तनाव पर निबंध: अर्थ और प्रकार | Essay on Stress: Meaning and Types in Hindi!

तनाव पर निबंध | Essay on Stress


Essay Contents:

  1. तनाव  का अर्थ (Meaning of Stress)
  2. तनाव के प्रकार (Types of Stress)
  3. शरीर प्रदूषण के रूप में तनाव (Stress as Body Pollution)
  4. तनाव की प्रतिक्रिया (Formation of Stress)
  5. शरीर पर तनाव का प्रभाव (Effects of Stress on the Body)

Essay # 1. तनाव का अर्थ (Meaning of Stress):

तनाव मूल रूप से ‘विघर्षण’ है । हमारा शरीर लगातार बदलते वातावरण के साथ समायोजन करते हुए इसका अनुभव करता है । हम पर इसके शारीरिक तथा मानसिक प्रभाव होते हैं, जो सकारात्मक या नकारात्मक दोनों ही तरह के हो सकते हैं ।

सकारात्मक दृष्टिकोण से, तनाव हमें मुश्किल हालात से जूझने की प्रेरणा और ताकत देता है । नकारात्मक प्रभाव देखें तो, यह हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का विनाश भी करता है ।

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कार्य की समय-सीमा, परिवार की जिम्मेदारी, दर्द, ट्रैफिक जाम, आर्थिक दबाव, साथ ही साथ कार्य-क्षेत्र में पदोन्नति, नया घर और शादियाँ तनाव के ऐसे कई कारण हैं, जो हमें प्रतिदिन प्रभावित कर रहे हैं । यहाँ तक कि हमारे जीवन में होने वाला बहुत सुखद परिवर्तन भी कई बार थकाने वाला हो सकता है ।

परिवर्तन अपने-आप में ही तनावपूर्ण है । साथ ही कोई परिवर्तन न होना भी तनावपूर्ण है । इससे बचा नहीं जा सकता । तो हमें यह सीखने की जरूरत है कि इससे सामजस्य कैसे बिठाया जाए ।


Essay # 2.

तनाव के प्रकार (Types of Stress):

1. जीवन से जुड़े तनाव (Stress Related to Life):

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i. जब जीवन या स्वास्थ्य संकट में हो या जब मानव पर दबाव डाला जा रहा हो या फिर किसी अप्रिय या चुनौतीपूर्ण काम का अनुभव हुआ हो ।

ii. शरीर एड्रिनेलिन स्रावित करता है और ‘लडो या भाग जाओ’ वाली प्रतिक्रिया महसूस करते हैं ।

2. भीतरी रूप से उत्पन्न तनाव (Inner Tension):

i. ऐसी परिस्थितियों या घटनाओं के बारे में चिंतित होकर दुखी रहना, जो नियंत्रण से बाहर हैं । जीवन के प्रति तनाव या व्याकुलता भरा नजरिया या रिश्तों में समस्याएँ होना ।

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ii. यह ‘तनाव का आदी’ होने या अत्यधिक खुशी का परिणाम भी हो सकता है या तनावपूर्ण रहने से वास्तव में खुश और प्रेरित होना ।

3. पर्यावरणीय और कार्यक्षेत्र के तनाव (Environmental and Workplace Stress):

i. घर या कार्यक्षेत्र का तनावपूर्ण पर्यावरण |

ii. शोर, भीड, प्रदूषण, अव्यवस्था, द्वंद्व या किसी अन्य विचलन से हो सकता है ।

iii. काम की समय सीमा, प्रस्तुति, कार्य क्षेत्र में सुरक्षा, ये सभी आपकी नौकरी से जुडे तनाव हैं ।

4. थकान और अत्यधिक काम (Fatigue and Excessive Work):

यह तनाव एक लंबे समय से निर्मित हो रहा होता है- यह तब होता है, जब या तो कम समय में बहुत कुछ हासिल करना चाहते हों या समय प्रबंधन के प्रभावी तरीकों का उपयोग न कर रहे हों ।


Essay # 3.

शरीर प्रदूषण के रूप में तनाव (Stress as Body Pollution):

आदि मानव के दौर में लौटे, तो उस समय तनाव किसी खास मौके पर ही पैदा होता था । जब बात जीवन-मरण की होती थी या शरीर को चुनौती मिलती थी, और वे अपनी प्रतिक्रिया शारीरिक रूप से ही देते थे और फिर आराम करने और स्वस्थ होने का समय भी मिलता था ।

जबकि आज तनाव प्रतिदिन के जीवन का हिस्सा बन गया है और हमें बहुत लंबे समय तक ‘चौकन्ना’ रहना पड़ता है । इतना कि हम इस परिस्थिति को ही सामान्य मानने लगे हैं । तनाव हमारा स्थाई साथी बन गया है ।

परिवार के किसी सदस्य की लंबी बीमारी या नौकरी छूट जाने जैसी वजहों के चलते हम चिंता से घिरे रहते हैं । ऐसे में तनाव के हार्मोन लंबी अवधि तक बहुत अधिक मात्रा में स्रावित होते हैं और इस स्थिति से समायोजन करने के लिए वे शरीर के स्रोतों को ही खत्म करना शुरू कर देते हैं । ऐसे में तनाव शरीर प्रदूषण का एक रूप बन जाता है ।

शेरॉन की अपने बीस से नहीं पटती । हर रोज काम पर जाना एक मुश्किल परीक्षा है । दफ्तर की इमारत में वातायन की स्थिति खराब है, इसलिए वह बासी हवा में साँस लेती है । उसके पास दोपहर को भोजन करने का समय नहीं होता, वह अपने सहकर्मियों से बर्गर व फ्रेन्य फाइल लाने के लिए कह देती है, जिन्हें वह अपनी मेज पर बैठे-बैठे काम करते हुए खा सके ।

वह अपने घर फोन लगाती है, क्योंकि उसके छह वर्ष के बेटे की शिक्षिका उससे बच्चे के व्यवहार पर चर्चा करना चाहती है । अभी दोपहर का 1.15 ही बजा है और शेरॉन बुरी तरह थका हुआ महसुस कर रही है ।

निराशाजनक लग रहा है? क्या मन कर रहा है कि गुफा मानव के समय में पहुँच जाएँ? यह परिदृश्य इतना असामान्य भी नहीं है । शेरॉन को अभी-अभी कई स्रोतों से शरीर प्रदूषण की भारी खुराक मिली है कार्यक्षेत्र में उसकी मानसिक अवस्था, जिस हवा में वह साँस ले रही है, जो तला हुआ भोजन वह खा रही है, उसमें उपस्थित विषाक्त पदार्थ और प्रतिरक्षकों (यहाँ अतिरिक्त कैलोरी की तो बात ही नहीं हुई है) और घर में अजीब, असमजस भरी स्थिति ! यदि वह सोचे कि इन सबका उसके स्वास्थ्य पर कोई बुरा असर नहीं होगा, तो वह खुद से छलावा कर रही है ।

जब व्यक्ति हर रोज ही ऐसी (बल्कि इससे भी बदतर) परिस्थिति में रह रहा हो, तो मानव शरीर की अनुकूलन क्षमता पर केवल आश्चर्य ही जता सकते हैं । जीवन में तनाव को अधिकाधिक रूप से कम करके अपनी ऊर्जा बचाकर उसे अन्य सकारात्मक कामों पर खर्च कर सकते हैं ।

तनाव दूसरे विषाक्त पदार्थों के समान ही शरीर प्रदूषण का एक रूप है । इससे पूरी तरह बचा नहीं जा सकता, लेकिन आपको इसके नकारात्मक प्रभावों और उनसे निपटने के तरीकों के बारे में सजग रहना चाहिए ।

मानसिक तनाव या साधारणतः नकारात्मक विचार समय-समय पर आते हैं । ये भी शरीर प्रदूषण का ही प्रकार है – इसे हम मस्तिष्क का प्रदूषण कह सकते हैं । इसके अलावा मीडिया द्वारा ताजा त्रासदियों को हर रोज जिस तरह प्रस्तुत किया जाता है, वह इसमें ईंधन का काम करता है और यदि सतर्क न रहे, तो मस्तिष्क का प्रदूषण जीवन का अंग बन जाएगा ।

तब जीवन अपने आप में ही तनावपूर्ण हो जाएगा । तनाव बुरी आदतों की तरफ ले जाता है, जैसे खान-पान संबंधी दोष (बहुत अधिक या बहुत कम खाना) और नींद में अनियमितता हो जाना । दोनों ही परिस्थितियाँ अगर लंबे समय तक रहें, तो आपको शारीरिक रूप से अस्वस्थ बना देती हैं ।


Essay # 4.

तनाव की प्रतिक्रिया (Formation of Stress):

तनाव चाहे किसी भी स्रोत से आ रहा हो, यह अपने आप ही ‘लडो या भागो’ की प्रतिक्रिया पैदा करता है, जो शारीरिक प्रक्रियाओं और अंगों को प्रभावित करता है । एड्रिनेलिन तेजी से बढता है, रक्तचाप बढ़ जाता है और माँसपेशियों में तनाव महसूस होता है ।

जल्द से जल्द बहुत-सी ऊर्जा पैदा करने के प्रयास में शरीर में प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट्‌स का चयापचय बढ़ जाता है और बहुत-से पोषक तत्व, जैसे पोटेशियम, मेग्नीशियम, कैल्शियम और अमीनो अम्ल अधिक मात्रा में उत्सर्जित होने लगते हैं । पाचन धीमा हो जाता है, जिसके कारण शरीर में संग्रहित वसा और शर्करा का उपयोग करना पडता है । कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ने लगती है और पोषक तत्वों के अवशोषण में कर्मी आ जाती है ।

कभी-कभी तनाव को कम करने के लिए एड्रिनेलिन की जरूरत पडती है लेकिन सिर्फ तनाव-मुक्ता हो जाने से ही शरीर को स्वस्थ नहीं माना जा सकता । लगातार तनाव में रहने से शरीर के कुछ कार्य बद हो जाते हैं या उनकी क्षमता घट जाती है ।

यहाँ तनाव की प्रतिक्रिया को संक्षेप में बताया गया है:

i. शरीर या मन अपनी किसी ज्ञानेन्द्रिय के माध्यम से खतरे को महसूस करता है ।

ii. संबंधित ज्ञानेन्द्रिय मस्तिष्क को संदेश भेजती है ।

iii. तनाव का हार्मोन एड्रिनेलिन स्रावित होता है ।

iv. धडकन बढ जाती है, साँस तेज चलने लगती है और रक्तचाप बढ़ जाता है ।

v. यकृत से रक्त शर्करा के बाहर आने की मात्रा बढ जाती है ।

vi. अमाशय-आंत प्रणाली से रक्त प्रवाह पलटकर मस्तिष्क और बड़ी माँसपेशियों की ओर होने लगता है ।

vii. बाहर को तरफ की रक्त वाहिकाएँ सिकुड जाती है, ताकि कटने या घाव हो जाने की स्थिति में थक्का जल्दी बने ।

viii. आँखों की पुतलियाँ फैल जाती हैं, ताकि स्पष्ट और एकाग्रता के साथ देख सकें ।

ix. खतरा या गुस्सा गुजर जाने के बाद, शरीर फिर से शिथिल हो जाता है ।


Essay # 5.

शरीर पर तनाव का प्रभाव (Effects of Stress on the Body):

तनाव अगर लंबे समय तक रहे और तीव्र हो, तो गंभीर बीमारियाँ होने का खतरा बढ जाता है और मौजूदा स्वास्थ्य समस्याओं को बदतर बना देता है । तनाव अकेला शायद ही किसी रोग का कारण बनता है, लेकिन चिकित्सक कहते है कि रोग के विरुद्ध शरीर के शुरुआती संघर्ष में और बाद में शरीर उस रोग से किस तरह निपटता है, इसमें तनाव की महत्वपूर्ण भूमिका होती है ।

लंबे समय तक चलने वाला तनाव, सबसे पहले हृदय वाहिका-तंत्र, प्रतिरोधक प्रणाली, आमाशय-आंत प्रणाली पर बुरा असर डालता है । और फिर हृदय रोगों के बढे हुए खतरों या उसमें गिरावट, माइग्रेन, दमा और कई अन्य रोगों का कारण बनता है ।


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