने अपूर्व सुधार दर्ज किये और राष्ट्रीय आय का वार्षिक वृद्धि दर 1980-81 की कीमतों पर 5.3 प्रतिशत था । वर्ष 1990-91 से वर्ष 2001-2002 तक स्थिर कीमतों पर वही वृद्धि दर 5.5 प्रतिशत प्रति वर्ष रहा ।

Achievement # 2. प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि (Increase in per Capita Income):

आयोजन के पिछले पचास वर्षों के दौरान, वर्ष 1980-81 की कीमतों पर भारत की प्रति व्यक्ति आय ने अपनी वृद्धि की प्रवृति को बनाये रखा परन्तु जनसंख्या की उच्च वृद्धि के कारण इसकी गति धीमी थी । वर्ष 1950-51 से 1996-97 तक वर्ष 1980-81 की कीमतों पर भारत की प्रति व्यक्ति आय में 1.45 प्रतिशत की वृद्धि हुई ।

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प्रति व्यक्ति आय का वार्षिक वृद्धि दर जोकि प्रथम एवं द्वितीय योजना के दौरान क्रमशः 1.7 प्रतिशत और 0.9 प्रतिशत था धीरे-धीर घट कर तीसरी और चौथी योजना में क्रमशः केवल 0.1 प्रतिशत और 0.9 प्रतिशत रह गया और पुन: पांचवी योजना के दौरान यह 2.6 प्रतिशत तक बढ़ गया, सातवीं योजना में 3.6 प्रतिशत तथा पुन: आठवीं योजना के दौरान 4.9 प्रतिशत तक बढ़ गया । वर्ष 2001-2002 में वर्ष 1993-94 की कीमतों पर प्रति व्यक्ति आय 4.3 प्रतिशत से बड़ी ।

Achievement # 3. पूँजी निर्माण की दर में वृद्धि (Increase in Rate of Capital Formation):

पूँजी निर्माण देश के आर्थिक विकास की प्राप्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है । आयोजन के पिछले पचास वर्षों में कुल घरेलू पूँजी निर्माण की दर, कुल घरेलू उत्पाद (GDP) के प्रतिशत के रूप में वर्ष 1950-51 में 10.2 प्रतिशत से बढ्‌कर वर्ष 1997-98 में 26.2 प्रतिशत हुआ ।

तदानुसार यह पहली योजना के अन्त में 14.3 से बढ़ कर चौथी योजना के अन्त तक 19.1 प्रतिशत हो गई तथा पुन: छठी और सातवीं योजना के अन्त में प्रतिशत और 25.1 प्रतिशत थी और 24.6 प्रतिशत आठवीं योजना में एवं नवम योजना में यह 21.9 प्रतिशत थी । अतः पिछले पांच दशकों से आयोजन काल के दौरान भारत ने उच्च पूँजी निर्माण दर की प्राप्ति में पर्याप्त उन्नति की है । दसवीं और ग्यारहवीं योजनाओं में इसने अपने लक्ष्यों को कुछ बढ़ा दिया है ।

Achievement # 4. कृषि का विकास (Development of Agriculture):

पंचवर्षीय योजनाओं ने कृषि क्षेत्र में भारी निवेश किया है परन्तु कृषि उत्पादन लक्षित वृद्धि दर प्राप्त करने में असफल रहा । आयोजन के आरम्भिक काल में, कृषि के अधीन क्षेत्र के विस्तार द्वारा कृषि उत्पादन में वृद्धि प्राप्त की गई । तीसरी और चौथी योजना से उत्पादकता में वृद्धि (प्रति हैक्टेयर उत्पादन) नई कृषि रणनीति अपनाने और देश के कुछ चयनित क्षेत्रों अथवा राज्यों में खेती के कारण देखी गई ।

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आयोजन के पिछले पचास वर्षों के दौरान कृषि उत्पादन का सूचक (आधार 1981-82 से समाप्त होने वाला वर्षत्रय) वर्ष 1950-51 में 46.2 से बढ़ कर वर्ष 1950-51 में 50.8 हो गया और पुन: 2000-01 में 164.6 तक बढ़ गया ।

खाद्य अनाजों का कुल उत्पादन वर्ष-वर्ष 1950-51 में 50.8 मिलियन टन से बढ़ कर वर्ष 1990-91 में 176.4 मिलियन टन हो गया और पुन: तकनीकी उन्नति के कारण वर्ष 2000-01 तक 195.9 मिलियन टन तक बढ़ गया । आयोजन के पिछले पचास वर्षों के दौरान कृषि उत्पादन का वार्षिक औसत वृद्धि दर 26 प्रतिशत से अधिक था परन्तु नई कृषि रणनीति अथवा हरित क्रान्ति का जो भी प्रभाव योजना कालों के दौरान देखा गया वह कुछ प्रान्तों तक ही सीमित था अर्थात पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश तथा वह भी केवल गेहूं के उत्पादन तक सीमित था ।

परन्तु सभी खाद्य अनाजों का प्रति हैक्टर पौसत उत्पादन जो वर्ष 1950-51 में 5.5 क्विंटल था वर्ष 1964-65 में 7.6 क्विंटल तक बढ़ा तथा पुन: हरित क्रान्ति के पश्चात वही उत्पादन वर्ष 2000-01 में 16.3 क्विंटल हो गया ।

इस वृद्धि का कारण खेती के वैज्ञानिक ढंग, उच्च उत्पादन वाले बीज, रासायनिक उर्वरक तथा सिंचाई सुविधाओं का विकास था । अतः, खाद्यान्नों और दालों की प्रति व्यक्ति उपलब्धता जो वर्ष 1951 में 395 ग्राम प्रति दिन थी वर्ष 1987 में 466 ग्राम और 2001 में 512 ग्राम प्रतिदिन हो गई ।

Achievement # 5. ओद्योगिक विकास (Industrial Development):

आयोजन की अवधि के दौरान, देश के औद्योगिक क्षेत्र ने पर्याप्त उन्नति की है । आयोजन के इस समय के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग में बड़ी मात्रा में निवेश हुआ । अप्रैल सन 1998 को सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में कुल निवेश 2,04,054 करोड़ रुपये था । फलतः, इस्पात, इन्जीनियरिंग वस्तुएं, उर्वरक, अल्मीनियम, पैट्रोलियम उत्पाद के उद्योगो ने महत्वपूर्ण उन्नति की है ।

औद्योगिक क्षेत्र में पर्याप्त मात्रा में विविधीकरण और आधुनिकीकरण प्राप्त किया है तथा औद्योगिक क्षमता में भी पर्याप्त विस्तार प्राप्त किया है । औद्योगिक उत्पादन का सूचक (आधार 1993-94 =100) वर्ष 1950-51 में 79 से बढ़ कर वर्ष 1990-91 में 91.6 तक पहुंच गया और फिर वर्ष 2000-01 में 162.71 तक । पहले 15 वर्षों में 1951-65 अर्थात पहली तीन योजनाओं की अवधि में, भारतीय उद्योग ने लगभग 8.5 प्रतिशत के स्थिर वृद्धि दर का अनुभव किया । अगले बीस वर्षों के दौरान कुछ उतार-चढाव का अनुभव करते हुये वही वृद्धि दर वर्ष 1985-86 से 86 पर पहुंच कर स्थिर हो गया और फिर 1995-96 में 12.8 प्रतिशत तक पहुंच गया ।

तब से, कुछ वर्षों में देश ने पुन: औद्योगिक वृद्धि में मन्दी का अनुभव किया तथा 2000-01 में यह केवल 5.0 प्रतिशत था, परन्तु दसवीं पंचवर्षीय योजना ने औद्योगिक क्षेत्र के लिये 8.5 प्रतिशत वृद्धि दर की प्राप्ति को निश्चित किया ।

Achievement # 6. रोजगार की रचना (Employment Generation):

भारत में पंचवर्षीय योजनाओं में देश में बेरोजगारी की समस्या को समाप्त करने के लिये कुछ विशेष कदम उठाये गये हैं । पिछली दस पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान विस्तृत रोजगार की रचना पर अत्याधिक बल दिया गया, बड़े-बड़े उद्योगों का निर्माण, लघु क्षेत्रीय एवं ग्रामीण उद्योगों की स्थापना और विस्तार के साथ कृषि और सेवा में भी सुधार किया गया ।

पहली दो योजनाओं के दौरान लगभग 16 मिलियन लोगों के लिये रोजगार के अवसर उत्पन्न किये गये । पुन: वर्ष 1961-71 के दौरान लगभग 20 मिलियन लोगों ने ताजे रोजगार अवसर प्राप्त किये, पुन: वर्ष 1971-81 तक लगभग 25 मिलियन और 34 मिलियन लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाये गये ।

योजना आयोग के अनुमान के अनुसार आठवीं योजना के दौरान 41.74 मिलियन रोजगार के अवसरों की रचना की गई परन्तु क्रियाशील जनसंख्या की संख्या में भारी वृद्धि के कारण प्रत्येक योजना के अन्त में बेरोजगार लोगों की संख्या तीव्रता से बढ़ती रही । बेरोजगारी का कुल संचय प्रथम योजना के अन्त में 5.3 मिलियन था । वर्ष 1980 में 20.7 मिलियन तक बढ़ गया और आठवीं योजना के अन्त तक यह 58 मिलियन था और वर्ष 2005 तक यह 96 मिलियन के लगभग था ।

Achievement # 7. सरंचना का विकास (Development of Infrastructure):

देश की संरचना सुविधा ने पर्याप्त उन्नति प्राप्त की है, विशेषतया यातायात और संचार, सिंचाई सुविधाओं और विद्युत उत्पादन क्षमता में बहुत सुधार हुआ है । आयोजन के पिछले 50 वर्षों के दौरान रेल मार्गों की लम्बाई जो वर्ष 1950-51 में 53,600 किलोमीटर थी वर्ष 1996-97 में बढ़ कर 63,028 लाख किलोमीटर हो गई ।

रेलवे की भार ढोने की क्षमता जो वर्ष 1950-51 में 9.3 करोड़ टन थी बढ़ कर 2000-02 तक 44.2 करोड़ टन हो गई । इस प्रकार यात्री वहन क्षमता जो वर्ष 1950-51 में 129 करोड़ थी, 2000-01 तक 486 करोड़ हो गई, विदेशी व्यापार में जहाज-परिवहन क्षमता जो वर्ष 1950-51 में 0.2 मिलियन जी.आर.टी. थी वर्ष 1984-85 में 6 मिलियन जी.आर.टी. तक तथा पुन: 2000-01 में 7.02 मिलियन जी.आर.टी तक पहुंच गई ।

विद्युत परियोजनाओं की स्थापित प्लांट क्षमता जो वर्ष 1950-51 में 23. GW थी वर्ष 1980-81 के दौरान 33.3 GW हो गई तथा पुन: 2000-01 में यह 117 GW थी । विद्युत उत्पादन वर्ष 1950-51 में 6.6 T.W.H से बढ़ कर 2000-01 तक 554.5 TWH हो गया ।

Achievement # 8. सामाजिक सेवाओं का विकास (Development of Social Services):

आयोजन के पिछले पचास वर्षों के दौरन शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवार नियोजन आदि सामाजिक सेवाओं में पर्याप्त सुधार हुआ है ।

इसका अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है:

(1) जय पर जीवन प्रत्याशा जोकि वर्ष 1950-51 में 32.1 वर्ष थी वर्ष 1993-94 में 60.3 वर्ष तक पहुंच गई ।

(2) जन्म दर जोकि वर्ष 1950-51 में 39.9 प्रति मिनट था वर्ष 1997-98 में घट कर 26.4 प्रति मिनट रह गया ।

(3) मृत्यु दर, महत्वपूर्ण रूप में कम हुआ है, वर्ष 1950-51 जो 27.4 प्रति मिनट था वर्ष 1997-98 में घट कर 8.8 प्रति मिन्ट रह गया है क्योंकि भयानक महामारियों और मलेरिया आदि रोग लगभग समाप्त हो चुके हैं तथा स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार हुआ है ।

(4) शिक्षा के सम्बन्ध में विभिन्न स्तरों पर विद्यार्थियों की कुल गिनती में छ: गुणा वृद्धि हुई है, कालेज जाने वाले विद्यार्थियों की संख्या में पांच गुणा वृद्धि हुई है । शिक्षा व्यवस्था में अत्याधिक विस्तार के कारण यह सम्भव हुआ है । इस के अतिरिक्त योजनाकाल के दौरान देश में बहुत से विश्वविद्यालयों, इन्जीनियरिंग कालेजों, मैडीकल कालेजों, तकनीकी संस्थाओं, प्रबन्ध संस्थाओं आदि का विकास हुआ है । साक्षरता का दर जोकि वर्ष 1950-51 में 18.33 प्रतिशत था 1998-99 में बढ़ कर 52.2 प्रतिशत हो गया ।

(5) स्वास्थ्य-लोगो की स्वास्थ्य स्थितियों को सुधारने के लिये देश ने स्वास्थ्य प्रणाली सुधारने के लिये अनेक अस्पताल, चिकित्सालय तथा चिकित्सा शोध केन्द्रों का विकास किया है । फलतः अस्पतालों आदि की संख्या में पर्याप्त वृद्धि हुई है । अस्पतालों और डिस्पैन्सरियों की कुल संख्या लगभग 45,000 हो गई है । पंजीकृत चिकित्सकों (RMP) की संख्या जो सन 1950-51 में 61.8 हजार थी वर्ष 1997-98 में बढ्‌कर 503.9 हजार हो गई ।

प्रति 10,000 की जनसंख्या के लिये पंजीकृत चिकित्सकों की संख्या जो वर्ष 1950-51 में 1.7 थी वर्ष 1997-98 में 5.7 तक बढ़ गई । अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या (सभी प्रकार के) प्रति 10,000 की जनसंख्या के लिये जो वर्ष 1950-51 में 32 थी वर्ष 2000-01 में 9.3 तक बढ़ गई ।

Achievement # 9. निर्यातों का विविधीकरण ओर आयातों का प्रतिस्थापन (Diversification of Exports and Import Substitution):

आयोजन के पिछले पाँच दशकों के दौरान भारतीय उद्योगों के नियमित विविधीकरण के कारण देश के निर्यातों में स्पष्ट विविधता आयी है । देश के निर्यात अब प्रारम्भिक वस्तुओं से बदल कर निर्मित वस्तुओं, हस्तशिल्प, खनिज, कच्ची धातु आभूषण, इन्जीनियरिंग वस्तुओं, चमड़े की वस्तुओं तथा उत्पादक की वस्तुओं में परिवर्तित हो गये हैं ।

जो वस्तुएं पहले आयात की जाती थीं अब उनका स्थानीय उत्पादन होने लगा है । निर्यात का वृद्धि दर जो प्रथम योजना के दौरान 22 प्रतिशत था पाँचवीं योजना में 18.0 प्रतिशत और सातवीं योजना में 20 प्रतिशत तक बढ़ गया तथा 1995-96 में यही दर 29.9 प्रतिशत पर पहुंच कर चोटी पर पहुंच गया ।

वही दर घट कर 2000-01 में केवल 8.8 प्रतिशत रह गया और पुन: 2005-06 में 16.5 प्रतिशत तक बढ़ गया । इस प्रकार, निर्यातों का विविधीकरण और आयात प्रतिस्थापन द्वारा आयातों का नियन्त्रण देश में भुगतान सन्तुलनों के दबाव को कम करने में सफल हुये हैं ।

Achievement # 10. आत्म-निर्भरता की प्राप्ति (Attainment of Self-Reliance):

भारत में आयोजन ने अर्थव्यवस्था में आत्म-निर्भरता और धीरे-धीरे विदेशी सहायता पर निर्भरता को समाप्त करने का लक्ष्य रखा है । आयोजन के पिछले 5 दशकों के दौरान देश ने आत्म-निर्भरता की उन्नति की एक अच्छी दर प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की है । चौथी योजना के पश्चात से विदेशी सहायता पर निर्भरता कम होनी आरम्भ हो गई है ।

हमारी योजना की वित्तीय व्यवस्था के लिये विदेशी सहायता का अनुपात जो तीसरी एवं छठी योजना में क्रमशः 12.8 प्रतिशत और 14.0 प्रतिशत था -सातवीं और आठवीं योजना के दौरान घट कर क्रमशः 10.0 और 7.0 प्रतिशत रह गया, तथा देश धीरे-धीरे आत्म-निर्भर अर्थव्यवस्था के रूप में सामने आया है । जिन क्षेत्रों में आत्म-निर्भरता प्राप्त हुई वह कृषि उत्पादन, विद्युत साज-सामान, दक्ष तकनीकी-विज्ञान आदि हैं फिर भी देश का विदेशी सहायता के बिना संचालन असम्भव है ।

वर्ष 1990 के दशक के आरम्भिक वर्षों में सरकार द्वारा कड़ी शर्तों पर IMF से लिये ऋण की बडी राशि जो कि $5.0 बिलियन SDRs थी देश की आत्म-निर्भरता की स्थिति दर्शाती है । परन्तु हाल ही में, देश के कुल विदेशी विनिमय का संचय जोकि मार्च 1997 के अन्त में यू.एस. $26.4 बिलियन था जनवरी 2000 के अन्त में यू.एस. $34.9 बिलियन हो गया । 2005 मार्च के अन्त में ऐसे विदेशी विनिमय संचय द्वारा कुल आयात प्रच्छन्नता 12 मास थी ।

Achievement # 11. संरचनात्मक और संस्थानिक परिवर्तन (Structural and Institutional Changes):

आयोजन के 50 वर्षों के दौरान देश ने अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक और संस्थागत परिवर्तन लाने में पर्याप्त सफलता प्राप्त की है । मुख्य संरचनात्मक परिवर्तनों में सम्मिलित हैं क्षेत्रीय योगदान में परिवर्तन अथवा राष्ट्रीय आय के गठन से उद्योगों एवं सेवाओं के बढ़ते हुये योगदान, आर्थिक गतिविधियों में कृषि से गैर-कृषि व्यवसायों में परिवर्तन, कृषि में नई तकनीकों को अपनाया जाना आदि । आयोजन काल के दौरान, संस्थागत परिवर्तन भी आर्थिक विकास की प्राप्ति के लिये महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं ।

इन संस्थानिक परिवर्तनों में सम्मिलित है, संस्थानिक वित्त के स्रोत को विकसित करना, छोटे और मध्य स्तरीय उद्योगों का विस्तार, कीमत समर्थन प्रणाली और सार्वजनिक वितरण प्रणाली, एकाधिकारक प्रथाओं पर प्रतिबन्ध और मानवीय पूँजी का निर्माण । इसके अतिरिक्त उदारीकरण एवं व्यापारीकरण की ओर आधुनिक ढांचे को अपनाना भी अर्थव्यवस्था में परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण सीमा चिन्ह है ।

Achievement # 12. विज्ञान और प्रोद्योगिकी विज्ञान का विकास (Development of Science and Technology):

पंचवर्षीय योजना ने विज्ञान और प्रोद्योगिकी विज्ञान में पर्याप्त विकास प्राप्त किया है जिससे आधुनिक औद्योगिक संरचना की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये तकनीकी एवं प्रबन्धकीय जन-शक्ति का पर्याप्त विकास हुआ है ।

इस प्रकार भारत ने न केवल तकनीकी क्षेत्र में आत्म-निर्भरता प्राप्त की है बल्कि कुछ दक्षिण पूर्वी एशियन, मध्य-पूर्वी और कृषि प्रधान देशों को विशेषज्ञता निर्यात करने में भी स्थान प्राप्त किया है जोकि वास्तव में गर्व की बात है ।

Achievement # 13. कीमतों का स्थायित्व (Price Stability):

सम्पूर्ण योजना काल के दौरान आर्थिक स्थायित्व की प्राप्ति को आर्थिक आयोजन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य माना जाता रहा है, परन्तु दुर्भाग्य की बात है कि देश में आर्थिक उतार-चढ़ाव के कारण कीमत स्तर में अस्थिरता बनी रही है । बढ़ती हुई कीमतों को नियन्त्रित करने की असमर्थता को देश के आर्थिक आयोजन की सबसे बड़ी असफलता माना जाता है । यद्यपि, वर्ष 1950 से 70 के दौरान देश के सामान्य कीमत स्तर में 5 से 6 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि हुई, परन्तु वर्ष 1972-75 के दौरान 20 प्रतिशत का औसत वृद्धि दर अत्याधिक था ।

वर्ष 1979-81 के दौरान कीमत सूची में पुन: स्फीतिकारी वृद्धि हुई जो 9.4 प्रतिशत बढ गया । वर्ष 1983-84 और 1984-85 के दौरान थोक कीमत सूची धीरे-धीरे क्रमशः 9.4 प्रतिशत और 7 प्रतिशत तक बढ़ गई । वर्ष 1985-90 के दौरान अर्थात सातवीं योजना काल के दौरान औसत कीमत स्तर 6.8 प्रतिशत दर से बढा परन्तु वर्ष 1990 के आरम्भ से देश को गम्भीर द्वि-अंकीय स्फीति 11 से 12 प्रतिशत का सामना करना पड़ा तथा पुन: सन 1991 अगस्त में यह 19.7 प्रतिशत थी ।

इस गम्भीर स्फीति का सामना करने तथा कीमत स्थायित्व को पुन: स्थापित करने के लिये सरकार ने वर्ष 1991-92 और 1992-93 में अनेक नये पग उठाये । इन उपायों के फलस्वरूप सितम्बर सन 1991 से स्फीति दर घटना आरम्भ हुआ और जुलाई 1992 के मध्य तदा 12 से 14 प्रतिशत के बीच स्थापित हो गई, अतः स्फीति दर नियमित रूप में घटती हुआ जनवरी 1994 में 68 प्रतिशत तक आ गयी ।

यही दर अक्तूबर 1995 में 9.41 प्रतिशत था । पुन: 2000-01 में 16 प्रतिशत से अधिक तक बढ़ गया । मार्च 2005 तक यह 4.4 प्रतिशत तक घट गयी । अतः कीमत के व्यवहार में इस प्रकार के उतार-चढ़ाव आय, बचतों और निवेश के बहाव को विपरीत प्रभावित करते रहे हैं जिस से विकास प्रतिबन्धित हो रहा है ।

Achievement # 14. वितरणात्मक न्याय (Distributive Justice):

आर्थिक नियोजन ने कृषि एवं औद्योगिक उत्पादन की मात्रा को पर्याप्त अनुपात में बढ़ाया है, परन्तु इसके बावजूद देश की अर्थव्यवस्था आय और धन के वितरणात्मक ढंग में अनुकूल परिवर्तन ला कर इसे ग्रामीण निर्धन लोगों के पक्ष में नहीं कर सकी ।

औद्योगिक क्षेत्र में एकाधिकारिक घरानों की वृद्धि के कारण समृद्ध और निर्धन लोगों के बीच असमानताएं बढ़ गई हैं । इसके अतिरिक्त देश में आयोजन के अन्तर्गत निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम निर्धनतम लोगों तक पहुँचने में असफल हुये हैं ।

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