बैंकों के निजीकरण पर निबंध: अर्थ, प्रक्रिया, योग्यता और डेमिटिट्स | Essay on Privatization of Banks: Meaning, Process, Merits and Demerits in Hindi.

Essay # 1. निजीकरण का अर्थ (Meaning of Privatisation of Banks):

आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया के अंतर्गत वर्ष 1992 से भारत सरकार द्वारा बैंकिंग क्षेत्र द्वारा बैंकिंग क्षेत्र में निजी बैंकों के प्रवेश की अनुमति दे दी गई है । अब एक निश्चित प्रक्रिया का पालन करने के पश्चात् निजी बैंक भारत में अपना कारोबार कर सकते हैं ।

ये बैंक कम्पनी अधिनियम 1956 (वर्तमान में कम्पनी अधिनियम 2013) के अंतर्गत पंजीकृत होते हैं तथा इन पर बैंकिंग नियमन अधिनियम तथा रिजर्व बैंक अधिनियम लागू होता है । इन बैंकों की पूँजी 200 करोड़ रुपये होती है तथा इनके अंश प्रतिभूति बाजार में लिस्टेड होते हैं ।

एक अंशधति के केवल 1 प्रतिशत का मताधिकार प्राप्त होता है । इन बैंकों पर 10% पूँजी पर्याप्तता मानक लागू होता है ।

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विशेषज्ञों का मत है कि बैंकिंग क्षेत्र में निजी बैंकों के प्रवेश से प्रतिस्पर्धा में बढावा मिलेगा तथा ग्राहकों को बेहतर सुविधाएँ प्राप्त हो सकेंगी । कुछ विशेषज्ञों का मत यह भी है कि विद्यमान सरकारी बैंकों को भी तुरन्त निजी क्षेत्र में डाल दिया जाये । यह विकल्प अभी सरकार के पास विचारणीय है ।

Essay # 2. निजीकरण प्रक्रिया (Process of Privatisation):

1980 के दशक से पूरे विश्व में बडी मात्रा में निजीकरण की प्रक्रिया चल रही है । ब्रिटेन में मार्ग्रेट थैचर के निजीकरण के प्रयासों के बाद पूरे यूरोप, लैटिन अमेरिका, अफ्रीका तथा एशिया में यह प्रक्रिया तेज हो गयी । सोवियत संघ के पतन ने निजीकरण को और तेजी से प्रोत्साहित किया ।

पूर्व में सभी समाजवादी देशों तथा बंगलादेश ने भी अपने यहाँ निजीकरण को अपनाकर अपनी अर्थव्यवस्था में प्रशसनीय सुधार किया है । इन पड़ोसी देशों के विकास से प्रेरित होकर तथा सार्वजनिक क्षेत्र से हतोत्साहित होकर भारत में भी इस प्रक्रिया की शुरूआत हो गयी है । निजीकरण जहां प्रतियोगिता में वृद्धि द्वारा बाजार के संवर्धन में सहायक होता है वहाँ इससे अनेक समस्याएँ भी सम्भावित है । यहाँ पर इसी संदर्भ में हम निजीकरण का अध्ययन करेंगे ।

निजीकरण से आशय अर्थव्यवस्था के किसी क्षेत्र में सरकारी सम्बद्धता में किसी भी रूप में वापस लेने से होता है । जब सरकार सार्वजनिक परिसम्पत्ति का विक्रय करती है तो उसे भी निजीकरण कहा जाता है । सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का अविनियोग, रुग्ण सार्वजनिक इकाइयों का बंद कर देना या उनका विक्रय कर देना आदि निजीकरण के अंतर्गत ही आते हैं ।

Essay # 3. निजीकरण के लाभ (Merits of Privatising Banks):

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बैंकों के निजीकरण से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होंगे:

1. बैंक अपनी पूंजी स्वयं जुटायेंगे जिससे सरकार पर वित्तीय दबाव में कमी आयेगी ।

2. अनुशासन में वृद्धि होगी तथा ग्राहकों को समुचित सुविधाएँ प्राप्त हो सकेंगी ।

3. बैंकों में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी तथा ग्राहक सेवा के स्तर में वृद्धि होगी ।

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4. कर्मचारियो में लालफीताशाही कम होगी ।

5. बैंकों की लाभदायकता बढ़ेगी जिससे देश के आर्थिक विकास में वृद्धि होगी ।

Essay # 4. निजीकरण के दोष (Demerits of Privatising Banks):

बैंकों के निजीकरण से निम्नलिखित दोष उत्पन्न हो जाएंगे:

1. तानाशाही को बढाना मिलेगा ।

2. कर्मचारियों में असंतोष बढ़ेगा तथा वे खुलकर विरोध करेंगे ।

3. सरकार के सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति नहीं हो सकेगी ।

4. बैंक केवल कुछ घरानों तक सीमित होकर रह जाएंगे ।

5. आम जनता को बेहतर सुविधाएँ प्राप्त नहीं हो सकेंगी ।

अतः सरकार को बैंकों का निजीकरण करते समय विभिन्न पहलुओं पर ध्यान देना होगा तथा किसी भी हालत में सम्पूर्ण निजीकरण उचित नहीं ठहराया जा सकता है । चूंकि वर्ष 1969 से पहले बैंक निजी क्षेत्र में ही थे और उनकी कमियों को दूर करने के लिये इन्हें सरकारी क्षेत्र में लिया गया था ।

अतः भारतवर्ष जैसे विकासशील देश में निजी तथा सरकारी, दोनों बैंकों को विद्यमान होना चाहिये तथा सरकारी बैंकों में विद्यमान कमियों को दूर करने का प्रयास करना चाहिये ।

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