भारत में राष्ट्रीय जागरण | National Awakening in India in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. राष्ट्रीय जागरण के कारण व प्रभाव ।

क. धार्मिक कारण । ख. राजनीतिक कारण ।

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ग. आर्थिक कारण । घ. सामाजिक कारण ।

ड. सांस्कृतिक एवं शैक्षिक कारण । च. अन्य कारक ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

भारतीय राष्ट्रीय जागरण का काल 19वीं शताब्दी का मध्य एवं पूर्वाद्ध माना जा सकता है । वस्तुत: इसका सूत्रपात 17-18 वीं शताब्दी में हुआ था । फ्रांस, यूरोप तथा रूस की क्रान्ति ने भारत में राष्ट्रीय जागरण की शुराआत की । अंग्रेजों के भारत में आगमन के बाद सम् 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम की महान् राष्ट्रीय घटना राजनैतिक जागरण का परिणाम थी ।

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सन् 1885 में रष्ट्रिख कांग्रेस की स्थापना ने राष्ट्रीय आन्दोलन का नेतृत्व कर राजनीतिक भारतीय जागरण को दिशा दी । राजा राममोहन राय, दयानन्द सरस्वती, रानाडे ने धार्मिक एवं सामाजिक पुनर्जागरण को दिशा दी । इस प्रकार राजनीतिक जागरण ही धार्मिक, सामाजिक जागरण की पृष्ठभूमि तैयार करने का आधार रहा है ।

2. राष्ट्रीय जागरण के कारण व प्रभाव:

भारत में राष्ट्रीय जागरण के जो विभिन्न कारण और प्रभाव हुए हैं, उनमें सर्वप्रमुख हैं:

क. धार्मिक कारण:  भारत में 19वीं शताब्दी में धर्म और समाज सुधार की लहर दौड़ पड़ी थी । ब्रह्मसमाज, आर्यसमाज, थियोसोफिकल सोसाइटी, रामकृष्ण मिशन आदि अनेक संस्थाओं ने धर्म के नाम पर चले आ रहे अनेक पाखण्डों, रूढ़ियों, अन्धविश्वासों, कुप्रथाओं और बुराइयों को दूर किया । इनमें सती प्रथा, बाल विवाह, बहुविवाह, पर्दाप्रथा, देवदासी प्रथा, मूर्तिपूजा जैसे धार्मिक आडम्बर शामिल थे ।

राजा राममोहन राय, केशवचन्द्र सेन, महादेव गोविन्द रानाडे, स्वामी दयानन्द सरस्वती, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द आदि समाजसुधारको ने इसमें सुधार लाने का सराहनीय कार्य किया । इसमें पाश्चात्य शिक्षा, संस्कृति एवं सभ्यता का प्रभाव भी सहायक था । इन सुधार आन्दोलनों ने भारतीयों में राष्ट्रीयता की भावना को जगाया ।

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ख. राजनैतिक कारण:  धार्मिक कारण की तरह राजनैतिक कारण भी राष्ट्रीय जागरण के उद्‌भव के प्रमुख कारक रहे । इसके अन्तर्गत प्रमुख रूप से राजनीतिक तथा प्रशासनिक समन्वयीकरण रहा है । लार्ड क्लाइव की साम्राज्यवादी नीति के तहत भारत के कोने-कोने का शासन ब्रिटिश के हाथों आ गया था, जिसके कारण भारत के विभिन्न क्षेत्र विभिन्न भाषा तथा धर्मावलम्बी अंग्रेज शासन के अधीन एकरूप प्रशासनिक व्यवस्था के अन्तर्गत बंध गये थे ।

इस प्रकार हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक सम्पूर्ण भारत एक राजनीतिक एकता के सूत्र में आ गया था । भविष्य में यही राजनीतिक आन्दोलन की नींव बनने में सहायक रहा । इसके साथ ही 1857 की क्रान्ति, लार्ड लिटन की अन्यायपूर्ण नीति, अफगानिस्तान पर आक्रमण, प्रेस अधिनियम, शस्त्र अधिनियम, कपास सीमा शुल्द की समाप्ति, इलबर्ट विधेयक ने भारतीयों में अंग्रेजों के प्रति घृणा और असन्तोष का भाव भर दिया था ।

महारानी विक्टोरिया को साम्राज्ञी घोषित करने के बाद जब लार्ड लिटन ने भव्य समारोह आयोजित कर देश के खजाने का भारी अपव्यय किया, तब दूसरी ओर गुलाम भारतीय जनता अकाल, महामारी से जूझ रही थी ।

ऐसे समय में ब्रिटिश साम्राज्य के इस रवैये से भारतीयों के मन में उनके प्रति नफरत की भावना भड़क उठी थी । अंग्रेजों ने लोकसेवा आयोग की परीक्षा में भारतीयों की आयुसीमा में कमी कर दी थी । यह नीति भी राजनैतिक आन्दोलन एवं राष्ट्रीय जागरण का प्रेरणास्त्रोत बनी ।

ग. आर्थिक कारण:  आर्थिक असन्तोष भी क्रान्ति का प्रमुख कारण रहा है । अंग्रेजों के आगमन से पूर्व भारतीयों की आर्थिक दशा सन्तोषजनक थी । किन्तु अंग्रेजों की आर्थिक नीति के कारण भारत के उद्योग-धन्धों का विनाश होने लगा था ।

भारतीय धन विदेश जाने लगा था । भारतीयों को यह विश्वास होने लग गया था कि उनकी भूखमरी, गरीबी, कंगाली का कारण अंग्रेज ही हैं; क्योंकि अंग्रेज भारत को लूटकर अपना खजाना भर रहे थे । अत: अंग्रेजी शासन से पीड़ित होकर उन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलनों में भाग लेना शुरू कर दिया था ।

गुरुमुख निहाल के शब्दों में त्रस तथ्य को अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि देश की बिगड़ती आर्थिक दशा ने तथा सरकार की राष्ट्रविरोधी आर्थिक नीतियों ने अंग्रेज विरोधी विचार तथा आन्दोलनों को जन्म दिया ।

ध. सामाजिक कारण:  सामाजिक कारणों ने भी राष्ट्रीय जागरण में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । 19वीं सदी के धर्मसुधार एवं समाजसुधार आन्दोलनों के फलस्वरूप विभिन्न धार्मिक कुप्रथाओं और सामाजिक बुराइयों को जब दूर किया, तो आधुनिक विचारों एवं प्रभावों के कारण भारतीयों में नवजागरण आया ।

ब्रिटिश शासकों ने जब भारतीयों के साथ जातीय भेदभाव की नीति अपनायी, तो भारतीयों की क्रोधाग्नि भड़क उठी थी । अंग्रेज भारतीयों को आधा वनमानुष, आधा नीग्रो, काला हबी, काला कुली, पत्थरों की पूजा करने वाले, बांस के घरों में रहने वाले पिस्सू कहा करते थे ।

इस जातीय विभेद के आधार पर अंग्रेजों ने कई भारतीयों की हत्याएं करवा डाली थीं, लेकिन उन हत्यारों पर किसी परी प्रकार का अभियोग नहीं चलाया गया । न्यायाधीश हमेशा अंग्रेजों के पक्ष में ही फैसला दिया करते थे ।

भारतीयों के प्रति इस जातीय विभेद की भावना ने विद्रोह की ज्वाला भड़का दी, जो राष्ट्रीय आन्दोलन का कारण बनी । भारतीयों ने जब शिक्षा प्राप्ति हेतु विदेश जाना शुरू किया, तो उनकी विचारधारा में पाश्चात्य शिक्षा पद्धति के प्रभाव के कारण बदलाव आया ।

ड. सांस्कृतिक एवं शैक्षिक कारण:  इन दोनों कारणों ने भी भारतीयों के हृदय में राष्ट्रीय जागरण की भावना को जगाने का कार्य किया । अंग्रेजी शैक्षिक संस्कृति व सभ्यता के प्रभाव में आने के कारण भारतीयों में राष्ट्रीय जागरण की भावना उत्पन्न की ।

इटली, जर्मन, फ्रोस, रूस आदि देशों के विद्वानों और लेखकों के विचारों के प्रभावों के कारण भारतीयों की गुलाम मानसिकता में परिवर्तन आया । भारत के विद्वानों में रामकृष्ण गोपाल भंडारकर, बंकिमचन्द, रवीन्द्रनाथ टैगोर की राष्ट्रवादी रचनाओं ने भारतीयों में राष्ट्रीय जागरण की लहर पैदा की । बंकिमचन्द का वंदेमातरम् राष्ट्रीयता का प्रतीक बन गया था ।

च. अन्य कारक:  राष्ट्रीय जागरण के अन्य कारकों में भारतीय प्रेस तथा साहित्य का विशेष प्रभाव रहा है । अमृत बाजार, इण्डियन मिरर, न्यू इण्डिया केसरी, आर्य दर्शन, यंग इण्डिया, नील दर्पण, भारत दुर्दशा, पंजाब केसरी तथा बंकिमचन्द आनन्दमठ ने तो राष्ट्रीय जागरण में प्राण ही फूंक दिये थे ।

आनन्दमठ तो क्रान्तिकारियों का बाइबल माना जाता था । इसके अलावा सरकारी नौकरियों में अंग्रेजों की पक्षपातपूर्ण व अन्यायपूर्ण नीति ने आग में घी का काम  किया । अंग्रेजों के शासनकाल में यदि उच्च पदों पर भारतीयों का चयन हो भी जाता था, तो उन्हें किसी-न-किसी बहाने अयोग्य घोषित कर दिया जाता था । भारतीय राष्ट्रवादियों ने इस नीति के विरोध में सारे देश को एक कर दिया था ।

इसमें इटली, जर्मनी, फ्रास, रूमानिया, अमेरिका, रूस का स्वतन्त्रता संग्राम तथा आवागमन व संवाद साधनों के विकास ने ब्रिटिश सत्ता विरोधी आन्दोलन को सक्रिय बना दिया था । भारतीयों के हृदय की आत्मग्लानि और क्षोभ की भावना ने राष्ट्रीय जागरण सम्बन्धी आन्दोलन को गति दी थी ।

3. उपसंहार:

विश्व के अन्य राष्ट्रीय आन्दोलनों की तरह भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को जन्म देने वाले सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनैतिक, शैक्षिक, सास्कृतिक तथा अन्य कारक भी रहे हैं ।  वास्तव में, इन आन्दोलनों की ज्वाला भड़काने में अंग्रेजों की अन्याय व पक्षपातपूर्ण नीति भी प्रमुख रही है जिसने भारतीयों में राष्ट्रीय जागरण व चेतना का संचार किया था । यह कहना गलत नहीं होगा कि भार-तीय, राष्ट्रीयता ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा पाला हुआ शिशु है । निष्कर्षत: यह सत्य है कि राष्ट्रीय जागरण किसी निश्चित कारण व तिथि का परिणाम नहीं था ।

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