मुगल काल के दौरान जीवन और संस्कृति | Life and Culture During Mughal Period in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. मुगलकालीन सामाजिक दशा ।

3. मुगलकालीन शासन व्यवस्था ।

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4. मुगलकालीन आर्थिक दशा ।

5. मुगलकालीन धार्मिक दशा ।

6. मुगलकालीन शिक्षा एवं साहित्य ।

7. मुगलकालीन कला एवं संस्कृति ।

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8. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

भारत के इतिहास में मुगल साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण स्थान है । यह युग मुख्य रूप से 1526-1707 तक का रहा है । इस युग में बाबर, हुमायूं अकबर, शाहजहां एवं औरंगजेब जैसे शासक हुए ।

इस युग में अनेक क्षेत्रों में बड़ा विकास हुआ । कुछ क्षेत्रों में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुआ ।

बाह्य देशों से सम्पर्क, आन्तरिक शान्ति की स्थापना, एक-सी केन्द्रीय शासन व्यवस्था, ललित कलाओं की उन्नति, ऐतिहासिक साहित्य की उन्नति, फारसी उर्दू साहित्य का विकास, युद्धकला तथा सांस्कृतिक जीवन का कलात्मक वैभव, मुगलकालीन सभ्यता एवं संस्कृति की बेमिसाल देन है ।

2. मुगलकालीन सामाजिक दशा:

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समाज के सर्वोच्च स्थान पर बादशाह तथा उनका परिवार होता था । बादशाह का जीवन बड़ा ही वैभव एवं ऐश्वर्य का होता था । बहुमूल्य वस्त्रों और आभूषणों से सुशोभित सम्राटों का जन्मदिवस, राज्याभिषेक, विवाहोत्सव आदि बड़े ही शानो-शौकत से मनाये जाते थे, जिसमें लाखों-करोड़ों रुपये व्यय किये जाते थे ।

बादशाह के हरम (रनिवास) में विधिवत बेगमों के अतिरिक्त रखैलें, अनेकानेक दासियां, सुन्दरियां होती थीं । अकबर के राजमहल में रित्रयां थीं । सेवक-सेविकाओं के सौन्दर्य, गुण, पद के हिसाब से वेतन व कार्य होते थे ।

घोर पर्दाप्रथा और नियन्त्रण के बाद भी राजमहल में भोग-विलास की सुविधाएं थीं । राजकोष पर इसका भारी बोझ पड़ता था । इसके अतिरिक्त शासन में सरदार, अमीर, जागीरदार होते थे, जो मदिरापान, वेश्यागमन एवं राग रंग में डूबे होते थे ।

उनमें संयम, शील और सच्चरित्रता का अभाव था । सामंत षड्‌यन्त्र व कुचक्रों में फंसे रहते थे । भवन निर्माणकला में उनकी विशेष अभिरुचि थी । सामंतों के बाद ऐश्वर्यशाली व्यापारी वर्ग था । सामान्य व्यापारी व छोटे दुकानदारों का दैनिक जीवन सीधा-सरल था ।

समाज के अधिकांश लोग निम्न वर्ग के थे, जो कृषक, मजदूर व कारीगर थे । झोपडियों में रहने वाले इस निम्न वर्ग की स्थिति अवर्षा और लगान की वजह से काफी बुरी थी । सरकारी कर्मचारी अवसर पाकर इनका शोषण किया करते थे ।

इस काल की शासन व्यवस्था में मनसबदार, उच्च अधिकारी तथा राजपूत राजा भी थे । सैनिक व असैनिक होते थे । इनका खानपान, रहन-सहन, परम्पराएं विलासिता से भरी हुई थीं । वे बेईमान, घूसखोर और भ्रष्टाचारी भी होते थे । उच्च जातियों तथा मुगल शासकों के कट्टरपन के कारण हिन्दू समाज भयग्रस्त होकर मुस्लिम धर्म ग्रहण करने को मजबूर था । हिन्दू समाज में जातिप्रथा, वर्णाश्रम व्यवरथा विकृत रूप में थी ।

मुगल दरबारों में अमीर बड़ी ही शान से जाते थे । वे जरी के बहुमूल्य वस्त्र, रेशम और मलमल के भड़कीले व चमकीले वस्त्र पहनते थे । बादशाह विभिन्न प्रकार के बहुमूल्य वस्त्र एव आभूषण धारण करते थे ।

जहांगीर और हुमायूं ने नये-नये फैशनों को इजाद किया । साफे और पगड़ी का प्रयोग प्रचलित था । हिन्दू पुरुष, धोती-कुर्ता तथा स्त्रियां घाघरा, साड़ी, अंगिया पहनती थीं ।

मुस्लिम पुरुष, अचकन तथा चूड़ीदार पाजामा पहनते थे । सोने-चांदी के आभूराणों के साथ सुरमा, महावर, मेहंदी, उबटन, सुगन्धित तेल, स्वास्थ्य और सौन्दर्य की दृष्टि से प्रचलन में थे । मुगलकाल में मनोरंजन के अनेक प्रकार के साधन उपलब्ध थे ।

खेल, उत्सव, त्योहार, मेलों का आयोजन होता था । शिकार, शतरंज, चौपड़ तथा चौसर के खेल अमीरों और गरीबों द्वारा खेले जाते थे । ताश, कुश्ती, हाथियों की लड़ाई, चौगान (पोलो) घुड़सवारी, कबूतरबाजी, रथों की दौड़, बकरों और चीतों का खेल, जादूगरी के खेल आदि प्रसिद्ध थे ।

सामंत तथा सम्पन्न व्यक्ति जुआ सुरापान तथा अफीम का सेवन करते थे । कहा जाता है कि: बाबर का आमोद-प्रमोद, हुमायूं का अफीम की पीनक में धुत रहना, मदिरा से प्रभावित अकबर का झक्कीपन, जहांगीर का मदिराप्रेम उनके पतन के प्रमुख कारण थे ।

हिन्दुओं के पवों में दशहरा, दीपावली, होली, रामनवमी, शिवरात्रि, जन्माष्टमी तथा मुस्लिम त्योहारों में शबे ब रात, ईद, मिलाद, ईद उल फितर, ईद उल जुहा, मुहर्रम मनाये जाते थे । जन्मदिवस पर दावतों, नृत्य, संगीत, मेले, मीना बाजार का आयोजन होता था । समाज में स्त्रियों की दशा इतनी अधिक खराब थी कि उनके व्यक्तिगत सम्मान और प्रतिष्ठा का ह्रास हो गया था । वे भोग-विलास की सामग्री मात्र समझी जाती थीं ।

अमीर वर्ग की तुलना में सामान्य वर्ग की स्थिति काफी खराब थी । समाज में पर्दा प्रथा, बाल विवाह, बहुविवाह, सती प्रथा जैसी कुरीतियां प्रचलित थीं । स्त्रियों में राजपूतों को उच्च स्थान प्राप्त था । इस युग: की प्रसिद्ध महिलाओं में गुलबदन बेगम. नूरजहां, जेबुन्निसा, दुर्गावती, चांदबीबी, रजिया, रोशनआरा, जीजाबाई, ताराबाई जैसी विदुषी महिलाएं थीं । समाज में दास प्रथा का प्रचलन था । हिन्दू व्यभिचार से दूर ही रहते थे ।

3. मुगलकालीन शासन व्यवस्था:

मुगल साम्राज्य की नींव डालने वाला प्रथम शासक बाबर था । उसने अपने अल्पकालीन शासन में कोई महत्त्वपूर्ण, उल्लेखनीय परिवर्तन तो नहीं किये; क्योंकि वह संकटकालीन परिस्थितिवश श्रेष्ठ शासन स्थापित करने में असमर्थ रहा । उसकी शासन व्यवस्था को हुमायूं के बाद शेरशाह ने संभाला ।

अपने प्रशासकीय सुधारों और प्रगतिशील रचनात्मक कार्यो के कारण उसकी शासन व्यवस्था की अनुपम मिसालें मिलती हैं । उसके बाद अकबर, जहांगीर, शाहजहां और औरंगजेब की शासन प्रणाली चलती रही । मुगलकालीन शासन प्रणाली की विशेषताओं में प्रमुख हैं:

1. मुगल शासन व्यवस्था सैनिक स्वतन्त्रवादी, स्वेच्छाचारी व्यवस्था थी । इस राजतन्त्रात्मक शासन व्यवस्था में सम्राट सर्वप्रमुख होता था । उसकी इच्छा, अनिच्छा तथा विवेक पर शासन प्रणाली का दारोमदार होता था । वैधानिक रूप से उसे असीमित शक्तियां प्राप्त थीं । अकबर, जहांगीर, शाहजहां जहां लोकप्रिय शासक थे, वहीं औरंगजेब स्वेच्छाचारी तथा अलोकप्रिय शासक था ।

2. मुगल सम्राट को ईश्वरीय अंश माना जाता था ।

3. मुगल शासन का मूलस्वरूप सैनिक था । जहां मनसबदारी प्रथा प्रचलित थी । राज्य के उच्च अधिकारी, कर्मचारी, विभिन्न विभागों के वजीर, दरबारी, अमीर, न्यायाधीश, राजस्व अधिकारी मनसबदार होते थे, जिसके अनुसार उनके वेतन, अधिकार एवं पदवी निश्चित होती थी ।

4. मुगल शासन पद्धति अरबी, ईरानी का भारतीय रूपान्तरण थी ।

5. सूबेदारों, मनसबदारों, अधिकारियों को दिये जाने वाले शाही आदेश, सूचनाएं, फरमान लिखित होते थे । शासन के कार्य मौखिक नहीं होते थे ।

6. इस्लामी सिद्धान्तों के अनुसार शासन प्रणाली चलती थी । बादशाह स्वयं को खलीफा समझता था । अपने सिक्कों. मुहरों पर प्रथम चार खलीफाओं का नाम इसीलिए अंकित किया जाता था, ताकि वे अपने को वैधानिक रूप से मुसलमान प्रमाणित कर सकें ।

7. इस काल में हिन्दू काल से प्रचलित राजस्व प्रणाली व भूमिकर प्रणाली थी ।

8. मुगलकाल में जनकल्याणकारी कार्यो की उपेक्षा इसीलिए हो जाया करती थी; क्योंकि शासन के उच्चवर्गीय लोग अपनी सुविधाओं के लिए जनता का शोषण करते थे । सार्वजनिक शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा, व्यापार-व्यवसाय को राजकीय कर्तव्य नहीं माना जाता था । शेरशाह और अकबर ने सड़क व्यवस्था पर काफी ध्यान दिया ।

9. मुगलकाल में कोई संहिताबद्ध कानून नहीं था । इस्लाम कानून तथा बादशाह की इच्छा पर न्याय-व्यवस्था टिकी हुई थी ।

10. एक समान शासन प्रणाली प्रचलित थी । सरकारी कामकाज की भाषा फारसी थी ।

11. अकबर की शासन नीति अधिक उदार और रचनात्मक थी । शान्ति, सहयोग, सहिष्णुता, समानता का भाव, सभी मतों, वर्गो और जातियों के बीच था । उसने सर्वधर्म समभाव पर आधारित दीन ए इलाही’ हिन्दू-मुस्लिम समन्वयवादी धर्म की स्थापना की ।

12. इस काल में केन्द्रीय तथा प्रान्तीय दो रूपों में शासन प्रणाली चलती थी । केन्द्रीय शासन में साम्राज्य की राजधानी और केन्द्र आगरा, दिल्ली में था । इसमें मुगल सम्राट, मन्त्री, विभिन्न विभाग, उसके अध्यक्ष, अधिकारी, सेना न्यायाधिकारी थे । प्रान्तीय शासन में प्रान्त के सूबेदार और अधीनस्थ अधिकारी थे ।

13. सम्राट के विशेषाधिकार में प्रमुख थे-राजसिंहासन पर बैठना, झरोखा दर्शन, तसलीम ए चौकी, मृत्युदण्ड और अंग भंग, हस्ति युद्ध, उपाधि वितरण, मुद्रा व मुहर के चिह बनाने, तुलादान,  दीवाने आम व खास की बैठकों तथा रात्रि सभा में शामिल होना ।

14. प्रशासन संचालन में परामर्श, सहायता व सहयोग देने के लिए विभिन्न समस्याओं पर अनुभवी प्रशासकों की मन्त्रणा हेतु सम्राट के अधीनस्थ कुछ मन्त्री होते थे, जिनमें वकील, वजीरे आजम, दीवाने आला, वाकियानवीस, मीर बक्शी या अफसर ए खजाना, खान ए सामां, सदरे जहां (धर्मनिष्ठ) व्यक्ति, काजी उल कुजात (सर्वोच्च न्यायालय), दारोगा ए तोपखाना, दारोगा ए टकसाल, दारोगा ए किताबखाना, मीर मुंशी प्रमुख

थे ।

15. प्रान्तीय शासन का सारा दारोमदार सूबेदार पर होता था । प्रान्तीय कोष का अधिकारी, कोतवाल, फौजदार, शिकदार, काजी, फौतदार, कानूनगो, राजस्व अधिकारी के हाथ में होता था । ग्राम सम्बन्धी विकास के लिए ग्राम पंचायतें थीं ।

16. इस्लामी कानून या शराशाही कानून परम्परावादी कानून थे । तीन प्रकार के अपराधों-ईश्वरीय अपराध/राजद्रोह/व्यक्तिगत अपराध हेतु पत्थरों से मारना, कोड़े, चाबुक से मारना, अंग भंग एवं मृत्युदण्ड जैसे दण्डों का विधान था ।

4. आर्थिक दशा:

मुगलकालीन आर्थिक दशा काफी समृद्ध थी । अकबर के समय साम्राज्य की वार्षिक (13 सही एक बटे चार), शाहजहां के समय 22½ करोड़, औरंगजेब के समय 38½ करोड़ थी । मुगल साम्राज्य की आय के साधन जकात कर, जजिया, निजी व्यापार से आय, लावारिस सम्पत्ति की जली, खनिज पदार्थो पर कर, खम्स, नमक तथा नील पर कर, चुंगी  भेंट और उपहार मुद्रा निर्माण, राजाओं से प्राप्त कर, जज्ञी कर थे । उस समय का सबसे बड़ा पेशा कृषि था । ढाके की मलमल, सूती वस्त्र उद्योग, कपड़ों की छपाई शॉल, हाथी दांत, लकड़ी का काम, विदेशी व्यापार था ।

5. धार्मिक दशा:

रामानन्द, रामानुज, कबीर, चैतन्य जैसे हिन्दू सन्तों के प्रादुर्भाव से इस्लाम धर्म की कट्टरता कम हुई । सम्राट अपनी राजनीतिक आवश्यकताओं और समय की मांग के कारण सहिष्णु और उदार होते चले गये । अकबर ने दीन ए इलाही, नवीन धर्म का प्रतिपादन किया ।

हिन्दू धर्म शैव और वैष्णव दो सम्प्रदायों में बंटा था । जैन धर्म, बौद्ध धर्म प्रचलित थे । औरंगजेब जैसे शासकों ने हिन्दू तथा अन्य धर्मो के मन्दिर तथा मूर्तियां निर्दयतापूर्वक नष्ट कर डाली थीं । इसी बीच सिक्ख धर्म का उदय हुआ, जिसमें गुरा रामदास, अगद, अमरदास, तेगबहादुर, गुरु गोविन्द सिंह भी हुए । गुरु अर्जुन देव ने अमृतसर सरोवर में हरमन्दर साहब की स्थापना की ।

जहांगीर ने गुरा अर्जुनदेव को 10 मई, 1606 में मरवा डाला । उनके बलिदान से सिक्सों में नयी चेतना का संचार हुआ । गुरा गोविन्द सिंह ने 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की । जब उन्होंने औरंगजेब की हिन्दू विरोधी नीतिगत कार्यो की आलोचना की, तो उनकी हत्या कर दी गयी । इस्लाम धर्म के बहुसंख्यक अनुयायी वे थे, जो पहले हिन्दू थे, जो किसी-न-किसी कारणवश मुसलमान हो गये थे ।

महदबी आन्दोलन, शिया सुन्नी वर्ग, दीन ए इलाही, सूफी वर्ग तथा चिश्ती, नक्शबन्दिया, कादरिया सम्प्रदाय प्रमुख थे । सिर्फ अकबर को छोड्‌कर सभी शासक धार्मिक कट्टरतावादी नीति के समर्थक थे । उन्होंने हिन्दू मन्दिरों, मूर्तियों को बड़ी ही बेरहमी से नष्ट कर डाला । शियाओं पर भी इन्होंने अत्याचार किये ।

6. मुगलकालीन शिक्षा व साहित्य:

मुगल शासन काल में यद्यपि शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई, तथापि मुगलकालीन शिक्षा नीति में जनता को शिक्षित बनाना राजा का कर्तव्य नहीं माना गया । राज्य प्रशासन में शिक्षा का कोई विशेष प्रभाव नहीं था ।

शिक्षा मुल्लाओं, मौलविओं, पुरोहितों और आकाओं द्वारा दी जाती थी । प्राथमिक शालाओं की शिक्षा मकतबों में दी जाती थी । मकतब प्राय: मस्जिदों में ही होते थे । ढाई वर्ष की आयु में यहां मौखिक शिक्षा दी जाती थी ।

उच्च शिक्षा के लिए मदरसे थे, जहां हिन्दू और मुसलमान दोनों ही पढ़ते थे, जो धनवानों के अनुदान पर चलते थे । यहां गणित, खगोल, ज्योतिष, सामुद्रिक, तर्क, धर्मशास्त्र, इतिहास, प्राणीशास्त्र, रसायन आदि विषय पढाये जाते थे ।

इस्लामी धर्मशास्त्र कुरान की टीकाओं के साथ-साथ हिन्दू वर्ग संस्कृत, व्याकरण, साहित्य, न्याय, ज्योतिष आदि का अध्ययन करता था । अरबी भाषा में मदरसों में शिक्षा दी जाती थी । अकबर के पुस्तकालय में 24,000 ग्रन्थ थे । अनुदान तथा शिष्य वृत्ति दी जाती थी । बाबर स्वयं एक विद्वान् लेखक था । हुमायूं तथा अकबर विद्या प्रेमी थे । जहांगीर भी एक अच्छा विद्वान् व लेखक था ।

शाहजहां ने शिक्षा के क्षेत्र में काफी कार्य किये । औरंगजेब ने शिक्षा के लिए कोई कार्य नहीं किया वरन् हिन्दुओं की पाठशालाएं ही बन्द करवा दी थीं । मुगलकाल में बाबर से लेकर शाहजहां तक सभी मुगल सम्राट साहित्यानुरागी थे । उन्होंने फारसी भाषा को राजभाषा बनाया । बाबर ने अपनी आत्मकथा तुजुक ए बाबरी लिखी, जो तुर्की भाषा में है, जिसका अनुवाद फारसी में अछल रहीम खानखाना ने किया ।

इस युग की दूसरी आत्मकथा तुजुक ए जहांगीरी बादशाह जहांगीर ने लिखी । तीसरी आत्मकथा अबुल फजल ने आइने अकबरी लिखी । ये तीनों आत्मकथाएं शैली की नवीनता, सुन्दरता एवं नवीनता के लिए जानी जाती हैं । हुमायूं को पुस्तकों का इतना शौक था कि उसने अपने महल में एक विशाल पुस्तकालय ही बनवा रखा था ।

उसके काल में कई अन्यों की रचना हुई, जिनमें खोंदमीर का हुमायूनामा, गुलबदन का हुमायूनामा, जौहर का तजकिशतुल वाकियात, शेख बयाजित का तारीखें हुमायूं प्रमुख हैं । इस काल में जिन अन्यों का अनुवाद फारसी में हुआ, उनमें महाभारत, रामायण, अथर्ववेद, लीलावती, राजतरंगिनी, नल दमयन्ती, कालिया दमन, बाइबिल, कुरान प्रमुख हैं । अनुवाद विभाग का अध्यक्ष अबुल फजल था । ऐतिहासिक अनुवादित यन्थ एवं काव्य अन्यों के साथ-साथ पादशाहनामा, शाहजहांनामा प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं ।

हिन्दी साहित्य में तुलसीदास ने रामचरितमानस, विनय पत्रिका, गीतावली, कवितावली, जायसी ने पदमावत, केशवदास ने रामचन्द्रिका, कविप्रिया, रसिकप्रिया; भूषण ने छत्रसाल दशक, शिवाबावनी, शिवराजभूषण; बिहारी ने बिहारी सलई, मीराबाई ने नरसीजी का म्हारा एवं पदावलियां लिखीं । इसी तरह बंगला, गुजराती, मराठी, संस्कृत, पंजाबी, उर्दू में अनुदित व श्रेष्ठ रचनाएं लिखी गयीं ।

7. मुगलकालीन कला एवं संस्कृति:

मुगल सम्राट कला व संस्कृति के प्रेमी थे । उनकी कलाकृतियों में विभिन्न महल, भवन निर्माण कला, चित्रकला आदि का चरम उत्कर्ष मिलता है । इस काल की स्थापत्यकला में विशालता, भव्यता, कोमलता का लालित्य है ।

सुन्दर मेहराबें, फूल-पत्ते, बेल-बूटों की महीन कारीगरी मिलती है, जिसमें बाबर एवं हुमायूं निर्मित मस्जिद व मकबरा, शेरशाह का सासाराम का मकबरा, फतेहपुर सीकरी, ताजमहल, जामा मरिजद, मोती मरिजद, लाल किला, कुतुबमीनार स्थापत्य कला के श्रेष्ठ नमूने हैं ।

इस काल की बेजोड़ चित्रकला में ईरान के साथ-साथ हिन्दू-मुस्लिम की एक नवीन शैली विकसित हुई । अकबर बाबर, जहांगीर तथा शाहजहां के शासनकाल में चित्रकला को स्वर्णिम ऊंचाइयां मिलीं । जहांगीर स्वयं एक श्रेष्ठ चित्रकार था ।

शाहजहां के शासनकाल में भी नये-नये मॉडल तथा रंगों के चित्र अपनी दिव्यता, सूक्ष्मता एवं सजीवता की कहानी कहते हैं । इन चित्रों में भौतिकतावादी दरबारी जीवन, जुलूस, उत्सव, शिकार व प्रकृति वर्णन मिलता

है । संगीतकला की दृष्टि से मुगलकाल काफी उपलब्धियों का काल रहा है । बाबर एवं हुमायूं को संगीत से विशेष प्रेम था ।

अकबर के दरबार में 36 गीतकार व संगीतकार थे, जिसमें बैजू बावरा, तानसेन प्रमुख थे । अकबर काल संगीत का स्वर्णयुग था । शाहजहां अच्छा गायक था । औरंगजेब को संगीत की अर्थी निकालने में आनन्द का अनुभव होता था । इस काल में भरतनाटधम, कथक, मणिपुरी व लोकनृत्य होते थे । वाद्ययन्त्रों में सितार, वीणा, तबूरा, सारंगी, पखावज, तबला, नक्कारा, ढोलक, बांसुरी प्रमुख थे ।

उपसंहार:

इस तरह हम पाते हैं कि मुगलकाल शिक्षा, साहित्य, कला एवं संस्कृति की दृष्टि से सभ्यता का उत्कर्ष काल था, वहीं अपने नैतिक, सैनिक, विदेशी, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक कारणों के कारण उसका पतन भी काफी तेजी से हुआ ।

तथापि यह कहना गलत न होगा कि मुगलकालीन संस्कृति ने भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को काफी हद तक प्रभावित किया, जो उस युग की महान देन है । स्थापत्य तथा ललित कला में मुगलकालीन संस्कृति का विकास एवं उत्कर्ष अपने विशिष्ट योगदान के कारण स्मरणीय रहेगा ।

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