Here is a compilation of essays on ‘Indian Agricultural Marketing’ for class 8, 9, 10, 11, and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Indian Agricultural Marketing’ especially written for school and college students in Hindi language.

Essay on Indian Agricultural Marketing


Essay Contents:

  1. भारतीय कृषि बाजारों का प्रारम्भ (Introduction to Indian Agricultural Marketing)
  2. बाजार की मूलभूत सुविधाएं (Market Infrastructure of Indian Agricultural Marketing)
  3. कृषि व्यापार (Agricultural Trade of Indian Agricultural Marketing)
  4. भारतीय कृषि बाजारों की समस्या (Problems of Indian Agricultural Marketing)
  5. भारतीय कृषि बाजारों के सुधार के उपाय (Measures Taken for Indian Agricultural Marketing)


Essay # 1. भारतीय कृषि बाजारों का प्रारम्भ (Introduction to Indian Agricultural Marketing):

ADVERTISEMENTS:

कृषि उत्पादकों को खेत से लेकर, उसकी ढुलाई, मण्डी में बेचना तथा उपभोक्ता तक पहुंचाने तक की प्रक्रियाएं सम्मिलित होती हैं । जब किसी कृषि उत्पादन को विदेशी को भेजा जाये तो उसे अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कहते हैं ।

कृषि बाजार उस कुशल प्रणाली को कहते हैं जिसके द्वारा किसानों के कृषि उत्पाद को बाजार में बेचा जाता है । किसानों की आय एवं ग्रामीण लोगों के जीवन-स्तर को ऊँचा उठाने में उनको उनकी कृषि पैदावार का उचित मूल्य मिलना बहुत आवश्यक है ।

वर्तमान में कृषि उत्पादकों की बिक्री (Marketing) निम्न चार प्रकार से की जाती है:

(i) कृषि उत्पाद को गाँव में ही बेचना (Sale in Villages):

ADVERTISEMENTS:

कुछ किसान अपने कृषि उत्पाद को गाँव में साहूकारों (Money Lenders) को बेच देते हैं । वास्तव में 50 प्रतिशत पैदावार गांव में ही बेच दी जाती है ।

(ii) कृषि उत्पाद को पैंठ (Weekly Market) में बेचना:

बहुत से किसान अपनी कृषि पैदावार को पेंठ अथवा हाट में बेच देते हैं । ऐंठ, अमली-फेल, में लगने वाले साप्ताहिक बाजार को कहते हैं ।

(iii) कृषि मण्डियों में उत्पादकों को बेचना (Sale in Agricultural Markets):

ADVERTISEMENTS:

भारत में लगभग आठ हजार आनाज की मण्डियों (Agricultural Markets) हैं, जो छोटे-बड़े नगरों में फैली हुई हैं । इन मण्डियों में किसान अपने उत्पादकों को स्वयं ले जाते हैं तथा ‘दलाल’ (Middleman or Broker) की सहायता से उत्पादों को बेच देते हैं । इस प्रकार से उत्पाद को खरीदने वालों को महाजन कहा जाता है । महाजन ऐसी खरीदी गई वस्तुओं को उपभोक्ताओं को ऊँचे दामों में बेच कर लाभ कमाते हैं ।

(iv) सहकारी मार्केटिंग (Co-Operatives Marketing):

भारत के कुछ भागों में किसान सहकारी-समितियों (Co-Operatives Societies) का संगठन करते हैं । इस प्रकार से सामूहिक रूप से कृषि वस्तुओं को बेचकर बेहतर मूल्य प्राप्त करते हैं ।


Essay # 2. बाजार की मूलभूत सुविधाएं (Market Infrastructure of Indian Agricultural Marketing):

किसी भी तन्त्र (System) की कार्यक्षमता का आधार उसकी मूलभूत सुविधाओं (Infrastructure) पर निर्भर करता है । बाजार की मूलभूत सुविधाओं में मंडियों (Markets) का जाल ग्रेडिंग (Grading), ग्रामीण सड़कें, परिवहन की सुविधा और दूरसंचार सुविधाएं सम्मिलित हैं ।

भारत में हरित क्रान्ति (1964-65) से पहले केवल लगभग 1000 नियंत्रित मंडियां (Regulated Markets) थीं । इस समय इनकी संख्या बढ्‌कर 8000 से अधिक हो गई हैं । किसानों के लिये मंडियों की दूरी फलस्वरूप कम हो गया है । इस समय प्रत्येक 400 वर्ग किलोमीटर में एक कृषि मंडी है । इनके अतिरिक्त 27,000 से अधिक साप्ताहिक बाजार (Weekly) हैं । इन साप्ताहिक बाजारों को पेंठ, हाट, शत्ती तथा शाण्डी कहते हैं ।

गोदाम की सुविधाएं (Storage Facilities):

कृषि उत्पादों को सुरक्षित रखने के लिये गोदाम अथवा भंडारों का निर्माण अनिवार्य है । गोदामों वस्तुओं अनाज इत्यादि को नमी, कीटाणोमा (Insects) से और चूहों से सुरक्षा प्रदान करते हैं । भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India), वेयर हाऊसिंग (Warehousing Corporation) आदि ने बहुत-से गोदामों का निर्माण किया है, जिनमें 233 लाख टन उत्पादों को सुरक्षित रखा जा सकता है ।

संस्थागत मूलभूत सुविधाएं (Institutional Infrastructure):

बाजार की भौतिक सुविधाओं के साथ-साथ, संस्थागत सुविधाओं को विकसित करना भी अनिवार्य है ।

इन संस्थाओं में निम्नलिखित सम्मिलित हैं:

(i) भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India)

(ii) भारतीय कपास निगम, (Cotton Corporation of India)

(iii) भारतीय पटसन निगम, (Jute Corporation of India)

(iv) राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड, (National Dairy Development Board)

(v) बागानी कृषि हेतु बोर्ड, (Commodity Boards for Plantation Boards)

(vi) विशिष्ट विपणन निगम, (Special Marketing Corporation) तथा

(vii ) कृषि लागत एवं मूल्य निगम (Commission on Agricultural Costs and Prices CACP)

सहकारी बाजार संस्थाएं (Co-Operatives Marketing Institutions-CMI):

भारत की प्रमुख सहकारी बाजार संस्थायें निम्न प्रकार हैं:

(i) नेशनल एग्रीकल्चरल को-ऑपेरेटिव मार्केटिंग फेड्रेशन (National Agricultural Co-Operatives Marketing Federations- NAFED),

(ii) राज्य स्तरीय कृषि सहकारी-बाजार संघ (State Level Agricultural Co-Operative Marketing Federation),

(iii) राज्य स्तरीय कृषि बाजार बोर्ड (State Level Agricultural Marketing Boards),

(iv) प्राइमरी, केन्द्रीय एवं राज्य-स्तरीय बाजार सीमितियां अथवा संघ (Primary, Central and State Level Marketing Societies or Unions),

(v) स्पेशल मार्केटिंग सोसाइटी (Special Marketing or Processing Societies), तथा;

(vi) ट्राइबल को-ऑपरेटिव मार्केटिंग फैड्रेशन (Tribal Co-Operative Marketing Federations)

सरकारी प्रत्यक्ष हस्तक्षेप (Direct Government Intervention):

भारत सरकार पिछले पांच दशकों से कृषि बाजार में प्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप करती है ।

यह हस्तक्षेप निम्न प्रकार है:

(i) कृषि उत्पादों की खरीदारी ऊँची दरों पर करना – 1965 (Price Support and Procurement, 1965),

(ii) सुरक्षित भंडार रखना (Maintenance of Buffer Stock and Operational Stock),

(iii) सरकारी वितरण प्रणाली (Public Distributions System)

(iv) खुले बाजार में कृषि उत्पादों को बेचना (Open Market Operation)


Essay # 3. कृषि व्यापार (Agricultural Trade of Indian Agricultural Marketing):

स्वतंत्रता प्राप्त करने से पहले भारत के व्यापार पर साम्राज्यवाद का प्रभाव था । ब्रिटिश सरकार के समय मुख्यत: कच्चे माल का निर्यात किया जाता था तथा तैयार माल का आयात । कुल आयात में 70 से 80 प्रतिशत खाद्य पदार्थों को आयात किया जाता था । स्वतंत्रता प्राप्त करने के पश्चात निर्यात एवं आयात की वस्तुओं में भारी परिवर्तन हुआ है ।

निर्यात संरचना (Composition of Export):

आजादी के पश्चात् भारत में वैश्वीकरण (Globalisation), उदारीकरण (Liberalization) तथा निजीकरण (Privatization) की नीति पर अमल करना आरम्भ हुआ ।

इस नीति के मुख्य उद्देश्यों में- (i) निर्यात को बढ़ावा देना, (ii) तैयार माल आयात करना, (iii) देश की आन्तरिक अर्थव्यवस्था को द्रढ़ता प्रदान करना, तथा (iv) उत्तम आधुनिक प्रौद्योगिकी का आयात करना था ।

भारत से निर्यात की जाने वाली कृषि वस्तुएं:

वर्ष 1991 में वैश्वीकरण, उदारीकरण तथा निजीकरण आरम्भ हुआ तब से कृषि उत्पादनों के निर्यात में विशेष परिवर्तन आया है । सागरीय एवं जलाशयों से प्राप्त की गई उत्पादनों के निर्यात में वृद्धि हो रही है, फिर भी चावल का निर्यात अधिक है । चावल, सागरीय-पदार्थों के पश्चात तिलहन पदार्थों, (Oil-Meals)का स्थान तीसरा है । बासमती चावल के स्थान पर चावल की अन्य किस्मों के निर्यात में वृद्धि हुई है ।

कभी-कभी भारत से गेहूँ का निर्यात किया जाता है । वास्तव में गेहूँ के निर्यात पर भारी उतार-चढ़ाव देखा जाता है । कभी-कभी गेहूँ का आयात भी किया जाता है । कपास और चीनी के निर्यात में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं । भारत में उत्तम प्रकार की दालों का भी निर्यात किया जाता है ।

चीनी का कभी बहुत निर्यात किया जाता है तथा कभी चीनी का आयात भी किया जाता है । उपरोक्त के अतिरिक्त चाय, गर्म मसाले, कॉफी तथा तम्बाकू का रिवायती ढंग से निर्यात किया जाता है, परन्तु गर्म-मसालों को छोड़कर इनके निर्यात में कमी आई है । दूध मांस फल तथा सब्जियों के निर्यात में कुछ वृद्धि हुई है ।

कृषि वस्तुओं का आयात (Composition of Import):

कृषि आयात में खाद्य सामग्री, जीवित पशु, खाने का तेल, कपास, लकड़ी इत्यादि सम्मिलित हैं । वर्ष 1994 सें डालडा (सब्जियों का तेल) का तेल सबसे अधिक आयात किया जाता है । लगभग 5 मिलियन टन डालडा अथवा खाने के तेल का आयात किया जाता है ।

फल, गिरीदार फल (काष्ठ फल), काजू, बादाम को भी आयात किया जाता है । आयात किये जाने वाले काजू को प्रसंस्करण (Processing) के पश्चात निर्यात कर दिया जाता है । पिछले कुछ वर्षों में गर्म मसालों के आयात सहित चीनी, गेहूँ, प्याज इत्यादि के आयात में वृद्धि हुई है ।


Essay # 4. भारतीय कृषि बाजारों की समस्या (Problems of Indian Agricultural Marketing):

भारत की कृषि उत्पाद की मुख्य समस्याओं को संक्षेप में निम्न में प्रस्तुत किया गया है:

(i) कृषि भण्डारों अथवा गोदामों की कमी (Lack of Storage Facilities):

भारत में कृषि उत्पाद को भण्डारों (Stores) में रखने की भारी कमी है । एक अनुमान के अनुसार प्रतिवर्ष 20 से 30 प्रतिशत उत्पादन बारिश अथवा चूहे इत्यादि से खराब हो जाते हैं ।

(ii) उपयुक्त परिवहन का अभाव लिए (Lack of Transportation):

भारत के अधिकतर भाग में ग्रामीण सड़कों की हालत बेहतर नहीं हैं, जिसके कारण फसल पैदावार को मण्डियों तक ले जाने में भारी कठिनाई आती है ।

(iii) विपत्ति के कारण बिक्री (Distress Sale):

अधिकतर छोटे तथा सीमांत किसान गरीब हैं इसलिये अपनी आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिये उनको अपनी पैदावार को सस्ते दामों (मूल्य) पर तुरन्त बेचना पड़ता है ।

(iv) कृषि मण्डियों में मूलभूत सुविधाओं की कमी (Inadequate Infrastructural Facilities in the Agricultural Markets):

भारत की मण्डियों में किसानों को अपनी पैदावार को बेचने के लिये लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता है । वस्तुओं को जल्द बेचने के लिये किसानों को दलालों की सहायता लेनी पड़ती है । ये दलाल किसी की पैदावार पर भारी लाभ कमाते हैं ।

(v) दलाल (Intermediaries or Dalal):

भारत की कृषि मण्डियों में भारी संख्या में दलाल पाये जाते हैं । उत्पादन की बिक्री पर अधिक लाभ इन बिचौलियों या दलालों को होता है ।

(vi) नियंत्रित बाजारों की कमी (Lack of Regulated Markets):

भारत के सभी क्षेत्रों में बहुत-से अनियंत्रित बाजार हैं । इन बाजारों में उत्पादन को तोलने के मानक यन्त्रों की कमी हैं ।

(vii) फसलों के उत्पादकों के श्रेणीकरण का अभाव (Lack of Grading):

कृषि उत्पादकों को ग्रेडिंग न करने से किसान को उचित मूल्य नहीं मिल पाता ।

(viii) वित्तीय सहायता संस्थाओं का अभाव (Lack of Institution Financing):

उपयुक्त वित्तीय सहायता की संस्थाएं न होने के कारण किसान प्रायः भारी ब्याज पर साहूकारों से कर्जा लेता है । ऐसे ऋणी किसानों को अपने उत्पादन को सस्ते मूल्य पर साहूकारों को बेचना पड़ता है ।


Essay # 5. भारतीय कृषि बाजारों के सुधार के उपाय (Measures Taken for Indian Agricultural Marketing):

भारत में अधिकतर कृषि उत्पादन निजी साहूकारों के द्वारा अथवा दलालों के माध्यम से बेचा जाता है । फलस्वरूप किसानों को उनकी पैदावार का उचित मूल्य नहीं मिल पाता ।

किसानों को उनके कृषि उत्पादनों का उचित मूल्य दिलाने के लिए निम्न उपाय प्रभावशाली हो सकते हैं:

(i) नियंत्रित बाजारों की स्थापना करना (Establishment of Regulated Markets):

उचित मूल्य दिलाने के लिये नियंत्रित बाजारों की स्थापना की जानी चाहिए । वर्तमान 70 प्रतिशत कृषि उत्पादन नियंत्रित बाजारों या मण्डियों में बेचा जाता है । ऐसे बाजारों एवं मण्डियों की संख्या में वृद्धि किए जाने की आवश्यकता है ।

(ii) ग्रेडिंग एवं मानकीकरण (Grading and Standardization):

भारत सरकार में आटा, घी, मक्खन, अण्डे इत्यादि के मानकीकरण का प्रावधान कानून के द्वारा किया है । जिन वस्तुओं का मानकीकरण किया जाता है उन पर एगमार्क (Agmark) की मोहर कृषि विपणन विभाग के द्वारा लगाई जाती है ।

इसके अतिरिक्त केन्द्रीय गुणवक्ता नियन्त्रण प्रयोगशाला (Central Quality Control Laboratory) नागपुर में स्थापित की है । साथ ही साथ देश के अन्य भागों में आठ अन्य केन्द्र भी एगमार्क (Agmark) के नमूनों की जाँच के लिये स्थापित किये हैं ।

(iii) कृषि उत्पादन भंडारों का निर्माण करना (Construction of Storage Facilities):

भारत में सेण्ट्रल वेयरहाऊसिंग कॉरपोरेशन (Central Warehousing Corporation) की स्थापना 1957 में की थी । इसका उद्देश्य कृषि उत्पदनों को रखने के लिये गोदाम और भंडार गृहों का निर्माण करना था । राज्य सरकारों ने बहुत-से अपने गोदामों का भी निर्माण किया था ।

(iv) बाजार के मूल्यों की जानकारी से अवगत कराना (Dissemination of Market Information):

आकाशवाणी (All India Radio) तथा दूरदर्शन के द्वारा किसानों कृषि उत्पनों के मूल्यों की जानकारी देते रहनी चाहिये ।

(v) सहकारी बाजार समितियों का गठन करना (Establishment of Co-Operative Marketing Societies):

यह सहकारी समितियां किसानों को ब्याज की सस्ती दरों पर रुपया उधार देने का प्रबंध भी करती हैं ।

(vi) वस्तुओं के बोर्ड (Commodity Boards):

कृषि की विशेष वस्तुओं के बोर्ड स्थापित करना- जैसे, रबड चाय काफी तम्बाकू, गर्म मसालों, नारियल तिलहन तथा फलों के बोर्ड ।

(vii) किसानों रुपया उधार पर देने का प्रबंध करना ।

(viii) सड्‌कों की समय से मरम्मत एवं विस्तार कराना (Improvement and Extension of Roads) ।

(ix) कृषि उत्पादनों का मानकीकरण करना (Provision of Standard of Produce) ।

(x) सरकार द्वारा कृषि उत्पादनों के लिये उचित मूल्य निर्धारित करना (Formulation of Suitable Agriculture Price Policy):

इस नीति के द्वारा किसानों को उनकी वस्तुओं का उचित मूल्य दिलाया जा सकता है । तालिका 12.5 से विभिन्न कृषि उत्पादों के बेचने योग्य मात्रा का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है ।

तालिका 12.5 के अध्ययन से पता चलता है कि लगभग छह करोड़ टन चावल और चार करोड़ टन गेहूँ बाजार में बेचने के लिये उपलब्ध है । अन्य उत्पादों की बाजार में आने वाली मात्रा भी इस तालिका 12.5 में दी गई है ।